हर व्यक्ति अपनी शिक्षा, आर्थिक क्षमता के अनुसार अपना लक्ष्य निर्धारित करता है और उसे प्राप्त करने के लिए कोशिश करता है। अगर कोई व्यक्ति चाहता है कि उसे कैरियर में जल्द सफलता मिले तो उसे अपने घर के वास्तु में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- आपके घर या दफ्तर में आपकी नेमप्लेट आगुंतको को सपष्ट रूप से नजर आनी चाहिए। कैरियर में सफलता के लिए नेमप्लेट पर रात के वक्त रोशनी डालें।
-
रोज सुबह उगते सुरज हाथों में जल लेकर उज्जवल भविष्य के लिए संकल्प करें और ईश्वर से अपने शक्ति और सामथ्र्य में वृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
- कैरियर सौभाग्य वृद्धि के लिए घर के आंगन में तुलसी पौधा लगाएं।
- कैरियर में सफलता प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा में जंपिंग फिश, डॉल्फिन या मछालियों के जोड़े का प्रतीक चिन्ह लगाए जाने चाहिए। इससे न केवल बेहतर कैरियर की ही प्राप्ति होती है बल्कि व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है।
- कैरियर बनाने के लिए घर आपका ध्यान अपने लक्ष्य की ओर रहे इसलिए शयन कक्ष मेंवायव्य में पलंग लगाएं।
- अगर आप विदेश में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं तो अपने कमरे में स्टडी टेबल पर एक ग्लोब रखें।
- दक्षिण दिशा की दिवार पर विश्व मानचित्र लटकाएं।
- घर की उत्तर दिशा में स्थित लॉबी या बॉल्कनी में एक सुन्दर सा छोटा वाटर फाउंटेन रखें। इसे रोज सुबह शाम जरूर चलाएं
Thursday, May 19, 2016
कैरियर में जल्द सफलता
अध्यनकक्ष का वास्तु कैसा हो
बच्चो के अध्यनकक्ष का वास्तु कैसा हो? किस प्रकार के वास्तु से हम एवं हमारे बच्चे पा सकते है सफलता पूर्वक अपनी मनचाही मंजिल?-
आज के तेज रप्तार की जिन्दगी मे प्रत्येक अभिवावक की एक महत्वपूर्ण आकांक्षा होती है कि वह अपनी सन्तान को हर सम्भव साधन जुटाकर बेहतर से बेहतर शिक्षा उपलब्ध करा सके जिससे उसके व्यकितत्व में व्यापकता आये और वह स्वंय जीवनरूपी नैय्या का खेवनहार बनें। सारी सुविधायें होने के बावजूद भी जब बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है एंव जो कुछ पढ़ते है, वह शीघ्र ही भूल जाते हैं या फिर अधिक परिश्रम करने के बावजूद भी परीक्षाफल सामान्य ही रहता है। फिर अभिवावक बर्ग इसे परिस्तियो मे निराश हो कर ज्योतिष का सहारा लेता हैl आज मै आप को बता रहा हू कि यदि आप के साथ भी अगर ये समस्या है तो ऐसी स्थित मे वास्तु का सहयोग लेने से आश्चर्यचकित परिणाम सामने आते है। अध्ययन कक्ष में इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए कि बच्चों का पढ़ाई के प्रति रूझान बढ़े एंव मन एकाग्र होकर अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो सकते हैl
1- घर में अध्ययन कक्ष ईशान कोण अथवा पूर्व या उत्तर दिशा में बनवाना चाहिए। अध्ययन कक्ष शौचालय के निकट कदापि न बनवायें।इससे दिमाक मे नकारत्मक उर्जा उत्तपन्न होती हैl
