शुभ काम में क्यों बनाई गई नारियल फोड़ने की परंपरा-
सनातन धर्म के ज्यादातर धार्मिक संस्कारों में नारियल का विशेष महत्व है। कोई भी व्यक्ति जब कोई नया काम शुरू करता है तो भगवान के सामने नारियल फोड़ता है। चाहे शादी हो, त्योहार हो या फिर कोई महत्वपूर्ण पूजा, पूजा की सामग्री में नारियल आवश्यक रूप से रहता है। नारियल को संस्कृत में श्रीफल के नाम से जाना जाता है।
विद्वानों के अनुसार यह फल बलि कर्म का प्रतीक है। बलि कर्म का अर्थ होता है उपहार या नैवेद्य की वस्तु। देवताओं को बलि देने का अर्थ है, उनके द्वारा की गई कृपा के प्रति आभार व्यक्त करना या उनकी कृपा का अंश के रूप मे देवता को अर्पित करना।
एक समय सनातन धर्म में मनुष्य और जानवरों की बलि सामान्य बात थी। तभी आदि शंकराचार्य ने इस अमानवीय परंपरा को तोड़ा और मनुष्य के स्थान पर नारियल चढ़ाने की शुरुआत की। नारियल कई तरह से मनुष्य के मस्तिष्क से मेल खाता है। नारियल की जटा की तुलना मनुष्य के बालों से, कठोर कवच की तुलना मनुष्य की खोपड़ी से और नारियल पानी की तुलना खून से की जा सकती है। साथ ही, नारियल के गूदे की तुलना मनुष्य के दिमाग से की जा सकती है।
नारियल फोड़ने का ये है महत्व- नारियल फोड़ने का मतलब है कि आप अपने अहंकार और स्वयं को भगवान के सामने समर्पित कर रहे हैं। माना जाता है कि ऐसा करने पर अज्ञानता और अहंकार का कठोर कवच टूट जाता है और ये आत्मा की शुद्धता और ज्ञान का द्वार खोलता है, जिससे नारियल के सफेद हिस्से के रूप में देखा जाता है।
Tuesday, January 31, 2017
नारियल फोड़ने की परंपरा
Sunday, January 29, 2017
आँखों की बीमारी दूर करने के हेतु
आँखों की बीमारी दूर करने हेतु।
सूर्य भगवान का मनन करते हुए किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष रविवार को सूर्योदय के आसपास आरम्भ करके रोज इस स्तोत्र के 5 पाठ करना है. सबसे पहले सूर्य नारायण का ध्यान करके दाहिने हाथ में जल, अक्षत, लाल पुष्प लेकर विनियोग मंत्र पढ़िए, जो इस प्रकार है-
विनियोग मंत्र : ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुधन्य ऋषिः गायत्री छन्दः सूर्यो देवता चक्षुरोगनिवृत्तये विनियोगः।
अब इस चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र का पाठ आरम्भ करें –
ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव। मां पाहि पाहि।
त्वरितम् चक्षुरोगान शमय शमय।
मम जातरूपम् तेजो दर्शय दर्शय।
यथाहम अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय।
कल्याणम कुरु कुरु।
यानि मम पूर्वजन्मोपार्जितानी चक्षुः प्रतिरोधकदुष्क्रतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।
ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय। ॐ नमः कल्याणकरायामृताय। ॐ नमः सूर्याय।
ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नमः।
खेचराय नमः। महते नमः। रजसे नमः।
तमसे नमः।
असतो मां सदगमय।
तमसो मां ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
उष्णो भगवाञ्छुचिरूपः।
हंसो भगवान शुचिरप्रतिरूपः।
