Tuesday, December 9, 2014

स्त्रियां पायल क्यों पहनती हैं

परंपरा: स्त्रियां पायल क्यों पहनती हैं, जानिए
इसकी असली वजह :
==============================
=============
किसी भी स्त्री के
पैरों की सुंदरता में पायल चार चांद
लगा देती है। स्त्रियों के सोलह श्रृंगार में पायल
भी शामिल है। आमतौर पर
यही माना जाता है कि पायल स्त्रियों के लिए श्रृंगार
की वस्तु है, लेकिन इससे कई अन्य लाभ
भी प्राप्त होते हैं। पायल से प्राप्त होने वाले फायदों के
विषय में काफी कम लोग ही जानते हैं।
आमतौर पर पायल के संबंध में मान्यता है
कि इसकी आवाज से दैवीय
शक्तियां आकर्षित होती हैं और घर पर कृपा बनाए
रखती हैं। यहां जानिए पुरानी मान्यताओं के
अनुसार स्त्रियां पायल क्यों पहनती हैं और इससे
क्या लाभ प्राप्त होते हैं...
----पायल के संबंध में ये है पुरानी मान्यता :-
प्राचीन समय से ही हर
स्त्री के लिए पायल पहनना अनिवार्य परंपरा के रूप में
प्रचलित है। कई घर-परिवार ऐसे हैं, जहां विवाह के बाद
स्त्री को पायल के बिना घर से बाहर जाने
की इजाजत
भी नहीं दी जाती है।
पुराने समय में पायल की छम-छम की आवाज
एक संकेत का काम करती थी। उस काल में
जब घर-परिवार के सभी सदस्य या अन्य लोग
किसी स्थान पर बैठे होते थे और उस समय पायल
की आवाज आती थी तो वे समझ
जाते थे कि वहां कोई स्त्री आ रही है।
इस संकेत के बाद वे सभी व्यवस्थित हो जाते थे।
पुराने समय में विवाह के बाद पति के घर में स्त्री के लिए
कहीं आने-जाने
की पूरी स्वतंत्रता नहीं होती थी।
साथ ही, वह किसी से खुलकर बात
भी नहीं कर
पाती थी। ऐसे में जब वह घर में
कहीं आती-जाती तो बिना उसके
बताए भी पायल की आवाज से
सभी सदस्य समझ जाते थे कि उनकी बहू
वहां आ रही है
या कहीं जा रही है।
--- पायल की आवाज से दूर होती हैं
नकारात्मक ऊर्जा :-
पायल की आवाज
किसी का भी ध्यान तुरंत
ही आकर्षित कर लेती है। जब कोई
लड़की पायल पहनकर चलती है तो पायल
से निकलने वाला स्वर किसी संगीत से कम
प्रतीत नहीं होता। पायल
की आवाज से घर में नकारात्मक शक्तियों का असर कम
हो जाता है और सकारात्मक शक्तियों को बल मिलता है। घर में
सकारात्मक वातावरण निर्मित होता है। वातावरण
की पवित्रता बढ़ती है।
मान्यता है कि जिस घर से पायल की आवाज
आती रहती है, वहां देवी-
देवताओं की विशेष कृपा रहती है।
इसी कारण महिलाओं के लिए पायल पहनना अनिवार्य
माना गया है।
---पायल से होते हैं ये स्वास्थ्य लाभ :--
पायल पहनने से स्त्रियों को कई स्वास्थ्य लाभ
भी प्राप्त होते हैं। सोने या चांदी से
बनी पायल विशेष स्वास्थ्य लाभ
पहुंचाती है। पायल हमेशा पैरों से
रगड़ाती रहती है, इसी वजह
से पैरों की हड्डियों को सोने या चांदी के
तत्वों से मजबूती मिलती है। आयुर्वेद में
कई दवाओं में धातुओं की भस्म का उपयोग किया जाता है।
धातुओं की भस्म से जैसे स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते
हैं, ठीक वैसे ही लाभ पायल पहनने से
भी मिलते हैं।
पायल की आवाज अन्य लोगों के लिए एक इशारा है,
इसकी आवाज से सभी को यह एहसास
हो जाता है कि कोई महिला उनके आसपास है, अत: वे
शालीन और सभ्य व्यवहार करें।
ताकि स्त्री के सामने किसी तरह
की कोई अभद्रता ना हो जाए।

