अशुभ फल कब और कोण देते हैं ग्रह ?
सूर्य- जब जातक किसी भी प्रकार का टैक्स चुराता है एवं किसी भी जीव की आत्मा को कष्ट देता है। तब सूर्य अशुभ फल देता है।
चंद्र- जब जातक सम्मानजनक स्त्रियों को कष्ट देता हैं। जैसे- माता, नानी, दादी, सास एवं इनके समान वाली स्त्रियों को कष्ट देता है तब चंद्र अशुभ फल देता है। धोखे से किसी से कोई वस्तु लेने पर भी चंद्रमा अशुभ फल देता है।
मंगल- जब जातक अपने भाई से झगड़ा करें, भाई के साथ धोखा करें। अपनी पत्नी के भाई का अपमान करें, तो भी मंगल अशुभ फल देता है।
बुध- जब जातक अपनी बहन, बेटी अथवा बुआ को कष्ट देता है, साली एवं मौसी को कष्ट देता है। जब जातक हिजड़े को कष्ट देता है, तो भी बुध अशुभ फल देता है।
गुरु- जब जातक पिता, दादा, नाना को कष्ट देता है अथवा इनके समान पद वाले व्यक्ति को कष्ट देता है। साधु-संतों को कष्ट देने से भी गुरु अशुभ फल देता है।
शुक्र- जब जातक जीवनसाथी को कष्ट देता है। घर में गंदे एवं फटे वस्त्र रखने एवं पहनने पर भी शुक्र अशुभ फल देता है।
शनि- जब जातक ताऊ, चाचा को कष्ट देता है, मजदूर की पूरी मजदूरी नहीं देता है। घर या दुकान के नौकरों को गाली देता है। शराब, मांस खाने पर भी शनि अशुभ फल देता है। कुछ लोग मकान या दुकान किराए से लेते फिर बाद में खाली नहीं करते या खाली करने के लिए पैसे मंगाते है, तो शनि अशुभ फल देता है।
राहु- जब जातक बड़े भाई को कष्ट देता है या अपमान करता है। ननिहाल पक्ष का अपमान करने पर एवं सपेरे का दिल दुखाने पर भी राहु कष्ट देता है।
केतु- जब जातक भतीजे, भांजे को कष्ट देता है या उनका हक छीनता है। कुत्ते को मारने या किसी के द्वारा मरवाने पर, मंदिर की ध्वजा तोड़ने पर केतु अशुभ फल देता है। किसी की झूठी गवाही देने पर भी राहु-केतु अशुभ फल देते हैं।
अत: नवग्रहों का अनुकूल फल पाने के लिए मनुष्य को अपना जीवन व्यवस्थित जीना चाहिए, किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। न ही किसी के साथ छल-कपट करना चाहिए
Tuesday, May 30, 2017
गृह के अशुभ फल
Monday, May 29, 2017
समय हो वक्र तो कम करे गोमती चक्र
समय हो वक्र तो काम आये गोमती चक्र
गोमती चक्र
गोमती चक्र एक दुर्लभ वस्तु है यह
आसानी से प्राप्त
नहीं होती , यह लिखना है कुछ
किताबो का पर आज के समय में यह आसानी से मिल
जाती है यह एक प्रकार का सफेद टुकड़ा होता है
जिस पर चक्र स्व्य् प्रकृतिक
द्वारा ही बना होता है किसी शुभ
महूर्त में इस पर यह मंत्र का ग्यारा बार माला जप करने से
यह शुद्ध हो जाता है फिर शुद्ध गोमती चक्र
को किस किस काम ला सकते है आगे पढ़े मंत्र “ॐ
वॉ आरोग्यानिकारी रोगानशेषानंम” इस प्रकार जब
ग्यारह मालाए सम्पन हो जाए तब साधक को वह
गोमती चक्र सावधानी पूर्वक एक तरफ
रख देना चाहिए वह गोमती चक्र तीन
वर्ष तक प्रभावित रहेगा इस का प्रयोग
बीमारी पर विशेष रूप से किया जाता है
कोई बीमारी हो तो एक साफ गिलास में
शुद्ध गंगा जल लेकर उस में यह गोमती चक्र डाल
दे और ऊपर लिखे मन्त्र को इक्कीस बार मन
ही मन उच्चारण कर उस गोमती चक्र
को बाहर निकल दे व्
वो पानी रोगी को पिला दें तो वह
रोगी जल्दी ही ठीक
होने लग जाएगा आश्चर्य कि बात यह है कि ऐसा प्रयोग
किसी भी रोगी पर
किया जा सकता है चाहे कोई भी रोग क्यों न
हो तीन वर्ष के बाद इस प्रकार के
गोमती चक्र को पुनः सिद्ध किया जा सकता है
1. अगर किसी को भुत प्रेत का उपद्रव हो तो सिद्ध
किया हुआ गोमती चक्र दो दाने लेकर उस इन्सान के
सर से ७ बार वार कर जलती अग्नि में डाल देने से
भुत प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है अगर
किसी के घर पर ऐसा हो तो पुरे घर पर या रसोई से
वार कर अग्नि में डाल देने से घर का भी दोष समाप्त
हो जाता है
2. अगर घर में कोई बीमारी हो या कोई
बार बार बीमार हो रहा हो या घर से
बीमारी निकल न
रही हो तो सिद्ध किया हुआ एक
गोमती चक्र शुभ महूर्त में चाँदी में