2- पढ़ने की टेबल पूर्व या उत्तर दिशा में रखें तथा पढ़ते समय मुख उत्तर या पूर्व की दिशा में ही होना चाहिए। इन दिशाओं की ओर मुख करने से सकारात्मक उर्जा मिलती है जिससे स्मरण शक्ति बढ़ती है एंव बुद्धि का विकास होता है।
3- पढ़ने वाली टेबल को दीवार से सटा कर न रखें। पढ़ते वक्त रीढ़ को हमेशा सीधा रखें। लेटकर या झुककर नहीं पढ़ना चाहिए। पढ़ने की सामग्री आखों से लगभग एक फीट की दूरी पर रखनी चाहिए।
4- अध्ययन कक्ष में हल्के रंगों का प्रयोग करें। जैसे- हल्का पीला, गुलाबी, आसमानी, हल्का हरा आदि।
5- रात्रि को आधिक देर तक नहीं पढ़ना चाहिए क्योंकि इससे तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध,नेत्र दोष, पेट रोग आदि समस्यायें होने की प्रबल आशंका रहती है। ब्रहममुहूर्त या प्रात:काल में 4 घन्टे अध्ययन करना रात के 10 घन्टे के बराबर होता है। क्योंकि प्रात:काल में स्वच्छ एंव सकारात्मक ऊर्जा संचरण होती है जिससे मन व तन दोनों स्वस्थ्य रहते हैं।
6- अध्ययन कक्ष में किताबों की अलमारी को पूर्व या उत्तर दिशा में बनायें तथा उसकी सप्ताह में एक बार साफ-सफाई अवश्य करनी चाहिए। अलमारी में गणेश जी एवं सरस्वती जी की फोटो लगाकर नित्य पूजा करनी चाहिए।
7-बीएड, प्रशासनिक सेवा, रेलवे, आदि की तैयारी करने वाले छात्रो का अध्ययन कक्ष पूर्व दिशा में होना चाहिए। क्योंकि सूर्य सरकार एंव उच्च पद का कारक तथा पूर्व दिशा का स्वामी है।
8 बीटेक, डाक्टरी, पत्रकारिता, ला, एमसीए, बीसीए आदि की शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रो का अध्ययन कक्ष दक्षिण दिशा में होना चाहिए तथा पढ़ने वाली मेज आग्नेय कोण में रखनी चाहिए। क्योंकि मंगल अग्नि कारक ग्रह है एंव दक्षिण दिशा का स्वामी है।
9- एमबीए, एकाउन्ट, संगीत, गायन, और बैंक की आदि की तैयारी करने वाले छात्रों का अध्ययन कक्ष उत्तर दिशा में होना चाहिए क्योंकि बुध वाणी एंव गणित का संकेतक है एंव उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करता है।
10- रिसर्च तथा गंभीर विषयों का अध्ययन करने वाले छात्रों का अध्ययन कक्ष पशिचम दिशा में होना चाहिए क्योंकि शनि एक खोजी एंव गंभीर ग्रह है तथा पशिचम दिशा का स्वामी है। यदि उपरोक्त छोटी-2 सावधानियां रखी जायें तो निशिचत तौर पर आप कैरियर में सफलता के सोपान चढ सकते हैं।एवं खुद एवं परिवार की उन्नति को एक नयी दिशा दे सकते हैl
Tuesday, May 17, 2016
राहु द्वारा निर्मित शुभ योग,
लग्न कारक योग - Lagna Karaka Yoga
राहु द्वारा निर्मित शुभ योगों में लग्न कारक योग ( Lagna Karaka Yoga) का नाम भी प्रमुख है. लग्न कारक योग ( Lagna Karaka Yoga) मेष, वृष एवं कर्क लग्न वालों की कुण्डली में तब बनता है जबकि राहु द्वितीय, नवम अथवा दशम भाव में नहीं होता है.जिस व्यक्ति की कुण्डली में लग्न कारक योग ( Lagna Karaka Yoga) उपस्थित होता है उसे राहु की अशुभता का सामना नहीं करना होता है. राहु इनके लिए शुभ कारक होता है जिससे दुर्घटना की संभावना कम रहती है.स्वास्थ्य उत्तम रहता है.आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है एवं सुखी जीवन जीते हैं.