य इमां चक्षुष्मतिविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति।
न तस्य कुले अन्धो भवति। अष्टौ ब्राह्मणान ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति।
हिंदी भावार्थ :
विनियोग: ‘ॐ इस चाक्षुषी विद्या के ऋषि अहिर्बुध्न्य हैं, गायत्री छन्द है, सूर्यनारायण देवता हैं तथा नेत्ररोग शमन हेतु इसका जाप होता है।
हे परमेश्वर, हे चक्षु के अभिमानी सूर्यदेव। आप मेरे चक्षुओं में चक्षु के तेजरूप से स्थिर हो जाएँ। मेरी रक्षा करें। रक्षा करें।
मेरी आँखों का रोग समाप्त करें। समाप्त करें।
मुझे आप अपना सुवर्णमयी तेज दिखलायें। दिखलायें।
जिससे में अँधा न होऊं। कृपया वैसे ही उपाय करें, उपाय करें।
आप मेरा कल्याण करें, कल्याण करें।
मेरे जितने भी पीछे जन्मों के पाप हैं जिनकी वजह से मुझे नेत्र रोग हुआ है उन पापों को जड़ से उखाड़ दे, दें।
हे सच्चिदानन्दस्वरूप नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले दिव्यस्वरूपी भगवान भास्कर आपको नमस्कार है।
ॐ सूर्य भगवान को नमस्कार है।
ॐ नेत्रों के प्रकाश भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है।
ॐ आकाशविहारी आपको नमस्कार है। परमश्रेष्ठ स्वरुप आपको नमस्कार है।
ॐ रजोगुण रुपी भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है। तमोगुण के आश्रयभूत भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है।
हे भगवान आप मुझे असत से सत की और जाईये। अन्धकार से प्रकाश की और ले जाइये।
मृत्यु से अमृत की और ले चलिये। हे सूर्यदेव आप उष्णस्वरूप हैं, शुचिरूप हैं। हंसस्वरूप भगवान सूर्य, शुचि तथा अप्रतिरूप रूप हैं। उनके तेजोमयी स्वरुप की समानता करने वाला कोई भी नहीं है।
जो इस चक्षुष्मतिविद्या का नित्य पाठ करता है उसे कभी नेत्र सम्बन्धी रोग नहीं होता. उसके कुल में कोई अँधा नहीं होता.
यह चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र इतना अधिक प्रभावकारी है कि यदि आपको आँखों से सम्बंधित कोई बीमारी है तो आपको बस यह करना है कि एक ताम्बे के लोटे में जल भरकर, पूजा स्थान में रखकर उसके सामने नियमित इस स्तोत्र का 21 बार पाठ करना है, फिर उस जल से दिन में 3-4 बार आँखों को छींटे मारना है. कुछ ही दिनों में आँखों से सम्बंधित सारे रोगों से आपको मुक्ति मिल जाएगी।
Saturday, January 28, 2017
गृह की खराबी
*लक्षणों से ग्रह की खराबी ज्ञात करना*
किसी मनुष्य के जीवन में कौन-सा ग्रह अशुभ प्रभाव दाल रहा है, इसका औसत निर्धारण उसके जीवन में घटने वाली घटनाओं के आधार पर भी ज्ञात किया जा सकता है | विभिन्न ग्रहों की अशुभ स्थिति पर निम्नलिखित लक्षण प्राप्त होते हैं –
1-सूर्य- तेज का अभाव, आलस्य, अकड़न, जड़ता, कन्तिहिनता, म्लान छवि, मुख(कंठ) में हमेशा थूक का आना | लाल गाय या वस्तुओं का खो जाना या नष्ट हो जाना, भूरी भैंस या इस रंग के सामान की क्षति | हृदय क्षेत्र में दुर्बलता का अनुभव |
2-चन्द्र- दुखी, भावुकता, निराशा, अपनी व्यथा बताकर रोना, अनुभूति क्षमता का ह्रास, पालतू पशुओं की मृत्यु, जल का अभाव (घर में), तरलता का अभाव (शरीर में), मानसिक विक्षिप्तता की स्तिथि, मानसिक असन्तुलन या हताशा के कारण गुमसुम रहना, घर के क्षेत्र में कुआं या नल का सूखना, अपने प्रभाव क्षेत्र में तालाब का सुखना आदि |
