Thursday, April 8, 2021

खोयी वस्तु

👉चोरी गई वस्तु या खोई वस्तु का ज्ञान कैसे करें?
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 👉जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. 

👉 यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु शहर के भीतर है. 

 👉प्रश्न के समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु गली में है. 

👉 प्रश्न के समय चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में है तो खोई वस्तु जंगल में होती है. 

 👉 प्रश्न के समय चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु ऎसे स्थान पर है जहाँ नमक या नमकीन वस्तुओं का भण्डार हो. 

 👉प्रश्न के समय चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु चारपाई, पलँग अथवा सोने के स्थान के नीचे रखी होती है. 

 👉प्रश्न के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में स्थित है तो खोई वस्तु मंदिर में होती है. 

 👉प्रश्न के समय चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में है तो खोई वस्तु अनाज रखने के स्थान पर रखी गई है. 

 👉 प्रश्न के समय चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में है तो खोई वस्तु घर में ही है. 

 👉 प्रश्न के समय चन्द्रमा आश्लेषा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु धूल के ढेर में अथवा मिट्टी के ढे़र में छिपाई गई है. 

 👉 प्रश्न के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु चावल रखने के स्थान पर होती है. 

 👉 प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शून्य घर में होती है. 

 👉प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु जलाशय में होती है. 

  👉 प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु तालाब अथवा पानी की जगह पर होती है. 

 👉 प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु रुई के खेत में अथवा रुई के ढे़र में होती है. 

 👉प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शयनकक्ष में होती है. 

👉प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु अग्नि के समीप अथवा वर्तमान समय में अग्नि से संबंधित फैकटरियों में हो सकती है. 

  👉प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु लताओं अथवा बेलों के नजदीक होती है. 

👉 प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु मरुस्थल अथवा बंजर जगह पर होती है. 

 👉 प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा मूल नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु पायगा में होती है. 

 👉प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु छप्पर में छिपाई जाती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा उत्तराषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु धोबी के कपडे़ धोने के पात्र में होती है. 

 👉 प्रश्न के समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु व्यायाम करने के स्थान पर या परेड करने की जगह होती है. 

 👉प्रश्न के समय घनिष्ठा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु चक्की के निकट होती है. 

 👉 प्रश्न के समय शतभिषा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु गली में होती है. 

  👉प्रश्न के समय पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु घर में आग्नेयकोण में होती है. 

  👉 प्रश्न के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु दलदल में होती है. 

  👉 प्रश्न के समय रेवती नक्षत्र हो तो खोई वस्तु बगीचे में होती है. 

  👉खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इस बात का पता भी नक्षत्रों के अनुसार चल जाता है. सभी 28 नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है. 

   👉नक्षत्रों का लोचन ज्ञान | Lochan Facts About The Nakshatra
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1---👉अंध लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Andh Lochan  

रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा. 

  2---👉मंद लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatra Coming in Mand Lochan

अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा. 

 3---👉मध्य लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Madhya Lochan

भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद. 

 4--👉सुलोचन नक्षत्र में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Sulochan Nakshatras

कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद. 

 👉 यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है. 

 👉 यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है. 

 👉यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है. 

 👉 यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो खबर ही मिलती है और ना ही वस्तु ही मिलती है.

Tuesday, April 6, 2021

खोयी वस्तु की जानकारी

ज्योतिष से पकडे चोर और जाने खोयी या चोरी हुई वस्तु के विषय में सम्पूर्ण विवरण 

आजकल जिस तरह से आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है। चोरी का भय भी बढ़ता जा रहा है। लोग अपना घर सूना छोड़ने में डरने लगे हैं। किस पर विश्वास करें, किस पर न करें यह बड़ा विचारणीय प्रश्न बन गया है। कई बार लोगों को बड़ा नुकसान हो जाता है, जब उनके घर, व्यापारिक प्रतिष्ठान या यात्रा आदि के दौरान सामान चोरी हो जाता है।

घरों में छोटी मोटी चोरी की घटना घट जाती है। तब एक छटपटाहट सी रहती है, चोर कौन हो सकता है। ज्योतिष द्वारा इसका सटीक पता प्रश्न कुंडली से लगाया जाता है।

ज्योतिष वाकई एक शास्त्र से बढ़कर विज्ञान है, जिसमें प्रत्येक प्रश्न का उत्तर समाया हुआ है। चोरी गई वस्तु मिलेगी या नहीं मिलेगी। मिलेगी तो कब तक मिलेगी इस बात तक का पता ज्योतिष शास्त्र के जरिए लगाया जा सकता है।

 जब भी चोरी का पता लगता है, उस समय को नोट कर लीजिये, प्रश्न कुंडली बनायें।
प्रश्न कुण्डली से तमाम ऐसे सवालों के जवाब हासिल किए जा सकते हैं, जिनका समाधान सामान्य प्रचलित सिद्धांतों से संभव नहीं होता।  इसी क्रम में ये भी जानना रोचक है कि प्रश्न कुण्डली के माध्यम से चोरी गयी वस्तु मिलेगी अथवा नहीं, किसने चोरी की यानि चोर घर का व्यक्ति है अथवा बाहर का, चोरी की दिशा आदि का स्पष्ट संधान किया जा सकता है।
 मान लिया कोई इंसान जिसके घर में कीमती और बहुमूल्य वस्तुओं की चोरी हो गयी है, वह यदि प्रश्नकर्ता की हैसियत से प्रश्न ज्योतिष विशेषज्ञ के पास आता है और सविनय अनुरोध करता है कि उसके घर में हुई चोरी की घटना में उसकी सहायता करने की कृपा करें तो ऐसे में प्रश्न ज्योतिर्विद उसके प्रश्न पूछने के वक्त को नोट कर उसके आधार पर प्रश्न कुण्डली का निर्माण कर लेता है।