जड़वा कर रोगी के पलंग के पावे पर काले धागे से बांध
दें बीमारी अपने आप
चली जाएगी व्
रोगी जल्दी ही सवस्थ
होने लग जाएगा
3. अगर किसी का व्यापार न चल रहा हो या व्यापार
को कोई नजर लग गई हो या व्यापार में कोई
परेशानी बार बार आ रही हो तो अपने
व्यापार कि चोखट पर दो गोमती चक्र सिद्ध करके शुभ
महुर्त में किसी लाल कपड़े में बांध कर टांग दें व्
उस पर लाल कामिया सिंदूर का तिलक कर दें ध्यान रखे ग्राहक
उस के निचे से निकले बस कुछ ही दिनों में आप
का व्यापार तरकी पर होगा
4. अगर कोई नोकरी पेशा है व् नोकरी में
कोई
तरकी नही हो रही है
सब यत्न कर लिए तो उसे सिद्ध किया हुआ एक
गोमती चक्र रोजाना शिव लिंग पर चढ़ाना चाहिए
ऐसा इक्कीस दिन लगातार करने पर
नोकरी में बन रही कोई
भी अड़चन समाप्त हो जाएगी चाहे
प्रमोशन हो या नोकरी न मिल रही हो
5. अगर पति पत्नी में रोजाना कोई लड़ाई
होती हो या झगड़ा इतना बड़ गया हो कि बात तलाक
तक पहुच गयी हो तो ऐसे में तीन
सिद्ध किये हुए गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में
हलु बलजाद कहकर फेकं दें ऐसा हफ्ते में तीन
बार करे परेशानी कम हो जाएगी
6. अगर संतान कि प्राप्ति में किसी तरह
की कोई बाधा आ रही हो तो यह
प्रयोग अवश्य ही करे पाँच सिद्ध
गोमती चक्र लेकर
किसी नदी या तालाब में पाँच बार यह
मन्त्र बोल कर विसर्जित कर दे तो संतान
की बाधा समाप्त हो जाएगी मन्त्र इस
प्रकार है हिलि हिलि मिलि मिलि चिलि चिलि हुक
7. अगर किसी ओरत का गर्भ बार बार गिर
रहा हो तो उसे चाहिए की सिद्ध
दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांध कर अपने सोने
वाले कमरे में कही लटका दे समस्या से निजात मिल
जाएगी
8. अगर किसी के शत्रु बढ़ गये हो तो सिद्ध
तीन गोमती चक्र ले कर उस पर शत्रु
का नाम लिख कर
तीनो गोमती चक्रो को कही वीरानी जगह
में गाड़ दे तो शत्रु से निजात मिलेगी
9. अगर किसी को कोट कचहरी के
चक्र पड रहे हो तो उसे सिद्ध दो गोमती चक्र
लेकर अपने घर से निकलते समय अपने दाए पांव के निचे रख कर
ऊपर से पांव रख कर कोट जाने से समस्या कम
हो जायेगी
10. अगर किसी का भाग्य उदय न
हो रहा हो तो उसे सिद्ध तीन
गोमती चक्र का चूर्ण बना कर शुभ महूर्त में अपने
घर के बाहर बिखेर देने से दुर्भाग्य समाप्त हो जाता है
11. राज्य में सम्मान की खातिर सिद्ध
दो गोमती चक्र को किसी शुभ महूर्त में
किसी ब्राह्मण को दान दे व् साथ में उसे भोजन
अवश्य ही करवे राज्य संबंधी कोई
भी समस्या हो समाप्त हो जायेगी
12. अगर किसी पर कोई किया कराये का असर है
तो उसे सिद्ध चार गोमती चक्र अपने सर से वार कर
चारो दिशाओ में फ़ेंक दे दोष समाप्त हो जायेगा यह कार्य बुध वार
को करे पाँच बुध वार लगातार
13 अगर किसी बच्चे को नजर
जल्दी लगती हो तो उसे सिद्ध
गोमती चक्र चांदी में जड़वा कर पहना दे
नजर दोष से मुक्ति मिलेगी व वो सवस्थ
भी रहेग
14 अगर किसी प्रकार की धन
की समस्या बार बार आ रही है तो ऐसे
में पाँच गोमती चक्र ले कर किसी शुभ
महूर्त में
माँ लक्ष्मी जी की फ़ोटो के
आगे रख कर रोजाना पूजन करे धन
की समस्या समाप्त हो जाएगी व निरंतर
उनती होती रहेगी
15. व्यापर स्थान पर ग्यारा गोमती चक्र लाल कपड़े
में बांध कर धन रखने वाले स्थान पर रख दे तो व्यापर में
बढ़ोतरी होती जाएगी यह
साल में दो बार करे शुभ महूर्त में व पुराने
वाली पोटली को जल परवाह कर दे
Friday, May 26, 2017
पूर्णिमा और अमावस्या
पूर्णिमा और अमावस्या का रहस्य
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण के रहस्य को
उजागर किया गया है। इसके अलावा वर्ष में ऐसे कई महत्वपूर्ण
दिन और रात हैं जिनका धरती और मानव मन पर गहरा
प्रभाव पड़ता है। उनमें से ही माह में पड़ने वाले 2
दिन सबसे महत्वपूर्ण हैं- पूर्णिमा और अमावस्या। पूर्णिमा और
अमावस्या के प्रति बहुत से लोगों में डर है। खासकर अमावस्या के
प्रति ज्यादा डर है। वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या
