Wednesday, December 11, 2019

कुण्डली में पागल होने के कुछ योग

🌞कुंडली में पागल होने के योग🌞

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पागल होने के योग बन रहे हैं तो ऐसे लोगों को सावधान रहने की आवश्यकता होती है। ऐसे योग के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बताए गए उपाय अपनाने चाहिए।पागलपन की बीमारी किसी को बचपन से ही रहती है तो किसी को बड़ी उम्र में इस परेशानी का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कुछ विशेष योग होते हैं जो पागलपन की संभावना बताते हैं-

🔰पागलपन के योग-🔰

- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र, बुध की युति केंद्र स्थान में हो अथवा यह दोनों ग्रह लग्र भाव में स्थित हो तो व्यक्ति उन्मादी या अल्पबुद्धि वाला हो सकता है।

- भाग्य एवं संतान भाव में सूर्य-चंद्र हो तो व्यक्ति का मानसिक विकास ठीक से नहीं हो पाता।

- गुरु और शनि केंद्र में स्थित हो और शनिवार या मंगलवार का जन्म हो तो व्यक्ति पागल हो सकता है।

- यदि मंगल सप्तम स्थान में तथा लग्र में गुरु हो तो व्यक्ति किसी सदमे से पागल हो जाता है।

- यदि कमजोर चंद्र, शनि के साथ द्वादश भाव में युति करता है तो जातक पागल हो जाता है।

- मंगल, पंचम, सप्तम, नवम भाव में हो तो भी जातक पागल हो सकता है।

- कमजोर बुध केंद्र में या लग्र में बैठा हो तो वह व्यक्ति मंदबुद्धि होता है।

इन सभी योगों के साथ ही कुंडली के अन्य योगों और ग्रहों की स्थिति का भी अध्ययन किया जाना चाहिए। कुछ परिस्थितियों में दूसरों ग्रहों के प्रभाव ये अशुभ फल स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। पूर्ण कुंडली का अध्ययन करने पर ही सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है।

🔯पागलपन से बचने के कुछ उपाय-🔯

- गौमूत्र का सेवन करें। 

- बुध के मंत्रों का जाप करें।

- प्रतिदिन शिवजी की विधि-विधान से पूजा करें।

- बुधवार के दिन गाय को चारा खिलाएं।

- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।

- बुधवार को गणेशजी को दूर्वा और लाल फूल अर्पित करें।

- किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श लेकर अशुभ योगों का ज्योतिषीय उपचार करवाना चाहिए।