इसके पश्चात वह लग्नादि ग्रहों की विवेचना करते हुए चोरी गयी वस्तु और उस घटना से संबंधित सभी विवरणों की समीक्षा करता है तत्पश्चात वह अपना निष्कर्ष सामने रखता है।  

प्रश्न ज्योतिर्विद प्रश्न कुण्डली के लग्न से प्रश्नकर्ता का, चंद्र से चोरी हुई वस्तु  का, चतुर्थ भाव से चोरी हुई वस्तु और उसकी पुनः प्राप्ति का, सप्तम भाव से चोर का, अष्टम भाव से चोर द्वारा जमा धन का तथा दशम भाव से पुलिस या सरकार का विचार करता है। चोरी हुई वस्तु के मिलने के योग तब बनते हैं जबकि लग्नेश सप्तम में और सप्तमेश लग्न में हो। लग्नेश और सप्तमेश का सप्तम स्थान में इत्थशाल हो। लग्नेश और दशमेश का इत्थशाल हो। तृतीयेश या नवमेश का सप्तमेश से इत्थशाल हो। चंद्र जिस राशि में स्थित हो उसका स्वामी चंद्रमा को पूर्ण मित्र दृष्टि से देख रहा हो। या फिर सूर्य और चंद्र दोनों लग्न को देखते हों। शुभ ग्रहों का चंद्र से इत्थशाल हो और चंद्र, लग्न या धन स्थान में हो। अष्टमेश अष्टम या सप्तम स्थान में हो। सप्तमेश और सूर्य चंद्र के साथ अस्त हों।

तृतीय स्थान में पापग्रह और पंचम स्थान में शुभ ग्रह हों तो चोर स्वयं धन वापस कर देता है। तुला, वृष या कुंभ लग्न में चोरी का सामान निश्चित रूप से मिल जाता है।

किंतु यदि लग्नेश और द्वितीयेश में इत्थशाल न हो तो ऐसे में चोरी हुई वस्तु की सूचना मिल जाने के बावजूद वह वस्तु वापस पाने की संभावना क्षीण होती है।

लग्नादि ग्रहों की विवेचना करते हुए चोरी गयी वस्तु और उस घटना से संबंधित सभी विवरणों की समीक्षा करता है तत्पश्चात वह अपना निष्कर्ष सामने रखता है।  

प्रश्न ज्योतिर्विद प्रश्न कुण्डली के लग्न से प्रश्नकर्ता का, चंद्र से चोरी हुई वस्तु  का, चतुर्थ भाव से चोरी हुई वस्तु और उसकी पुनः प्राप्ति का, सप्तम भाव से चोर का, अष्टम भाव से चोर द्वारा जमा धन का तथा दशम भाव से पुलिस या सरकार का विचार करता है। चोरी हुई वस्तु के मिलने के योग तब बनते हैं जबकि लग्नेश सप्तम में और सप्तमेश लग्न में हो। लग्नेश और सप्तमेश का सप्तम स्थान में इत्थशाल हो। लग्नेश और दशमेश का इत्थशाल हो। तृतीयेश या नवमेश का सप्तमेश से इत्थशाल हो। चंद्र जिस राशि में स्थित हो उसका स्वामी चंद्रमा को पूर्ण मित्र दृष्टि से देख रहा हो। या फिर सूर्य और चंद्र दोनों लग्न को देखते हों। शुभ ग्रहों का चंद्र से इत्थशाल हो और चंद्र, लग्न या धन स्थान में हो। अष्टमेश अष्टम या सप्तम स्थान में हो। सप्तमेश और सूर्य चंद्र के साथ अस्त हों।

तृतीय स्थान में पापग्रह और पंचम स्थान में शुभ ग्रह हों तो चोर स्वयं धन वापस कर देता है। तुला, वृष या कुंभ लग्न में चोरी का सामान निश्चित रूप से मिल जाता है।

किंतु यदि लग्नेश और द्वितीयेश में इत्थशाल न हो तो ऐसे में चोरी हुई वस्तु की सूचना मिल जाने के बावजूद वह वस्तु वापस पाने की संभावना क्षीण होती है।

थोड़ा और बारीकी से विवेचन और अन्वेषण  करे तो आगे हम  और भी स्पस्ट  पहचान कर सकते है 

मेष या वृषभ लग्न- पूर्व दिशा
मिथुन लग्न- अग्नि कोण
कर्क लग्न- दक्षिण
सिंह लग्न- नैरित्य कोण
कन्या लग्न- उत्तर दिशा
तुला और वृश्चिक लग्न- पश्चिम दिशा
धनु लग्न- वायव्य कोण
मकर और कुम्भ लग्न- उत्तर दिशा
मीन लग्न- इशान कोण

उपरोक्त लग्नों में खोयी वस्तु, उसके दिखाए गए लग्नो के सामने की दिशा में गयी है। चोरी करने वाला कौन हो सकता है ? नीचे लिखे लग्नों के आधार पर पता लगाया जा सकता है।

मेष लग्न- ब्राह्मण या सम्मानीय भद्र पुरुष
वृषभ लग्न- क्षत्रिय
मिथुन लग्न- वेश्य
कर्क लग्न- शुद्र या सेवक वर्ग
सिंह लग्न- स्वजन या आत्मीय व्यक्ति
कन्या लग्न- कुलीन स्त्री ,घर की बहू -बेटी या बहन
तुला लग्न- पुत्र ,भाई या जमाता
वृश्चिक लग्न- इतर जाति का व्यक्ति
धनु लग्न- स्त्री
मकर लग्न- वेश्य या व्यापारी
कुम्भ लग्न- चूहा
मीन लग्न- खोयी घर में ही पड़ी है कहीं

चोरी हुई वस्तु कहां छिपाई गयी?

