Thursday, April 13, 2017

सोने के तरीके

क्यों है दरवाजे की ओर पैर करके सोना अपशकुन---
कौन किस तरह सोता है देखिए और जानिए उसका
स्वभाब
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मनुष्य का लगभग आधा जीवन सोने में व्यतीत होता
है। हर मनुष्य का सोने का तरीका एक-दूसरे से भिन्न
होता है। आपके सोने का तरीका आपके
क्रियाकलापों, मन की बातों, आदतों एवं आपके
विषय में बहुत कुछ सच-सच बता सकता है। सामुद्रिक
शास्त्र या शरीर लक्षण विज्ञान के अंतर्गत इस संबंध
में विस्तृत जानकारी मिलती है। इस संबंध में विस्तृत
रूप से जानने के लिए पढ़िए-
वास्तु विज्ञान में हर क्रिया के लिए अलग-अलग
दिशा और स्थान का वर्णन किया गया है। इन्हीं
नियमों में एक है कि व्यक्ति को कभी मुख्य दरवाजे
की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए। इस तरह से
सोना अपशकुन भी माना जाता है। इसलिए अगर आप
घर के मुख्य दरवाजे की ओर पैर रखकर सोते हैं तो अपने
सोने के तरीके को बदलिए।
वास्तु विज्ञान के अनुसार मुख्य दरवाजे की ओर पैर
का होना घर से बाहर निकलने का संकेत होता है। इस
प्रकार से बाहर की ओर पांव करके मृत्यु के बाद ही
व्यक्ति को लिटाया जाता है। इस दिशा में सोने से
आयु कम होती है और व्यक्ति का स्वास्थ्य प्रभावित
होता है। सोने के लिए सबसे अच्छी दिशा पूर्व और
उत्तर को माना गया है।
पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सोने से शरीर उर्जावान
और स्वस्थ्य रहता है। वास्तु विज्ञान में पूर्व और उत्तर
पूर्व दिशा को उर्जा का केन्द्र माना गया है। इसे
स्वर्ग की दिशा भी कहते हैं। इस दिशा की ओर मुंह
करके सोने से शरीर में सकारात्मक उर्जा का संचार
होता है और मानसिक तनाव में कमी आती है। लेकिन
सूर्योदय की दिशा होने के कारण इस दिशा में मुंह
करके सोने वाले व्यक्ति को सूर्योदय से पूर्व उठना
चाहिए। अन्यथा सूर्योदय के समय आपका पांव सूर्य
की ओर होगा। जिससे सूर्य देवता का अपमान
होगा।
शास्त्रों का मत है कि उत्तर दिशा कुबेर की दिशा
है। इस दिशा की ओर मुंह करके सोने से उठते समय मुंह
उत्तर की ओर होगा जिससे कुबेर की कृपा प्राप्त
होगी। वहीं विज्ञान के अनुसार पृथ्वी के दोनों
सिरों उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के बीच
चुम्बकीय प्रवाह होता है। उत्तरी ध्रुव चुम्बक के
पोजिटिव और दक्षिणी ध्रुव निगेटिव पोल की तरह
काम करते हैं। हमारा सिर पोजेटिव और पैर निगेटिव
एनर्जी प्रवाहित करता हैं।
सोते समय उत्तर की ओर मुंह करके सोने से सिरहाना
दक्षिण की ओर होता है। इससे हमारा सिर
वातावरण की निगेटिव एनर्जी को अट्रैक्ट करता है
और पैर पॉजेटिव एनर्जी को अपनी ओर खींचता है।
जिससे सोते समय मन में उथल-पुथल नहीं मचती है और