27 नक्षत्रों के वेद मंत्र

27 नक्षत्रों के वेद मंत्र
वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण माने जाने वाले 27
नक्षत्रों के वेद मंत्र निम्नलिखित हैं :
अश्विनी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ अश्विनौ तेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वती वीर्य्यम
वाचेन्द्रो
बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम । ॐ
अश्विनी कुमाराभ्यो नम: ।
भरणी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ यमायत्वा मखायत्वा सूर्य्यस्यत्वा तपसे
देवस्यत्वा सवितामध्वा
नक्तु पृथ्विया स गवं स्पृशस्पाहिअर्च
िरसि शोचिरसि तपोसी।
कृतिका नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ अयमग्नि सहत्रिणो वाजस्य शांति गवं
वनस्पति: मूर्द्धा कबोरीणाम । ॐ अग्नये नम: ।
रोहिणी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ ब्रहमजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमत: सूरुचोवेन आव:
सबुधन्या उपमा
अस्यविष्टा: स्तश्चयोनिम मतश्चविवाह
( सतश्चयोनिमस्तश्चविध: )
ॐ ब्रहमणे नम: ।
मृगशिरा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ सोमधेनु गवं सोमाअवन्तुमाशु गवं सोमोवीर:
कर्मणयन्ददाति
यदत्यविदध्य गवं सभेयम्पितृ श्रवणयोम । ॐ चन्द्रमसे नम:

आर्द्रा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ नमस्ते रूद्र मन्यवSउतोत इषवे नम: बाहुभ्यां मुतते नम: ।
ॐ रुद्राय नम: ।
पुनर्वसु नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ अदितिद्योरदितिरन्तरिक्षमदिति र्माता: स
पिता स पुत्र:
विश्वेदेवा अदिति: पंचजना अदितिजातम
अदितिर्रजनित्वम ।
ॐ आदित्याय नम: ।
पुष्य नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु

यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम

ॐ बृहस्पतये नम: ।
अश्लेषा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:।
ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: ।
ॐ सर्पेभ्यो नम:।
मघा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य स्वाधानम: पितामहेभ्य:
स्वधायिभ्य: स्वधानम: ।
प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्य स्वधानम: अक्षन्न
पितरोSमीमदन्त:
पितरोतितृपन्त पितर:शुन्धव्म । ॐ पितरेभ्ये नम: ।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ भगप्रणेतर्भगसत्यराधो भगे मां धियमुदवाददन्न: ।
भगप्रजाननाय गोभिरश्वैर्भगप्रणेतृभिर्नुवन्त: स्याम: ।
ॐ भगाय नम: ।
उत्तराफालगुनी नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ दैव्या वद्धर्व्यू च आगत गवं रथेन सूर्य्यतव्चा ।
मध्वायज्ञ गवं समञ्जायतं प्रत्नया यं वेनश्चित्रं
देवानाम ।
ॐ अर्यमणे नम: ।
हस्त नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ विभ्राडवृहन्पिवतु सोम्यं मध्वार्य्युदधज्ञ पत्त व
विहुतम
वातजूतोयो अभि रक्षतित्मना प्रजा पुपोष:
पुरुधाविराजति ।
ॐ सावित्रे नम: ।
चित्रा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ त्वष्टातुरीयो अद्धुत इन्द्रागी पुष्टिवर्द्धनम ।
द्विपदापदाया: च्छ्न्द इन्द्रियमुक्षा गौत्र वयोदधु: ।
त्वष्द्रेनम: । ॐ विश्वकर्मणे नम: ।
स्वाती नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ वायरन्नरदि बुध: सुमेध श्वेत सिशिक्तिनो
युतामभि श्री तं वायवे सुमनसा वितस्थुर्विश्वेनर:
स्वपत्थ्या निचक्रु: । ॐ वायव नम: ।
विशाखा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ इन्द्रान्गी आगत गवं सुतं गार्भिर्नमो वरेण्यम ।
अस्य पात घियोषिता । ॐ इन्द्रान्गीभ्यां नम: ।
अनुराधा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ नमो मित्रस्यवरुणस्य चक्षसे महो देवाय तदृत
गवं सपर्यत दूरंदृशे देव जाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्योयश
गवं सत । ॐ मित्राय नम: ।
ज्येष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ त्राताभिंद्रमबितारमिंद्र गवं हवेसुहव गवं शूरमिंद्रम
वहयामि शक्रं
पुरुहूतभिंद्र गवं स्वास्ति नो मधवा धात्विन्द्र: । ॐ
इन्द्राय नम: ।
मूल नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं
स्वयोनावभारुषा तां
विश्वेदैवॠतुभि: संविदान:
प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त ।
ॐ निॠतये नम: ।
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ अपाघ मम कील्वषम पकृल्यामपोरप:
अपामार्गत्वमस्मद
यदु: स्वपन्य-सुव: । ॐ अदुभ्यो नम: ।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ विश्वे अद्य मरुत विश्वSउतो विश्वे भवत्यग्नय:
समिद्धा:
विश्वेनोदेवा अवसागमन्तु विश्वेमस्तु द्रविणं
बाजो अस्मै ।
श्रवण नक्षत्र वेद मंत्र