Monday, December 9, 2019

व्यवसाय के लिए राशि नाम

व्यवसाय के लिये राशि नाम एवं जन्म राशि का महत्त्व

जन्म नाम को कई प्रकार से रखा जाता है,भारत में जन्म नाम को चन्द्र राशि से रखने का रिवाज है,चन्द्र राशि को महत्वपूर्ण इसलिये माना जाता है कि शरीर मन के अनुसार चलने वाला होता है,बिना मन के कोई काम नही किया जा सकता है यह अटल है,बिना मन के किया जाने वाला काम या तो दासता में किया जाता है या फ़िर परिस्थिति में किया जाता है। दासता को ही नौकरी कहते है और परिस्थिति में जभी काम किया जाता है जब कहीं किसी के दबाब में आकर या प्रकृति के द्वारा प्रकोप के कारण काम किया जाये। जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा का स्थान जिस राशि में होता है,उस राशि का नाम जातक का रखा जाता है,नामाक्षर को रखने के लिये नक्षत्र को देखा जाता है और नक्षत्र में उसके पाये को देखा जाता है,पाये के अनुसार एक ही राशि में कई अक्षरों से शुरु होने वाले नामाक्षर होते है। राशि का नाम तो जातक के घर वाले या पंडितों से रखवाया जाता है,लेकिन नामाक्षर को प्रकृति रखती है,कई बार देखा जाता है कि जातक का जो नामकरण हुआ है उसे कोई नही जानता है,और घर के अन्दर या बाहर का व्यक्ति किसी अटपटे नाम से पुकारने लग जाये तो उस नाम से व्यक्ति प्रसिद्ध हो जाता है। यह नाम जो प्रकृति के द्वारा रखा जाता है,ज्योतिष में अपनी अच्छी भूमिका प्रदान करता है। अक्सर देखा जाता है कि कन्या राशि वालों का नाम कन्या राशि के त्रिकोण में या लगन के त्रिकोण में से ही होता है,वह जातक के घर वालों या किसी प्रकार से जानबूझ कर भी नही रखा गया हो लेकिन वह नाम कुंडली बनाने के समय त्रिकोण में या नवांश में जरूर अपना स्थान रखता है। मैने कभी कभी किसी व्यक्ति की कुंडली को उसकी पचास साल की उम्र में बनाया है और पाया कि उसका नाम राशि या लगन से अथवा नवांश के त्रिकोण से अपने आप प्रकृति ने रख दिया है। कोई भी व्यवसाय करने के लिये नामाक्षर को देखना पडता है,और नामाक्षर की राशि का लाभ भाव का दूसरा अक्षर अगर सामने होता है तो लाभ वाली स्थिति होती है,अगर वही दूसरा अक्षर अगर त्रिक भावों का होता है तो किसी प्रकार से भी लाभ की गुंजायस नही रहती है। उदाहरण के लिये अगर देखा जाये तो नाम "अमेरिका" में पहला नामाक्षर मेष राशि का है और दूसरा अक्षर सिंह राशि का होने के कारण पूरा नाम ही लाभ भाव का है,और मित्र बनाने और लाभ कमाने के अलावा और कोई उदाहरण नही मिलता है,उसी प्रकार से "चीन" शब्द के नामाक्षर में पहला अक्षर मीन राशि का है और दूसरा अक्षर वृश्चिक राशि का होने से नामानुसार कबाड से जुगाड बनाने के लिये इस देश को समझा जा सकता है,वृश्चिक राशि का भाव पंचमकारों की श्रेणी में आने से चीन में जनसंख्या बढने का कारण मैथुन से,चीन में अधिक से अधिक मांस का प्रयोग,चीन में अधिक से अधिक फ़ेंकने वाली वस्तुओं को उपयोगी बनाने और जब सात्विकता में देखा जाये तो वृश्चिक राशि के प्रभाव से ध्यान समाधि और पितरों पर अधिक विश्वास के लिये मानने से कोई मना नही कर सकता है। उसी प्रकार से भारत के नाम का पहला नामाक्षर धनु राशि का और दूसरा नामाक्षर तुला राशि का होने से धर्म और भाग्य जो धनु राशि का प्रभाव है,और तुला राशि का भाव अच्छा या बुरा सोचने के बाद अच्छे और बुरे के बीच में मिलने वाले भेद को प्राप्त करने के बाद किये जाने वाले कार्यों से भारत का नाम सिरमौर रहा है। इसी तरह से अगर किसी व्यक्ति का नाम "अमर" अटल आदि है तो वह किसी ना किसी प्रकार से अपने लिये लाभ का रास्ता कहीं ना कहीं से प्राप्त कर लेगा यह भी एक ज्योतिष का चमत्कार ही माना जा सकता है।अपने नाम के अनुसार किस प्रकार से व्यवसाय को चुना जावे अपने अपने नाम से व्यवसाय करने के लिये लोग तरह तरह के प्रयोग किया करते है,जैसे किसी के नाम के आगे एक ही राशि के दो अक्षर सामने आ जाते है तो वह फ़ौरन दूसरा शब्द उस नाम से लाभ लेने के लिये प्रयोग में ले आता है, एक नाम का उदाहरण है "एयरटेल" यह नाम अपने मे विशेषता लेकर चलता है,और इस नाम को भारतीय ज्योतिष के अनुसार प्रयोग करने के लिये जो भाव सामने आते है उनके आनुसार अक्षर "ए" वृष राशि का है और "य" वृश्चिक राशि का है,वृष से वृश्चिक एक-सात की भावना देती है,जो साझेदारी के लिये माना जाता है,इस नाम के अनुसार कोई भी काम बिना साझेदारी के नही किया जा सकता है,लेकिन साझेदारी के अन्दर भी लाभ का भाव होना जरूरी है,इसलिये दूसरा शब्द "टेल" में सिंह राशि का "ट" प्रयोग में लिया गया है,एक व्यक्ति साझेदारी करता है और लाभ कमाता है,अधिक गहरे में जाने से वृष से सिंह राशि एक चार का भाव देती है,लाभ कमाने के लिये इस राशि को जनता मे जाना पडेगा,कारण वृष से सिंह जनता के चौथे भाव में विराजमान है।

कैसे रखें प्रतिष्ठान का नाम

किसी भी फर्म कारखाना दुकान या किसी भी संस्था का नाम उसका मुकुट या बीजारोपण होता है जब हम किसी पेड़ को लगाते है तो सही भूमि सही समय का चयन करते है।इसके बाद वह पेड़ फलता फूलता है तब हम उसकी शीतल छांव मे आश्रय लेते है उसके फल खाते है।इसी तरह फर्म के नामकरण के समय सभी सदस्यों की पत्रिका अपनी कुल की परम्परा अपने कुल के देव कुल का हानि लाभ भाग्यवर्धक दिशा का चयन करना चाहिये।जिस स्थान मे फर्म डाल रहे है उस स्थान की भूमि कैसी है उसके वास्तुदोष का भी निराकरण करना चाहिये।

भाग्यवर्धक नामअक्षर

जिस तरह मां सभी को पालती है उसी तरह फर्म भी सभी का पोषण करती है इसके साथ सभी लोगों को भाग्य जुड़ा रहता है।इसिलिये अच्छी तरह से सोच समझकर पंजीकरण किया गय़ा नाम आपके भाग्य को बुलंदियों पर पहुँचाता है।

भाग्यवर्धक नाम अक्षर का राशि के अनुसार चुनाव 

मेष  इस राशि वालों को म,ध,अ ,ह ये नाम भाग्यवर्धक रहेंगे।
वृषभ  इस राशि के लिये प,ज ,व का नाम भाग्यवर्धक रहेगा।
मिथुन  इस राशि वालों को क,र,स ये नाम शुभ रहेंगे।
कर्क  इस राशि के लिये ह,न,ज,द अक्षर शुभ रहेंगे।
सिंह  इस राशि के लिये म,ध,अ अक्षर शुभ रहेंगे।
कन्या  इस राशि के लिये प,ज,द,व अक्षर भाग्यशाली रहेंगे।
तुला  इस राशि वालों को र,स,क इन नाम अक्षर से शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।
वृश्चिक  इस राशि वालों को द,ह,न ये नाम शुभ परिणाम दायक रहेंगे।
धनु  इस राशि वालों को अ,म,क नाम शुभ रहेंगे।
मकर  इस राशि वालों को प,व,र ये नाम शुभ परिणाम दायक रहेंगे।
कुम्भ इनके लिये र,म,क ये नाम शुभ है।
मीन इनके लिये ह,न,प ये नाम परम शुभ रहेंगे। 