3-मंगल- दृष्टि दुर्बलता, चक्षु (आंख) क्षय, शरीर के जोड़ों में पीड़ा और अकड़न, कमर एवं रीढ़ की हड्डी में दर्द तथा अकड़न, रक्त की कमी, त्वचा के रंग का पिला पड़ना, पीलिया होना, शारीरिक रूप से सबल होने पर भी संतानोत्पत्ति की क्षमता का न होना, शुक्राणुओं की दुर्बलता, नपुंसकता (शिथिलता), पति पक्ष की हानि (स्वास्थ्य , धन, प्राण आदि) |
4-बुध- अस्थि दुर्बलता, दंतक्षय, घ्राणशक्ति का क्षय होना, हकलाहट, वाणी दोष, हिचकी, अपनी बातें कहने में गड़बड़ा जाना, नाक से खून बहना, रति शक्ति का क्षय (स्त्री-पुरुष दोनों की), नपुंसकता (स्नायविक), स्नायुओं का कमजोर पड़ना, बन्ध्यापन (स्नायविक), कंधो का दर्द, गर्दन की अकड़न, वैवाहिक सम्बन्ध में क्षुब्धता, व्यापार की भागीदारी में हानि, रोजगार में अकड़न, शत्रु उपद्रव, परस्त्री लोलुपता या सम्बन्ध, परपुरुष लोलुपता या सम्बन्ध, अहंकार से हानि, पड़ोसी से अनबन रहना, कर्ज |
5-बृहस्पति- चोटी के बाल का उड़ना, धन या सोने का खो जाना या चोरी हो जाना या हानि हो जाना, शिक्षा में रुकावट, अपयश , व्यर्थ का कलंक, सांस का दोष, अर्थहानी, परतंत्रता, खिन्नता, प्रेम में असफलता, प्रियतमा की हानि (मृत्यु या अनबन), प्रियमत की हानि (मृत्यु या अनबन), जुए में हानि, सन्तानहानि (नपुंसकता, बन्ध्यापन, अल्पजीवन), आत्मिक शक्ति का अभाव, बुरे स्वप्नों का आना आदि |
6-शुक्र– स्वप्नदोष, लिंगदोष, परस्त्री लोलुपता, शुक्राणुहीनता या कर्ज, नाजायज सन्तान, त्वचा रोग, अंगूठे की हानि (हाथ), पड़ोसी से हानि, कर्ज की अधिकता, परिश्रम करने पर भी आर्थिक लाभ नहीं, भूमि हानि आदि |
7-शनि- व्यवसाय में हानि, अर्थहानि, रोजगार में हानि, अधिकार हानि, अपयश, मान-सम्मान की हानि, कृषि-भूमि की हानि, बुरे कार्यों में प्रवृत्ति, मकान हानि, अधार्मिक प्रवृत्ति (नास्तिकता), रिश्वत लेते पकड़े जाना या रिश्वत में हंगामा और अपयश, रोग, आकस्मिक मृत्यु, ऊंचाई से गिरकर शरीर या प्राणहानि, अचानक धनहानि, दुर्घटना, निराशा, घोर अपमान, निन्दक प्रवृत्ति, राजदण्ड |
8-राहु- संतानहीनता, विद्याहानि, बुद्धिहानि, उज्जड़ता, अरुचि, पूर्ण नपुंसकता, बन्ध्यापन, अन्याय करने की प्रवृत्ति, क्रूरता, रोजगारहानि, भूमिहानि, आकस्मिक अर्थहानि, राजदण्ड, शत्रुपिड़ा, बदनामी, कारावास का दण्ड, घर से निकाला, चोरी हो जाना, चोर-डाकू से हानि, दु:स्वप्न, अनिद्रा, मानसिक असंयता |
9-केतु- रोग, ऋण की बढ़ोत्तरी, लड़ाई-झगड़े से हानि, भाई से दुश्मनी, घोर दु:ख, नौकरों की कमी, अस्त्र से शारीरक क्षति, सांप द्वारा काटना, आग से हानि, शत्रु से हानि, अन्याय की प्रवृत्ति, पाप-प्रवृत्ति, मांस खाने की प्रवृत्ति, राजदण्ड (कैद) |
विशेष- उपर्युक्त लक्षणों के अनुसार बिना कुण्डली देखे भी आप जान सकते हैं कि आपको किस ग्रह के अशुभ प्रभाव का उपचार करना चाहिए | ग्रहों के उपचार ग्रहफल में हैं |
Friday, January 27, 2017
राहु काल
राहु-काल का दैनिक उपयोग......
