|||राजनीती सफलता के ग्रह योग||| राजनीती एक बहुत ही महत्वपूर्ण छेत्र है।राजनीती में सफलता के लिए मुख्य रूप से सूर्य, मंगल, गुरु, शनि और राहु कारक होते है।सूर्य राजा है, मंगल सेनापति, गुरु मंत्री और अच्छा सलाहकार, शनि जनता का कारक है तो राहु चलाकी, गुप्त षड्यंत्र और आज की वर्तमान बहुत ही महत्वपूर्ण कारक ग्रह है।सूर्य राजा, सफलता ,सरकार का कारक होने से राजनीती में उच्च अधिकार और सफलता दिलाता है, मंगल बल और साहस का कारक है यह जातक को हिम्मत देने का काम करता है।गुरु सही रास्ता दिखाने वाला है तो इसके इसी गुण के कारण राजनीती में सफल होने वाले जातक मंत्री आदि जैसे पद को प्राप्त करते है।शनि की अनुकूल स्थिति जातक को जनता से सहयोग दिलाती है शनि के अनुकूल होने से राजनीती में जातक लोकप्रियता प्राप्त करता है।राहु आज की राजनीती का हीरो है, आज वर्तमान राजनीती में सफल होने के लिए राहु का अनुकूल और शुभ होना बहुत जरुरी है, यदि यह अनुकूल रिजल्ट न दे तो जातक राजनीती में कई बार असफल हो सकता है। इसके आलावा कुंडली का दशम भाव राजनीती, सत्ता, अधिकार, सरकार से सम्बंधित भाव है, चोथा भाव जनता से सम्बंधित भाव है तो पाचवां घर जातक की बुद्धि विवेक का है, दूसरा भाव वाणी का है राजनीती में भाषण देने की कला का अच्छा होने केलिए द्वितीय भाव अच्छा होना चाहिए।बुध ग्रह बुद्धि, सोच-समझ और बोलने की शक्ति का कारक है बुद्धि, सोच-समझ और क्या और कैसे बोलना चाहिए यह कला बुध ही देता है।इस कारण इन सभी ग्रह और भावो का अनुकूल और मजबूत होना जातक को एक सफल राजनीतिज्ञ बनाता है।। राजनीती एक बहुत ही बड़ा और उच्च अधिकारो और जनता के सहयोग का छेत्र है।जिसके लिये जरुरी है कुंडली में राजयोगो का होना, जितने ज्यादा केंद्र त्रिकोण के सम्बन्ध आपस में बनते है राजयोग उतना ही ज्यादा शक्तिशाली होता है।राजयोग के प्रभाव से जातक समाज में सम्मानित जीवन जीता है।जो जातक राजनीती में होते है उनकी कुंडली में राजयोग होता है इसी के प्रभावसे यह समाज में अपनी पहचान और उच्च स्तर का जीवन जीते है।इसके आलावा दशम भाव या दशम भाव से बना गजकेसरी योग, दशम भाव में बेठा शुभ और बली राहु या शनि इनका योगकारक ग्रहो से होना राजनीती सफलता के लिए शुभ होता है।गुरु की दृष्टि दशम भाव पर खुद एक तरह से राजयोग के समान होती है।
Tuesday, February 28, 2017
Monday, February 27, 2017
गृह गोचर
जन्मपत्रिका जातक के जीवन का दर्पण होती है।
ग्रह और गोचर का प्रभाव सभी पर पड़ता है।
ज्योतिर्विद जन्मपत्रिका देखकर ही जातक के
जीवन में घटित होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं की
भविष्यवाणियां कर देते हैं और वे भविष्यवाणियां
सत्य भी होती हैं। ज्योतिष शास्त्र मानता है कि
यत् ब्रrाण्डे तत् पिण्डे अर्थात जो ब्रrांड में है, वही
मानव शरीर में भी है। इससे यह सिद्ध होता है कि
ब्रrांड में स्थित ग्रहों का हमारे शरीर, उसके अंगों
और जीवन पर व्यापक रूप से प्रभाव पड़ता है।
किसी व्यक्ति के जीवन में बार-बार दुर्घटनाएं क्यों
होती हैं और क्यों वह बार-बार मृत्युतुल्य कष्ट पाता
है? निश्चय ही इन सब प्रश्नों के उत्तर जातक की
जन्मपत्रिका देती है। ज्योतिष के परिप्रेक्ष्य में
इसका विवेचन जरूरी है। दुर्घटनाओं में शारीरिक चोट
के साथ जातक का खून भी जाता है। जहां तक रुधिर
अर्थात खून का प्रश्न है, इसका स्वामित्व चंद्र के