दुकान,संस्थान,उद्योग का नामकरण आपके आर्थिक हित तथा अन्य लोगो से जुड़े संस्थान के नामकरण मॆ विशेष सावधानी बरतनी चाहिये.इनके नामकरण मॆ चतुर्थ,भाग्य तथा शनि की अनुकूल स्थिति आपको विशेष लाभ देगी.कोई भी नामकरण कोई मामूली नही विशेष महत्वपूर्ण है।

Monday, December 2, 2019

धनवान बनने के योग

🏵️ ।।धनवान बनने का योग ।।🏵️

यदि आप धनवान बनने का सपना देखते हैं, तो अपनी जन्म कुण्डली में इन ग्रह योगों को देखकर उसी अनुसार अपने प्रयासों को गति दें।

१ यदि लग्र का स्वामी दसवें भाव में आ जाता है तब जातक अपने माता-पिता से भी अधिक धनी होता है।

२ मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है।

३ जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है।

४ शनि ग्रह को छोड़कर जब दूसरे और नवे भाव के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठे होते हैं तब व्यक्ति को धनवान बना देते हैं।

५ जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बना देते हैं।

६ दूसरे भाव का स्वामी यदि ८ वें भाव में चला जाए तो व्यक्ति को स्वयं के परिश्रम और प्रयासों से धन पाता है।

७ यदि दसवें भाव का स्वामी लग्र में आ जाए तो जातक धनवान होता है।

८ सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर व्यक्ति अपार धन पाता है। विशेषकर जब सूर्य और राहू के ग्रहयोग बने।

९ छठे, आठवे और बारहवें भाव के स्वामी यदि छठे, आठवे, बारहवें या ग्यारहवे भाव में चले जाए तो व्यक्ति को अचानक धनपति बन जाता है।

१० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुंए, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।

११ मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवे भाव में और गुरु ग्यारहवे या पांचवे भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, खेती से या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती है।

१२ गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का और पांचवे भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति पुत्र और पुत्रियों के द्वारा धन लाभ पाता है।

१३ राहू, शनि या मंगल और सूर्य ग्यारहवें भाव में हों तब व्यक्ति धीरे-धीरे धनपति हो जाता है।

१४ बुध, शुक और शनि जिस भाव में एक साथ हो वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत ऊंचाई देकर धनकुबेर बनाता है

१५ दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति को विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन लाभ होता है।

१६ शनि जब तुला, मकर या कुंभ राशि में होता है, तब आंकिक योग्यता जैसे अकाउण्टेट, गणितज्ञ आदि बनकर धन अर्जित करता है।

१७ बुध, शुक्र और गुरु किसी भी ग्रह में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, प्रवचनकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।

१८ कुण्डली के त्रिकोण घरों या चतुष्कोण घरों में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो या फिर ३, ६ और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहू, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहू या शनि या शुक या बुध की दशा में अपार धन प्राप्त करता है।

१९ गुरु जब दसर्वे या ग्यारहवें भाव में और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवे भाव में हो या ग्रह इसकी विपरीत स्थिति में हो व्यक्ति को प्रशासनिक क्षमताओं के द्वारा धन अर्जित करता है।

२० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर अन्य कोई ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसार द्वारा अपार धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।

Friday, October 18, 2019

राजयोग फलित क्यों नहीं??

