Sunday, February 12, 2017

गुरु बृहस्पति

*****-- गूरू ग्रह (बृहष्पती) एक विशलेष्ण --*****
गुरु ज्योतिष के नव ग्रहों में सबसे अधिक शुभ ग्रह माने जाते हैं. जीवन में हर क्षेत्र में सफलता के पीछे गुरु ग्रह की स्थिति बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. कुंडली में अगर गुरु मजबूत हो तो सफलता का कदम चूमना बिल्कुल तय है. सफलता के पीछे सकारात्मक उर्जा का होना अहम
होता है और यही काम गुरु करते हैं. गुरु
जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में सकारात्मक उर्जा प्रदान करने में सहायक होते हैं. अपने सकारात्मक रुख के चलते व्यक्ति कठिन से कठिन समय को आसानी से
सुलझा लेता है. गुरु आशावादी बनाते हैं और निराशा को जीवन में प्रवेश नहीं करने देते. इसके फलस्लरूप सफलता खुद ब खुद कदम चूमने लगती है. और जब सफलता मिलती रहती है तब
जिंदगी में खुशहाली भी आ जाती है.
लेकिन यही गुरु अगर कमजोर हो तो तमाम मुश्किलें जीना मुहाल कर देती है. बनते हुए काम बिगड़ जाते हैं, किसी काम में यश नहीं मिलता, घर में पैसे
की तंगी बनी रहती है और स्वास्थ्य पर भी इसका असर दिखने लगता है.
ऐसे में ये जानना बहुत जरूरी है कि अगर
आपकी कुंडली में गुरु कमजोर है तो उसे
मजबूत कैसे करें और कैसे घर में खुशहाली लाएं. गुरु के प्रबल प्रभाव वाले जातकों की वित्तिय स्थिति मजबूत होती है तथा आम तौर पर इन्हें अपने जीवन काल में किसी गंभीर वित्तिय संकट का सामना नहीं करना पड़ता. ऐसे जातक
सामान्यतया विनोदी स्वभाव के होते हैं
तथा जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में इनका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है. ऐसे जातक अपने जीवन में आने वाले कठिन समयों में भी अधिक विचलित नहीं होते तथा अपने सकारात्मक रुख के कारण इन कठिन समयों में से भी अपेक्षाकृत
आसानी से निकल जाते हैं. ऐसे जातक
आशावादी होते हैं तथा निराशा का आम तौर पर इनके जीवन में लंबी अवधि के लिए प्रवेश नहीं होता जिसके कारण ऐसे जातक अपने जीवन के प्रत्येक पल का पूर्ण आनंद उठाने में सक्षम होते हैं. ऐसे जातकों के अपने आस-पास के लोगों के साथ मधुर संबंध होते हैं तथा आवश्यकता के समय वे अपने प्रियजनों की हर संभव प्रकार से सहायता करते हैं.
इनके आभा मंडल से एक विशेष तेज निकलता है जो इनके आस- पास के लोगों को इनके साथ संबंध बनाने के लिए
तथा इनकी संगत में रहने के लिए प्रेरित करता है. आध्यात्मिक पथ पर भी ऐसे जातक अपेक्षाकृत शीघ्रता से ही परिणाम प्राप्त कर लेने में सक्षम होते हैं.
गुरु के बारे में कुछ तथ्य:-

1. गुरु वृहस्पति लग्न मे बैठा हो , तो बली होता है और यदि चन्द्रमा के साथ कही बैठा हो तो चेष्ठाबली होता है.
2. गुरु वृहस्पति को शुभ ग्रह माना गया है.
3. गुरु वृहस्पति धनु एवं मीन राशि का स्वामी है.
4. गुरु वृहस्पति जातक को मजिस्ट्रेट, वकील, प्रिंसिपल, गुरु, पंडित, ज्योतिषी, बैंक, मैनेजर, एमएलए, मंदिर के पुजारी,
यूनिवर्सिटी का अधिकारी, एमपी, प्रसिद्द राजनेता के गुण आदि बनाता है.
