Monday, February 20, 2017

राहु केतु

राहु शुरू में नुकसान करता है परंतु दूसरे फेस में फायदा करता है या पहले फेस में नुकसान करता है । क्योकि राहु की गर्दन कटना नुक्सान था ।परन्तु अमृत पिने के बाद दो भागों में विभाजित होकर अधिक शाक्तिशाली हो गया और फायदा हुआ । इसलिए राहु अगर लेगा तो देगा भी ज्यादा ।

एक कहावत है कि राहु धोती फाड़कर रुमाल दे देता है , या रुमाल को।धोती में बदल देता हेव।
केतु - को लीजिए जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सर काट दिया था तो सुदर्शन चक्र के वेग से राक्षसों में राहु का सिर गिर गया  ।

और राहु का धड़ देवताओं में रह गया और वह इस प्रकार गिरा की देवताओं के चरणों में गिर गया , अर्थात राहु का धड विष्णु भगवान के चरणों में गिर गया । देवताओं के चरणों में अर्थात विष्णु भगवान के चरणों में गिरने के कारण देवताओं ने खुश होकर इसे मीन राशि का अधिकार दे दिया ।। आप जानते है कि कालपुरुष कुंडली का चरण भाव 12 मा भाव मीन राशि होती है ।
अतः इसे मोक्ष का धार्मिक कारक माना गया किसी को मोक्ष के बारहवें भाव में केतु होने पर ज्यादा संभावना होती है । मोक्ष का कारक बनाने के कारण देवताओं ने से शिखर पर बैठा दिया अर्थात के मंदिर के ऊपर पाया जाता है जिसे केतु कहते हैं ।: गुरुद्वारे में निसान साहिब । चर्च में क्रॉस, मस्जिद में गुम्मद आदि आदि ,  सरकार की इमारत पर तिरंगा , इसलिए केतु को विजय ध्वजा कहते हे या राज्य का निसान आर्थत झंडा (Flag)

शिष्य पंडित शिवदयाल जी का सवाल -सर एक प्रश्न है जैसै केतु को मीन का अधीकार दिया बैसे ही राहु को क्या का क्यु दिया प्लीज इस भी समझाए
गुरु का जवाब बी- क्योंकि राहु केतु हमेशा आमने सामने होते हैं इसलिए राहु को कन्या राशि मिली और आप जानते हैं कालपुरुष कुंडली में छठा भाव लड़ाई झगड़ा बीमारी आदि का होता है यही राहू की प्रवृत्ति है

यहॉ अगर राहु अच्छा होगा तो आपको कंपटीशन में लड़ाई झगड़े में तरक्की दिलवाएगा अगर खराब होगा तो कंपटीशन में फेल कर देगा दुश्मन का मतलब हमेशा दुश्मनी नहीं होता है कॉन्पटिशन भी होता है आप एक लाइन में समझ लो राहू तंत्र का ज्ञाता है केतु मंत्र का ज्ञाता है राहु शमशान की धुए का कारक है ,केतु मंत्रों के या वेद के हवन के धुएंका कारक है ।चन्द्र, बुद्ध , शुक्र एवं गुरु एक से बढ़कर एक शुभ ग्रहः है । धर्म की आड़ में किये जाने कार्य में केतु जिम्मेदार है । जैसे धर्म के नाम पर पेसे लेकर पाप कर्म करना, मंदिर आदि में चोरी करना, दूसरे की परेसानी से भला बनकर फायदा उठाना आदि आदि ।।केतु पापी शुभ ग्रहः हे ।।

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