अच्छी नींद आती है। जबकि इसके विपरीत उत्तर
दिशा की ओर दिशा करके सोने से मन में हलचल मची
रहती है और अच्छी नींद नहीं आती है। सुबह उठने पर
सिर भारी लगता है। जिससे कार्य क्षमता प्रभावित
होती है।
कौन किस तरह सोता है देखिए और जानिए उसका
स्वभाब
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पांवों को कसकर सोना- समुद्र शास्त्र के अनुसार
जो लोग सोते समय पांवों को जकड़ लेते हैं और जिन्हें
सारे शरीर को ढककर सोने की आदत है, ऐसे लोगों
का जीवन निश्चित रूप से संघर्षपूर्ण रहता है। ये
परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लेते हैं, यही
इनकी सबसे बड़ी विशेषता होती है। ये बहुत ही
व्यवहारकुशल होते हैं। ये सभी के साथ आसानी से
घुलमिल जाते हैं।
शरीर सिकोड़कर सोना- ऐसे लोग डरपोक होते हैं।
इनके मन में असुरक्षा की भावना होती है। इन्हें एक
अंजाना सा भय अनुभव होता है वे यह बात किसी
को बताते नहीं है। इन्हें अंजाने लोगों के साथ बात
करना पसंद नहीं आता। ये अक्सर अकेले रहना पसंद करते
हैं। ऐसे लोगों को नशे की लत लगने की संभावना सबसे
अधिक होती है। कभी-कभी ये डिप्रेशन का शिकार
भी हो जाते हैं।
चित्त सोना- अगर आपको केवल सीधे लेटकर नींद
आती है तो यह शुभ लक्षण हैं। आप केवल
आत्मविश्वासी ही नहीं आकर्षक व्यक्तित्व के
स्वामी भी हैं। आप समस्याओं का समाधान तुरंत कर
देते हैं। ऐसे लोग परिवार के मुख्य सदस्य होते हैं। कुछ
भी बड़ा काम करने से पहले इन लोगों की राय जरुर
ली जाती है। ये परिवार, समाज, दोस्तों व
रिश्तेदारों में बहुत लोकप्रिय होते हैं।
पेट के बल सोना- समुद्र शास्त्र के अनुसार ऐसे लोगों
में अंजान भय की भावना होती है। ये किसी भी
प्रकार का खतरा उठाने के लिए तैयार नहीं होते।
अपनी गलती को अच्छी तरह जानते हैं पर बतलाते हुए
डरते हैं। जीवन में कई बार इन्हें धोखा मिलता है
इसलिए ये बहुत ही सोच-समझकर किसी से दोस्ती
करते हैं। पैसों के मामले में भी कई बार ये धोखे का
शिकार हो जाते हैं।
पैर पर पैर रखकर सोना- अगर आप इस प्रकार सोते हैं
तो आप संतुष्ट, सहनशील व तृप्त हैं। दूसरे प्रसन्न रहें, आप
भी सुखी रहें। सदैव यह इच्छा आपके मन में होती है। ऐसे
लोगों का जीवन निश्चित रूप से सुखी रहता है। ये
व्यर्थ की बातों पर ध्यान न देकर अपने काम से काम
रखना पसंद करते हैं।
करवट लेकर सोना- ऐसे लोग समझौतावादी होते हैं।
साफ-सुथरे रहना, अच्छा भोजन करना इन्हें प्रिय
होता है। खोज करना इनका प्रमुख शौक होता है। ये
आदर्श जीवन जीना पसंद करते हैं।
सोने से पहले पैर हिलाना- कुछ लोग सोने से पहले पैर
हिलाते हैं लेकिन अच्छा लक्ष्ण नहीं माना जाता।
ऐसे लोगों को सदैव कोई न कोई चिंता सताती रहती
है। ये स्वयं से ज्यादा परिजनों के बारे में सोचते हैं।