5. एक राशि मे गुरु वृहस्पति 13 मास तक निवास करता है. सूर्य, चन्द्र और मंगल मित्र है, बुध, शुक्र शत्रु है तथा शनि, राहु, केतु समग्रह है.
6. गुरु वृहस्पति बुद्धि तथा उत्तम
वाकशक्ति के स्वामी है.
7. गुरु वृहस्पति विशाखा, पुनर्वसु तथा पूर्वभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी है.
8. गुरु वृहस्पति को प्रसन्न करना है ,
तो ब्रह्माजी की पूजा करनी चाहिए.
गुरु (वृहस्पति) ज्योतिष के नव ग्रहों में सबसे अधिक शुभ ग्रह माने जाते हैं. गुरू मुख्य रूप से आध्यात्मिकता को विकसित करने का कारक हैं. तीर्थ स्थानों तथा मंदिरों, पवित्र नदियों तथा धार्मिक क्रिया कलाप से जुडे हैं. गुरु ग्रह को अध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, लेखकों जैसे कई प्रकार के क्षेत्रों में कार्य
करने का कारक माना जाता है. गुरु की अन्य कारक वस्तुओं में पुत्र, संतान, जीवन साथी, धन- सम्पति, शैक्षिक गुरु, बुद्धिमता, शिक्षा, ज्योतिष तर्क, शिल्पज्ञान, अच्छे गुण, श्रद्धा, त्याग, समृ्द्धि, धर्म, विश्वास, धार्मिक कार्यो,
राजसिक सम्मान देखा जा सकता है.
गुरु से संबन्धित कार्य क्षेत्र कौन से हैं
गुरु जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में सकारात्मक उर्जा प्रदान करने में सहायक हैं. अपने सकारात्मक रुख के कारण
व्यक्ति कठिन से कठिन समय को आसानी से सुलझाने के प्रयास में लगा रहता है. गुरु आशावादी बनाते हैं और
निराशा को जीवन में प्रवेश नहीं करने देते
हैं. गुरु के अच्छे प्रभाव स्वरुप जातक परिवार को साथ में लेकर चलने की चाह रखने वाला होता है. गुरु के प्रभाव से
व्यक्ति को बैंक, आयकर, खंजाची, राजस्व, मंदिर,धर्मार्थ संस्थाएं, कानूनी क्षेत्र, जज, न्यायालय, वकील, सम्पादक, प्राचार्य, शिक्षाविद, शेयर बाजार,
पूंजीपति, दार्शनिक, ज्योतिषी, वेदों और
शास्त्रों का ज्ञाता होता है.

गुरु के मित्र ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल हैं. गुरु के शत्रु ग्रह बुध, शुक्र हैं, गुरु के साथ शनि सम संबन्ध रखता है. गुरु को मीन व धनु राशि का स्वामित्व प्राप्त है. गुरु की मूलत्रिकोण राशि धनु है. इस राशि में गुरु 0 अंश से 10 अंश के मध्य अपने मूलत्रिकोण अंशों पर होते हैं. गुरु कर्क
राशि में 5 अंश पर होने पर अपनी उच्च राशि अंशों पर होते हैं. गुरु मकर राशि में 5 अंशों पर नीच राशिस्थ होते हैं, गुरु को पुरुष प्रधान ग्रह कहा गया है यह उत्तर-
पूर्व दिशा के कारक ग्रह हैं. गुरु के सभी शुभ फल प्राप्त करने के लिए पुखराज रत्न धारण किया जाता है. गुरु का शुभ
रंग पिताम्बरी पीला है. गुरु के शुभ अंक 3, 12, 21 है. गुरु के अधिदेवता इन्द्र, शिव, ब्रह्मा, भगवान नारायण है.