क्यों फल नहीं देते राजयोग.
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ज्योतिष के क्षेत्र में अपने शरुआती दौर में कई बार शाश्त्रों में उल्लेखित किसी योग को जब किसी कुंडली में पाता था ,,,व उस कुंडली के जातक को साधारण अवस्था में देखता था तो सोच में पड़ जाता था....बाद में जब कई कुंडलियों को बांचने का सौभाग्य प्राप्त होने लगा तो यकीन मानिए एक ही योग को कई कई तरीकों से फलित होते देखा......दिमाग भन्ना जाता था कई दफा तो मेरा इस विचार से कि सम्भवतः या तो ज्योतिष शास्त्र ही गलत है अथवा मैं ही इसे समझने के लायक नही हूँ...
           किन्तु समय के साथ साथ  जैसे जैसे अध्ययन व अनुभव बढ़ता गया ,,,कुछ पॉइंट्स साफ़ होने लगे.....आज बेहतर तरीके से जानता हूँ की कुंडली में मात्र किसी राज योग का होना ही उसके फलित होने की गारंटी नहीं है......अमूमन आज भी कई ज्योतिषियों को कुंडली में किसी योग को पाते ही फ़ौरन उस से सम्बंधित भविष्यवाणी करते देखता हूँ तो अफ़सोस होता है......जातक झूठी आस पर जीता है,,,और संभावित उपाय नहीं हो पाते....
         वास्तव में परंपरागत सूत्रों को दिमाग में रख कर भविष्यवाणी करने से कई बार गच्चा खाने की संभावनाएं बनी रहती हैं......जहाँ तक राजयोग की बात है ,,,बहुत कुछ निर्भर इस बात पर करता है की जन्म के समय महादशा किस ग्रह की थी. ....अपने शुरूआती दौर में मैं भी कई बार ऐसे सवालों में उलझा.....किन्तु बाद में ये अनुभव कर लिया(कई कुंडलियों के विश्लेषण के पश्चात )कि यह कि  जो ग्रह जन्मांग में राजयोग बना रहा है,,, जीवन में उस की दशा आ भी  रही है अथवा नहीं,,,,,और आ रही है तो किस आयु वर्ग में आ रही है???.. सब कुछ निर्धारण इस आधार पर होता है....यदि सूर्य उच्च के हैं और किसी प्रकार का योग बना रहे हैं, ,व जातक का जन्म मंगल की महादशा में हो रहा है ,,,तो बहुत संभव है कि अपने जीवन काल में वह जातक सूर्य द्वारा बनने वाले  राजयोग का फल नहीं पायेगा....  दूसरी बात जो मैं अनुभव कर पाया वह ये,, कि जन्म की शुरूआती महादशा यदि राजयोग में मुख्य किरदार निभाने -बनाने वाले ग्रह के नैसर्गिक शत्रु ग्रह की है,,, तो आधे से अधिक प्रभाव उस योग का वहीँ पर समाप्त हो जाता है. ....भले ही अब उस योग से सम्बंधित ग्रह की दशा जातक के जीवन में आये अथवा नहीं....
                        उदाहरण के रूप में समझिए कि आप अपने किसी ऐसे मित्र के घर में गए जिसके यहाँ आम का बहुत बड़ा बगीचा था.....किन्तु आप का वहां जाना नवम्बर के माह में हुआ,,, तो अब उस आम के बगीचे का कोई महत्त्व नहीं रह जाता...आपका यह क्लेम करना की मुझे आम का सुख प्राप्त हो ,,,औचित्यहीन हो जाता है.....वहीँ आपका एक दूसरा परिचित जो की वहां जून के महीने में गया होगा ,,,वह अपने मित्र के बगीचे के आमों का स्वाद ले कर आएगा....
                     इसे एक और उदाहरण में लें कि आप किसी ऐसे आदमी के घर जा रहे हैं,,,  जिस के घर आम का बहुत बड़ा बगीचा है ,आम लगे हुए भी बहुत हैं,,,किन्तु वह व्यक्तिगत रूप से आपको पसंद नहीं करता,,,, अपितु आपको अपना शत्रु ही समझता है,,,तो उन पेड़ पर लटके आमों का भला आपके लिए क्या अर्थ रह जाता है.....वो आपको नहीं मिलने वाले...किन्तु मौसम आमों का तो चल ही रहा है ,,,तो अपने सामर्थ्यानुसार बाजार से आम खरीद कर खा सकते हैं,,,, किन्तु वहां आपको अपनी जेब पर ही निर्भर रहना होगा.....अर्थात जो मजा या मात्रा बगीचे के आमो से प्राप्त हो सकती थी वो खरीद कर नहीं हुई.....आशा है आप सहमत होंगे...
      योग सदा दो अथवा दो से अधिक  ग्रहों की युति से बनता है,,,अब जीवन में उस योग का फल इन्ही दो में से एक की दशा में प्राप्त होना होता है..इसे जानने का साधारण सा सूत्र बताता हूँ .इसे चार्ट द्वारा समझें.  
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               उच्च         स्व       मित्र                 
                (५)          (४)       (३) 
                नीच         शत्रु         सम
                   (-५)     (-४)      (-३)   
                  मान लीजिये कि कर्क लग्न में गजकेसरी योग बन रहा है,...यहाँ गुरु अपनी उच्च राशि में हैं,,,अर्थात पांच अंक प्राप्त करते हैं ,,,,साथ ही चंद्रमा गुरु के मित्र हैं तो गुरु को तीन अंक अतिरिक्त प्राप्त होते हैं,,,,,वहीँ दूसरी और चंद्रमा मात्र स्व राशि के होकर चार अंक प्राप्त करते हैं,,, ,इस प्रकार समीकरण यूँ होता है... गुरु =८  व चंद्रमा =४ अंक.....तो यह योग गुरु में चन्द्र के अंतर में फलित होगा.....कुछ कम मात्रा का प्रभाव चंद्रमा में गुरु के अंतर में भी प्राप्त हो सकता है किंतु वास्तविक राजयोग पहली अवस्था मे ही सम्पन्न होगा.... अब अगर जातक के जीवन में गुरु की दशा नहीं आ रही है ,,,तो इस योग से जातक को बहुत अधिक आशा नहीं रखनी चाहिए....इसी प्रकार ज्योतिषी द्वारा अन्य योगों की समीक्षा की जा सकती है.
              साथ ही ग्रहों का स्वयं के फलित होने का एक समय होता है...मंगल का समय काल सामान्यतः बीस से तीस वर्ष के मध्य होता है,,,अब यदि किसी जातक  के रूचक योग का फलित समय तीसरे वर्ष या पचासवें आयुवर्ष में आ रहा है ,,,तो भला  इस योग का भी अब क्या अर्थ  रह जाता है....या कहें कि किसी जातक को मालव्य योग का सुख तब मिलना है,, जब वह अपनी आयु के ८२ वें वर्ष में है,,, तो मित्रो क्या इस योग का कोई औचित्य रह जाता है अब???  
         कुंडली में  मात्र किसी योग का होना ही उस योग से सम्बंधित फल पा लेने की गारंटी नहीं है.....कई कुंडलियों में सामान योग होते हुए भी उनके डिग्री ,अक्षांस ,देशांश ,वक्री ,मार्गी  से सम्बंधित आंकड़े यहाँ प्रभावित करते हैं....प्रधान मंत्री जी की गाडी का ड्राईवर भी उसी सरकारी वाहन का सुख भोग रहा है,, जिसका स्वयं प्रधानमन्त्री जी.......एक ही सुख अलग अलग प्रभावों में है.....थाने में एक सिपाही भी बैठा है,,,एक दारोगा भी व ,,एक अधिकारी भी....सब लगभग एक ही योग के अलग अलग प्रभावों का सुख पाते है..... जिस प्रकार एक ही पेड़ में लगे आमों का आकार,स्वाद ,रंग अलग अलग होता है...ये सूर्य से किस दिशा में लगे हैं,,,,किसी अन्य बेल आदि के साथ तो वो टहनी विशेष नही उलझी हुई है,,,इन सब कारकों का महत्व नजरंदाज नही किया जा सकता....
              साथ ही स्थान विशेष का भी अपना महत्त्व है...अफ्रीका के जंगलों में प्रबलतम राज योग का फल पाना अपनी जाति का मुखिया होना हो सकता है,,,किन्तु अमेरिका जैसे देश में अब उस मुखिया की कोई हैसियत नहीं होती.....यहाँ आपका प्रबलतम राजयोग अपने फलित होने की दशा काल में आपको दुनिया का सबसे पावरफुल व्यक्ति बना सकता है.... अतः ज्योतिष गणना एक श्रमसाध्य विषय है,,.ये निहायत इत्मीनान से ,,,स्वयं ज्योतिषी के श्रेष्ठ मानसिक अवस्था मे होने के दौरान किया जाने वाला कार्य है,,,,,क्षण विशेष में अपना पांडित्य दिखाने वाले तथाकथित ज्योतिषी,जो सेकण्ड्स में कुंडली विवेचन का दावा कर ,उपाय तक बताने लगते हैं,,,वे जातक के साथ छल कर रहे हैं व स्वयं इस विद्या का मजाक बना रहे हैं....आपको अभी बहुत लंबा सफर तय करना होगा बंधुओ,,,, यूँ किसी के विश्वास से दगा मत करो...सैकड़ों विश्वविद्यालय जिस ज्योतिष परंपरा के सूत्रों को तयः करने में स्वयं को होम कर गए,,उनके परिश्र्म को यूँ मिट्टी में न मिलाओ,मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना है..
                                        कहने का तात्पर्य यह है की किसी योग के फलित होने के लिए २०% उस योग का कुंडली में होना आवश्यक है,,,२०%पारिवारिक परिवेश महत्त्व रखता है,,,२०% आपका स्वयं का प्रयास,,,२०% आपसे जुड़े लोगों के ग्रहों का उस योग में योगदान,,,व २०% सामजिक दशा उसे प्रभावित करती है.,,,दुनिया के सबसे छोटे देश का राजा होना भी राज योग है,,,, व दुनिया के सबसे बड़े देश का राजा होना भी राज योग है.... अततः अब कभी भी जब अपनी कुंडली में किसी योग को लेकर भ्रमित हो रहे हों तो इन तथ्यों को अवश्य ध्यान दें...................आशा है आप सहमत होंगे।