परिभाषा योग (Paribhasha Yoga)
जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहु परिभाषा योग (Paribhasha Yoga) का निर्माण करता है.वह व्यक्ति राहु के कोप से मुक्त रहता है.यह योग जन्मपत्री में तब निर्मित होता है जब राहु लग्न में स्थित हो अथवा तृतीय, छठे या एकादश भाव में उपस्थित हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो.राहु का परिभाषा योग (Paribhasha Yoga) व्यक्ति को आर्थिक लाभ देता है.स्वास्थ्य को उत्तम बनाये रखता है.इस योग से प्रभावित व्यक्ति के कार्य आसानी से बन जाते हैं.
कपट योग (Kapata Yoga)
दो पापी ग्रह राहु और शनि जब जन्मपत्री में क्रमश: एकादश और षष्टम में उपस्थित होते हैं तो कपट योग (Kapata Yoga) बनता है.जिस व्यक्ति की कुण्डली में कपट योग (Kapata Yoga) निर्मित होता है वह व्यक्ति अपने स्वार्थ हेतु किसी को भी धोखा देने वाला होता है .इनपर विश्वास करने वालों को पश्चाताप करना होता है.सामने भले ही लोग इनका सम्मान करते हों परंतु हुदय में इनके प्रति नीच भाव ही रहता है.
पिशाच योग - Pishach Yoga
पिशाच योग (Pishach Yoga) राहु द्वारा निर्मित योगों में यह नीच योग है.पिशाच योग (Pisach Yoga) जिस व्यक्ति की जन्मपत्री में होता है वह प्रेत बाधा का शिकार आसानी से हो जाता है.इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है.इनकी मानसिक स्थिति कमज़ोर रहती है, ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं.इनके मन में निराशात्मक विचारों का आगमन होता रहता है.कभी कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं.
चांडाल योग (Chandal Yoga or Guru Chandal Yoga)
चांडाल योग (Chandal Yoga) गुरू और राहु की युति से निर्मित होता है. चांडाल योग (Chandal Yoga) अशुभ ग्रह के रूप में माना जाता है. चांडाल योग (Chandal Yoga)जिस व्यक्ति की कुण्डली में निर्मित होता है उसे राहु के पाप प्रभाव को भोगना पड़ता है. चांडाल योग (Chandal Yoga) में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है.नीच कर्मो के प्रति झुकाव रहता है.मन में ईश्वर के प्रति आस्था का अभाव रहता है.
Sunday, May 15, 2016
स्किन प्रोब्लम का कारण हें—बुध एवं केतु
स्किन प्रोब्लम का कारण हें—बुध एवं केतु—-
( ग्रहों को मनाइये त्वचा रोग भगाइए..)