विष्णोरराटमसि विष्णो श्नपत्रेस्थो विष्णो स्युरसिविष्णो
धुर्वोसि वैष्णवमसि विष्नवेत्वा । ॐ विष्णवे नम: ।
धनिष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ वसो:पवित्रमसि शतधारंवसो:
पवित्रमसि सहत्रधारम ।
देवस्त्वासविता पुनातुवसो: पवित्रेणशतधारेण
सुप्वाकामधुक्ष: ।
ॐ वसुभ्यो नम: ।
शतभिषा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ वरुणस्योत्त्मभनमसिवरुणस्यस्कुं मसर्जनी स्थो वरुणस्य
ॠतसदन्य सि वरुण स्यॠतमदन ससि वरुणस्यॠतसदनमसि ।
ॐ वरुणाय नम: ।
पूर्वभाद्रपद नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ उतनाहिर्वुधन्य: श्रृणोत्वज एकपापृथिवी समुद्र:
विश्वेदेवा
ॠता वृधो हुवाना स्तुतामंत्रा कविशस्ता अवन्तु ।
ॐ अजैकपदे नम:।
उत्तरभाद्रपद नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ शिवोनामासिस्वधि
तिस्तो पिता नमस्तेSस्तुमामाहि गवं सो
निर्वत्तयाम्यायुषेSत्राद्याय प्रजननायर रायपोषाय
( सुप्रजास्वाय ) ।
ॐ अहिर्बुधाय नम: ।
रेवती नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ पूषन तव व्रते वय नरिषेभ्य कदाचन ।
स्तोतारस्तेइहस्मसि । ॐ पूषणे नम: ।