Wednesday, October 16, 2019

खुले बाल नकारात्मक संकेत

*खुले बाल, शोक और नकरात्मक संकेत ।।

आजकल माताये बहने फैशन के चलते कैसा अनर्थ कर रही है ।

कृपया पुरा पढे

रामायण में बताया गया है,
जब देवी सीता का श्रीराम से विवाह होने वाला था, उस समय उनकी माता ने उनके बाल बांधते हुए उनसे कहा था, विवाह उपरांत सदा अपने केश बांध कर रखना।
बंधे हुए लंबे बाल आभूषण सिंगार होने के साथ साथ संस्कार व मर्यादा में रहना सिखाते हैं।  ये सौभाग्य की निशानी है ,
★ एकांत में केवल अपने पति के लिए इन्हें खोलना।★
           Research
हजारो लाखो वर्ष पूर्व हमारे ऋषि मुनियो ने शोध कर यह अनुभव किया कि सिर के काले बाल को पिरामिड नुमा बनाकर सिर के उपरी ओर या शिखा के उपर रखने से वह सूर्य से निकली किरणो को अवशोषित  करके शरीर को ऊर्जा प्रदान करते है। जिससे चेहरे की आभा चमकदार, शरीर सुडौल व बलवान होता है।

यही कारण है कि गुरुनानक देव व अन्य सिक्ख गुरूओ ने बाल रक्षा के असाधारण महत्त्व को समझकर धर्म का एक अंग ही बना लिया। लेकिन वे कभी भी बाल को खोलकर नही रखे,

ऋषी मुनियो व साध्वीयो ने हमेशा बाल को बांध कर ही रखा।

उलझे एवं बिखरे हुए बाल अमंगलकारी कहे गए है। -

कैकेई का कोपभवन में बिखरे बालों में रुदन करना और अयोध्या का अमंगल होना।

★पति से वियुक्त तथा शोक में डुबी हुई स्त्री ही बाल खुले रखती है।★

जब रावण देवी सीता का हरण करता है तो उन्हें केशों से पकड़ कर अपने पुष्पक विमान में ले जाता है। अत: उसका और उसके वंश का नाश हो गया।
महाभारत युद्ध से पूर्व कौरवों ने द्रौपदी के बालों पर हाथ डाला था, उनका कोई भी अंश जीवित न रहा।
कंस ने देवकी की आठवीं संतान को जब बालों से पटक कर मारना चाहा तो वह उसके हाथों से निकल कर महामाया के रूप में अवतरित हुई।
कंस ने भी अबला के बालों पर हाथ डाला तो उसके भी संपूर्ण राज-कुल का नाश हो गया।।

गरुड पुराण के अनुसार बालों में काम का वास रहता है |  बालों का बार बार स्पर्श करना दोष कारक बताया गया है। क्योकि बालों को अशुध्दी माना गया है इसलिय कोई भी जप अनुष्ठान , चूड़ाकरण ,  यज्ञोपवीत,  आदि-२ शुभाशुभ कृत्यों में क्षौर कर्म कराया जाता है | तथा शिखाबन्धन कर पश्चात हस्त प्रक्षालन कर शुद्ध किया जाता है।

दैनिक दिनचर्या में भी स्नान पश्चात बालों में तेल लगाने के बाद उसी हाथ से शरीर के किसी भी अंग में तेल न लगाएं हाथों को धो लें।
भोजन आदि में बाल आ जाय तो उस भोजन को ही हटा दिया जाता है।