Sunday, April 9, 2017

मंगल और केतु

(Similarities and differences between Mars and
Ketu)
मंगल को नवग्रहों में तीसरा स्थान प्राप्त है और केतु
को नवम स्थान फिर भी ज्योतिष
की पुस्तकों में कई स्थान पर लिखा मिलता है कि मंगल
एवं केतु समान फल देने वाले ग्रह हैं (It is said in many
jyotish books that Mars and Ketu give similar
results). ज्योतिषशास्त्र में मंगल एवं केतु को राहु एवं शनि के
समान ही पाप ग्रह कहा जाता है. मंगल एवं केतु
दोनों ही उग्र एवं क्रोधी स्वभाव के माने
जाते हैं. इनकी प्रकृति अग्नि प्रधान
होती है. मंगल एवं केतु एक प्रकृति होने के बावजूद
इनमें काफी कुछ अंतर हैं एवं कई विषयों में मंगल केतु
एक समान प्रतीत होते हैं.
मंगल एवं केतु में समानता (Similarities between Mars and
Ketu)
मंगल व केतु दोनों ही जोशीले ग्रह हैं.
लेकिन, इनका जोश अधिक समय तक नहीं रहता है.
दूध की उबाल की तरह इनका इनका जोश
जितनी चल्दी आसमान छूने लगता है
उतनी ही जल्दी वह
ठंढ़ा भी हो जाता है. इसलिए, इनसे प्रभावित
व्यक्ति अधिक समय तक किसी मुद्दे पर डटे
नहीं रहते हैं,
जल्दी ही उनके अंदर का उत्साह कम
हो जाता है और मुद्दे से हट जाते हैं (People influenced
by Mars and Ketu get excited quickly, but also
lose the excitement fast). मंगल एवं केतु का यह गुण है
कि इन्हें सत्ता सुख काफी पसंद होता है. ये
राजनीति में एवं सरकारी मामलों में
काफी उन्नति करते हैं. शासित होने
की बजाय शासन करना इन्हें रूचिकर लगता है. मंगल
एवं केतु दोनों को कष्टकारी, हिंसक, एवं कठोर हृदय
वाला गह कहा जाता है. परंतु, ये दोनों ही ग्रह जब
देने पर आते हैं तो उदारता की पराकष्ठा दिखाने लगते हैं
यानी मान-सम्मान, धन-दौलत से घर भर देते हैं.
मंगल केतु में विभेद (Differences between Mars and
Ketu)
मंगल केतु में शनि एवं राहु के समान भौतिक एवं अभौतिक का विभेद
है अर्थात मंगल सौर मंडल में एक भौतिक पिण्ड के रूप में मौजूद है
जबकि केतु चन्द्र के क्रांतिपथ का वह आभाषीय बिन्दु
हैं जहां चन्द्र पृथ्वी के पथ को काटकर दक्षिण
की तरफ आगे बढ़ता है. मंगल के दो ग्रह हैं मेष
एवं वृश्चिक जबकि केतु
की अपनी राशि नहीं है. केतु
भी राहु की तरह उस राशि पर अधिकार कर
लेता है जिस राशि में वह वर्तमान होता है.
मंगल अपने प्रराक्रम के कारण जब किसी के लिए कुछ
करने पर आता है तो उसके लिए प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार
रहता है. परंतु, इसके पराक्रम का दूसरा पहलू यह है कि अगर
यह दुश्मनी करने पर आ जाए तो प्राण लेने से
भी पीछे नहीं हटता है. केतु
की भी इसी तरह
की विशेषता है कि जब यह त्याग करने पर आता है
तो साधुवाद धारण कर लेता है. राजसी सुख-वैभव
का त्याग करने में भी इसे वक्त
नहीं लगता लेकिन, जब पाने
की इच्छा होती है
तो अपनी चतुराई एवं कुटनीति से
झोपड़ी को भी महल में बदल डालता है.