पास माना जाता है। कुंडली में चंद्र यदि मंगल
द्वारा दूषित हो तो उस व्यक्ति का रक्त नियमित
रूप से दूषित होता है। कुंडली में चंद्र क्षीण हो तो
रक्ताभिसरण ठीक नहीं होता। ज्योतिष के
सिद्धांतों के अनुसार रक्त के निर्माण पर मंगल का
स्वामित्व है। इस तरह हम मान सकते हैं कि खून का
निर्माण और शरीर का रख रखाव मंगल और चंद्रमा
दोनों ही करते हैं और दोनों के पास ही उसका
कारकत्व होता है।
ज्योतिष के अनुसार मंगल मांगलिक ग्रह है।
जन्मपत्रिका में मंगल अच्छी स्थिति में हो तो इसके
सभी शुभ परिणाम मिलते हैं। जातक के पास अथाह
भूमि, भवन, वाहन आदि होते हैं और वह सेना और
पुलिस में अच्छे पद पर आसीन होता है। ऐसा जातक
अच्छा सर्जन भी होता है। बड़े ऑपरेशन, अपेंडिक्स,
गंडमाला, कैंसर, प्लूरेसी, मूत्रकच्छ, टॉन्सिल, विषम
ज्वर, मृत्यु, शरीर पर लाल धब्बे पड़ना, शल्य
चिकित्सा, खून बहना, घाव, दुर्घटना, हत्या और खून
खराबे का अध्ययन मंगल से किया जाता है।
जन्मपत्रिका में शनि अच्छा हो तो जातक
कर्मयोगी बनता है। वह बड़े-बड़े कल-कारखानों का
मालिक होता है। वह इंजीनियर, न्यायाधीश बनता
है। अच्छा शनि जातक को गुप्तचर विभाग की
सेवाओं में प्रवीण बनाता है। उसे अच्छा मंत्र मर्मज्ञ
भी बनाता है और जातक को आध्यात्मिक क्षेत्र में
शिखर तक पहुंचाता है। शनि अशुभ स्थिति में हो तो
दु:ख, अनादर, मृत्यु संकट व गरीबी की स्थितियां
पैदा करता है। पुरानी और लाइलाज बीमारियों
का प्रतिनिधित्व भी शनि ही करता है। यह
निराशा भी देता है।
जन्मपत्रिका में ग्रहों की आपसी युतियां ही ग्रहों
को शुभ-अशुभ बनाती हैं। यदि ग्रहों की युतियां
अच्छी हों तो जातक जीवन में शुभ फल प्राप्त करता
है और स्वस्थ रहकर उन्नति के पथ पर अग्रसर रहता है।
इसके विपरीत ग्रहों की युतियां अशुभ हांे तो जातक
अस्वस्थ रहकर विभिन्न प्रकार के कष्ट भोगता है।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार जातक की
जन्मपत्रिका में सभी ग्रह अपने से सातवें स्थान और
उसमें बैठे ग्रहों को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। मंगल
जिस राशि में बैठता है, उससे सातवें भाव के
अतिरिक्त चतुर्थ और आठवें भाव और उसमें बैठे ग्रहों
को भी अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता है। इसी प्रकार
शनि भी अपने से सातवें भाव के अतिरिक्त तृतीय
और दसवें भाव और उसमें बैठे ग्रहों को अपनी पूर्ण
दृष्टि से देखता है।
शनि और मंगल आपस में एक-दूसरे से शत्रुता का भाव
रखते हैं। मौत का कारकतत्व शनि के पास है और खून
का कारकतत्व मूल रूप से मंगल के पास है।
जन्मपत्रिका में शनि और मंगल की युति जैसे एक ही
भाव में दोनों का साथ बैठना, परस्पर का दृष्टि संबंध
बनना, ष्डाष्टक योग बनाना दुर्घटनाओं का मूल
कारण है। जब गोचर में शनि और मंगल की अशुभ
युतियां बनती हैं जैसे एक ही भाव में दोनों ही एक
साथ बैठते हैं अथवा आपस में ष्डाष्टक योग बनाते हैं,
तब भी इन युतियों व योगों का अशुभ प्रभाव देखने
को मिलता है।
गोचर में जब ऐसे योग बनते हैं तो उस योग की अवधि
में दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ जाती है। इस युति काल
में दुर्घटनाओं में एक-दो नहीं, बल्कि समूह में मृत्यु
होती है। प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। देशों में युद्ध
की स्थिति बनती है। आतंकी घटनाओं में भी इस