आज के समय प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा रहती हैं कि उसके कार्य में कहीं कोई भी रूकावट न आये.इस हेतु वह प्रयास भी करता हैं, अपनी आस्था के अनुसार वह उपाय भी करता हैं. समय कि गति बहुत ही बलवान हैं,
हम क्या शास्त्र भी कहते हैं कि समय को हमेशा याद करो. समय को केसें याद करें या समय का केसें सदुपयोग करें. आज ज्योतिष के आधार पर यह जानें कि किस समय समय शुभ हैं व किस समय समय की गति अशुभ चल रही हैं.
समय के दो पहलू हैं पहले प्रकार का समय व्यक्ति को ठीक समय पर काम करने के लिए कहता हैं. तो दूसरा समय उस काम को किस समय करना चाहिए इसका ज्ञान कराता हैं. समय हमारा मार्गदर्शक की तरह काम करता हैं.
ज्योतिष में राहू-काल के रूप में प्रतिष्ठित एक समय जिसकी जानकारी आज में यहाँ पर देने जा रहा हूँ. राहू-काल के समय कोई भी शुभ काम नहीं किया जाना चाहिए. अनुभव में आया हैं की इस समय कार्य करने से उसमें नाना प्रकार के व्यवधान उत्पन्न होते हैं. राहू-काल का प्रचलन दक्षिण भारत में अधिक हैं.
यह सप्ताह के सातों दिन निश्चित समय पर लगभग डेढ़ घंटा रहता हैं.इसे अशुभ समय के रूप में देखा जाता हैं.इसी कारण राहू-काल में शुभ कर्मो को यथा संभव टाल दिया जाता हैं.
राहू-काल दिन के आठवें भाग का नाम हैं. सामान्यतः दिन का आरम्भ प्रात: ६:०० बजे से शाम के ६:०० बजे तक माना गया हैं. १२ घंटो को बराबर ८ भागो में बांटा गया हैं.प्रत्येक भाग डेढ़ घंटे का होता हैं. जिसे ज्योतिष शास्त्र अनुसार राहू-काल कहते हैं. एक दम सही भाग निकालने के लिए स्थानीय सूर्य उदय व सूर्यास्त के समय की दूरी को आठ भागो में बाँट कर एक भाग राहू-काल का निश्चित होता हैं.
सप्ताह के प्रत्येक दिवस के अनुसार राहू-काल का समय सामान्यतः निम्न प्रकार से हैं. इसे हमेशा स्मरण रखें. कोई भी शुभ कार्य करने के लिए इस भाग को त्याग दें.
१- सोमवार – प्रात: ०७:३० बजे से ०९:०० बजे तक.
२- मंगलवार – दोपहर ०३:०० बजे से ०४:३० बजे तक.
३- बुधवार – दोपहर १२:०० बजे से दोपहर ०१:३० तक.
४- वृहस्पतिवार – दोपहर ०१:३० से दोपहर ०३:०० बजे तक.
५- शुक्रवार – प्रात: १०:३० बजे से दोपहर १२:०० बजे तक.
६- शनिवार – प्रात: ०९:०० बजे से प्रात: १०:३० बजे तक.
७- रविवार – सांयकाल ०४:३० बजेसेसांयकाल ०६:०० बजे तक.
राहू-काल के समय किसी नए काम को शुरू नहीं किया जाता हैं. परन्तु जो काम इस समय से पहले शुरू हो चुका हैं उसे राहू-काल के समय बीच में नहीं छोड़ा जाता है, अशुभ कामों के लिये इस समय क विचार नहीं किया जाता है.
इति शुभम.....