-लग्नेश और सप्तमेश का आपस में परिवर्तन या दोनों एक ही भाव में हो तो वस्तु घर में ही कहीं छुपी या छुपाई गयी है।

-चंद्रमा अगर लग्न में हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होगी और अगर सप्तम में हो तो वस्तु पश्चिम में मिलेगी। चंद्रमा अगर दशम ने हो तो दक्षिण और चतुर्थ में हो तो वस्तु उत्तर दिशा में मिलेगी।

-अगर लग्न में अग्नितत्व राशि ( मेष, सिंह, धनु ) हो तो वस्तु घर के पूर्व, अग्नि -स्थान, रसोई घर में ही मिल जाती है।

-लग्न में अगर पृथ्वी -तत्व राशि ( वृषभ, कन्या, मकर ) हो तो वस्तु दक्षिण दिशा में भूमि में दबी मिलेगी।

-अगर लग्न में वायु -तत्व राशि ( मिथुन, तुला, कुम्भ ) हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में हवा में लटकाई गयी है।

-लग्न में जल-तत्व राशि ( कर्क, वृश्चिक, कुम्भ ) हो तो वस्तु जलाशय के पास या उसके आस-पास उत्तर दिशा में मिलेगी। 

ज्योतिष के अनुसार अलग-अलग नक्षत्रों में चोरी गई वस्तुओं के मिलने या न मिलने का अलग-अलग परिणाम होता है। जिस समय हमें अपनी चोरी गई वस्तु का पता लगे उस समय के नक्षत्र या अंतिम बार आपने फलां वस्तु को किस वक्त देखा था, उस समय के नक्षत्र के अनुसार चोरी गई वस्तु का विचार किया जाता है।

आइये जानते हैं किस नक्षत्र का क्या परिणाम होता है:

 इस बात का पता भी नक्षत्रों के अनुसार चल जाता है. सभी 28 नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है. 
नक्षत्रों का लोचन ज्ञान :-
अंध लोचन में आने वाले नक्षत्र:- रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा. 
मंद लोचन में आने वाले नक्षत्र :-अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा. 
मध्य लोचन में आने वाले नक्षत्र :-भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद. 
सुलोचन नक्षत्र में आने वाले नक्षत्र :-कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद. 

नक्षत्रों के द्वारा जानिए :-
यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है. 
यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है. यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है. यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो खबर ही मिलती है और ना ही वस्तु ही मिलती है. 

1. रोहिणी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और रेवती को ज्योतिष में अंध नक्षत्र माना गया है। इन नक्षत्रों में चोरी होने वाली वस्तु पूर्व दिशा में जाती है और जल्दी मिल जाती है। इन नक्षत्रों में यदि कोई वस्तु चोरी हुई है तो वह अधिक दूर नहीं जाती है उसे आसपास ही तलाशना चाहिए।

2. मृगशिरा, अश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, अश्विनी ये मंद नक्षत्र कहे गए हैं। इन नक्षत्रों में यदि कोई वस्तु चोरी होती है तो वह तीन दिन में मिलने की संभावना रहती है। इन नक्षत्रों में गई वस्तु दक्षिण दिशा में प्राप्त होती है। साथ ही वह वस्तु रसोई, अग्नि या जल के स्थान पर छुपाई होती है।

3. आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजीत, पूर्वाभाद्रपद, भरणी ये मध्य लोचन नक्षत्र होते हैं। इन नक्षत्रों में चोरी गई वस्तुएं पश्चिम दिशा में मिल जाती हैं। वस्तु के संबंध में जानकारी 64 दिनों के भीतर मिलने की संभावना रहती है। यदि 64 दिनों में न मिले तो फिर कभी नहीं मिलती। इस स्थिति में वस्तु के अत्यधिक दूर होने की जानकारी भी मिल जाती है, लेकिन मिलने में संशय रहता है।

4. पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद, कृतिका को सुलोचन नक्षत्र कहा गया है। इनमें गई वस्तु कभी दोबारा नहीं मिलती। वस्तु उत्तर दिशा में जाती है, लेकिन पता नहीं लगा पाता कि कहां रखी गई है या आप कहां रखकर भूल गए हैं।

भद्रा, व्यतिपात और अमावस्या में गया धन प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न: लग्न के अनुसार भी चोरी गई वस्तु के संबंध में विचार किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति चोरी गई वस्तु के संबंध में जानने के लिए आए और प्रश्न करे तो जिस समय वह प्रश्न करे उस समय की लग्न कुंडली बना लेना चाहिए। या जिस समय वस्तु चोरी हुई है उस समय गोचर में जो लग्न चल रहा था उसके अनुसार फल कथन किया जाता है।

चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है

1. मेष लग्न मेष वस्तु चोरी हुई हो प्रश्नकाल में मेष लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में होती है। चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में दो या तीन अक्षर होते हैं।

2. वृषभ लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होती है और चोर क्षत्रिय वर्ण का होता है। उसके नाम में आदि अक्षर म रहता है तथा नाम चार अक्षरों वाला होता है।

3. मिथुन लग्न में चोरी गई वस्तु आग्नेय कोण में होती है। चोरी करने वाला व्यक्ति वैश्य वर्ण का होता है और उसका नाम क ककार से प्रारंभ होता है। नाम में तीन अक्षर होते हैं।

4. कर्क लग्न में वस्तु चोरी होने पर दक्षिण दिशा में मिलती है और चोरी करने वाला शूद्र होता है। उसका नाम त अक्षर से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं।

वस्तु नैऋत्य कोण में होती है

5. सिंह लग्न में चोरी हो तो वस्तु नैऋत्य कोण में होती है। चोरी करने वाला नौकर, सेवक होता है। चोर का नाम न से प्रारंभ होता है और नाम तीन या चार अक्षरों का होता है।

6. प्रश्नकाल या चोरी के समय कन्या लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम म से प्रारंभ होता है। नाम में कई वर्ण हो सकते हैं।

7. चोरी के समय तुला लग्न हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में जानना चाहिए। चोरी करने वाला पुत्र, मित्र, भाई या अन्य कोई संबंधी होता है। इसका नाम म से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं। तुला लग्न में गई वस्तु बड़ी कठिनाई से प्राप्त होती है।वस्तु नैऋत्य कोण में होती है

8. वृश्चिक लग्न में चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोर घर का नौकर ही होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम चार अक्षरों वाला होता है। चोरी करने वाला उत्तम वर्ण का होता है।

9. प्रश्नकाल या चोरी के समय धनु लग्न हो तो चोरी गई वस्तु वायव्य कोण में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में चार वर्ण पाए जाते हैं।

10. चोरी के समय मकर लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर दिशा में समझनी चाहिए। चोरी करने वाला वैश्य जाति का होता है। नाम चार अक्षरों का होता है और वह स से प्रारंभ होता है।

11. प्रश्नकाल या चोरी के समय कुंभ लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होती है। इस प्रश्न लग्न के अनुसार चोरी करने वाला व्यक्ति कोई मनुष्य नहीं होता बल्कि चूहों या अन्य जानवरों के द्वारा इधर-उधर कर दी जाती है।

12. मीन लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु ईशान कोण में होती है। चोरी करने वाला निम्न जाति का व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति चोरी करके वस्तु को जमीन में छुपा देता है। ऐसे चोर का नाम व अक्षर से प्रारंभ होता है और उसके नाम में तीन अक्षर रहते हैं। चोर कोई परिचित महिला या नौकरानी भी हो सकती है।

चोरी के प्रश्न में चोर के स्वरुप तथा अन्य बातों का पता चल जाता है यदि कुण्डली का विश्लेषण भली-भाँति किया जाए. इसके लिए लग्न, चन्द्रमा तथा अन्य संबंधित भाव का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए. आइए इस कडी़ में आपको चोर के स्वरुप के बारे में आंकलन करना बताएँ. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में स्थिर राशि(2,5,8 या 11 राशि) हो, स्थिर राशि का नवाँश हो या वर्गोत्तम नवाँश हो तो चोरी किसी संबंधी द्वारा की जाती है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में चर राशि(1,4,7 या10 राशि)  हो तो किसी बाहर के व्यक्ति ने चोरी की है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में द्वि-स्वभाव राशि(3,6,9 या 12 राशि) हो तो चोरी पडो़सी ने की है. 

इसके अतिरिक्त यदि यह देखना चाहिए कि चोरी का सामान कहाँ गया है. इसे देखने के लिए कई योग मौजूद होते हैं. 

* प्रश्न कुण्डली में लग्न में स्थिर राशि हो तो चोरी हुआ सामान उसी स्थान पर है जिस स्थान पर चोरी हुई है. यदि घर से सामान गुम हुआ है तो सामान घर में ही होता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में चर राशि है तो सामान घर के बाहर निकल चुका है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में द्वि-स्वभाव राशि है तो चोरी का सामान घर के बाहर जमीन में गाडा़ जा चुका है. 

विभिन्न लग्नों के आधार पर चोर का ज्ञान प्राप्त करना |

प्रश्न के समय बारह राशियों में से कोई एक राशि लग्न में उदय होती है. इन राशियों के आधार पर चोर के बारे में जाना जा सकता है कि वह किस जाति का है. आइए विभिन्न लग्नों के आधार पर चोर की जाति के विषय में जानकारी हासिल करें. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में मेष राशि है तो चोर की ब्राह्मण जाति है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में वृष राशि हो तो चोर क्षत्रिय जाति का होगा. 

* प्रश्न लग्न मिथुन राशि का हो तो चोर वैश्य जाति का होगा. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में कर्क राशि हो तो चोर शूद्र जाति का होगा. 

* प्रश्न लग्न में सिंह राशि हो तो चोर अन्त्यज(चांडाल) जाति का होगा. 

* प्रश्न लग्न में कन्या राशि हो तो स्त्री चोर होती है. 

* प्रश्न लग्न में तुला राशि हो तो मित्र अथवा पुत्र चोर होता है. 

* प्रश्न लग्न में वृश्चिक राशि हो तो नौकर चोर होता है. 