Thursday, April 6, 2017

शाबर मंत्र विकट परिस्थिति हेतु

…… प्यारे पाठको आज मैं आप को शाबरमंत्रशक्ति का एक बहुत
ही शक्तिशाली मन्त्र लिख रहा हूँ
जीवन मे कितनी विकट स्थिति हो ओर
कितनी ही परेशानी हो
अगर आप इस मन्त्र का हर रोज केवल 10 मिंट जाप करते हो तो
कोई भी संकट नहीं रहेगा.
घर मे क्लेश हो यो उपरी बढ़ा हो आप खुद को
असुरक्षित मह्सुश करते हो। या ओर कोई परेशानी
हो तो भी घर मे सुख समृधि के
लिये इस मन्त्र का जाप करे ..
ओम नमो आदेश गुरु का।
वज्र वज्रि वज्र किवाड़ वज्र से बांधा दशो द्वार
जो घात घाले उलट वेद वाही को खात
पहली चोकी गणपति की
दूजी चोकी हनुमंत की
तीजी चोकी भैरव
की चौथी चोकी राम रक्षा करने
को नृसिंह जी आयें
शब्द साचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ...............
..............
इस मन्त्र की महिमा अपरंपार है ..... चाहो तो
आजमा कर देख लो .......

Sunday, April 2, 2017

गुरु की महादशा

गुरु की महादशा का महत्व
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नवग्रहों में बृहस्पति ग्रह को बड़ा महत्वपूर्ण और
प्रभावशाली माना गया है | देवताओं का गुरू होने के
कारण बृहस्पति को सभी ग्रहों में उच्च स्थान प्राप्त
है | ज्योतिषशास्त्र के अनुसार गुरु धनु और मीन राशि
का स्वामी है।धनु मूल त्रिकोण राशि है तथा साथ
ही पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों का
भी यह स्वामी है | गुरू को शुभता,
सत्यता, न्याय, सद्गुण व सुख देने वाला ग्रह माना गया है |
बृहस्पति कुण्डली में द्वितीय, पंचम,
नवम, दशम एवं एकादश भाव का कारक ग्रह माना जाता है | यह
बारह महीनों में चार महीने
वक्री रहता है | कुण्डली में बृहस्पति
की पंचम, सप्तम और नवम भावों पर पूर्ण दृष्टि
होती है अतः बृहस्पति की दृष्टि जिन
भावों पर होती है उस भाव से सम्बन्धित उत्तम फल
की प्राप्ति होती है लेकिन जिस भाव मे
यह स्थित होता है उस भाव की हानि करता है |
धनु और मीन राशि के लिए यह योगकारक माना गया है।
गुरु की उत्कृष्ट दशा में, गुरु उच्च स्थान में, स्वक्षेत्र
में, केंद्र में, लाभ स्थान में त्रिकोण होता हो तो उसकी
दशा में जातक को बहुत से ग्रामो में अधिकार प्राप्त होता है |
जातक को किसी राज्य से पूर्ण सम्मान, धनधान्य, पुत्र,
स्त्री, मित्र इनकी प्राप्ति
होती है | द्रव्य प्राप्ति के विशेष योग बनते है |
नए- नए ग्रंथो का जातक निर्माण करता है।नौकरी में
पदोन्नति होती है | इस दशा में व्यक्ति ख्याति प्राप्त
करता है | बड़े -बड़े वरिष्ठ अधिकारियो से उसके मित्रतापूर्ण
सम्बन्ध स्थापित होते है | एवम विदेश जाने का अवसर बनता है
| चुनाव में विजय होकर उच्च पद भी प्राप्त कर
सकता है | राज्य में अधिकार प्राप्त होता है | बुद्धि का विकास,
आदर , साहस, नम्रता, विजय,सबको लाभ पहुचाने वाले कार्यो
की और प्रवत्ति, राजकार्यो में चतुरता,