होती हैं। सभी का अलग-अलग महत्व
है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार
पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और
कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं
और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या।
हिन्दू पंचांग कि अवधारणा
यदि शुरुआत से गिनें तो 30 तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा
(पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया
(दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी
(चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी
(छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी
(आठम), नवमी (नौमी), दशमी
(दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी
(बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी
(चौदस) और अमावस्या (अमावस)।
अमावस्या पंचांग के अनुसार माह की 30वीं
और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन कि
चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता। हर माह
की पूर्णिमा और अमावस्या को कोई न कोई पर्व अवश्य
मनाया जाता ताकि इन दिनों व्यक्ति का ध्यान धर्म की ओर
लगा रहे।
नकारात्मक और सकारात्मक शक्तियां
धरती के मान से 2 तरह की शक्तियां
होती हैं- सकारात्मक और नकारात्मक, दिन और रात,
अच्छा और बुरा आदि। हिन्दू धर्म के अनुसार धरती पर
उक्त दोनों तरह की शक्तियों का वर्चस्व सदा से रहता
आया है। हालांकि कुछ मिश्रित शक्तियां भी
होती हैं, जैसे संध्या होती है तथा जो
दिन और रात के बीच होती है। उसमें दिन
के गुण भी होते हैं और रात के गुण भी।
इन प्राकृतिक और दैवीय शक्तियों के कारण
ही धरती पर भांति-भांति के
जीव-जंतु, पशु-पक्षी और पेड़-पौधों,
निशाचरों आदि का जन्म और विकास हुआ है। इन शक्तियों के कारण
ही मनुष्यों में देवगुण और दैत्य गुण होते हैं।
हिन्दुओं ने सूर्य और चन्द्र की गति और कला को
जानकर वर्ष का निर्धारण किया गया। 1 वर्ष में सूर्य पर आधारित 2
अयन होते हैं- पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन।
इसी तरह चंद्र पर आधारित 1 माह के 2 पक्ष होते
हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
इनमें से वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल
पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं, तो दक्षिणायन
और कृष्ण पक्ष में दैत्य और पितर आत्माएं ज्यादा सक्रिय
रहती हैं। अच्छे लोग किसी
भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात में
नहीं करते जबकि दूसरे लोग अपने सभी
धार्मिक और मांगलिक कार्य सहित सभी सांसारिक कार्य
रात में ही करते हैं।
पूर्णिमा का रहस्य
पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और
नींद कम ही आती है।
कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के
विचार बढ़ जाते हैं। चांद का धरती के जल से संबंध है।
जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न
होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की
ओर खींचता है। मानव के शरीर में
भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के
दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी
तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्त में
न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और
ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता
है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता
रहता है तो व्यक्ति का भविष्य भी उसी
अनुसार बनता और बिगड़ता रहता है।
जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय
की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर
सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्ति भोजन करने के बाद नशा जैसा
महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं
जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर
ज्यादा केंद्रित हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों पर चन्द्रमा का प्रभाव
गलत दिशा लेने लगता है। इस कारण पूर्णिमा व्रत का पालन रखने
की सलाह दी जाती है।
कुछ मुख्य पूर्णिमा
कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा
आदि।
चेतावनी : इस दिन किसी भी
प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं
करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना
चाहिए। इसके शरीर पर ही
नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम
हो सकते हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि चौदस, पूर्णिमा
और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही
भलाई है।
अमावस्या का रहस्य
वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में
देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और
कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती
हैं। जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय
रहती हैं, तब मनुष्यों में भी
दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है
इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के
मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है।
अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-
जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन
की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी
रखनी चाहिए। प्रेत के शरीर
की रचना में 25 प्रतिशत फिजिकल एटम और 75
प्रतिशत ईथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ
शरीर के निर्माण में 25 प्रतिशत ईथरिक एटम और 75
प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो
जाए तो प्रेतों का छायाचित्र लिया जा सकता है और इसी
प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी
छायाचित्र लिया जा सकता है।
ज्योतिष में चन्द्र को मन का देवता माना गया है। अमावस्या के दिन
चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में जो लोग अति भावुक
होते हैं, उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। लड़कियां
मन से बहुत ही भावुक होती हैं। इस
दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे
शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो
व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने
प्रभाव में ले लेती है।
धर्मग्रंथों में चन्द्रमा की 16वीं कला को
'अमा' कहा गया है। चन्द्रमंडल की 'अमा' नाम
की महाकला है जिसमें चन्द्रमा की 16
कलाओं की शक्ति शामिल है। शास्त्रों में अमा के अनेक
नाम आए हैं, जैसे अमावस्या, सूर्य-चन्द्र संगम,
पंचदशी, अमावसी, अमावासी या
अमामासी। अमावस्या के दिन चन्द्र नहीं
दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता
है उसे अमावस्या कहा गया है, तब इसे 'कुहू अमावस्या'
भी कहा जाता है। अमावस्या माह में एक बार
ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का
स्वामी पितृदेव को माना जाता है। अमावस्या सूर्य और
चन्द्र के मिलन का काल है। इस दिन दोनों ही एक
ही राशि में रहते हैं।
कुछ मुख्य अमावस्या
भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि
अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली
अमावस्या, सोमवती अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या।
चेतावनी : इस दिन किसी भी
प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं
करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना
चाहिए। इसके शरीर पर ही
नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम
हो सकते हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि चौदस, अमावस्या
और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही
भलाई है।
आत्मा का रंग कैसा है?
