Thursday, August 6, 2020

प्रतिद्वंद्वी को हराने के मंत्र

प्रतिद्वंद्वी को हराने का मंत्र (अथर्व वेद से)
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उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वचः ।
यथाहं शत्रुहोऽसान्यसपत्नः सपत्नहा ॥ १ ॥ सपत्नक्षयणो वृषाभिराष्ट्रो विषा सहि। यथाहमेषां वीराणां विराजानि जनस्य च॥२॥

- का. 1/या. 5/से. 29 

अर्थ-यह सूर्य ऊपर चला गया है, मेरा यह मंत्र भी ऊपर गया है, ताकि मैं शत्रु को मारने वाला प्रतिद्वंद्वी रहित तथा प्रतिद्वन्द्वियों को मारने वाला होऊँ। प्रतिद्वंद्वी को नष्ट करने वाला प्रजाओं की इच्छा को पूरा करने वाला, राष्ट्र को सामर्थ्य से प्राप्त करने वाला तथा जीतने वाला होऊँ, ताकि मैं शत्रु पक्ष के वीरों का तथा अपने एवं पराये लोगों का शासक बन सकूं।

नोट- इस मंत्र को IAS व RAS तथा अन्य राजकीय उच्चपदाधिकार के अभिलाषी व्यक्तियों द्वारा इन मंत्रों का बराबर 21 रविवार तक प्रयोग कराए गये तथा वे सभी प्रयोग 95% सफल रहे। इस मन्त्र से सूर्य को नित्य अर्घ्य दिया जाता है प्रत्येक रविवार को अर्घ्य में रक्तपुष्प के साथ रक्तचंदन डाला जाता है। अर्घ्य द्वारा विसर्जित जल से दक्षिण नासिका, दक्षिण नेत्र, दक्षिण कर्ण व दक्षिण भुजा को स्पर्शित किया जाता है। तत्पश्चात् पूर्व निश्चित् साक्षात्कारों के लिए जावें तो अवश्य सफलता मिलती है। यह वस्तुत:आत्मविश्वास बढ़ाने वाला मंत्र है तथा दिन के 11 बजे से 3 बजे तक इस मन्त्र का विशिष्ट प्रभाव देखा गया है। प्रस्तुत मन्त्र 'राष्ट्रवर्द्धनम्' नामक सूक्त से उद्धृत है।
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