व्यापार-व्यवसाय मंदा चल रहा है

अगर आपका व्यापार-व्यवसाय मंदा चल रहा है।
किसी भी काम के शुरू करने के बाद उसमें
ऐसा लाभ
नहीं मिलता जैसा सोच रहे हैं, दुकान खुब
सजाधजा कर रखने पर भी उसमें ग्राहक
नहीं आते
तो अब चिंता की बात नहीं है। हम
आपको ऐसे कुछ
सिद्ध टोटके बता रहे हैं जिससे थोड़े से प्रयास से
आपको बेहतर परिणाम मिलेंगे। लेकिन इन
प्रयोगों को करने से पहले आपको मन में कुछ बातें
ठाननी पड़ेंगी। एक, हमेशा सत्य बोलेंगे,
दूसरों का अहित नहीं करेंगे और
तीसरा हमेशा अपना श्रेष्ठतम परिणाम देंगे। जब आप
कोई टोटका प्रयोग में ला रहे हों तो इसके बारे में
किसी को बताए नहीं, इससे टोटके का प्रभाव
कम
हो जाता है। इन टोटकों को आजमाइए, लाभ जरूर
मिलेगा।
॰ शनिवार को पीपल के पेड़ से एक पत्ता तोड़ लाएं,
उसे धूप-बत्ती दिखाकर अपनी दुकान
की गादी जिस पर आप बैठते हैं, उसके
नीचे रख दें।
सात शनिवार तक लगातार ऐसा ही करें। जब
गादी के नीचे सात पत्ते इकट्ठे हो जाएं
तो उन्हें एक
साथ किसी तालाब या कुएं में बहा दें। व्यवसाय चल
निकलेगा।
॰ किसी ऐसी दुकान
जो काफी चलती हो वहां से
लोहे की कोई कील या नट आदि शनिवार के
दिन
खरीदकर, मांगकर या उठाकर ले आएं।
काली उड़द के
10-15 दानों के साथ उसे एक शीशी में रख
लें। धूप-
दीप से पूजाकर ग्राहकों की नजरों से बचाकर
दुकान
में रख लें। व्यवसाय खुब चलेगा।
॰ शनिवार को सात हरी मिर्च और सात नींबू
की माला बनाकर दुकान में ऐसे टांगें कि उस पर
ग्राहक की नजर पड़े।
व्यवसाय
व्यापार स्थल पर किसी भी प्रकार
की समस्या हो, तो वहां श्वेतार्क
गणपति तथा एकाक्षी श्रीफल
की स्थापना करें।
फिर नियमित रूप से धूप, दीप आदि से पूजा करें
तथा सप्ताह में एक बार मिठाई का भोग लगाकर
प्रसाद यथासंभव अधिक से अधिक लोगों को बांटें।
भोग नित्य प्रति भी लगा सकते हैं।
यदि आपको लगता है कि आपका कार्य किसी ने
बांध दिया है और चाहकर भी उसमें
बढ़ोतरी नहीं हो रही है व
सब तरफ से
मन्दा एवं
बाधाओं का सामना करना पड़रहा है। ऐसे में
आपको साबुत फिटकरी दुकान में खड़े होकर 31 बार
वार दें और दुकान से बाहर निकल कर किसी चौराहे
पर जाकर उत्तर दिशा में फेंक कर बिना पीछे देखें
वापस आ जाएं। नजरदूर हो जाएगी और व्यापार
फिर से पूर्व की भांति चलने लगेगा।
व्यापार व कारोबार में वृद्धि के लिए
एक नीबू लेकर उस पर चार लौंग गाड़ दें और उसे हाथ में
रखकर निम्नलिखित मंत्र का २१ बार जप करें। जप के
बाद नीबू को अपनी जेब में रख कर जिनसे
कार्य
होना हो, उनसे जाकर मिलें।
क्क श्री हनुमते नमः
इसके अतिरिक्त शनिवार को पीपल का एक
पत्ता गंगा जल से धोकर हाथ में रख लें और
गायत्री मंत्र का २१ बार जप करें। फिर उस पत्ते
को धूप देकर अपने कैश बॉक्स में रख दें। यह
क्रिया प्रत्येक शनिवार को करें और पत्ता बदल कर
पहले के पत्ते को पीपल की जड़ में में रख
दें। यह
क्रिया निष्ठापूर्वक करें, कारोबार में
उन्नति होगी।

बुखार आने पर करें ए टोटके

लगातार बुखार आने पर करें ए टोटके ::-
१. यदि किसी को लगातार बुखार आ रहा हो और कोई
भी दवा असर न कर रही हो तो आक
की जड लेकर उसे किसी कपडे में कस
कर बांध लें ! फिर उस कपडे को रोगी के कान से बांध
दें ! बुखार उतर जायगा !
२. इतवार या गुरूवार को चीनी, दूध, चावल
और पेठा (कद्दू-पेठा, सब्जी बनाने वाला)
अपनी इच्छा अनुसार लें और
उसको रोगी के सिर पर से वार कर
किसी भी धार्मिक स्थान पर, जहां पर
लंगर बनता हो, दान कर दें !
३. यदि किसी को टायफाईड हो गया हो तो उसे
प्रतिदिन एक नारियल पानी पिलायें ! कुछ
ही दिनों में आराम हो जायगा !

