Wednesday, December 11, 2019

कुण्डली में पागल होने के कुछ योग

🌞कुंडली में पागल होने के योग🌞

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पागल होने के योग बन रहे हैं तो ऐसे लोगों को सावधान रहने की आवश्यकता होती है। ऐसे योग के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बताए गए उपाय अपनाने चाहिए।पागलपन की बीमारी किसी को बचपन से ही रहती है तो किसी को बड़ी उम्र में इस परेशानी का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कुछ विशेष योग होते हैं जो पागलपन की संभावना बताते हैं-

🔰पागलपन के योग-🔰

- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र, बुध की युति केंद्र स्थान में हो अथवा यह दोनों ग्रह लग्र भाव में स्थित हो तो व्यक्ति उन्मादी या अल्पबुद्धि वाला हो सकता है।

- भाग्य एवं संतान भाव में सूर्य-चंद्र हो तो व्यक्ति का मानसिक विकास ठीक से नहीं हो पाता।

- गुरु और शनि केंद्र में स्थित हो और शनिवार या मंगलवार का जन्म हो तो व्यक्ति पागल हो सकता है।

- यदि मंगल सप्तम स्थान में तथा लग्र में गुरु हो तो व्यक्ति किसी सदमे से पागल हो जाता है।

- यदि कमजोर चंद्र, शनि के साथ द्वादश भाव में युति करता है तो जातक पागल हो जाता है।

- मंगल, पंचम, सप्तम, नवम भाव में हो तो भी जातक पागल हो सकता है।

- कमजोर बुध केंद्र में या लग्र में बैठा हो तो वह व्यक्ति मंदबुद्धि होता है।

इन सभी योगों के साथ ही कुंडली के अन्य योगों और ग्रहों की स्थिति का भी अध्ययन किया जाना चाहिए। कुछ परिस्थितियों में दूसरों ग्रहों के प्रभाव ये अशुभ फल स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। पूर्ण कुंडली का अध्ययन करने पर ही सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है।

🔯पागलपन से बचने के कुछ उपाय-🔯

- गौमूत्र का सेवन करें। 

- बुध के मंत्रों का जाप करें।

- प्रतिदिन शिवजी की विधि-विधान से पूजा करें।

- बुधवार के दिन गाय को चारा खिलाएं।

- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।

- बुधवार को गणेशजी को दूर्वा और लाल फूल अर्पित करें।

- किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श लेकर अशुभ योगों का ज्योतिषीय उपचार करवाना चाहिए।