अच्छी सलाह देना, न्यायपरायणता, सोना, वाहन, वस्त्र
प्राप्ति, राजा तथा बड़े महात्माताओ से आदर तथा उत्तम विचारो से
प्रसन्नता इत्यादि बाते प्राप्त होती है | देवार्चन,
तीर्थाटन, एवम धार्मिक कृत्यों में सलग्न होता है,
शरीर में पूर्ण निरोगता ,रतनलाभ, शत्रुओ से विवाद में
विजय , पर्याप्त सौख्य तथा मनोभिलषित कामो में सिद्धि -ये बाते
होती है | परीक्षाए देना,
परीक्षाओ में उत्तीर्ण होना, उच्च
श्रेणी की प्रतियोगिताओ में जातक सफल
होता है | चित की शुद्धि , विभूतित्व, ज्ञानाचार,
ज्ञानादि कर्म की परिपूर्णता वेदांतश्रवण, इष्ट सिद्धि,
अन्नदान इत्यादि फलो की प्राप्ति होती है
| राज्य में पुरुस्कार मिलता है | समाज में सम्मान होता है |
गुरु नीच राशि में होकर उच्च नवांश में हो तो राजा
की कृपा, सुख, विद्या, बुद्धि, कीर्ति, धन
इत्यादि वैभव देवाधिपत्य इनकी प्राप्ति
होती है |गुरु अपनी उच्च राशि में होकर
नवांश में नीच राशि में गया हो तो भय, चोर, शत्रु, राजा के
द्वारा निर्धनत्व, स्त्री पुत्र -इनसे द्वेष - ये बाते
होती है |
गुरु की पापदशा हो, गुरु नीच अस्त,
वक्री पापग्रहों से युक्त, अष्टम, द्वादश स्थानगत या
व्यभिचार राशिगत हो तो उसकी दशा में राजा से भय होता
है, धैर्य छुट जाता है, भूमि तथा धन का नाश होता है |सम्बन्धियों
से उसका विरोध बढ़ता है तथा मतिभ्रम से प्रत्येक कार्य में
असफलता ही हाथ लगती है | गुप्त
स्थानो पर रोग होने से व्यक्ति पीड़ित रहता है एव
आय से खर्च अधिक होता है |चित में व्याकुलता, पापी
तथा बुरे लोगो की तरफ से नफरत, दुष्ट स्वामियों
की सेवा, मित्रो से झगड़ा, खेती से हानि,
नोकरो द्वारा चोरी, पुत्र, स्त्री तथा अपने से
बूढ़े सम्बन्धी की मृत्यु, राजा
की अप्रसन्ता, बिना कारण द्वेष, अपनी
संतान से झगड़ा, दिखलावत के लिए लोगो का भला चाहता है और इस
प्रकार से उनको ठगकर प्राप्त करना , धेर्यनाश, घात से नुकसान,
पिता से क्षोभ परीक्षा में असफलता प्राप्त होना,
स्थानभ्रंश, तीर्थयात्रा में विग्न, महान भय,
पशुहानी, इत्यादि बाते होती है।व्याधि
होना, पुत्र को रोग होना, प्लीहा, गुल्म रोग, कंठ-
-रोग, मतिभ्रम, दाह इत्यादि रोग होते है |
इतने पर भी कुल मिला कर गुरु की दशा
जातक के जीवन में श्रेष्ट ही सिद्ध होता
है |
गुरु षष्ठ स्थान में हो तो उसकी दशा में फल :- प्रथम
निरोगता, पुत्र स्त्री लाभ और अंत में
स्त्री, धन हानि तथा चोर आदि से भय होता है |
गुरु अष्ठम स्थान में हो तो उसकी दशा में :- सुख तथा
अपने बंधुओ की हानि, स्थान हानि, विदेश गमन,
अनेक स्त्री, राजसम्मान, पुत्रादि लाभ, राजपुत्र से
सम्मान इत्यादि |
गुरु द्वादश स्थान में हो तो उसकी दशा में :- वाहन
आदि मिलते है तथा अनेक प्रकार के क्लेशो से दबकर विदेश गमन
होता है |
गुरु की १६ वर्ष की महादशा के प्रारम्भ
में राज-पूज्यता तथा धन प्राप्त होता है, मध्य में -- पुत्रादि लाभ
होते है और अंत में - कष्ट होते है |