यह दुनिया रंग-बिरंगी या कहें कि सतरंगी
है। सतरंगी अर्थात सात रंगों वाली। लेकिन
आत्मा का कोई रंग पता नहीं चला है।ध्यान, धारणा,
समाधि और पूजापाठ से लेकर मृत्यु के बाद वापस शरीर
में लौटे लोगों तक आत्मा और परलोक के अनुभव बताते हैं पर उसका
रंग कोई नहीं बताता।अध्यात्म विज्ञान की
दिशा में शोध प्रयोग कर रहे कुछ अनुसंधान करने वालों ने इस दिशा में
काम शुरु किया है। इस तरह के प्रयोगों में लगे
पांडीचेरी के प्रो. के सुंदरम ने कहा है कि
आत्मा का भी रंग होता है।रंगों का विश्लेषण करते हुए
प्रो. सुंदरम का कहना है कि मूलत: पांच तरह के रंग
ही होते हैं, जैसे काला, सफेद, लाल, नीला
और पीला। इनमें भी काला और सफेद कोई
रंग नहीं है। रंगों की अनुपस्थिति काला रंग
बनता है और सभी रंगों की उपस्थिति
सफेद रंग का आभास कराता है।इस तरह तीन
ही रंग प्रमुख हो जाते हैं- लाल, पीला
और नीला। अध्ययन और प्रयोगों को आगे बढ़ाते हुए
प्रो, सुंदरम और उनके सहयोगियों ने शरीर में मौजूद सात
चक्रों का रंग रुप भी खंगाला।
चक्रों पर किए प्रयोग के बाद उन्होंने कहा है कि आत्मा का रंग या
तो नीला होता है अथवा आसमानी।
नीले रंग को वे थोड़ा निरस्त भी करते हैं
क्योकि प्रकाश के रुप में आत्मा ही दिखाई
पड़ती है और पीले रंग का प्रकाश आत्मा
की उपस्थिति को सूचित करता है। धरती पर
पचहत्तर प्रतिशत जल ही फैला है और जहां
भी वह घनीभूत होता है वहां आकाश
का रंग प्रतिबिंबित होने के कारण पानी का रंग
नीला दिखाई देता है।ध्यान में हुए अनुभवों और सपनों
में दिखाई देने वाले उदास रंगों के आधार पर उन्होंने कहा है कि
आत्मा का रंग आसमानी है। कुछ
मनीषी मानते हैं कि नीला रंग
आज्ञा चक्र का और आत्मा का रंग है। आज्ञाचक्र
शरीर का आखिरी चक्र है। यह सात में
से छठा है, सातवां सहस्रार चक्र शरीर और आत्मा के
बीच सेतु का काम करता है। उसका अपना कोई रंग
नहीं है। इसलिए नीला और
आसमानी रंग ही आत्मा का रंग कहा जा
सकता है।
Tuesday, May 23, 2017
लैंगिक चर्चा
हमारे पुरुष प्रधान समाज में पौरुष का आकलन व्यक्ति के लैंगिक
प्रदर्शन पर अक्सर किया जाता रहा है. इस विषय पर लोग
आज भी खुल कर बात नहीं करते
किन्तु दबी जुबां में चर्चा समाप्त
भी नहीं होती है. इस
लेख में मैं प्रयास करूंगा की यदि आप यौन
दुर्बलता आदि से ग्रस्त हैं तो उसके ज्योतिषीय
उपाय क्या हो सकते हैं. ज्योतिष बहुत
ही विस्तृत विज्ञान है और मनुष्य
की हर बात को इस से समझा जा सकता है. आज
के युग में जिसमें की शुक्र
की प्रधानता बढती जा रही है ,
हम रोज़मर्रा के जीवन में देखते है
की सम्भोग शक्ति से सम्बंधित दावा और
मशीनें बढती जा रही है
जो की कुछ नहीं है ,
लोगों की शर्म का मनोवैज्ञानिक आर्थिक दोहन है.