मंगली दोष के प्रभाव

प्राचीन काल से मंगली दोष के प्रभाव काल के बारे मे
विद्वानो मे मतभेद रहा है । कुछ विद्वान मंगली दोष
का प्रभाव काल 28 वर्ष की आयु तक मानते है तो कुछ
जीवनभर । देखा भी जाए तो जिस प्रकार
किसी क्रिया की प्रतिक्रिया होती है ।
उसी प्रकार किसी विषय वस्तु पर एकाधिक
विचारधाराए भी अवश्य मिलती है । शास्त्रो के
अनुसार मंगल को युवावस्था का कारक
माना जाता है । इसलिए अधिकांश विद्वान तर्क देते
है कि मंगली दोष का प्रभाव युवावस्था मे ही रहती है
तो अन्य विद्वान विंशोतरी दशा को ध्यान मे रखकर
कहते है कि कोई भी ग्रह अपना शुभाशुभ फल अपने
दशाकाल मे ही विशेषतया देते है । प्राचीन काल मे जब
विवाह 12-13 वर्ष की आयु मे ही हो जाता था तब
मंगली दोष का प्रभाव 28 वर्ष की आयु तक
माना जा सकता था लेकिन वर्तमान मे युवा वर्ग अपने
कैरियर को विवाह की बजाय अधिक ध्यान देते हे
जिससे २८ वर्ष की आयु सीमा का महत्व कम
हो जाता हैं । ऐसी स्थिति मे मंगली दोष का प्रभाव
ऐसे जातको पर नही होना चाहिए परंतु वास्तव मे
ऐसा संभव नही बन पाता ।
मंगली दोष का प्रभाव दाम्पत्य जीवन के
अलावा शिक्षा ,कैरियर ,रिश्ते ,स्वास्थ्य, आर्थिक
स्थिति ,संतान सुख आदि पर भी पडता है । वर्तमान मे
मंगली दोष दाम्पत्य जीवन के लिए अशुभ मानते है। इस
आधार पर देखा जाए तो मंगली दोष का प्रभाव
दाम्पत्य जीवन को निराशामय बना देता है ।
पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव जैसे जैसे
बढता जा रहा है वैसे वैसे दाम्पत्य जीवन
भी निराशा भरा बनता जा रहा है । आज
आपको कही भी ऐसी धटनाएॅ देखने या सुनने को मिल
जाती है विवाह के 10-15 वर्ष पश्चात पति पत्नी मे
परस्पर तर्क वितर्क ,मारपीट ,असहयोग ,
आत्माहत्या या हत्या जैसी स्थिति बन जाती है ।
वूद्वावस्था मे भी दम्पति मे परस्पर कलह रहना ,
एकांतप्रियता आदि स्थिति देखी जा सकती है परंतु
व्याहारिक रूप से देखा जाए तो वुद्वावस्था मे
परिपक्पता के कारण ऐसी धटना नही होनी चाहिए ।
सामाजिकता के कारण ऐसे दम्पति साथ मे रहते जरुर हैं
परंतु एक -दुसरे के सुख -दुख मे सहयोग नही दे पाते ।
पति का किसी अन्य स्त्री के साथ संबंध
या पत्नी का किसी पर पुरूष के साथ संबंध होने कारण
भी दाम्पत्य जीवन क्लेशमय बना रहता है। इसके कारण
भी कई बार अनहोनी धटित हो जाती है । आए दिन
समाचार पत्रो मे आपको पढने को मिल
जाएगा कि अमुक स्त्री ने अपने प्रेमी के संग मिलकर
अपने पति कि हत्या कर दी । क्या यह मंगली दोष
का प्रभाव नही । इस बारे मे मेरा कहना है
कि मंगली दोष का प्रभाव है लेकिन ऐसा प्रभाव
एकाध कुण्डलियों मे ही देखने को मिलता है। आज
आपको 80 %कुण्डलिया मंगली दोष से ग्रसित
मिलेगी ।जिसमे से 20 प्रतिशत कुण्डलियो मे
मंगली दोष भंग कि स्थिति मिलेगी । 20 प्रतिशत
कुण्डलियो वाले जातको का मंगल मिलप्न हो जाने से
मंगली दोष का प्रभाव कम हो जाता है। शेष
जातको को मंगली दोष का प्रभाव किसी न
किसी रुप मे भुगतान पडता है। इन में से कुश जातक
भाग्यशाली होते हे कि उनके जीवन में मंगल
की महादशा आती ही नही तो कुछ जातक विवाह
पूर्व ही मंगल की महादशा से गुजर चुके होते है।
मंगली दोष का प्रभाव मैने अपने अनुभव मे पाया है
कि जीवन भर इसका प्रभाव रहता है। परंतु युवावस्था में
विशेष रूप प्रभाव विधमान रहता है। जैसे जैसे उम्र