Monday, December 9, 2019

व्यवसाय के लिए राशि नाम

व्यवसाय के लिये राशि नाम एवं जन्म राशि का महत्त्व

जन्म नाम को कई प्रकार से रखा जाता है,भारत में जन्म नाम को चन्द्र राशि से रखने का रिवाज है,चन्द्र राशि को महत्वपूर्ण इसलिये माना जाता है कि शरीर मन के अनुसार चलने वाला होता है,बिना मन के कोई काम नही किया जा सकता है यह अटल है,बिना मन के किया जाने वाला काम या तो दासता में किया जाता है या फ़िर परिस्थिति में किया जाता है। दासता को ही नौकरी कहते है और परिस्थिति में जभी काम किया जाता है जब कहीं किसी के दबाब में आकर या प्रकृति के द्वारा प्रकोप के कारण काम किया जाये। जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा का स्थान जिस राशि में होता है,उस राशि का नाम जातक का रखा जाता है,नामाक्षर को रखने के लिये नक्षत्र को देखा जाता है और नक्षत्र में उसके पाये को देखा जाता है,पाये के अनुसार एक ही राशि में कई अक्षरों से शुरु होने वाले नामाक्षर होते है। राशि का नाम तो जातक के घर वाले या पंडितों से रखवाया जाता है,लेकिन नामाक्षर को प्रकृति रखती है,कई बार देखा जाता है कि जातक का जो नामकरण हुआ है उसे कोई नही जानता है,और घर के अन्दर या बाहर का व्यक्ति किसी अटपटे नाम से पुकारने लग जाये तो उस नाम से व्यक्ति प्रसिद्ध हो जाता है। यह नाम जो प्रकृति के द्वारा रखा जाता है,ज्योतिष में अपनी अच्छी भूमिका प्रदान करता है। अक्सर देखा जाता है कि कन्या राशि वालों का नाम कन्या राशि के त्रिकोण में या लगन के त्रिकोण में से ही होता है,वह जातक के घर वालों या किसी प्रकार से जानबूझ कर भी नही रखा गया हो लेकिन वह नाम कुंडली बनाने के समय त्रिकोण में या नवांश में जरूर अपना स्थान रखता है। मैने कभी कभी किसी व्यक्ति की कुंडली को उसकी पचास साल की उम्र में बनाया है और पाया कि उसका नाम राशि या लगन से अथवा नवांश के त्रिकोण से अपने आप प्रकृति ने रख दिया है। कोई भी व्यवसाय करने के लिये नामाक्षर को देखना पडता है,और नामाक्षर की राशि का लाभ भाव का दूसरा अक्षर अगर सामने होता है तो लाभ वाली स्थिति होती है,अगर वही दूसरा अक्षर अगर त्रिक भावों का होता है तो किसी प्रकार से भी लाभ की गुंजायस नही रहती है। उदाहरण के लिये अगर देखा जाये तो नाम "अमेरिका" में पहला नामाक्षर मेष राशि का है और दूसरा अक्षर सिंह राशि का होने के कारण पूरा नाम ही लाभ भाव का है,और मित्र बनाने और लाभ कमाने के अलावा और कोई उदाहरण नही मिलता है,उसी प्रकार से "चीन" शब्द के नामाक्षर में पहला अक्षर मीन राशि का है और दूसरा अक्षर वृश्चिक राशि का होने से नामानुसार कबाड से जुगाड बनाने के लिये इस देश को समझा जा सकता है,वृश्चिक राशि का भाव पंचमकारों की श्रेणी में आने से चीन में जनसंख्या बढने का कारण मैथुन से,चीन में अधिक से अधिक मांस का प्रयोग,चीन में अधिक से अधिक फ़ेंकने वाली वस्तुओं को उपयोगी बनाने और जब सात्विकता में देखा जाये तो वृश्चिक राशि के प्रभाव से ध्यान समाधि और पितरों पर अधिक विश्वास के लिये मानने से कोई मना नही कर सकता है। उसी प्रकार से भारत के नाम का पहला नामाक्षर धनु राशि का और दूसरा नामाक्षर तुला राशि का होने से धर्म और भाग्य जो धनु राशि का प्रभाव है,और तुला राशि का भाव अच्छा या बुरा सोचने के बाद अच्छे और बुरे के बीच में मिलने वाले भेद को प्राप्त करने के बाद किये जाने वाले कार्यों से भारत का नाम सिरमौर रहा है। इसी तरह से अगर किसी व्यक्ति का नाम "अमर" अटल आदि है तो वह किसी ना किसी प्रकार से अपने लिये लाभ का रास्ता कहीं ना कहीं से प्राप्त कर लेगा यह भी एक ज्योतिष का चमत्कार ही माना जा सकता है।अपने नाम के अनुसार किस प्रकार से व्यवसाय को चुना जावे अपने अपने नाम से व्यवसाय करने के लिये लोग तरह तरह के प्रयोग किया करते है,जैसे किसी के नाम के आगे एक ही राशि के दो अक्षर सामने आ जाते है तो वह फ़ौरन दूसरा शब्द उस नाम से लाभ लेने के लिये प्रयोग में ले आता है, एक नाम का उदाहरण है "एयरटेल" यह नाम अपने मे विशेषता लेकर चलता है,और इस नाम को भारतीय ज्योतिष के अनुसार प्रयोग करने के लिये जो भाव सामने आते है उनके आनुसार अक्षर "ए" वृष राशि का है और "य" वृश्चिक राशि का है,वृष से वृश्चिक एक-सात की भावना देती है,जो साझेदारी के लिये माना जाता है,इस नाम के अनुसार कोई भी काम बिना साझेदारी के नही किया जा सकता है,लेकिन साझेदारी के अन्दर भी लाभ का भाव होना जरूरी है,इसलिये दूसरा शब्द "टेल" में सिंह राशि का "ट" प्रयोग में लिया गया है,एक व्यक्ति साझेदारी करता है और लाभ कमाता है,अधिक गहरे में जाने से वृष से सिंह राशि एक चार का भाव देती है,लाभ कमाने के लिये इस राशि को जनता मे जाना पडेगा,कारण वृष से सिंह जनता के चौथे भाव में विराजमान है।

कैसे रखें प्रतिष्ठान का नाम

किसी भी फर्म कारखाना दुकान या किसी भी संस्था का नाम उसका मुकुट या बीजारोपण होता है जब हम किसी पेड़ को लगाते है तो सही भूमि सही समय का चयन करते है।इसके बाद वह पेड़ फलता फूलता है तब हम उसकी शीतल छांव मे आश्रय लेते है उसके फल खाते है।इसी तरह फर्म के नामकरण के समय सभी सदस्यों की पत्रिका अपनी कुल की परम्परा अपने कुल के देव कुल का हानि लाभ भाग्यवर्धक दिशा का चयन करना चाहिये।जिस स्थान मे फर्म डाल रहे है उस स्थान की भूमि कैसी है उसके वास्तुदोष का भी निराकरण करना चाहिये।

