जब जन्मांग में गुरु एवं चन्द्रमा एक-दूसरे से केन्द्र में होते
हैं तो गजकेसरी योग बनता है। यह एक अत्यन्त ही
उत्तम योग है। विभिन्न ज्योतिषाचार्यों ने इसकी
भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
गजकेसरी योग में उत्पन्न जातक शत्रुहन्ता, वाकपटु,
राजसी सुख एवं गुणों से युक्त, दीर्घजीवी,
कुशाग्रबुद्धि, तेजस्वी एवं यशस्वी होता है।
ज्योतिष पितामह महर्षि पाराशर ने भी गजकेसरी
योग का यही फल बताया है किन्तु साथ में उन्होंने
यह भी कहा है कि यदि चन्द्रमा से केन्द्र में बुध या
शुक्र स्थित हों, चन्द्र दृष्टि रखे या योग करे, यह भी
गजकेसरी योग है। पुनः चन्द्रमा एवं योगकारक ग्रह
नीचस्थ शत्रुक्षेत्री न हों यह अनिवार्यता दोनों
योगों में बताई गई हैं।
यद्यपि बुध, गुरु, शुक्र से चन्द्रमा का योग अवश्य ही
उत्तम फल देने वाला होगा किन्तु ऐसी अवस्था में
गजकेसरी की जो इतनी प्रशंसा की गई है वह
निरर्थक हो जाएगी क्योंकि तब लगभग नब्बे
प्रतिशत जातक गजकेसरी योगोत्पन्न हो जाएँगे और
शेष योगों की अवहेलना हो जाएगी।
ND
किसी जन्मपत्री में
मान लीजिए
चन्द्रमा से केन्द्र में शुक्र है। चन्द्रमा उच्चस्थ है।
चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि धनभावस्थ शुक्र पर है।
चन्द्रमा राज्येश तथा शुक्र लग्नेश हैं किन्तु फिर भी
यह व्यक्ति आजीवन वनवासी तथा धनाभाव से
त्रस्त रहा। यद्यपि महर्षि पाराशर के मतानुसार इस
जन्मांग में गजकेसरी योग है तथापि यह व्यक्ति
जीवनभर दुःख ही भोगता रहा। पत्नी एवं संतान
सबसे तिरस्कृत होना पड़ा। इस व्यक्ति को गजकेसरी
योग का कोई भी परिणाम प्राप्त नहीं हुआ।
वास्तव में देखा जाए तो शुक्र से गजकेसरी योग हो
ही नहीं सकता है। कारण यह है कि शुक्र की एक
राशि वृष से दूसरी राशि तुला सदा छठे तथा तुला से
वृष सदा आठवें पड़ेगी और इस तरह शुक्र सदा ही दुषित
स्थान में या दोषपूर्ण भूमिका में रहेगा। ऐसी दशा में
गजकेसरी योग भंग हो जाएगा। पुनः एक
अनिवार्यता कारक ग्रहों के उदयास्त होने से है। यह
निश्चित है कि शुक्र एवं बुध सर्वदा सूर्य से 40 या 48
अंशों के अन्दर ही रहेंगे। और इस प्रकार ये दोनों ग्रह
कम समय के अन्तराल पर ही अस्त हो जाया करेंगे।
यदि अस्त होने की शर्त पर योग की कल्पना करें तो
बुधादित्य योग अस्तित्वहीन हो जाएगा। एक योग
की परिकल्पना दूसरे योग को निर्मूल कर रही है।
गुरु एवं बुध पर चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि हो। तो इस
प्रकार दृष्टि के परिप्रेक्ष्य में चन्द्रमा को गुरु एवं बुध
से सप्तम होना पड़ेगा क्योंकि चन्द्रमा की पूर्ण
दृष्टि सप्तम भाव पर ही होती है। तब चन्द्रमा एवं गुरु
परस्पर केन्द्र में हो जाएँगे।
हम वृहत्पाराशर की प्रति में उपलब्ध कथन पर प्रकाश
डालते हैं। पंडित देवेन्द्रचन्द्र झा संपादित प्रति में यह
पाठ इस प्रकार है-'लग्नाद् वेन्दोर्गुरौ केन्द्रे
सौम्यैर्युक्तेऽथवेक्षिते। गजकेसरियोगोऽयं न
नीचास्तरिपुस्थिते।'
अर्थात् लग्न या चन्द्र से केन्द्र में गुरु, नीच, अस्त या
शत्रु ग्रह से रहित शुभयुक्त या दृष्टि हो तो गजकेसरी
योग होता है। अब यहाँ पर एक अन्तर प्रत्यक्षतः
देखने को मिल रहा है। यहाँ पर गुरु का चन्द्रमा से
केन्द्र में होना आवश्यक नहीं है किन्तु यह कथन एकदम
ही विरुद्ध है क्योंकि गुरु एवं चन्द्र का षडाष्टक योग
शकट योग बनाता है जो एक अनिष्टकारी योग है।
समस्त बुरे परिणाम देने वाले ग्रह कुछ नहीं कर पाएँगे
यदि एकमात्र बृहस्पति ही केन्द्र में हो। यद्यपि केन्द्र
का बृहस्पति अवश्य ही अच्छा परिणाम देने वाला
होता है किन्तु कहीं कहीं पर अतिशयोक्तिपूर्ण
वर्णन मिलता है। अन्य समस्त योगों की अवहेलना कर
दी जाती है।
गजकेसरी योग के पूर्ण फल प्राप्ति हेतु यह अत्यन्त
आवश्यक है कि चन्द्रमा एवं गुरु दोनों ही