मुण्डन या बाल कटाने के बाद शुद्ध स्नान आवश्यक बताया गया है। बडे यज्ञ अनुष्ठान आदि में मुंडन तथा हर शुद्धिकर्म में सभी बालो (शिरस्, मुख और कक्ष) के मुण्डन का विधान हैं ।

बालों के द्वारा बहुत सा तन्त्र क्रिया होती है जैसे वशीकरण यदि कोई स्त्री खुले बाल करके निर्जन स्थान या... ऐसा स्थान जहाँ पर किसी की अकाल मृत्यु हुई है.. ऐसे स्थान से गुजरती है तो अवश्य ही प्रेत 💀 बाधा का योग बन जायेगा.।।

वर्तमान समय में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से महिलाये खुले बाल करके रहना चाहते हैं, और जब बाल खुले होगें तो आचरण भी स्वछंद ही होगा।

Sunday, October 6, 2019

खोई चीज की जानकारी

खोई हुई वस्तु की जानकारी
              Lost information

कोई भी सामान खोना/चोरी होना आज
के समय मे सामान्य बात है।
अंक विद्या में गुम हुई वस्तु के बारे में प्रश्र किया जाए तो उसका जवाब
बहुत हद तक सच साबित होता है।
जैसे:-
सर्व प्रथम आप 1 से 108 के बीच का एक अंक मन मे सोचे।
और उस अंक को 9 से भाग दें। शेष जो अंक आये तो आगे लिखे अनुसार उसका
उत्तर होगा।
शेष अंक 1 ( सूर्य का अंक है )
पूर्व में मिलने की आशा है।

शेष अंक 2 ( चंद्र का अंक है )
वस्तु किसी स्त्री के पास होने की
आशा है पर वापस नहीं मिलेगी।

शेष अंक 3 ( गुरु का अंक है )
वस्तु वापिस मिल जायेगी। मित्रों और परिवार के लोगों से पूछें।

शेष अंक 4 ( राहु का अंक है )
ढूढ़ने का प्रयास व्यर्थ है। वस्तु आप की
लापरवाही से खोई है।

शेष अंक 5 ( बुध का अंक है )
आप धैर्य रख्खें वस्तु वापस मिलने की आशा है।

शेष अंक 6 ( शुक्र का अंक है )
वस्तु आप किसी को देकर भूल गए हैं।

घर के दक्षिण पूर्व या
रसोई घर में ढूंढने की कोशिश करें।

शेष अंक 7 ( केतु का अंक है )
चिंता न करें खोई वस्तु मिल जायेगी।

शेष अंक 8 ( शनि का अंक है )
खोई वस्तु मिलने की आशा नहीं है। वस्तु को भूल
जाएँ तो अच्छा है।

शेष अंक 9 या 0 ( मंगल का अंक है )
यदि खोई वस्तु आज मिल गई तो ठीक अन्यथा मिलने
की कोई आशा नहीं है।

उदाहरण :- के लिए अगर प्रश्नकर्ता ने 83 अंक कहा है तो
83 को 9 से भाग दें
83÷9 = 2
शेष आया 2 जो चंन्द्र का अंक है।
वस्तु किसी स्त्री के पास है पर वापस प्राप्त नही होगी।

खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी?
Information will be found or will not be found on the missing luggage?

इसके लिए सभी नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है.
नक्षत्रों का लोचन ज्ञान ।

अंध लोचन नक्षत्र

रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा, धनिष्ठा.

मंद लोचन नक्षत्र

अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा, शतभिषा.

मध्य लोचन नक्षत्र

भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद.

सुलोचन नक्षत्र नक्षत्र

कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद.

यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है।

यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है।

यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढाई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है।

यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो मिलती है और न ही उसकी सूचना प्राप्त होती है।

गुम वस्तु की प्राप्ति हेतु दिव्य मंत्र-

जीवन में भूलना, गुमना, चले जाना, बलात ले लेना अथवा लेने के बाद कोई भी वस्तु वापस नहीं मिलना ऐसी घटनाएं स्वाभाविक रूप से घटि‍त होती रहती है।
यदि आप का कोई भी सामान खो गया है या मिल नही रहा तो अपने पूजाघर मे
एक देशी घी का दीपक लगाकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें। अपनी गुम वस्तु की कामना को उच्चारण कर भगवान विष्‍णु के सुदर्शन चक्रधारी रूप का ध्यान करें इस मंत्र का विश्वासपूर्वक जप 1008 बार करें।इससे
गुम हुई चीज या अपना फसा धन प्राप्ति होने की सम्भावना प्रबल हो जाती हैl
मंत्र :-  ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते
खोई चीज पाने के लिए
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||