गुरु का बीज मंत्र
ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:
गुरु का वैदिक मंत्र
देवानां च ऋषिणा च गुर्रु कान्चन सन्निभम।
बुद्यिभूतं त्रिलोकेश तं गुरुं प्रण्माम्यहम।।
गुरु की दान की वस्तुएं गुरु की शुभता प्राप्त करने के लिए निम्न वस्तुओं
का दान करना चाहिए. स्वर्ण, पुखराज, रुबी, चना दान, नमक, हल्दी, पीले चावल,
पीले फूल या पीले लडडू. इन वस्तुओं
का दान वीरवार की शाम को करना शुभ
रहता है. गुरु का जातक पर प्रभाव
गुरु लग्न भाव में बली होकर स्थित हों या फिर गुरु की धनु या मीन राशि लग्न भाव में हो, अथवा गुरु की राशियों में से कोई
राशि व्यक्ति की जन्म राशि हो तो व्यक्ति के रुप-रंग पर गुरु का प्रभाव रहता है. गुरु बुद्धि को बुद्धिमान, ज्ञान, खुशियां और सभी चीजों की पूर्णता देता है.
गुरु का प्रबल प्रभाव जातक को मीठा खाने वाला तथा विभिन्न प्रकार के
पकवानों तथा व्यंजनों का शौकीन बनाता है. गुरु चर्बी का प्रभाव उत्पन्न करता है इस कारण गुरू से प्रभावित व्यक्ति मोटा हो सकता है इसके साथ ही व्यक्ति साफ रंग-रुप, कफ प्रकृति, सुगठित शरीर का होता है. गुरु के खराब होने पर गुरु कुण्डली में कमजोर हो या पाप ग्रहों के प्रभाव में हो, नीच का हो, षडबल हीन
हो तो व्यक्ति को गाल-ब्लेडर, खून की कमी, शरीर में दर्द, दिमागी रुप से विचलित, पेट में गड़बड़, बवासीर, वायु विकार, कान, फेफडों या नाभी संबन्धित रोग, दिमाग घूमना, बुखार, बदहजमी, हर्निया, मस्तिष्क, मोतियाबिन्द, बिषाक्त,
अण्डाश्य का बढना, बेहोशी जैसे दिक्कतें परेशान कर सकती हैं. वृहस्पति के बलहीन होने पर जातक को अनेक बिमारियां जैसे मधुमेह, पित्ताशय से संबधित बिमारियां प्रभावित कर सकती हैं. कुंडली में गुरु के नीच वक्री या बलहीन होने पर व्यक्ति के शरीर
की चर्बी भी बढने लगती है जिसके कारण वह बहुत मोटा भी हो सकता है. वृहस्पति पर अशुभ राहु का प्रबल व्यक्ति को आध्यात्मिकता तथा धार्मिक कार्यों दूर ले जाता है. व्यक्ति धर्म तथा आध्यात्मिकता के नाम पर लोगों को धोखा देने वाला हो सकता है. यदि आपका गुरु खराब है तो गुरु की अपनी राशियां है धनु और मीन. कर्क राशि में ये उच्च का होता है और मकर राशि में ये नीच का होता है. यदि ये ग्रह अच्छा हो तो एक लाख दोषों तक को दूर कर सकने
की शक्ति इस ग्रह में है अन्यथा इतने
ही दोष भी उत्पन्न कर सकता है.