सम्भोग
की समयसीमा की अधिकता पौरुष
का मार्का बन गयी है. जब हम
किसी दवाई की दूकान में जाते हैं तो सामने
ही हमें पुरुषों की सम्भोग शक्ति बढाने
वाले तेल , पाउडर , कैप्सूल , गोली और
स्त्रीयों के वक्ष बढाने वाले उत्पाद
दीखते हैं , जीवन रक्षक और
आवश्यक दवा पीछे
कहीं पड़ी रहती है. लोग
भी अंधों की तरह एक के बाद एक
नुस्खा आजमा रहे हैं बिना किसी सफलता के ,
सम्भोग आज के जीवन
की प्राथमिकता बन गया है . हमारे शास्त्रों में
सम्भोग के लिए भी विधान है किन्तु उसको भूलकर
लोग अपनी कामेच्छा शांत करने में लगे हुए है .
इन सबसे होता यह है की जो था वोह
भी चला जाता है, ज्योतिष में इन सबके लिए
भी उपाय हैं जो की देर सबेर
फायदा भी करते हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से
सहारा भी देते हैं. सभी ग्रहों के लिंग
ज्योतिष में निर्धारित है जो की निम्न हैं :
१) सूर्य : पुरुष
२) चन्द्र : स्त्री
३) मंगल : पुरुष
४) बुध : नपुंसक , किन्तु अन्य
ग्रहों की युति दृष्टि से अन्य योनी .
५) गुरु : पुरुष
६) शुक्र : स्त्री
७) शनि : नपुंसक
ग्रहों के अनुसार
ही राशियों का भी निर्धारण है जैसे हर
दूसरी राशी स्त्री राशी है ,
अतः मेष पुरुष और वृषभ
स्त्री राशी हुई ,
इसी प्रकार से मीन तक
लीजिये. स्वाभाविक रूप से जब एक पुरुष गृह
स्त्री राशी में या स्त्री गृह
पुरुष राशी में विचरण करेगा तो भाव के फल में फर्क
पड़ेगा. यह सामान्य बात है . कुंडली के सप्तम
और अष्टम भाव सेक्स के प्रकार और यौनांगों से सम्बंधित होते
हैं. नपुंसकता आमतौर पर मनोवैज्ञानिक
दुर्बलता होती है और यह ठीक
करी जा सकती है बशर्ते व्यक्ति के
सम्बंधित अंग किसी बिमारी या दुर्घटना के
कारण नष्ट न हो गए हों.
कुछ योग जिनसे नपुंसकता आ सकती है ,
१) राहू या शनि द्वित्य भाव में हों , बुध अष्टम में तथा चन्द्रम
द्वादश में हो ,
२) यदि चन्द्रमा पापकर्तरी में हो तथा अष्टम भाव
में बुध या केतु हों ,
३) यदि शनि और बुध अष्टम भाव में हों तथा चन्द्र पाप
कर्तरी में हो ,
यह कुछ योग हैं जिनसे यौन दुर्बलता आ
सकती है किन्तु यह मनोवैज्ञानिक और अस्थिर
होती है ना की सदा के लिए . इन
अंगों की प्रकृति अश्तामाधिपति के अनुसार इस प्रकार
हो सकती है ,
१) यदि सूर्य अष्टमेश है तो व्यक्ति के अंग अछे होंगे और
ठीक से कार्य करेंगे ,
२) यदि चन्द्र है तो व्यक्ति के अंग अछे होंगे किन्तु वह
सेक्स को लेकर मूडी होगा ,
३) यदि मंगल है तो व्यक्ति के अंग छोटे होंगे किन्तु वह
बहुत ही कामुक होगा ,
४) यदि बुध है तो व्यक्ति सेक्स को लेकर हीन
भावना से ग्रस्त होगा ,
५) यदि गुरु है तो व्यक्ति व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ होगा ,
६) यदि शुक्र है तो व्यक्ति के अंग सुंदर होंगे और
उसकी काम क्रिया में तीव्र
रूचि रहेगी ,
७) यदि शनि है तो व्यक्ति के अंग की लम्बाई
अधिक होगी किन्तु क्रिया में शिथिलता और विकृति रह
सकती है ,
अष्टम भाव में बैठे ग्रहों के अनुसार फल में परिवर्तन आ
जायेगा, बुध यदि अष्टम में हो ,
स्वराशी का ना हो और उस पर कोई शुभ
दृष्टि भी न हो तो व्यक्ति काम क्रिया में असफल
रहता है, राहू के होने से व्यक्ति अत्यंत
भोगवादी हो जाता है तथा केतु से उसके अन्दर
तीव्र
उत्कंठा बनी रहती है.