Sunday, September 15, 2019

जेल योग

जन्म पत्रिका मे कब और कैसे बनते है जेल योग -

ज्योतिष के अनुसार मुख्य रूप से शनि, मंगल एवं राहु ये तीन ग्रह कारागार के योग निर्मित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं| इसके अतिरिक्त सभी लग्नों में द्वादशेश, षष्ठेश एवं अष्टमेश भी इस तरह के योग बनाने में अपनी भूमिका निभाते हैं| इस प्रकार के योगों के साथ-साथ यदि दशा भी अशुभ ग्रहों की हो, तो उन योगों को घटित होने के लिए उपयुक्त स्थिति मिल जाती है और इस प्रकार की घटना होती है|
कई बार जन्मकुण्डली में ही इस प्रकार के योग बनते हैं, तो कई बार गोचर एवं दशा-अन्तर्दशा के फलस्वरूप अल्प समय के लिए ऐसे योग बन जाते हैं| प्रस्तुत लेख में उक्त आधार पर ही जेल जाने से सम्बन्धित या बन्धन में पड़ने के योगों की चर्चा की जा रही है|
जन्मपत्रिका में सूर्यादि ग्रह समान संख्या में लग्न एवं द्वादश, तृतीय एवं एकादश, चतुर्थ एवं दशम, पंचम एवं नवम, षष्ठ एवं अष्टम में स्थित हो जाएँ, तो यह एक प्रकार का बन्धन योग बनता है यथा; किसी जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव में शनि एवं द्वादश भाव में मंगल स्थित है, तो इस स्थिति में यह योग निर्मित होगा, लेकिन यदि द्वितीय में शनि और द्वादश में मंगल के साथ एक और पाप या शुभ ग्रह स्थित हो जाए, तो यह योग भंग हो जाएगा, क्योंकि उक्त दोनों भावयुगलों में समान संख्या में पाप ग्रहों का स्थित होना आवश्यक होता है| इस योग के फलस्वरूप चाहे कोई व्यक्ति कैसा भी क्यों न हो? उसे जीवन में कभी न कभी जेल अवश्य जाना पड़ता है| इस योग में बन्धनयोग कारक उन ग्रहों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि भी हो, तो इस योग के फल बहुत अल्पमात्रा में प्राप्त होते हैं| इस जेल यात्रा से जातक को अधिक कष्ट भी नहीं होता है, लेकिन यदि यह योग बनाने वाले पापग्रहों पर अन्य पाप ग्रहों या द्वादशेश की दृष्टि पड़ रही हो, तो यह जेल यात्रा कष्टकारक हो सकती है और लम्बे समय के लिए भी हो सकती है|
यह योग यदि शुभ ग्रहों से निर्मित हो रहा हो, तो इसका अर्थ है कि जातक ने कोई अपराध नहीं किया है अथवा बहुत छोटे से अपराध के लिए उसे सजा भोगनी पड़ी, लेकिन यदि यह योग पाप ग्रहों से निर्मित हो रहा हो, तो इसका अर्थ है उस व्यक्ति ने क्रोध, लालच, ईर्ष्या या द्वेष की भावना के वशीभूत होकर निश्‍चित रूप से अपराध किया है|
यह योग बनाने वाले ग्रह यदि शनि-मंगल या राहु में से कोई होें और साथ ही षष्ठ एवं द्वादश भावों के स्वामी भी यही हों, किसी शुभ ग्रह की इन पर दृष्टि भी नहीं हो और पापग्रहों की दशा भी चल रही हो, ऐसी स्थिति में व्यक्ति को मृत्युदण्ड या उम्रकैद की सजा मिलने की पूर्ण आशंका रहती है|
मिथुन, कन्या एवं मीन लग्न में यह योग अधिक नुकसानदायक होता है, क्योंकि इन लग्नों में त्रिक भावों में किन्हीं दो भावों के स्वामी पाप ग्रह होते हैं, जबकि तुला लग्न में यह योग कम फलप्रद होता है, क्योंकि तीनों त्रिक भावों के स्वामी सौम्य ग्रह हैं| शेष लग्नों में यह योग सामान्य फल देता है|
जन्मपत्रिका में लग्न भाव जातक का स्वयं का प्रतीक होता है| यदि लग्नेश के साथ षष्ठेश (शत्रु कारक) की युति केन्द्र अथवा त्रिकोण भाव में हो और राहु या केतु भी इनके साथ स्थित हों, तो इस स्थिति में भी कारावास योग बनता है| यदि इन दोनों (लग्नेश एवं षष्ठेश) की स्थिति पूर्वोक्त ही हो अर्थात् केन्द्र या त्रिकोण में ही हो और इनकी युति शनि से बन रही हो, तो जातक को जेल जाना पड़ता है| इतना ही नहीं जेल में उसे यातना एवं भूख-प्यास भी सहनी पड़ती है|
तीन ग्रहों की युति के कारण भी जेल योग बनता है यथा; जातक की जन्मपत्रिका के नवम भाव में सूर्य, शुक्र एवं शनि की युति हो, तो किसी अनैतिक कार्य के लिए या ऐसा कार्य जो समाज में अत्यन्त निन्दित हो, के लिए जेल यात्रा होती है| यदि पंचमेश अथवा सप्तमेश शुक्र की युति नवम भाव में शनि एवं मंगल के साथ हो, तो स्त्री सम्बन्धी किसी मामले के कारण कोर्ट केस होता है और कुछ दिन जातक को जेल में ही रहना पड़ता है|
यदि द्वादश भाव में शनि एवं नवम भाव में मंगल स्थित हो, तो जातक को अपने जन्मस्थान से दूर किए गए किसी अपराध के लिए जेल जाना पड़ता है| इतना ही नहीं इस मामले में उसका काफी धन भी खर्च होता है|