* प्रश्न लग्न में धनु राशि हो तो भाई चोर होता है. 

* प्रश्न लग्न में मकर राशि हो तो चोर दासी होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में कुम्भ लग्न हो तो सामान चूहा ले जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली में मीन लग्न हो तो व्यक्ति स्वयं चोर होता है. 

चोर की पहचान के अन्य योग |  

* प्रश्न कुण्डली के लग्न पर सूर्य और चन्द्रमा की मित्र दृष्टि हो तो प्रश्न कर्त्ता का अपन अकोई जान-पहचान वाला व्यक्ति चोर होता है. 

* यदि सूर्य और चन्द्रमा की शत्रु दृष्टि लग्न पर हो तो किसी शत्रु की साजिश द्वारा चोरी कराई गई है. 

* यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में ही लग्नेश तथ सप्तमेश का इत्थशाल हो तो व्यक्ति स्वयं चोर होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में सप्तमेश उच्च राशि में स्थित हो तो माता, मौसी, मामी, चाची या ताई में से कोई चोर होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश उच्च राशि में लग्न या तृतीय स्थान में बैठा हो तो चोर उच्च तथा प्रसिद्ध घराने का होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में स्त्री ग्रह सप्तमेश होकर सप्तम भाव में हो तो भाई, भतीजे या पुत्रवधु चोर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में पुरुष ग्रह सप्तम भाव के स्वामी होकर सप्तम भाव में हो तो परिवार का कोई सदस्य चोर होता है.

Thursday, August 6, 2020

प्रतिद्वंद्वी को हराने के मंत्र

प्रतिद्वंद्वी को हराने का मंत्र (अथर्व वेद से)
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उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वचः ।
यथाहं शत्रुहोऽसान्यसपत्नः सपत्नहा ॥ १ ॥ सपत्नक्षयणो वृषाभिराष्ट्रो विषा सहि। यथाहमेषां वीराणां विराजानि जनस्य च॥२॥

- का. 1/या. 5/से. 29 

अर्थ-यह सूर्य ऊपर चला गया है, मेरा यह मंत्र भी ऊपर गया है, ताकि मैं शत्रु को मारने वाला प्रतिद्वंद्वी रहित तथा प्रतिद्वन्द्वियों को मारने वाला होऊँ। प्रतिद्वंद्वी को नष्ट करने वाला प्रजाओं की इच्छा को पूरा करने वाला, राष्ट्र को सामर्थ्य से प्राप्त करने वाला तथा जीतने वाला होऊँ, ताकि मैं शत्रु पक्ष के वीरों का तथा अपने एवं पराये लोगों का शासक बन सकूं।

नोट- इस मंत्र को IAS व RAS तथा अन्य राजकीय उच्चपदाधिकार के अभिलाषी व्यक्तियों द्वारा इन मंत्रों का बराबर 21 रविवार तक प्रयोग कराए गये तथा वे सभी प्रयोग 95% सफल रहे। इस मन्त्र से सूर्य को नित्य अर्घ्य दिया जाता है प्रत्येक रविवार को अर्घ्य में रक्तपुष्प के साथ रक्तचंदन डाला जाता है। अर्घ्य द्वारा विसर्जित जल से दक्षिण नासिका, दक्षिण नेत्र, दक्षिण कर्ण व दक्षिण भुजा को स्पर्शित किया जाता है। तत्पश्चात् पूर्व निश्चित् साक्षात्कारों के लिए जावें तो अवश्य सफलता मिलती है। यह वस्तुत:आत्मविश्वास बढ़ाने वाला मंत्र है तथा दिन के 11 बजे से 3 बजे तक इस मन्त्र का विशिष्ट प्रभाव देखा गया है। प्रस्तुत मन्त्र 'राष्ट्रवर्द्धनम्' नामक सूक्त से उद्धृत है।
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Wednesday, July 8, 2020

इत्र से ग्रह शान्ति

यदि आपको लगता है कि कोई ग्रह या नक्षत्र आपकी जिंदगी में परेशानी खड़ी कर रहा है तो आप सुगंध से इन ग्रह नक्षत्रों की बुरे प्रभाव को दूर कर सकते हैं। तो जानिए कि कैसे सुगंध से ग्रहों की शांति की जा सकती है।
सूर्य ग्रह : यदि आपकी कुंडली में सूर्य ग्रह बुरे प्रभाव दे रहा है तो आप केसर या गुलाब की सुगंध का उपयोग करें। घर के लिए होम प्रेशनर लाएं और शरीर के लिए इस सुगंध का कोई इत्र उपयोग करें।
 
चंद्र ग्रह : चंद्रमा मन का कारण है अत: इसके लिए चमेली और रातरानी के इत्र का उपयोग कर सकते हैं।
 
मंगल ग्रह : मंगल ग्रह की परेशान से मुक्त होने के लिए लाल चंदन का इत्र, तेल अथवा सुगंध का उपयोग कर सकते हैं।
 
बुध ग्रह : बुध ग्रह की शांति के लिए चंपा का इत्र तथा तेल का प्रयोग बुध की दृष्टि से उत्तम ह

गुरु ग्रह : केसर और केवड़े का इत्र के उपयोग के अलावा पीले फूलों की सुगंध से गुरु की कृपा पाई जा सकती है।
 
शुक्र ग्रह : शुक्र को सुधारने के लिए सफेद फूल, चंदन और कपूर की सुगंध लाभकारी होती है। चंपा, चमेली और गुलाब की तीक्ष्ण खुशबू से खराब हो जाता है।
 