भाग्यवर्धक नामअक्षर

जिस तरह मां सभी को पालती है उसी तरह फर्म भी सभी का पोषण करती है इसके साथ सभी लोगों को भाग्य जुड़ा रहता है।इसिलिये अच्छी तरह से सोच समझकर पंजीकरण किया गय़ा नाम आपके भाग्य को बुलंदियों पर पहुँचाता है।

भाग्यवर्धक नाम अक्षर का राशि के अनुसार चुनाव 

मेष  इस राशि वालों को म,ध,अ ,ह ये नाम भाग्यवर्धक रहेंगे।
वृषभ  इस राशि के लिये प,ज ,व का नाम भाग्यवर्धक रहेगा।
मिथुन  इस राशि वालों को क,र,स ये नाम शुभ रहेंगे।
कर्क  इस राशि के लिये ह,न,ज,द अक्षर शुभ रहेंगे।
सिंह  इस राशि के लिये म,ध,अ अक्षर शुभ रहेंगे।
कन्या  इस राशि के लिये प,ज,द,व अक्षर भाग्यशाली रहेंगे।
तुला  इस राशि वालों को र,स,क इन नाम अक्षर से शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।
वृश्चिक  इस राशि वालों को द,ह,न ये नाम शुभ परिणाम दायक रहेंगे।
धनु  इस राशि वालों को अ,म,क नाम शुभ रहेंगे।
मकर  इस राशि वालों को प,व,र ये नाम शुभ परिणाम दायक रहेंगे।
कुम्भ इनके लिये र,म,क ये नाम शुभ है।
मीन इनके लिये ह,न,प ये नाम परम शुभ रहेंगे। 

दुकान,संस्थान,उद्योग का नामकरण आपके आर्थिक हित तथा अन्य लोगो से जुड़े संस्थान के नामकरण मॆ विशेष सावधानी बरतनी चाहिये.इनके नामकरण मॆ चतुर्थ,भाग्य तथा शनि की अनुकूल स्थिति आपको विशेष लाभ देगी.कोई भी नामकरण कोई मामूली नही विशेष महत्वपूर्ण है।

Monday, December 2, 2019

धनवान बनने के योग

🏵️ ।।धनवान बनने का योग ।।🏵️

यदि आप धनवान बनने का सपना देखते हैं, तो अपनी जन्म कुण्डली में इन ग्रह योगों को देखकर उसी अनुसार अपने प्रयासों को गति दें।

१ यदि लग्र का स्वामी दसवें भाव में आ जाता है तब जातक अपने माता-पिता से भी अधिक धनी होता है।

२ मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है।

३ जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है।

४ शनि ग्रह को छोड़कर जब दूसरे और नवे भाव के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठे होते हैं तब व्यक्ति को धनवान बना देते हैं।

५ जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बना देते हैं।

६ दूसरे भाव का स्वामी यदि ८ वें भाव में चला जाए तो व्यक्ति को स्वयं के परिश्रम और प्रयासों से धन पाता है।

७ यदि दसवें भाव का स्वामी लग्र में आ जाए तो जातक धनवान होता है।

८ सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर व्यक्ति अपार धन पाता है। विशेषकर जब सूर्य और राहू के ग्रहयोग बने।

९ छठे, आठवे और बारहवें भाव के स्वामी यदि छठे, आठवे, बारहवें या ग्यारहवे भाव में चले जाए तो व्यक्ति को अचानक धनपति बन जाता है।

१० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुंए, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।

११ मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवे भाव में और गुरु ग्यारहवे या पांचवे भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, खेती से या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती है।

१२ गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का और पांचवे भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति पुत्र और पुत्रियों के द्वारा धन लाभ पाता है।

१३ राहू, शनि या मंगल और सूर्य ग्यारहवें भाव में हों तब व्यक्ति धीरे-धीरे धनपति हो जाता है।

१४ बुध, शुक और शनि जिस भाव में एक साथ हो वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत ऊंचाई देकर धनकुबेर बनाता है

१५ दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति को विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन लाभ होता है।

१६ शनि जब तुला, मकर या कुंभ राशि में होता है, तब आंकिक योग्यता जैसे अकाउण्टेट, गणितज्ञ आदि बनकर धन अर्जित करता है।

१७ बुध, शुक्र और गुरु किसी भी ग्रह में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, प्रवचनकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।

१८ कुण्डली के त्रिकोण घरों या चतुष्कोण घरों में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो या फिर ३, ६ और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहू, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहू या शनि या शुक या बुध की दशा में अपार धन प्राप्त करता है।

१९ गुरु जब दसर्वे या ग्यारहवें भाव में और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवे भाव में हो या ग्रह इसकी विपरीत स्थिति में हो व्यक्ति को प्रशासनिक क्षमताओं के द्वारा धन अर्जित करता है।

२० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर अन्य कोई ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसार द्वारा अपार धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।