द्वितीय एवं पंचम ये दोनों ही भाव व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करते हैं| द्वितीय भाव जहॉं स्थायी धन का कारक है, वहीं पंचम भाव आकस्मिक धन और एकादश भाव से सप्तम होने के कारण लाभ का भी प्रतीक है| यदि शनि, राहु, मंगल, सूर्य एवं केतु ये ग्रह इन दोनों भावों में स्थित हो जाएँ, तो व्यक्ति को टैक्स चोरी, तस्करी, कालाबाजारी इत्यादि धन सम्बन्धित मामलों के कारण जेल जाना पड़ता है| यह भी हो सकता है कि वह किसी अन्य कार्य से जेल जाए, लेकिन उसे आर्थिक हानि बहुत अधिक हो जाए या उसकी सम्पत्ति जप्त कर ली जाए|
प्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहिर के अनुसार यदि किसी जातक का जन्म सर्प द्रेष्काण, निगड़ द्रेष्काण या आयुध द्रेष्काण में हो, तो कारावास एवं दण्ड के योग बनते हैं| सर्प द्रेष्काण में केवल कारावास या ऩजरबन्दी होती है| आयुध द्रेष्काण में कारावास नहीं होता है, लेकिन प्रताड़ना होती है, जबकि निगड़ द्रेष्काण में कारावास और सजा दोनों प्राप्त होते हैं|
द्वादश भाव जैसा कि हम पूर्व में बता चुके हैं सजा, बन्धन, दबाव इत्यादि से विशेष सम्बन्ध रखता है, में पापग्र्रहों की स्थिति बहुत परेशानीदायक होती है| यदि द्वादश भाव के साथ-साथ द्वितीय भाव में भी उतने ही ग्रह स्थित हो जाएँ, तो स्पष्ट रूप से बन्धन योग बनेगा, लेकिन यदि शनि, राहु या सूर्य इसमें स्थित हों, तो यह आवश्यक नहीं है कि जातक को जेल जाना पड़े, लेकिन ऐसा जातक सदैव किसी न किसी के दबाव में या वश में रहता है| यह दबाव पिता का, माता का, पत्नी का, मित्र का या किसी प्रभावशाली व्यक्ति का भी हो सकता है| ऐसा व्यक्ति कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय स्वयं नहीं ले सकता है, अन्य किसी व्यक्ति का हस्तक्षेप उसमें अवश्य होता है| इस कारण वह जातक बहुत मानसिक क्लेश और पीड़ा का अनुभव करता है|
यदि द्वादश भाव में मेष, सिंह, वृश्‍चिक, मकर या कुम्भ राशि हो, सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु में से कोई एक या अधिक ग्रह इस भाव में स्थित हों, षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश की इन पर दृष्टि हो, कोई शुभ ग्रह द्वादश भाव को नहीं देख रहा हो और द्वादशेश नवांश में त्रिक भावगत, नीच अथवा शत्रु राशिगत हो, तो इस स्थिति में जातक को अल्पायु में ही जेलयात्रा करनी पड़ती है| यदि अल्पायु में जेल का कष्ट नहीं प्राप्त हो, तो फिर उसे और उसके अन्य परिजनों को भी उसके कारण जेल के दु:ख भोगने पड़ते हैं|
कई बार जेलयोग जन्मपत्रिका में नहीं होने पर भी दशा-अन्तर्दशा और गोचर के ग्रहों की अशुभ स्थिति के फलस्वरूप जेलयात्रा हो जाती है यथा; शनि या मंगल की महादशा में द्वादशभावस्थ राहु की अन्तर्दशा आ जाए, गोचरानुसार जन्मकालीन सूर्य पर से शनि या राहु का गोचर हो और द्वादश एवं लग्न भाव भी पाप ग्रह के प्रभाव में हो, तो इसके फलस्वरूप भी बन्धन में पड़ने या कुछ समय के लिए जेल जाने के योग बन सकते हैं|
कैसे बचें कारावास योग से?
यदि समय रहते आपको कारावास सम्बन्धी योग पता चलते हैं या इस तरह की स्थिति आपके सामने आती है, तो रेमेडियल एस्ट्रोलॉजी की सहायता से आप इस योग को समाप्त या उसकी तीव्रता को कम कर सकते हैं| इस प्रकार के योगों से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों का सहारा लेना चाहिए :
1. सर्वप्रथम यह पता करें कि किन ग्रहों के कारण यह योग निर्मित हो रहा है| फिर उस ग्रह की शान्ति हेतु उसके चतुर्गुणित जप करवाएँ, हवन करें, निश्‍चित संख्या में उससे सम्बन्धित वार के व्रत करें और तदनुसार सम्बन्धित वस्तुओं का दान करें|
2. शुभ मुहूर्त में भगवान् शिव के नर्मदेश्‍वर शिवलिंग पर सात सोमवार तक सहस्रघट करवाएँ|
3. अपनी आयु वर्षों के चतुर्गुणित संख्या में किलोग्राम ज्वार लें और जिस ग्रह के कारण यह योग बन रहा हो, उस ग्रह के वार को या शनिवार को प्रारम्भ कर ज्वार एक-एक मुट्ठी डालते हुए कबूतरों को खिलाएँ|
4. यदि आपने वास्तव में अपराध किया है, तो यह निश्‍चित है कि आपको उसकी सजा मिलेगी, इतना अवश्य है कि उपाय करने से या प्रायश्‍चित से वह सजा कम हो जाएगी| जिस व्यक्ति के प्रति आपने अपराध किया है, उससे क्षमा मॉंगें| इसके अतिरिक्त शनिवार से प्रारम्भ कर किसी शिव मन्दिर में जाएँ और भगवान् के समक्ष अपने सारे अपराध स्वीकार करें| यह ध्यान रखें कि मन्दिर आपके घर के पास में नहीं हो, थोड़ा दूर हो और वहॉं आप नंगे पैर ही जाएँ|
5. शनिवार से प्रारम्भ कर चालीस दिनों तक मूँगा के हनूमान् जी की मूर्ति के समक्ष हनूमान् चालीसा के प्रतिदिन 100 पाठ करें या करवाएँ| पाठ से पूर्व संक्षेप में हनूमान् जी की पूजा भी करें|
6. शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ कर ११ पण्डितों से ‘बन्दीमोचन स्तोत्र’ के 3100 पाठ करे