अवधि में जान-माल का ज्यादा नुकसान होता है।
Saturday, February 25, 2017
सूर्य की रौशनी घर पर
आजकल छोटे या बड़े भवनों की बनावट पहले के
भवनों की तुलना में सुंदर व भव्य जरूर हो गई है,
लेकिन आर्किटेक्ट मकानों को सुंदरता प्रदान करने के लिए अनियमित
आकार को महत्व देने लगे हैं। इस कारण मकान बनाते समय
जाने-अनजाने वास्तु सिद्धांतों की अवहेलना हो
रही है। महिला हो या पुरुष, उनकी
हर प्रकार की बीमारी में
वास्तुदोष की अपनी भूमिका
रहती है। वास्तुदोष के कारण घर में सकारात्मक और
नकारात्मक ऊर्जा के बीच असंतुलन की
स्थिति पैदा हो जाती है। इस कारण वहां रहने वालों
के शारीरिक व मानसिक रोगी बनने
की आशंका होती है।
वैसे तो सभी दिशाएं प्रकृति की
ही हैं और सभी शुभ हैं। वास्तुशास्त्र
तो मात्र प्रकृति में व्याप्त सूर्य की
जीवनदायी सकारात्मक ऊर्जा के श्रेष्ठ
उपयोग का तरीका बताता है ताकि
पृथ्वीवासी स्वस्थ, सुखद व शांतिपूर्वक
जीवन जी सकें। वह भवन, जहां पर
प्रात:काल की बजाय दोपहर की किरणों
आती हैं वहां रहने वालों का स्वास्थ्य अच्छा
नहीं रहता। दोपहर के समय पृथ्वी पर
पड़ने वाली सूर्य की नकारात्मक किरणों
(अल्ट्रा वायलेट) होती हैं जो स्वास्थ्य के लिए
बहुत नुकसानदेह हैं। इसी कारण वास्तुशास्त्र में
दक्षिण व पश्चिम की दीवारों को ऊंचा
रखने का प्रावधान है। साथ ही इन दिशाओं में उत्तर
व पूर्व की तुलना में कम खिड़की-दरवाजे
रखने की सलाह दी गई है ताकि उस घर
में रहने वाले सदस्य इन नकारात्मक ऊर्जा से युक्त किरणों के
संपर्क में कम से कम आएं तथा ईशान दिशा में स्थित जल स्रोतों पर
भी यह किरणों न पड़ सकें।
भवन के ईशान कोण में अधिक खाली जगह रखने का
कारण भी सूर्य की गति ही
है। जब सूर्य उत्तरायण की तरफ होता है तो
दोपहर तक लाभदायक किरणों पृथ्वी पर
पड़ती हैं। जब सूर्य दक्षिणायण होता है तो दोपहर
के पूर्व ही हानिकारक किरणों पड़नी शुरू
हो जाती हैं, क्योंकि दिन छोटे होते जाते हैं। अत:
उत्तरायण काल की सूर्य की किरणों का पूरा
लाभ प्राप्त करने के लिए ही वास्तुशास्त्र में दक्षिण
की अपेक्षा उत्तर में ज्यादा खाली जगह
छोड़ने की सलाह दी गई है।
जिस घर का नैऋ त्य कोण, किसी भी
प्रकार से नीचा हो या वहां किसी
भी प्रकार का भूमिगत पानी का टैंक, कुआं,
बोरवेल, सेप्टिक टैंक इत्यादि हो तो वहां रहने वाले के असामयिक
मृत्यु का शिकार होने की आशंका रहती
है। ध्यान रहे वास्तुशास्त्र एक विज्ञान है। घर की
बनावट में ही वास्तु अनुकूल परिवर्तन कर वास्तुदोषों
को दूर किया जा सकता है। बाकी टोटकों की
जरूरत नहीं है।
Wednesday, February 22, 2017
शिवरात्रि पूजन
पूजन विधान
महाशिवरात्रि के दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बिल्वपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है तथा उनका पूजन किया जाता है | अगर नजदीक में शिवालय या शिवमंदिर न हो तो घर पर ही शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसका विधि पूर्वक पूजन करना उत्तम माना गया है | इस दिन सुबह प्रात:काल में ही नित्य-कर्मों से निवृत होकर भगवान शिव कि आराधना “ऊं नमः शिवाय” मंत्र से सुरु करते हुए पूरे दिन इसी मंत्र का बारम्बार जाप करते रहना चाहिए | इस मंत्र में वह शक्ति है जो किसी अन्य मंत्र में नहीं है अत: श्रृद्धालुओं को चाहिए कि वह शिव पूजन करते समय अधिकाधिक इस मंत्र का जाप करें तथा भगवान भोलेनाथ कि कृपानुभूति प्राप्त करें | तथा इस दिन शिवमहापुराण और रुद्राष्टकम आदि का पाठ अति उत्तम माना जाता है |
महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन है। इस दिन महाशिव का पूजन तथा स्तुति करने से सब पापों का नाश हो जाता है। तथा मनुष्य के जीवन को नयी दिशा मिल जाती है | ईशान संहिता में महाशिवरात्रि कि महिमा को इस प्रकार बताया गया है:-
शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम् | आचाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं ||
Monday, February 20, 2017
राहु केतु
राहु शुरू में नुकसान करता है परंतु दूसरे फेस में फायदा करता है या पहले फेस में नुकसान करता है । क्योकि राहु की गर्दन कटना नुक्सान था ।परन्तु अमृत पिने के बाद दो भागों में विभाजित होकर अधिक शाक्तिशाली हो गया और फायदा हुआ । इसलिए राहु अगर लेगा तो देगा भी ज्यादा ।
एक कहावत है कि राहु धोती फाड़कर रुमाल दे देता है , या रुमाल को।धोती में बदल देता हेव।
केतु - को लीजिए जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सर काट दिया था तो सुदर्शन चक्र के वेग से राक्षसों में राहु का सिर गिर गया ।
और राहु का धड़ देवताओं में रह गया और वह इस प्रकार गिरा की देवताओं के चरणों में गिर गया , अर्थात राहु का धड विष्णु भगवान के चरणों में गिर गया । देवताओं के चरणों में अर्थात विष्णु भगवान के चरणों में गिरने के कारण देवताओं ने खुश होकर इसे मीन राशि का अधिकार दे दिया ।। आप जानते है कि कालपुरुष कुंडली का चरण भाव 12 मा भाव मीन राशि होती है ।
अतः इसे मोक्ष का धार्मिक कारक माना गया किसी को मोक्ष के बारहवें भाव में केतु होने पर ज्यादा संभावना होती है । मोक्ष का कारक बनाने के कारण देवताओं ने से शिखर पर बैठा दिया अर्थात के मंदिर के ऊपर पाया जाता है जिसे केतु कहते हैं ।: गुरुद्वारे में निसान साहिब । चर्च में क्रॉस, मस्जिद में गुम्मद आदि आदि , सरकार की इमारत पर तिरंगा , इसलिए केतु को विजय ध्वजा कहते हे या राज्य का निसान आर्थत झंडा (Flag)
शिष्य पंडित शिवदयाल जी का सवाल -सर एक प्रश्न है जैसै केतु को मीन का अधीकार दिया बैसे ही राहु को क्या का क्यु दिया प्लीज इस भी समझाए
गुरु का जवाब बी- क्योंकि राहु केतु हमेशा आमने सामने होते हैं इसलिए राहु को कन्या राशि मिली और आप जानते हैं कालपुरुष कुंडली में छठा भाव लड़ाई झगड़ा बीमारी आदि का होता है यही राहू की प्रवृत्ति है
यहॉ अगर राहु अच्छा होगा तो आपको कंपटीशन में लड़ाई झगड़े में तरक्की दिलवाएगा अगर खराब होगा तो कंपटीशन में फेल कर देगा दुश्मन का मतलब हमेशा दुश्मनी नहीं होता है कॉन्पटिशन भी होता है आप एक लाइन में समझ लो राहू तंत्र का ज्ञाता है केतु मंत्र का ज्ञाता है राहु शमशान की धुए का कारक है ,केतु मंत्रों के या वेद के हवन के धुएंका कारक है ।चन्द्र, बुद्ध , शुक्र एवं गुरु एक से बढ़कर एक शुभ ग्रहः है । धर्म की आड़ में किये जाने कार्य में केतु जिम्मेदार है । जैसे धर्म के नाम पर पेसे लेकर पाप कर्म करना, मंदिर आदि में चोरी करना, दूसरे की परेसानी से भला बनकर फायदा उठाना आदि आदि ।।केतु पापी शुभ ग्रहः हे ।।
पंचांग का महत्त्व
*🚩💮🚩पंचाग का महत्व🚩💮🚩*