व्यक्ति का यौन व्यवहार सप्तम भाव से प्रदर्शित
होता है ,सप्तम भाव और उसमें बैठे ग्रहों के कारण फल में
अंतर आता जाता है ,
१) सप्तम में यदि मंगल हो तो या दृष्टि हो तो व्यक्ति काम
क्रिया में क्रोध का प्रदर्शन करता है और सारा आनंदं नष्ट कर
देता है ,
२) यदि गुरु हो तो व्यक्ति आदर्श क्रिया संपन्न करता है ,
३) यदि शनि हो व्यक्ति का बहुत
ही हीन द्रष्टिकोण होता है और
वह जानवरों जैसा व्यवहार भी करता है ,
४) यदि राहू हो तो व्यक्ति ऐसे बर्ताव करता है जैसे कुछ
चुरा रहा हो ,
५) यदि केतु हो तो व्यक्ति शीघ स्खलन से ग्रस्त
होता है ,
६) यदि शुक्र हो तो व्यक्ति पूर्ण आनंद प्राप्त करता है ,
७) यदि बुध हो तो व्यक्ति नसों में दुर्बलता और
जल्दी थक जाने से ग्रस्त होता है ,
८) यदि चन्द्र अष्टम मैं हो तो व्यक्ति काम क्रिया में बहुत
आनंद देता है किन्तु चन्द्र
की दृष्टि निष्प्रभावी होती है ,
९) यदि सूर्य हो तो व्यक्ति क्रिया में अति उत्तेजना का प्रदर्शन
करता है
ग्रहों की युति , दृष्टि , दशा , और गोचर के अनुसार
व्रक्ति का प्रदर्शन बदलता चला जाता है और
सभी तथ्यों को समक्ष रखने पर
ही सही निर्णय पर
आया जा सकता है. यदि व्यक्ति किसी प्रकार
की दुर्बलता या व्याधि से ग्रस्त है तो एक अछे यौन
चिकिसक और मनोवैज्ञानिक का परामर्श लेना बेहतर है बजाय
किसी पोस्टर पम्फलेट वाले झोला छाप
गली मोहल्ले में में मिलने वाले स्वघोषित चिकित्सक
अथवा फूटपाथ पर झुग्गी बना के बैठे हुए
और्वेदाचार्यों से.
ज्योतिषीय परामर्श से आप न सिर्फ
अपनी दुर्बलता को दूर कर सकते है
बल्कि जीवन में धनात्मक ऊर्जा का संचार
भी कर सकते हैं. आपको वह रत्ना धारण
करना चहिये जिससे आपकी शक्ति का विकास हो और
योग मुद्रा में अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करना चहिये.
धूम्र पान को सदा के लिए त्यागना होगा क्योकि उस से बड़ा पौरुष
शक्ति का शत्रु कोई दूसरा नहीं है. खान पान
की आदतों में सुधार करना चहिये और शराब
की मात्र संयमित होनी चहिये. इश्वर
की प्रार्थना सर्वप्रथम है .
एक
अच्छा ज्योतिषी आपको आपकी दशा गृह
गोचर आदि द्वारा उचित परामर्श दे सकता है और किस इश्वर
की आराधन करनी चहिये वह
भी बता सकता है . ज्योतिष
की सहायता लेना दीर्घकाल में
कहीं अधिक उपयोगी सिद्ध होगा बजाय
इन सब वैद्य और झोला छाप चिकित्सकों के चक्कर लगाने से. साथ
ही सही वास्तविक चिकित्सक और
मनोवैज्ञानिक परामर्श
का भी आपको सहारा लेना होगा.