त्वचा के रोग: —-बुध तरह-तरह से एलर्जी उत्पन्न करते हैं। त्वचा के रोग केतु भी उत्पन्न करते हैं। बुध रसायनों से एलर्जी देते हैं और केतु बैक्टीरिया के कारण एलर्जी उत्पन्न करते हैं। केतु खुद भी सूक्ष्मकाय हैं और सूक्ष्म जीवों के देवता हैं। इन दोनों की दशा-अन्तर्दशाओं में त्वचा के रोग उभर कर सामने आते हैं। दाद, खुजली, एग्जिमा, त्वचा का जल जाना, त्वचा पर रिंकल्स और त्वचा का जवान या बूढ़ा होना बुध या केतु पर निर्भर करता है। त्वचा पर ग्लेज है या नहीं, यह तय करने में और ग्रह भी भूमिका अदा करते हैं जिनमें बृहस्पति भी हो सकते हैं। अब यदि आप एंटी एजिंग क्रीम लगाएं और बुध या केतु आपकी मदद नहीं करें तो वह क्रीम लगाना बेकार हो जाएगा। अगर इन ग्रहों की पूजा-पाठ कर सकें या उनका रत्न पहन सकें तो एंटी एजि क्रीम की आवश्यकता ही बहुत कम प़डेगी।
एक और तथ्य है जिसका आयुर्वेद भी समर्थन करता है। यदि हम शाक-सब्जी के अलावा ऎसी ज़डी बूटियों का प्रयोग करें जो केतु या बुध की कृपा से उत्पन्न होती हैं तो एंटी एजिंग की समस्याएं अपने आप ही दूर हो जाएंगी। आप देखेंगे कि जिनके लग्न से या लग्नेश से बुध या केतु का संबंध होता है तो उनको एंटी एजिंग क्रीम या अन्य त्वचा प्रसाधनों की इतनी आवश्यकता नहीं प़डेगी, पर वही केतु अगर दूसरे भाव में बैठकर खराब हो जाए तो वह व्यक्ति कम उम्र का होकर भी अधिक उम्र वाला दिखेगा। यदि मंगल का लग्न और लग्नेश से संबंध हो जाए तो व्यक्ति अपने आप ही मॉर्निग वॉक करता है, कसरत करता है, खेलों में शामिल रहता है और उसका खान-पान इतना परिष्कृत हो जाता है कि वह उम्र से कम दिखने लगता है। मेरा तो वैसा भी अनुभव है कि जो लोग रेगुलर मॉर्निग वॉकर होते हैं वे अपनी उम्र से दस-पन्द्रह वर्ष कम दिखते हैं और मॉर्निग वॉकर बनाने में मंगल सबसे अव्वल है। यदि कुण्डली मे मंगल बलवान हों तो भी वही परिणाम आते हैं अन्यथा मंगल की प्रसन्नता के लिए मंत्र-मणि और औषधि का प्रयोग किया जाना उचित रहेगा।
सन स्ट्रोक, सन बर्न : —गर्मी में जन्मे व्यक्ति, खासतौर से मिथुन राशि के सूर्य मे जन्मे व्यक्ति अपना हाथ या चेहरा दोपहर के सूर्य के सामने कुछ मिनटों के लिए भी कर दें तो उनकी त्वचा पर धब्बे प़ड जाते हैं या त्वचा काली प़ड जाती है। ये व्यक्ति यदि अपने हाथों को ढककर रखें तो इस समस्या से बच सकते हैं। आप पाएंगे कि सर्दियों में इन लोगों के हाथ या चेहरा गोरा हो जाता है और गर्मियों मे काला प़ड जाता है। बुध की राशियों में सूर्य हों या बुध अस्त हों या बुध वक्री हों या बुध, केतु के साथ हों तो त्वचा की समस्या आती है और सूर्य देवता उसमें सहयोग दे देते हैं परन्तु अग्निकाण्ड मे शरीर जल जाता है। उसमें सूर्य केवल त्वचा पर असर नहीं डालते वरन् सारे शरीर को और रक्त मांस-मज्जा को भी झुलसा देते हैं। सूर्य-मंगल युति अक्सर अग्नि से दाह पैदा करती है। अग्नि से झुलसे हुए लोगों का साधारण उपायों से इलाज