शनि ग्रह : शनि के खराब प्रभाव को अच्छे प्रभाव में बदलने के लिए कस्तुरी, लोबान तथा सौंफ की सुगंध का उपयोग कर सकते हैं।
 
राहु और केतु छाया ग्रह : काली गाय का घी व कस्तुरी के इत्र का उपयोग कर राहु ग्रह के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। यही यह कहीं से उपलब्ध न हो तो घर के शौचालय को साफ सुधरा रख कर घर में प्रतिदिन कर्पूर जलाएं। गुड़ और घी को मिलाकर उसे कंडे पर जलाएं।
ऐसे उपाय या टोटके सही होते हैं जिसने किसी दूसरा का कोई नुकसान न होता हो। हम यहां बता रहे हैं ऐसे उपाय जो ज्योतिष शास्त्र और लाल किताब के विशेषज्ञों द्वारा मान्य और सात्विक हैं।
इत्र एक ऐसा सुगंधित पदार्थ होता है जिसका इस्तेमाल प्राचीनकाल से होता आया है और जिसके इस्तेमाल के कई धार्मिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक महत्व भी है, लेकिन हम यहां इत्र के कुछ एस्ट्रो टिप्स बता रहे हैं जो कि अचूक हैं। ध्यान रखें कभी भी सेंट या इत्र लगाकर न सोएं इससे पारलौकिक शक्तियां आकर्षित होती है।

पति-पत्नी में प्रेम हेतु : पति-पत्नी में प्रेम बना रहे इसके लिए पत्नी बुधवार को तीन घंटे का मौन रखें। इसके बाद शुक्रवार को अपने हाथ से साबूदाने की खीर में मिश्री डालकर बनाए और अपने पति और घर के बाकि सदस्यों को खाने के लिए दें और इसी दिन मंदिर में यहां किसी व्यक्ति को इत्र का दान करें एवं अपने कक्ष में भी इत्र रखें। इस उपाय से दोनों के प्रेम में अवश्य ही वृद्धि होगी और संबंध मजबूत रहेगा।

पति की आयु के लिए : यदि कोई स्त्री लाल सिंदू, इत्र की शीशी, चने की दाल और केसर का दान करें तो इस उपास से उस स्त्री के पति की आयु में वृद्धि होती है।

इत्र की तेज सुगंध : दीपावली के दिन पूजन के समय तेज सुगंध और इत्र का प्रयोग करें। ऐसी मान्यता है कि इस दिन अच्छे और तेज इत्र का प्रयोग करने से लक्ष्मी की कृपा तुरंत प्राप्त होती है और घर में धन संबंधी कभी समस्याएं उत्पन्न नहीं होती।

हनुमानजी को अर्पित करें इत्र : मंगलवार के दिन हनुमानजी को चोला चढ़ाने के लिए चमेली के तेल का उपयोग करें। साथ ही चोला चढ़ाते समय एक दीपक हनुमानजी के सामने जला कर रख दें। दीपक में भी चमेली के तेल का ही उपयोग करें।

चोला चढ़ाने के बाद हनुमानजी को गुलाब के फूल की माला पहनाएं और केवड़े का इत्र हनुमानजी की मूर्ति के दोनों कंधों पर थोड़ा-थोड़ा छिटक दें। अब एक साबूत पान का पत्ता लें और इसके ऊपर थोड़ा गुड़ व चना रख कर हनुमानजी को इसका भोग लगाएं। इसके बाद वहीं बैठकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र का जप करें। कम से कम 5 माला जाप अवश्य करें।
 
मंत्र-
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।
 
अब हनुमानजी को चढाएं गए गुलाब के फूल की माला से एक फूल तोड़ कर उसे एक लाल कपड़े में लपेटकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी में रख लें। आपकी तिजोरी में बरकत बनी रहेगी।
 
शुक्र ग्रह की शुभता के लिए : शुक्र को जगाने के लिए आचरण की शुद्धि अत्यंत आवश्यक है। जातक या जातिका को परफ्यूम या इत्र का प्रयोग करना चाहिए। इसके आलाव जब भी समय मिले शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को माता लक्ष्मी को इत्र एवं श्रृंगार की वस्तुएं भेट करें। इस उपाय से पति पत्नीं के बीच जहां प्रेम बढ़ेगा वहीं घर में धन एवं समृद्धि भी बरकरार रहेगी।
 
बुध नक्षत्र में जन्मे जातक हेतु : यदि आपका जन्म बुधवार या बुध नक्षत्र को हुआ है तो आप बुधवार के दिन चमेली का तेल या चमेली के इत्र को पीपल के पेड़ पर छिड़के। इससे इस नक्षत्र के लोगों को निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।
 
रोजगार में वृद्धि हेतु : दीपावली पर महालक्ष्मीजी की पूजा के समय मां को एक इत्र की शीशी चढ़ाएं। उसमें से एक फुलेल लेकर मां को अर्पित करें। फिर पूजा के पश्चात् उसी शीशी में से थोड़ा इत्र स्वयं को लगा लें। इसके बाद रोजाना इसी इत्र में से थोड़ा-सा लगा कर कार्य स्थल पर जाएं तो रोजगार में वृद्धि होने लगती है। 

पर्स में रहेगी बरकत : यदि आप चाहते हैं कि आपका पर्स हमेशा नोटो से भरा रहे तो आप अपने भूरे रंग के पर्स में दस रुपए के दो और 20 रुपए का दो नोट चंदन का इत्र लगाकर रखें।

