चंद्रमा को अर्घ्य क्यों ?
इसका उल्लेख ‘व्रतराज’ में किया गया है कि शिरोच्छेन के अनंतर
गणेशजी का वास्तविक सिर चंद्रलोक में चला गया और
यह मान्यता है कि आज भी वहां विद्यमान है।
पूजन करने के पश्चात एवं अर्घ्य देने के बाद आचमन, प्रणाम
और परिक्रमा आदि के अनंतर गणेश गायत्री ‘ऊं
महोल्काय विद्महे वक्रतुण्डाय
धिमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्’ का जप करें।
अर्घ्य का समय- रात्रि को 20:42 बजे चंद्रोदय है।
इसी समय अर्घ्य प्रदान किया जाय। ?
इसका उल्लेख ‘व्रतराज’ में किया गया है कि शिरोच्छेन के अनंतर
गणेशजी का वास्तविक सिर चंद्रलोक में चला गया और
यह मान्यता है कि आज भी वहां विद्यमान है।
पूजन करने के पश्चात एवं अर्घ्य देने के बाद आचमन, प्रणाम
और परिक्रमा आदि के अनंतर गणेश गायत्री ‘ऊं
महोल्काय विद्महे वक्रतुण्डाय
धिमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्’ का जप करें।
अर्घ्य का समय- रात्रि को 20:42 बजे चंद्रोदय है।
इसी समय अर्घ्य प्रदान किया जाय।
इसका उल्लेख ‘व्रतराज’ में किया गया है कि शिरोच्छेन के अनंतर
गणेशजी का वास्तविक सिर चंद्रलोक में चला गया और
यह मान्यता है कि आज भी वहां विद्यमान है।
पूजन करने के पश्चात एवं अर्घ्य देने के बाद आचमन, प्रणाम
और परिक्रमा आदि के अनंतर गणेश गायत्री ‘ऊं
महोल्काय विद्महे वक्रतुण्डाय
धिमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्’ का जप करें।
अर्घ्य का समय- रात्रि को 20:42 बजे चंद्रोदय है।
इसी समय अर्घ्य प्रदान किया जाय। ?
इसका उल्लेख ‘व्रतराज’ में किया गया है कि शिरोच्छेन के अनंतर
गणेशजी का वास्तविक सिर चंद्रलोक में चला गया और
यह मान्यता है कि आज भी वहां विद्यमान है।
पूजन करने के पश्चात एवं अर्घ्य देने के बाद आचमन, प्रणाम
और परिक्रमा आदि के अनंतर गणेश गायत्री ‘ऊं
महोल्काय विद्महे वक्रतुण्डाय
धिमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्’ का जप करें।
अर्घ्य का समय- रात्रि को 20:42 बजे चंद्रोदय है।
इसी समय अर्घ्य प्रदान किया जाय।
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