नहीं किया जा सकता और वह समय जन्मपत्रिकाओ के अधीन होता है। मोटापा,चर्बी व शारीरिक असंतुलन: बृहस्पति यदि वक्री हों या अस्त हों तो तेज गति से मोटापा देते हैं। बृहस्पति अच्छी राशियों में हों तो मोटापा अनियंत्रित रूप से नहीं बढ़ता बल्कि स्वाभाविक विकास के कारण होता है। थॉयरायड की समस्या में बृहस्पति का योगदान नहीं होता और उसके कारण जो मोटापा बढ़ता है, उसमें बुध का सहयोग होता है। गले के या वाणी के कारक बुध हैं। श्वास नली का गले वाला क्षेत्र बुध से प्रभावित होता है। जन्मपत्रिकाओं का दूसरा भाव श्वास नली के रोगों से संबंधित होता है परन्तु श्वास नली में कैंसर या ट्यूमर होता है तो उसका कारण शनि-मंगल या राहु होते हैं। साधारण ढंग से मोटापा जब बढ़ता है तो बृहस्पति का पूजा पाठ, बृहस्पतिवार का व्रत इत्यादि मदद करते हैं। कई ज़डी-बूटियां ऎसी होती हैं जो बृहस्पति का शमन करती हैं। बृहस्पति चेहरे पर ओज देते हैं। त्वचा की कांति में भी बृहस्पति का योगदान होता है। चेहरे पर मेद बृहस्पति के कारण आता है। कई बार मोटापा और चेहरे पर कांति साथ-साथ बढ़ते हैं, फिर कांति स्थिर हो जाती है और मोटापा और भी ज्यादा बढ़ जाता है। भारतीय मायथोलॉजी के अनुसार कर्मो की शक्ति भी चेहरे पर ओजस्विता लाती है। चेहरे पर कांति से ब़डा कोई सौन्दर्य प्रसाधन हो ही नहीं सकता परन्तु केतु की तरह ही बृहस्पति भी उम्र से जल्दी बूढ़ा करा सकते हैं। रक्त दोष, पित्त: मंगल रक्त विकारों के ग्रह हैं। चेहरे पर लालिमा, बदन पर लालिमा, हाथों में गुलाबीपन, सुन्दर गुलाबी अंगुलियां और आंखों में नशा। साहसपूर्ण प्रतिमा, आत्मविश्वास और मुकाबले को तैयार भाव भंगिमा। यह सब मंगल की देन है। मंगल कुण्डली में बहुत बलवान ह
बर्तनों का प्रयोग
जन्मकुंडली के अनुसार कैसे निज शरीर का विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाव और उनसे मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं:--
-
1. मेष, सिँह, वृश्चिक लग्न के व्यक्ति
यदि भोजन के लिए ताँबे के बर्तनों का प्रयोग करें
तो जहाँ एक ओर ये उनके पित्त को निर्दोष रख, गुर्दे का रोग, ह्रदय दौर्बल्य, मेद रोग, रक्त व्याधि, यक्ष्मा, अर्श-भगंदर इत्यादि किसी प्रकार के पुराने चले आ रहे रोग के लिए रामबाण औषधी का काम करेगा, वहीं इसके नियमित प्रयोग से नया रोग भी उनके नजदीक फटकने से पहले सौ बार सोचेगा।
2. मिथुन,कन्या, धनु और मीन लग्न के व्यक्तियों द्वारा
लोह (स्टील) पात्रों का अधिक मात्रा में प्रयोग
विस्मृ्ति (यादद्दाश्त में कमी), अनिन्द्रा, गठिया, जोडों का दर्द, मानसिक तनाव, अमलता, आन्त्रदोष इत्यादि किसी रोग का कारण बनता है. इनके लिए भोजन में काँसे के बर्तनों को प्रयुक्त करना शारीरिक रूप से सदैव हितकारी रहेगा।
3. वृ्ष, कर्क, तुला लग्न के व्यक्तियों को
सदैव भोजन के लिए चाँदी और पीतल (मिश्र धातु) दोनों प्रकार के बर्तनों का संयुक्त रूप से प्रयोग करना चाहिए.