Wednesday, January 25, 2017
मुकदमे जितने का उपाय
मुकदमा जितने का सरल उपाय
जिसे मुकदमे में हार जाने का डर हो या जो निचली अदालत में हार का मुँह देख चुका हो उसे निम्न प्रक्रिया से गंडा धारण करना चाहिए।
उसे मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन मोरशिखा (एक प्रकार का वृक्ष) की मूल (जड़) लाना चाहिए।
इसके बाद रवि पुष्य नक्षत्र के दिन किसी कुँवारी कन्या के हाथ से बँटे सूत को सात लपेटें देकर गंडा तैयार करें। इसमें जड़ को बाँध दें। तत्पश्चात उसको दायीं भुजा पर बाँध लें और बिना किसी भय के अदालत में जाएँ, तो मुकदमे में निश्चित ही जीत होगी।
मुकदमे में जीत व केद से रिहाई
मंगलवार के दिन से शुरूकरके हर रोज़ शाम को चार- पांच बजे के करीब गेंहू क़ी रोटी के चूरे मे खालिस देशी घी और चीनी मिलाकर कोओं को खिलायेl ऐसा तब तक करते रहे जब तक कि मुकदमा समाप्त न हो जायेl तारीक वाले दिन उन्ही कोओं मैं से किसी कि पीठ से हासिल किये हुए एक लंबे पंख को अपनी दांयी तरफ कि जेब मे डालकार अदालत मे हासिल हों l उस पंख के असर से अदालत का ध्यान आपकी बातों की तरफ हो जायेगा और मुकदमे का फेसला आपके हक़ मे हो जाएगा l जब मुकदमे मे जीत हो जाये तो देसी घी और चीनी मिली हुई गेहू की रोटी की चुरी कम से कम एक हफ्ता तक आगे भी कोओं को अवश्य खिलाते रहे l
Sunday, January 22, 2017
स्वप्न ज्योतिष
स्वप्न ज्योतिष के अनुसार नींद में दिखाई देने वाले हर सपने का एक ख़ास संकेत होता है, एक ख़ास फल होता है। यहाँ हम आपको 94 सपनो के स्वपन ज्योतिष के अनुसार संभावित फल बता रहे है।
सपने फल
1- आंखों में काजल लगाना- शारीरिक कष्ट होना
2- स्वयं के कटे हाथ देखना- किसी निकट परिजन की मृत्यु
3- सूखा हुआ बगीचा देखना- कष्टों की प्राप्ति
4- मोटा बैल देखना- अनाज सस्ता होगा
5- पतला बैल देखना - अनाज महंगा होगा
6- भेडिय़ा देखना- दुश्मन से भय
7- राजनेता की मृत्यु देखना- देश में समस्या होना
8- पहाड़ हिलते हुए देखना- किसी बीमारी का प्रकोप होना
9- पूरी खाना- प्रसन्नता का समाचार मिलना
10- तांबा देखना- गुप्त रहस्य पता लगना
11- पलंग पर सोना- गौरव की प्राप्ति
12- थूक देखना- परेशानी में पडऩा
13- हरा-भरा जंगल देखना- प्रसन्नता मिलेगी
14- स्वयं को उड़ते हुए देखना- किसी मुसीबत से छुटकारा
15- छोटा जूता पहनना- किसी स्त्री से झगड़ा
16- स्त्री से मैथुन करना- धन की प्राप्ति
17- किसी से लड़ाई करना- प्रसन्नता प्राप्त होना
18- लड़ाई में मारे जाना- राज प्राप्ति के योग
19- चंद्रमा को टूटते हुए देखना- कोई समस्या आना
20- चंद्रग्रहण देखना- रोग होना
21- चींटी देखना- किसी समस्या में पढऩा
22- चक्की देखना- शत्रुओं से हानि
23- दांत टूटते हुए देखना- समस्याओं में वृद्धि
24- खुला दरवाजा देखना- किसी व्यक्ति से मित्रता होगी
25- बंद दरवाजा देखना- धन की हानि होना
26- खाई देखना- धन और प्रसिद्धि की प्राप्ति
27- धुआं देखना- व्यापार में हानि
28- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
29- सुराही देखना- बुरी संगति से हानि
30- चश्मा लगाना- ज्ञान बढऩा
31- दीपक जलाना- नए अवसरों की प्राप्ति
32- आसमान में बिजली देखना- कार्य-व्यवसाय में स्थिरता
33- मांस देखना- आकस्मिक धन लाभ
34- विदाई समारोह देखना- धन-संपदा में वृद्धि
35- टूटा हुआ छप्पर देखना- गड़े धन की प्राप्ति के योग
36- पूजा-पाठ करते देखना- समस्याओं का अंत
37- शिशु को चलते देखना- रुके हुए धन की प्राप्ति
38- फल की गुठली देखना- शीघ्र धन लाभ के योग
39- दस्ताने दिखाई देना- अचानक धन लाभ
40- शेरों का जोड़ा देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
41- मैना देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
42- सफेद कबूतर देखना- शत्रु से मित्रता होना
43- बिल्लियों को लड़ते देखना- मित्र से झगड़ा
44- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि
45- मधुमक्खी देखना- मित्रों से प्रेम बढऩा
46- खच्चर दिखाई देना- धन संबंधी समस्या
47- रोता हुआ सियार देखना- दुर्घटना की आशंका
48- समाधि देखना- सौभाग्य की प्राप्ति