भारतीय पंचांग का आधार विक्रम संवत है जिसका सम्बंध राजा विक्रमादित्य के शासन काल से है। ये कैलेंडर विक्रमादित्य के शासनकाल में जारी हुआ था। इसी कारण इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है। पंचाग पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं:-
1:- तिथि (Tithi) 2:- वार (Day) 3:- नक्षत्र (Nakshatra) 4:- योग (Yog) 5:- करण (Karan)
पंचाग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग का श्रवण करते थे ।
*शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
*वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
* नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
* योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
*करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना और बोल कर पढ़ना चाहिए ।
चन्द्रमा की एक कला को एक तिथि माना जाता है जो उन्नीस घंटे से 24 घंटे तक की होती है । अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियों को शुक्लपक्ष और पूर्णिमा से अमावस्या तक की तिथियों को कृष्ण पक्ष कहते हैं ।
तिथियाँ इस प्रकार होती है : -1. प्रतिपदा, 2. द्वितीय , 3. तृतीया, 4. चतुर्थी, 5. पँचमी, 6. षष्टी, 7. सप्तमी, 8. अष्टमी, 9. नवमी, 10. दशमी, 11. एकादशी, 12. द्वादशी, 13. त्रियोदशी, 14. चतुर्दशी, 15. पूर्णिमा एवं 30. अमावस्या
तिथियों के प्रकार : – 1|6|11 नंदा, 2|7|12 भद्रा, 3|8|13 जया, 4|9|14 रिक्ता और 5|10|15 पूर्णा तथा 4|6|8|9|12|14 तिथियाँ पक्षरंध्र संज्ञक हैं ।
मुख्य रूप से तिथियाँ 5 प्रकार की होती है ।
A . नन्दा तिथियाँ – दोनों पक्षों की 1 , 6 और 11 तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी तिथियाँ नन्दा तिथि कहलाती हैं । इन तिथियों में अंतिम प्रथम घटी या अंतिम 24 मिनट को छोड़कर सभी मंगल कार्यों को करना शुभ माना जाता है ।
B . भद्रा तिथियाँ – दोनों पक्षों की 2, 7, और 12 तिथि अर्थात द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी तिथियाँ भद्रा तिथि कहलाती है । इन में कोई भी शुभ, मांगलिक कार्य नहीं किये जाते है लेकिन यह तिथियाँ मुक़दमे, चुनाव , शल्य चिकित्सा सम्बन्धी कार्यो के लिए अच्छी मानी जाती है और व्रत, जाप, पूजा अर्चना एवं दान-पुण्य जैसे धार्मिक कार्यों के लिए यह शुभ मानी गयी हैं ।
C . जया तिथि – दोनों पक्षों की 3 , 8 और 13 तिथि अर्थात तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी तिथियाँ जया तिथि कहलाती है । यह तिथियाँ विद्या, कला जैसे गायन, वादन नृत्य आदि कलात्मक कार्यों के लिए उत्तम मानी जाती है ।
D. रिक्ता तिथि – दोनों पक्षों की 4 , 9, और 14 तिथि अर्थात चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी तिथियाँ रिक्त तिथियाँ कहलाती है । तिथियों में कोई भी मांगलिक कार्य, नया व्यापार, गृह प्रवेश, नहीं करने चाहिए परन्तु मेले, तीर्थ यात्राओं आदि के लिए यह ठीक होती हैं ।
E . पूर्णा तिथियाँ – दोनों पक्षों की 5, 10 , 15 , तिथि अर्थात पंचमी, दशमी और पूर्णिमा और अमावस
पूर्णा तिथि कहलाती हैं । इनमें अमवस्या को छोड़कर बाकि दिनों में अंतिम 1 घटी या 24 मिनट पूर्व तक सभी प्रकार के लिए मंगलिक कार्यों के लिए ये तिथियाँ शुभ मानी जाती हैं ।
2 . एक सप्ताह में 7 दिन या 7 वार होते है । सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार । इन सभी वारो के अलग अलग देवता और ग्रह होते है जिनका इन वारो पर स्पष्ट रूप से प्रभाव होता है ।