लोह पात्रों का अधिकाधिक उपयोग इनके लिए नेत्र पीडा, स्वाद ग्रन्थियाँ, कफजन्य रोग, असन्तुलित रक्त प्रवाह, कर्णनाद, शिरोव्यथा, श्वासरोग इत्यादि किसी रोग-व्याधी का कारण बनता है।
4. मकर लग्न के व्यक्ति के लिए अन्य किसी भी धातु के सहित प्रतिदिन लकडी के पात्र का प्रयोग करना भी
इन्हे वायु दोष, चर्म रोग, विचार शक्ति की उर्वरता में कमी, एवं तिल्ली के विकारों से मुक्ति में सहायक और भविष्य में उनसे बचाव हेतु रामबाण इलाज है।
5. कुम्भ लग्न के व्यक्ति के लिए तो लोहा (स्टील) ही सर्वोतम धातु है
. इसके साथ ही इस लग्न के व्यक्तियों को यदाकदा मिट्टी के पात्र में "केवडा मिश्रित जल" का भी सेवन अवश्य करते रहना चाहिए।
ग्रह और उनसे संबंधित पेड़ पौधे
ग्रह और उनसे संबंधित पेड़ पौधे
- यदि आप सूर्य को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो मदार का पेड़ घर में जरूर लगाएँ।
- शमी का पेड़ आपको शनि के दुष्प्रभाव से बचा सकता है।
- राहु की शांति के लिए दूर्बा को रोपित करें।
- केतु के लिए कुशा को घर में रोपें।
- चंद्र के लिए पलास को।
- मंगल के लिए खैर को।
- बुध के लिए अपामार्ग को।
- गुरु के लिए पीपल को।
- शुक्र के लिए गूलर का पेड़ लगाना हितकारी होता है।
बर्तनों का प्रयोग
जन्मकुंडली के अनुसार कैसे निज शरीर का विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाव और उनसे मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं:--
-
1. मेष, सिँह, वृश्चिक लग्न के व्यक्ति
यदि भोजन के लिए ताँबे के बर्तनों का प्रयोग करें
तो जहाँ एक ओर ये उनके पित्त को निर्दोष रख, गुर्दे का रोग, ह्रदय दौर्बल्य, मेद रोग, रक्त व्याधि, यक्ष्मा, अर्श-भगंदर इत्यादि किसी प्रकार के पुराने चले आ रहे रोग के लिए रामबाण औषधी का काम करेगा, वहीं इसके नियमित प्रयोग से नया रोग भी उनके नजदीक फटकने से पहले सौ बार सोचेगा।
2. मिथुन,कन्या, धनु और मीन लग्न के व्यक्तियों द्वारा
लोह (स्टील) पात्रों का अधिक मात्रा में प्रयोग
विस्मृ्ति (यादद्दाश्त में कमी), अनिन्द्रा, गठिया, जोडों का दर्द, मानसिक तनाव, अमलता, आन्त्रदोष इत्यादि किसी रोग का कारण बनता है. इनके लिए भोजन में काँसे के बर्तनों को प्रयुक्त करना शारीरिक रूप से सदैव हितकारी रहेगा।
3. वृ्ष, कर्क, तुला लग्न के व्यक्तियों को
सदैव भोजन के लिए चाँदी और पीतल (मिश्र धातु) दोनों प्रकार के बर्तनों का संयुक्त रूप से प्रयोग करना चाहिए.