49- गोबर दिखाई देना- पशुओं के व्यापार में लाभ
50- चूड़ी दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
51- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति
52- सीना या आंख खुजाना- धन लाभ
53- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना
54- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना
55- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना
56- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना
57- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ
58- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति
59- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना
60- चील देखना- शत्रुओं से हानि
61- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना
62- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना
63- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना
64- चांदी देखना- धन लाभ होना
65- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा
66- कैंची देखना- घर में कलह होना
67- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति
68- लाठी देखना- यश बढऩा
69- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना
70- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना
71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना
72- सोना मिलना- धन हानि होना
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना- किसी परिजन की मृत्यु के योग
74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु का समाचार मिलना
75- धुआं देखना- व्यापार में हानि
76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी
77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना- किसी रोग से मृत्यु होना
80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु होना
81- रुई देखना- निरोग होने के योग
82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन
83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा
84- उल्लू देखना- धन हानि होना
85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति
86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना
87- नदी का पानी पीना- सरकार से लाभ
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति
89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना
90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और सुख में वृद्धि
91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना
92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना
93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
94- दीवार में कील ठोकना- किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
बुधादित्य योग और उसके फल
किसी भी कुंडली में योग ही उसे ठीक स्थिती प्रदान करने में सहायक बनते आज उसी श्रंखला में बुधादित्य योग जातक को कुंडली के विभिन्न घर में उत्तम लाभ प्रदान करते हे । बुधादित्य योग कुंडली में अपनी स्थिति के आधार पर नीचे बताए गए कुछ संभावित फल प्रदान करते है।
कुंडली के पहले घर अर्थात लग्न में स्थित बुधादित्य योग जातक को मान, सम्मान, प्रसिद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है।
कुंडली के दूसरे घर में बनने वाला बुध आदित्य योग जातक को धन, संपत्ति, ऐश्वर्य, सुखी वैवाहिक जीवन तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है।
कुंडली के तीसरे घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को बहुत अच्छी रचनात्मक क्षमता प्रदान कर सकता है जिसके चलते ऐसे जातक रचनात्मक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त तीसर घर का बुध आदित्य योग जातक को सेना अथवा पुलिस में किसी अच्छे पद की प्राप्ति भी करवा सकता है।
कुंडली के चौथे घर में स्थित बुधादित्य योग जातक को सुखमय वैवाहिक जीवन, ऐश्वर्य, रहने के लिए सुंदर तथा सुविधाजनक घर, वाहन सुख तथा विदेश भ्रमण आदि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है।