आर्थिक हानी से बचने का उपाय : यदि आपको अचानक धन का नुकसान होता है, तो आप सात शुक्रवार को किन्हीं सात सुहागिनों को अपनी पत्नी के माध्यम से लाल वस्तु उपहार में दें और यदि उपहार में इत्र भी हो तो इस प्रयोग तत्काल ही लाभ मिलता है।

ऑफिस में प्रभाव डालने हेतु : यदि आप अपने ऑफिस के लोगों पर प्रभाव डालना चाहते हैं कि आप मोगरा, रातरानी या चंदन का इस्तेमाल करेंगे तो सभी आपसे खुश रहेंगे।

देवताओं को प्रसंन्न करने हेतु: मंदिर में चंदन, कपूर, चंपा, गुलाब, केवड़ा, केसर और चमेली के इत्र का इस्तेमाल करने से देवी और देवता आपसे प्रसन्न रहते हैं। 

प्रेम विवाह : श्वेत वस्त्र धारण करके किसी भी देव-स्थल पर लाल गुलाब व चमेली का इत्र अर्पित करें। प्रेम-विवाह में लाभ होगा।
 
राहु के उपाय : राहु की हरकतों को शांत करने के लिए जल में चंदन का इत्र डालकर उससे नहाएं। इससे राहु कुछ हद तक शुभ असर देने लगेगा। आपका बाथरूप और टॉयलेट एकदम साफ सुधरा है और उसका प्रभाव घर के अन्य किसी रूप में नहीं पड़ता है तो इससे भी राहु का अशुभ प्रभाव नहीं होगा।

Friday, June 12, 2020

सनातन के दस नियम

हिन्दू धर्म की दस अनमोल बातें जो हर हिन्दू को जानना आवश्यक है?

हिंदुत्व केवल एक धर्म ही नहीं है बल्कि यह एक सफल जीवन जीने का तरीके के रूप में भी देखा जा सकता है. हिन्दू धर्म की अनेको विशेषताएं है तथा इसे सनातन धर्म की भी उपाधि दी गई है।

भागवत गीता में सनातन का अभिप्राय बताते हुए कहा गया है की सनातन वह है जो न तो अग्नि, न वायु, न पानी तथा न अस्त्र से नष्ट हो सकता है यह तो वह है जो दुनिया में स्थित हर सजीव एवं निर्जीव में व्याप्त है. धर्म का अर्थ होता है जीवन को जीने की कला. हिन्दू सनातन धर्म की जड़े आध्यात्मिक विज्ञान में है।

सम्पूर्ण हिन्दू शास्त्र में विज्ञान एवं अध्यात्म के संबंध में बाते बताई गई है. यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय में ऐसा वर्णन आया है की जीवन की सभी समस्याओं का समाधान विज्ञान एवं आध्यात्मिक समस्याओं के लिए अविनाशी दर्शनशास्त्र का उपयोग करना चाहिए।

आज हम आपको हिन्दू धर्म से जुडी 10 ऐसे महत्वपूर्ण जानकारियों के बारे में बताएंगे जिनका महत्व हर हिन्दू धर्म से जुड़े व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है. यह ऐसी जानकारी है जो किसी भी व्यक्ति को हिन्दू धर्म को समझने में मदद कर सकता है।

हिन्दू सनातन धर्म में बताये गए 10 कर्तव्य 
1 . सन्ध्यावादन, 2 . व्रत, 3 . तीर्थ, 4 . संस्कार, 5 . उत्सव, 6 . दान, 7 .सेवा, 8 यज्ञ पाठ, 9 .वेद पाठ, 10 . धर्म प्रचार .

10 सिद्धांत 
1 .एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति अर्थात एक ही ईश्वर है दुसरा नहीं।
2 . आत्मा अमर है।
3 .पुनर्जन्म होता है।
4 मोक्ष ही जीवन का लक्ष्य है।
5 . संस्कारबद्ध जीवन ही जीवन है।
6 . कर्म का प्रभाव होता है, जिसमें से ‍कुछ प्रारब्ध रूप में होते हैं इसीलिए कर्म ही भाग्य है।
7 . ब्रह्माण्ड अनित्य और परिवर्तनशील है।
8 . संध्यावंदन- ध्यान ही सत्य है।
9 . दान ही पूण्य है।
10 . वेदपाठ और यज्ञकर्म ही धर्म है।

10 महत्वपूर्ण कार्य
1.प्रायश्चित करना,
2.उपनयन, दीक्षा देना-लेना,
3.श्राद्धकर्म,
4.बिना सिले सफेद वस्त्र पहनकर परिक्रमा करना,
5.शौच और शुद्धि,
6.जप-माला फेरना,
7.व्रत रखना,
8.दान-पुण्य करना,
9.धूप, दीप या गुग्गल जलाना,
10.कुलदेवता की पूजा.

ये हे 10 उत्सव
नवसंवत्सर, मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, पोंगल-ओणम, होली, दीपावली, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्‍टमी, महाशिवरात्री और नवरात्रि. इनके बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करें.

सनातन धर्म से जुडी 10 महत्वपूर्ण पूजाएं 
गंगा दशहरा, आंवला नवमी पूजा, वट सावित्री, दशामाता पूजा, शीतलाष्टमी, गोवर्धन पूजा, हरतालिका तिज, दुर्गा पूजा, भैरव पूजा और छठ पूजा. ये कुछ महत्वपूर्ण पूजाएं है जो हिन्दू करता है. हालांकि इनके पिछे का इतिहास जानना भी जरूरी है.