लोह पात्रों का अधिकाधिक उपयोग इनके लिए नेत्र पीडा, स्वाद ग्रन्थियाँ, कफजन्य रोग, असन्तुलित रक्त प्रवाह, कर्णनाद, शिरोव्यथा, श्वासरोग इत्यादि किसी रोग-व्याधी का कारण बनता है।
4. मकर लग्न के व्यक्ति के लिए अन्य किसी भी धातु के सहित प्रतिदिन लकडी के पात्र का प्रयोग करना भी
इन्हे वायु दोष, चर्म रोग, विचार शक्ति की उर्वरता में कमी, एवं तिल्ली के विकारों से मुक्ति में सहायक और भविष्य में उनसे बचाव हेतु रामबाण इलाज है।
5. कुम्भ लग्न के व्यक्ति के लिए तो लोहा (स्टील) ही सर्वोतम धातु है
. इसके साथ ही इस लग्न के व्यक्तियों को यदाकदा मिट्टी के पात्र में "केवडा मिश्रित जल" का भी सेवन अवश्य करते रहना चाहिए।
Saturday, May 14, 2016
सुगंध द्वारा ग्रह शांति
सुगंध द्वारा ग्रह शांति इस प्रकार हैं-
सूर्य: --------- केसर तथा गुलाब का इत्र या सुगंध का उपयोग करने से सूर्य प्रसन्न होते हैं।
चंद्र: ---------- चमेली और रातरानी का इत्र या सुगंध चंद्रमा की पीड़ा को कम करते हैं।
मंगल: --------- लाल चंदन का इत्र, तेल अथवा सुगंध मंगल को प्रसन्न करते हैं।
बुध: ------------- इलायची तथा चंपा की सुगंध बुध को प्रिय होती है- चंपा का इत्र तथा तेल का प्रयोग बुध की दृष्टि से उत्तम है।
गुरू: ------------- पीले फूलों की सुगंध, केसर और केवड़े का इत्र गुरू की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम है।
शुक्र: ------------ सफेद फूल, चंदन और कपूर की सुगंध लाभकारी होती है। चंपा, चमेली और गुलाब की तीक्ष्ण खुशबू से शुक्र नाराज हो जाते हैं।हल्की खुशबू के परफ्यूम ही काम में लेने चाहिए।
शनि: ------------कस्तुरी, लोबान तथा सौंफ की सुगंध शनि देव को पसंद है।
राहु और केतु: ----काली गाय का घी व कस्तुरी का इत्र इन्हें पसंद है।
Friday, May 13, 2016
कुंडली में अकाल मृत्यु के योग
ये होते हें कुंडली में अकाल मृत्यु के योग :—
मौत का नाम सुनते ही शरीर में अचानक सिहरन दौड़ जाती है। मृत्यु एक अटल सत्य है, जिसे कोई बदल नहीं सकता। कब, किस कारण से, किस की मौत होगी, यह कोई भी नहीं कह सकता। कुछ लोगों की अल्पायु में ही मौत हो जाती है। ऐसी मौत को अकाल मृत्यु कहते हैं। जातक की कुंडली के आधार पर अकाल मृत्यु के संबंध में जाना जा सकता है।
1- लग्नेश तथा मंगल की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो जातक को शस्त्र से घाव होता है। इसी प्रकार का फल इन भावों में शनि और मंगल के होने से मिलता है।
2- यदि मंगल जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव, सप्तम भाव अथवा अष्टम भाव में स्थित हो और उस पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु आग से होती है।
3- लग्न, द्वितीय भाव तथा बारहवें भाव में क्रूर ग्रह की स्थिति हत्या का कारण बनती है।
4- दशम भाव की नवांश राशि का स्वामी राहु अथवा केतु के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु अस्वभाविक होती है।
5- यदि जातक की कुंडली के लग्न में मंगल स्थित हो और उस पर सूर्य या शनि की अथवा दोनों की दृष्टि हो तो दुर्घटना में मृत्यु होने की आशंका रहती है।
6- राहु-मंगल की युति अथवा दोनों का समसप्तक होकर एक-दूसरे से दृष्ट होना भी दुर्घटना का कारण हो सकता है।
7- षष्ठ भाव का स्वामी पापग्रह से युक्त होकर षष्ठ अथवा अष्टम भाव में हो तो दुर्घटना होने का भय रहता है।
अष्टम भाव और लग्न भाव के स्वामी बलहीन हो और मंगल ६ घर के साथ बैठा हो तो ये योग बनता है..
क्षीण चन्द्र ८ भाव में हो तो भी योग बनता है या लग्न में शनि हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तथा उसके साथ सूर्य, चन्द्र , या सूर्य राहू हो तो भी योग बनता है..
ऐसे योंगों में मृत्यु के निम्न कारण होते है जैसे—-
१– शस्त्र से , २- विष से, ३- फांसी लगाने से , आग में जलने से , पानी में डूबने से या मोटर -वाहन दुर्घटना से .