मित्रक्षेत्री, शुभ भावेश दृष्टि-युक्त एवं शुभ भावस्थ
हों। इसके अलावा एक शर्त यह भी है कि चन्द्रमा के
आगे या पीछे सूर्य के अलावा शेष मुख्य पाँच ग्रहों में
से कोई न कोई ग्रह होना चाहिए। अन्यथा 'केमद्रुम'
जैसा भयंकर पातकी योग बन जाएगा। ऐसी अवस्था
में गुरु एवं चन्द्रमा परस्पर केन्द्र में हों और उच्च के ही
क्यों न हों 'केमद्रुम' अपना प्रभाव अवश्य ही
दिखाएगा।
ND
कहते हैं केमद्रुम में जन्म लेने वाला पुत्र स्त्री से हीन,
दूरदराज देशों में भटकने वाला, दुःख से संतप्त, बुद्धि
एवं खुशी से दूर, गंदगी से भरा, नीच कर्मरत, सदा
भयभीत रहने वाला और अल्पायु होता है। केमद्रुम
योग का इतना भीषण परिणाम होता है। अतः
गजकेसरी योग के पूर्ण फल प्राप्ति के लिए यह
आवश्यक है कि चन्द्रमा भी किसी दुर्योग से
प्रभावित न हो। एकमात्र चन्द्रमा से केन्द्र में केन्द्र में
गुरु के रहने से ही गजकसरी योग का परिणाम प्राप्त
नहीं होगा।
प्रायः गुरु एवं चन्द्रमा परस्पर केन्द्र में होने के बजाय
यदि एक साथ हों तो उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त
होगा। पुनः परस्पर केन्द्र में होते हुए भी गुरु और
चन्द्रमा में जो विशेष बली होकर जिस भाव में
स्थित होगा उसी ग्रह का तथा उसी भाव का फल
प्राप्त होगा।
यथा वृष लग्न में उच्चस्थ चन्द्रमा पर यदि गुरु की
सप्तम दृष्टि हो तो गजकेसरी योग होते हुए भी एक
तरफ जहाँ शरीर अतिकमनीय होगा वहीं पर दाम्पत्य
जीवन अति कठिन होगा। क्योंकि जाया (सप्तम)
भाव में अष्टमेश की युति हो जाएगी। इस प्रकार
गजकेसरी योग का परिणाम शारीरिक सौष्ठव के रूप
में प्राप्त होगा किन्तु यदि गुरु और चन्द्रमा दोनों
एक साथ लग्न में हों तो शुभ ग्रह की राशि में स्थित
होने के कारण गुरु भी फलदायक हो जाएगा।
इसी प्रकार यदि तुला लग्न में गुरु एवं चन्द्रमा दोनों
ही लग्नस्थ हों तो देह सौष्ठव एवं समस्त धन-सम्पदा
उपलब्ध होने के बावजूद 'क्षत्यावयव जलेन' अर्थात्
शरीर के अन्दर या बाहर का कोई अवयव क्षतिग्रस्त
होगा। यह प्रत्यक्षतः अनुभूत है। तात्पर्य यह कि
गजकेसरी योग में भी गुरु एवं चन्द्रमा का शुभ भावेश
होना आवश्यक है। तभी पूर्ण फल प्राप्त होगा।
गजकेसरी योग का सबसे अच्छा परिणाम मीन लग्न
के जातक को तब प्राप्त होता है जब गुरु एवं चन्द्र
संयुक्त हों या लग्न से केन्द्र में हों।
यद्यपि मीन लग्न के जातक को किसी भी भाव में
चन्द्रमा एवं गुरु का परस्पर केन्द्र में होना गजकेसरी
योग का अति उत्तम फल देने वाला देखा गया है।
अन्यान्य स्थलों पर गजकेसरी योग के भंग होने की
शर्तों में यह भी बताया गया है कि कारक ग्रहों को
अस्त नहीं होना चाहिए तथा बुध, गुरु आदि से चन्द्र
योग को भी गजकेसरी योग की संज्ञा दी गई है।
यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि सूर्य के साथ बुध
की शक्ति में वृद्धि होती है। बुध एवं शुक्र ऐसे ग्रह हैं
जो सर्वदा सूर्य के आसपास रहते हैं।
ND
सूर्य के साथ बुध रहने पर ही बुधादित्य योग होता है
तो फिर इसके अस्त होने से गजकेसरी योग भंग कैसे
होगा? क्योंकि बुध के अस्त होने से तथा चन्द्र से
युक्त-दृष्टि होने पर भी न तो गजकेसरी योग ही
बनेगा और न ही बुधादित्य जैसे अतिप्रसिद्ध योग
की महत्ता या उपयोगिता रह जाएगी।
अतः बुध एवं शुक्र के संयोग से गजकेसरी योग की
सिद्धि उचित प्रतीत नहीं होती है। शुक्र के साथ
भी संयोग प्रायः शत्रु क्षेत्री का हो जाएगा।
अतः गजकेसरी की सिद्धि गुरु के साथ ही संभव एवं
उचित होगी। अन्य किसी के साथ नहीं। किन्तु शुभ
स्थिति में कारक ग्रहों (गुरु एवं चन्द्र) के होने पर
गजकेसरी योग का बहुत ही अच्छा परिणाम प्राप्त
होता है।
Wednesday, June 21, 2017
गजकेसरी योग
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