बढती जाती है। वैसे वैसे इसका उग्र प्रभाव कम
होता जाता है। मंगली दोष हाने पर यदि मंगल के साथ
पापग्रह स्थित हो तो इसका नकारात्मक प्रभाव बड़
जाता है।यदि युवावस्था मे ही इसकी दशा भी प्रारंभ
हो जाए तो दाम्पत्य जीवन नरक बन जाता है। परंतु
शुभग्रहो का मंगल पर प्रभाव हाने पर मंगली दोष कम
होकर दाम्पत्थ जीवन में अनबन रहती है। वैचारिक मतभेद
एवं क्लेश की स्थिति बनने पर भी पारिवारिक सहयोग
एवं सामाजिक बंधन के कारण मंगली दोष का प्रभाव
दम्पत्य जीवन को बनाए रखता है । कई बार
ऐसा भी होता कि मंगली दोष के कारण दम्पति मे
परस्पर सहयोग एवं समर्पण दिखाई देता है परंतु उसके
स्वास्थ्य संबध पीडा होती है। मंगली दोष
कि स्थिति मे स्त्री को मासिक स्त्राव कम
या अधिक होने ,पुरुष गुप्त रोग का प्रकोप एव
आक्समिक दुर्घटना के कारण अंग भग
कि स्थिति बनती है। युवावस्था मे इस प्रकार
कि समस्या अधिक देखने को मिलती है। लेकिन
निश्चित समयावधी पश्चात ऐसी समस्याएं कम होने
लगती है। अर्थात मंगली दोष का प्रभाव
युवावस्था पर अधिक घातक रुप से पडता है। आपने
भी कई बार देखा या सुना होगा कि उस
व्यक्ति कि शादी के तुरंत पश्चात बारात लैाटते समय
आक्समिक दुर्धटना के कारण मृत्यु हो गई । तो कुछ
आक्समिक दुर्धटना के कारण अपाहिज हो जाते है।ऐसे
मामलो मे देखा गया हें। की मगल पर केतु का अशुभ
दृष्टि प्रभाव पड रहा होता है। मंगल केतु कि युति होने
पर भी इस प्रकार कि दृर्धटना होते देखी गई है। ऐसे
जातक जिसमे जन्मांग मे मंगल शनि, मंगल केतु- सूर्य
या मंगल राहु कि युति होकर मगंली दोष बन
रहा हो तो उन्हे विवाह से पूर्व
किसी ज्योतिषि का मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त
करना चाहिए । ऐसी स्थिति मे भाग्य के भरोसे
रहना समझदारी नहि कही जा सकती ।
यदि आपका विवाह होने वाला है एव
आपको छोटी छोटी दुर्धटनाए होती रहती है।
’तो भी आप किसी योग्य ज्योतिषि का मार्गदर्शन
अवश्य प्राप्त करे । मंगली दोष का सबसे अधिक प्रभाव
विवाह के पश्चात पांच वर्ष तक रहता है।
ऐसी स्थिति मे मंगली दोष जब मारक बन
रहा हो तो जीवन
साथी द्वारा हत्या या हत्या का प्रयास करना,
दुर्घटना मे अंग भंग होना ,आक्समिक दुर्घटना के कारण
मृत्यु तक हो जाती है। इसलिए मंगली दोष से ग्रस्त ऐसे
जातक दाम्पत्य जीवन अच्छा होने पर
भी भावी अनिष्ट कि आशंक के निवारण के लिए मंगल
को शुभ बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए ।
हो सकता है आपके द्वारा किए गए उपायो से
मंगली दोष कि तीव्रता कम होकर आपको सामान्य
पीडा ही दे सके अर्थात उपाय करते रहने पर
आपकि पीडा अवश्य कम होती है।
मंगली दोष का प्रभाव आजीवन रहने पर
भी इसकि तीव्रता युवावस्था के पश्चात कम हो जाने
से दम्पति सामंजस्य स्थापित कर लेते है। परंतु जब मगल
पाप ग्रहो से युति कर स्थित हो तो मंगली दोष
कि तीव्रता आजीवन बनी रहती है। ऐसे
जातको को विशेषतया मंगल या संबधित पापग्रह जब
गोचर मे अशुभ बन रहे हो, नीच राशि से गुजर रहे हो,मंगल
कि दशा -अन्तर्दशा, प्रत्यान्तर दशा चल
रही हो या संबधित पापग्रह कि दशा-
अन्तर्दशा ,प्रत्यन्तर दशा चल रही हो तब इन्हे विशेष
सावधानी बरतनी चाहिए। दम्पति मे परस्पर मंगल
का मिलान हो जाने पर पीडा कम हो जाती है। परन्तु
सामान्य परेशानी समय विशेष पर अवश्य बनी रहती है।