सनातन धर्म के 10 पवित्र पेय 

1.चरणामृत, 2.पंचामृत, 3.पंचगव्य, 4.सोमरस, 5.अमृत, 6.तुलसी रस, 7.खीर, 9.आंवला रस और 10.नीम रस . आप इनमे से कितने रस का समय समय पर सेवन करते है ? ये सभी रस अमृत के समान माने जाते है.

हिन्दू धर्म में प्रयोग किये जाने वाले 10 फूल 

1.आंकड़ा, 2.गेंदा, 3.पारिजात, 4.चंपा, 5.कमल, 6.गुलाब, 7.चमेली, 8.गुड़हल, 9.कनेर, और 10.रजनीगंधा. हर देवी दवताओं को अलग अलग प्रकार के फूलों को अर्पित किया जाता है. परन्तु आज के युग में लोग देवी देवताओ पर गुलाब एवं गेंदे का पुष्प चढ़ाकर ही इतिश्री कर लेते जो की पुराणों में गलत बताया गया है.

ये है 10 धर्मिक स्थल 
12 ज्योतिर्लिंग,
51 शक्तिपीठ,
7 पूरी,
7 नगरी,
4 धाम,
4 मठ,
10 पर्वत, 10 गुफाएं,
5 सरोवर,
10 समाधि स्थल,
4 आश्रम.

10 महाविद्याए 

1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4. भुवनेश्‍वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला.
बहुत कम लोग जानते हैं कि ये 10 देवियां कौन है. नवदुर्गा की पूजा के पश्चात इन 10 देवियो के पूजा इनके बारे में विस्तृत ढंग से जानने के पश्चात ही करनी चाहिए. बहुत से व्यक्ति इन 10 विद्याओं की पूजा भगवान शिव की पत्नी के रूप में की जाती जो की अनुचित है.

10 यम नियम 
1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह. 6.शौच 7.संतोष, 8.तप, 9.स्वाध्याय और 10.ईश्वर-प्रणिधान. ये 10 ऐसे यम और नियम है जिनके बारे में प्रत्येक हिन्दू को जानना चाहिए यह सिर्फ योग के नियम ही नहीं है ये वेद और पुराणों के यम-नियम हैं. क्यों जरूरी है? क्योंकि इनके बारे में आप विस्तार से जानकर अच्छे से जीवन यापन कर सकेंगे. इनको जानने मात्र से ही आधे संताप मिट जाते हैं।

Tuesday, June 2, 2020

नव ग्रह औषधि स्नान

-नवग्रह शांति विधान में जन्मपत्रिका के अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभावों का शमन करने के लिए औषधि स्नान की प्रक्रिया है जिसमें अनिष्ट ग्रह से सम्बन्धित सामग्री के मिश्रित जल से स्नान किया जाता है। इन सामग्रियों को प्रतिदिन स्नान के जल में मिश्रित कर स्नान करने से अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभाव में कमी आती है। आइए जानते हैं कि नवग्रहों की शांति के लिए कौन-कौन सी सामग्रियां स्नान के जल में मिलाने से लाभ होता है-

1. सूर्य- सूर्य के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में इलायची,केसर,रक्त-चन्दन,मुलेठी एवं लाल पुष्प मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।

2. चन्द्र- चन्द्र के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में पंचगव्य, श्वेत चन्दन एवं सफ़ेद पुष्प मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।

3. मंगल- मंगल के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में रक्त-चन्दन,जटामांसी,हींग व लाल पुष्प मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।

4. बुध- बुध के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में गोरोचन,शहद,जायफ़ल एवं अक्षत मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।

5. गुरु- गुरु के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में हल्दी,शहद,गिलोय,मुलेठी एवं चमेली के पुष्प मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।

6. शुक्र- शुक्र के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में जायफ़ल, सफ़ेद इलायची,श्वेत चन्दन एवं दूध मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।

7. शनि- शनि के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में सौंफ़, खसखस, काले तिल एवं सुरमा मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।

8. राहु- राहु के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में कस्तूरी,गजदन्त,लोबान एवं दूर्वा मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।

9. केतु- केतु के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में रक्त चन्दन एवं कुशा मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।


मंगल स्नान

मंगल स्नान

जिस व्यक्ति पर मंगल ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा चल रही हो उसे मंगल ग्रह को शुभ बनाने के लिए अग्रलिखित वस्तुओं को एकत्रित करके पानी में डालकर उस पानी से स्नान करना चाहिए

. मंगल स्नान की वस्तुएं – सोंठ, सोंफ, मौलसिरी के फूल, सिंगरक, मॉल कंगनी और लाल चन्दन.

इन सभी को एक साथ पानी में भिगोकर एक रत के लिए रख दें दूसरे दिन सुबह पानी को छानकर उससे स्नान कर लें.
इन वस्तुओं को पानी में डालने के लिए मिट्टी के कलश का प्रयोग किया जा सकता है.
मंगल ग्रह के कारन हो रही रोग पीड़ा को शांत करने के लिए भी यह प्रयोग बहुत उपयोगी है.
जिस मंगली कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो उसे भी यह प्रयोग करना चाहिए. यह प्रयोग शुक्ल पक्ष में मंगलवार को शुरू करना है. प्रत्येक मंगलवार को यह स्नान करना