3. नक्षत्र :- हमारे आकाश के तारामंडल में अलग अलग रूप में दिखाई देने वाले आकार नक्षत्र कहलाते है । नक्षत्र 27 प्रकार के माने जाते है । ज्योतिषियों में अभिजीत नक्षत्र को 28 वां नक्षत्र माना है । नक्षत्रों को उनके स्वभाव के आधार पर 7 श्रेणियों ध्रुव, चंचल, उग्र, मिश्र, क्षिप्रा, मृदु और तीक्ष्ण में बाँटा गया है । चन्द्रमा इन सभी नक्षत्रो में भृमण करता रहता है ।
नक्षत्रो के नाम :- 1. अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृत्तिका, 4. रोहिणी, 5. मॄगशिरा, 6. आद्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. अश्लेशा, 10. मघा, 11. पूर्वाफाल्गुनी, 12. उत्तराफाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाति, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढा, 21. उत्तराषाढा, 22. श्रवण, 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वाभाद्रपद, 26. उत्तराभाद्रपद और 27. रेवती।
नक्षत्रों का स्वभाव :-नक्षत्रों को उनके स्वभाव के आधार पर 7 श्रेणियों ध्रुव, चंचल, उग्र, मिश्र, क्षिप्रा, मृदु और तीक्ष्ण में बाँटा गया है । नक्षत्रों की शुभाशुभ फल के आधार पर तीन श्रेणी होती हैं । शुभ, मध्यम एवं अशुभ ।
A . शुभ फलदायी – 1 ,4 ,8 ,12 ,13 ,14 ,17 ,21 ,22 ,23 ,24 ,26 ,27 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह 13 नक्षत्र शुभ फलदायी माने जाते हैं ।
B . मध्यम फलदायी – 5 , 7 ,10 ,16 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह चार नक्षत्र मध्यम फल अर्थात थोड़ा फल देते हैं ।
C . अशुभ फलदायी – 2 ,3 ,6 ,9 ,11 ,15 ,18 ,19 ,20 ,25 शास्त्रों के अनुसार या दस नक्षत्र अशुभ फल देते हैं अत: इन नक्षत्रों में शुभ कार्यो को करने से बचना चाहिए ।
4. योग :- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 27 योग कहे गए है । सूर्य और चन्द्रमा की विशेष दूरियों की स्थितियों से योग बनते है । जब सूर्य और चन्द्रमा की गति में 13º-20' का अन्तर पड्ता है तो एक योग बनता है। दूरियों के आधार पर बनने वाले योगो के नाम निम्नलिखित है,
1. विष्कुम्भ (Biswakumva), 2. प्रीति (Priti), 3. आयुष्मान(Ayushsman), 4. सौभाग्य (Soubhagya), 5. शोभन (Shobhan), 6. अतिगड (Atigad), 7. सुकर्मा (Sukarma), 8. घृति (Ghruti), 9. शूल (Shula), 10. गंड (Ganda), 11. वृद्धि (Bridhi), 12. ध्रुव (Dhrub), 13. व्याघात (Byaghat), 14. हर्षण (Harshan), 15. वज्र (Bajra), 16. सिद्धि (Sidhhi), 17. व्यतीपात (Biytpat), 18. वरीयान (Bariyan), 19. परिध (paridhi), 20. शिव (Shiba), 21. सिद्ध (Sidhha), 22. साध्य (Sadhya), 23. शुभ (Shuva), 24. शुक्ल (Shukla), 25. ब्रह्म (Brahma), 26. ऎन्द्र (Indra), 27. वैधृति (Baidhruti)
इन 27 योगों में से 9 योगों को अशुभ माना जाता है इसीलिए इनमें सभी प्रकार के शुभ कार्यों से बचने को कहा गया है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति।
5. करण:- एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। इसमें विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
महीनो के नाम -- भारतीय पंचाग के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में 12 माह होते है जिनके नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है।
*चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल)
*विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई)
*ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून)
*आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई)
*श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त)
*भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर)
*अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्तूबर)
*कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्तूबर-नवम्बर)
*मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर)
*पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी)
*मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) तथा
*फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है।
🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
Sunday, February 19, 2017
नए मकान पर बुरी नज़र
आप अपने नए मकान को बुरी नजर से बचाना चाहते
हैं तो मुख्य द्वार की चौखट पर काले धागे से
पीली कौड़ी बांधकर लटकाने से
समस्त ऊपरी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
2. यदि आपने कोई नया वाहन खरीदा है और आप इस
बात से परेशान हैं कि कुछ न कुछ रोज वाहन में
गड़बड़ी हो जाती है।
यदि गड़बड़ी नहीं होती तो दुर्घटना में
चोट- चपेट लग जाती है और बेकार के खर्च से
सारी अर्थ-व्यवस्था चौपट हो जाती है।
अपने वाहन पर काले धागे से
पीली कौड़ी बांधने से आप इस
बुरी नजर से बच सकेंगे, करके परेशानी से
मुक्त हो जाएं। 3. यदि आपके घर पर रोज कोई न कोई आपदा आ
रही है। आप इस बात को लेकर परेशान हैं
कि कहीं किसी ने कुछ कर
तो नहीं दिया। ऐसे में आपको चाहिए कि एक नारियल
को काले कपड़े में सिलकर घर के बाहर लटका दें। 4. मिर्च, राई व
नमक को पीड़ित व्यक्ति के सिर से वार कर आग में
जला दें। चंद्रमा जब राहु से पीड़ित होता है तब नजर
लगती है। मिर्च मंगल का, राई शनि का और नमक राहु
का प्रतीक है। इन तीनों को आग (मंगल
का प्रतीक) में डालने से नजर दोष दूर हो जाता है।
यदि इन तीनों को जलाने पर
तीखी गंध न आए तो नजर दोष
समझना चाहिए। यदि आए तो अन्य उपाय करने चाहिए।
टोटका तीन-यदि आपके बच्चे को नजर लग गई है और
हर वक्त परेशान व बीमार रहता है तो लाल साबुत
मिर्च को बच्चे के ऊपर से तीन बार वार कर
जलती आग में डालने से नजर उतर
जाएगी और मिर्च
का धचका भी नहीं लगेगा। 5. यदि कोई
व्यक्ति बुरी नजर से परेशान है तो कि शनिवार के दिन
कच्चा दूध उसके ऊपर से सात बार वारकर कुत्ते को पिला देने से
बुरी नजर का प्रभाव दूर हो जाता है। 6. यदि कोई
व्यक्ति बुरी नजर से परेशान है तो कि मंगलवार के दिन
हनुमान मंदिर जाकर उनके कन्धे से सिन्दुर लेकर नजर लगे
व्यक्ति के माथे पर यह सोचकर तिलक कर दें कि यह नजर दोष से
मुक्त हो गया है। दिमाग से चिन्ता हटाने का टोटका अधिकतर पारिवारिक
कारणों से दिमाग बहुत ही उत्तेजना में आजाता है,परिवार
की किसी समस्या से या लेन देन
से,अथवा किसी रिस्तेनाते को लेकर दिमाग एक दम उद्वेलित
होने लगता है,ऐसा लगने लगता है कि दिमाग फ़ट पडेगा,इसका एक
अनुभूत टोटका है कि जैसे ही टेंसन हो एक लोटे में
या जग में पानी लेकर उसके अन्दर चार लालमिर्च के
बीज डालकर अपने ऊपर सात बार उबारा (उसारा) करने के
बाद घर के बाहर सडक पर फ़ेंक दीजिये,फ़ौरन आराम
मिल जायेगा। . —