कुंडली के पांचवे घर में बनने वाला बुध आदित्य योग जातक को बहुत अच्छी कलात्मक क्षमता, नेतृत्व क्षमता तथा आध्यातमिक शक्ति प्रदान कर सकता है जिसके चलते ऐसा जातक अपने जीवन के अनेक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है।
कुंडली के छठे घर में स्थित बुधादित्य योग जातक को एक सफल वकील, जज, चिकित्सक, ज्योतिषी आदि बना सकता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक अपने व्यवसाय के माध्यम से बहुत धन तथा ख्याति अर्जित कर सकते हैं।
कुंडली के सातवें घर में स्थित बुधादित्य योग जातक के वैवाहिक जीवन को सुखमय बना सकता है तथा यह योग जातक को सामाजिक प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व वाला कोई पद भी दिला सकता है।
कुंडली के आठवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को किसी वसीयत आदि के माध्यम से धन प्राप्त करवा सकता है तथा यह योग जातक को आध्यात्म तथा परा विज्ञान के क्षेत्रों में भी सफलता प्रदान कर सकता है।
कुंडली के नौवें घर में बनने वाला बुध आदितय योग जातक को उसके जीवन के अनेक क्षेत्रों में सफलता प्रदान कर सकता है तथा इस योग के शुभ प्रभाव में आने वाले जातक सरकार में मंत्री पद अथवा किसी प्रतिष्ठित धार्मिक संस्था में उच्च पद भी प्राप्त कर सकते हैं।
कुंडली के दसवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में सफलता प्रदान कर सकता है तथा ऐसा जातक अपने किसी अविष्कार, खोज अथवा अनुसंधान के सफल होने के कारण बहुत ख्याति भी प्राप्त कर सकता है।
कुंडली के ग्यारहवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को बहुत मात्रा में धन प्रदान कर सकता है तथा इस प्रकार के बुध आदित्य योग के प्रभाव में आने वाला जातक सरकार में मंत्री पद अथवा कोई अन्य प्रतिष्ठा अथवा प्रभुत्व वाला पद भी प्राप्त कर सकता है।
कुंडली के बारहवें घर में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को विदेशों में सफलता, वैवाहिक जीवन में सुख तथा आध्यात्मिक विकास प्रदान कर सकता है
Saturday, January 21, 2017
सूर्य, बुध, शुक्र युती
सूर्य+बुध+शुक्र
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में इन तीनों की युति हो तो शुक्र बर्बाद होगा । इन तीनों की युति यदि स्त्री की कुंडली में हो तो उसके लड़का पैदा होता है और यदि पुरुष की कुंडली में हो तो लड़की पैदा होती है और घर में
धन सम्बन्धी समस्या और पति पत्नी में आपसी कलह शुरू हो जाती है और शारीरिक पीड़ा भी होती है । यदि केतु अच्छा हो तो नर सन्तान और गृहस्थ जीवन में दिक्कतें नही आती लेकिन यदि केतु नीच का हो तो नर सन्तान या तो पैदा होगी ही नही या देरी से पैदा होगी । सच्ची या झूटी बदनामी भी हो सकती है ।ससुराल से बहुत अच्छे सम्बन्धों की उम्मीद नही की जा सकती
Friday, January 20, 2017
किस दिशा में वास्तु दोष हो तो उसका असर परिवार के किस सदस्य पर
पड़ता है-
1- उत्तर दिशा के वास्तु दोष का असर घर की महिलाओं
एवं परिवार की आमदनी पर पड़ता है।
2- ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) के वास्तु दोष का प्रभाव घर के मालिक
एवं वहां रहने वाले अन्य पुरुषों एवं उनकी संतानों पर
पड़ता है। संतान में विशेषकर प्रथम पुत्र पर इसका प्रभाव
ज्यादा पड़ता है।
3- यदि पूर्व दिशा में वास्तु दोष है तो इसका असर
भी संतान पर ही पड़ता है।
4- आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) के वास्तु दोष का असर घर
की स्त्रियों, बच्चों विशेषकर दूसरी संतान पर
पड़ता है।
5- दक्षिण दिशा के वास्तु दोष का प्रभाव घर
की स्त्रियों पर विशेष रूप से पड़ता है।
6- नैऋत्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) के वास्तु दोष का असर परिवार के
मुखिया व उनकी पत्नी एवं बड़े पुत्र पर
पड़ता है।
7- यदि पश्चिम दिशा में किसी प्रकार का वास्तु दोष है
तो इसका इफेक्ट घर के पुरुषों पर पड़ता है।
8- वायव्य कोण (पश्चिम-उत्तर) के वास्तु दोष का प्रभाव घर
की महिलाओं एवं तीसरी संतान
पर पड़ता है।