1- यदि जातक की कुंडली के लग्न में मंगल स्थित हो और उस पर सूर्य या शनि की अथवा दोनों की दृष्टि हो तो दुर्घटना में मृत्यु होने की आशंका रहती है।
2- राहु-मंगल की युति अथवा दोनों का समसप्तक होकर एक-दूसरे से दृष्ट होना भी दुर्घटना का कारण हो सकता है।
3- षष्ठ भाव का स्वामी पापग्रह से युक्त होकर षष्ठ अथवा अष्टम भाव में हो तो दुर्घटना होने का भय रहता है।
4- लग्न, द्वितीय भाव तथा बारहवें भाव में क्रूर ग्रह की स्थिति हत्या का कारण बनती है।
5- दशम भाव की नवांश राशि का स्वामी राहु अथवा केतु के साथ स्थित हो तो जातक की मृत्यु अस्वभाविक होती है।
6- लग्नेश तथा मंगल की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो जातक क शस्त्र से घाव होता है। इसी प्रकार का फल इन भावों में शनि और मंगल के होने से मिलता है।
7- यदि मंगल जन्मपत्रिका में द्वितीय भाव, सप्तम भाव अथवा अष्टम भाव में स्थित हो और उस पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु आग से होती है।
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निवारण —
लग्नेश को मजबूत करे उपाय के द्वारा और रत्ना के द्वारा और इसके बाद भी यदि दुर्घटना होती है तो सर महाम्रिन्त्युन्जय का जाप या मृत्संजनी का जाप ही ऐसे जातक को
बचा सकता है
Wednesday, May 11, 2016
रत्न: मोती
रत्न: मोती
उज्ज्वल चांद का रत्न भी इसकी तरह ही उज्जवल और शांति प्रदान करने वाला होता है। पर्ल या मोती का रंग चमकदार सफेद होता है। यह रत्न आत्मिक शांति देता है और सच्चे प्रेम को बढ़ाता है। इसलिए आप चाहें तो इसे उस व्यक्ति को तोहफे में दे सकते हैं जिससे आप आत्मीय संबंध चाहते हैं।
मोती
यह चंद्र रत्न है। अतः कर्क राशि वालोँ के लिए फायदेमंद है। यह त्वचा रोग, पेट संबंधी बीमारी, श्वास रोग, मस्तिष्क रोग मेँ लाभकारी है।
मोती कब पहनें
सामान्यत: चंद्रमा क्षीण होने पर मोती पहनने की सलाह दी जाती है मगर हर लग्न के लिए यह सही नहीं है। ऐसे लग्न जिनमें चंद्रमा शुभ स्थानों (केंद्र या त्रिकोण) का स्वामी होकर निर्बल हो, ऐसे में ही मोती पहनना लाभदायक होता है। अन्यथा मोती भयानक डिप्रेशन, निराशावाद और आत्महत्या तक का कारक बन सकता है।
लग्न कुंडली में चंद्रमा शुभ स्थानों का स्थायी हो मगर,
1. 6, 8, या 12 भाव में चंद्रमा हो तो मोती पहनें।
नीच राशि (वृश्चिक) में हो तो मोती पहनें।
चंद्रमा राहु या केतु की युति में हो तो मोती पहनें।
. चंद्रमा पाप ग्रहों की दृष्टि में हो तो मोती पहनें।
चंद्रमा क्षीण हो या सूर्य के साथ हो तो भी मोती धारण करना चाहिए।
. चंद्रमा की महादशा होने पर मोती अवश्य पहनना चाहिए।
. चंद्रमा क्षीण हो, कृष्ण पक्ष का जन्म हो तो भी मोती पहनने से लाभ मिलता है।
चंद्रमा के बलि होने से न केवल मानसिक तनाव से ही छुटकारा मिलता है वरन् कई रोग जैसे पथरी, पेशाब तंत्र की बीमारी, जोड़ों का दर्द आदि से भी राहत मिलती है।
बिना कुडंली के विशलेण किये रत्न धारण करना नुकसान दायक हो सकता है।