अच्छा गुरु अध्यापक, वकील, जज, पंडित, पत्रकार, प्रकांड विद्वान् या ज्योतिषाचार्य, सुनार, कोपी- किताबों का व्यापारी, आयुर्वेदाचार्य बनाता है. उच्च
कोटी का वृहस्पति धार्मिक चिंतन कराता है. राजनैतिक पद, संतान, शिष्य इसी ग्रह से मिलते है और यदी ये ग्रह कमज़ोर हुआ तो इनमें से कुछ भी नहीं मिलेगा. कमज़ोर वृहस्पति तीर्थ या सत्संग का सुख नहीं लेने देता तथा गुरु बुज़ुर्ग और विद्वान ऐसे व्यक्ती की सदैव अनदेखी करेंगे. अच्छा गुरु उच्च कोटी की सिद्धियां कराता है और निम्न स्थिति का गुरु तंत्र का दुरूपयोग कराता है. जब गुरु खराब हो तो चोटी के स्थान से बाल उड़ जाते
हैं. खराब गुरु वाले लोगों के विरुद्ध अफवाहें उड़ाई जाती हैं. आपकी उपचय प्रक्रिया कमज़ोर होगी यानी anabolic activity कमज़ोर होगी जिसके कारण पाचन तंत्र कमज़ोर होगा और मोटापा बढ़ता जाएगा और मसल्स कमज़ोर होते जाएंगे. जिसके फल स्वरूप मोटापा और दर्द एक साथ बढ़ेगा. यदि बृहस्पत बहुत
कमज़ोर है तो ये दर्द आपको सामान्य जीवन भी नहीं जीने देगा.
आपके शरीर के टीश्यू कमज़ोर होंगे
जिसके वजह से कमर के निचले हिस्से, जांघों में असहनीय दर्द तक हो सकता है.
खराब वृहस्पत मोटापा बढ़ाता जाता है और इस प्रकार के मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति का चलने फिरने तक का मन नहीं करता.
उसे शरीर में बहुत कमजोरी रहती है. उसे आलस्य भी बहुत रहता है जिससे वो जीवन के किसी कार्य में सफल नहीं हो पाता. शरीर चौड़ा होता जाता है और लम्बाई रुकने लगती है. बच्चों को इस प्रकार के वृहस्पत से बचाना बहुत ज़रूरी होता है. ऐसे बच्चों को pituitary
ग्लैंड्स की कमजोरी से शारारिक विकास में बहुत परेशानियां होती है. इस प्रकार के खराब गुरु का असर संतान उत्पन्न करने
की क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है. कमज़ोर गुरु वाली महिला से उत्पन संतान को तो कमजोरी होती है, उस
महिला का शरीर भी संतान उत्पन्न होने
के बाद अजीब से मोटापे और दर्द से घिरता जाता है.
उनका किसी काम में मन नहीं लगता.
ऐसी स्त्रियों को दुबारा मां बनने बहुत कठनाई होती है. खराब गुरु पेट में सूजन की शिकायत देता है. कमजोर या खराब गुरु आध्यात्मिक ऊंचाईयों को पाने
नहीं देता. कुपित गुरु कोलोस्ट्रोल व शुगर संबंधित परेशानियां बढ़ा सकता है.
कुपित गुरु बहुत ज्यादा खाने का आदी बनाता है और इसकी वजह से रोग
कभी नहीं जाते. घोर बीमारी में भी ऐसे लोग परहेज़ नहीं करते जिसके कारण उनकी उम्र पर भी नाकारत्मक प्रभाव पड़ता है. ऐसे लोगो के प्रेम में दिव्यता नहीं होती. ऐसे लोग घर से बाहर षड्यंत्र करते रहते हैं.
उपाय
दान-द्रव्य: पुखराज, सोना, कांसी, चने
की दाल, खांड, घी, पीला कपड़ा, पीला फूल, हल्दी, पुस्तक, घोड़ा, पीला फल दान करना चाहिए.
वृहस्पतिवार व्रत करना चाहिए.
रुद्राभिषेक करना चाहिए.
पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें.
साग का सेवन ज़रूर करें.
गुढ़हल के फूल को देवताओं को अर्पित करें हरे प्याज और शतावरी साग का सेवन करें. इससे शरीर एकदम ठीक रहेगा. पुदीने का सेवन ज़रूर किया करें.
मूली खाएं और खिलाएं भी.
केसर का दान करें.
वृहस्पत के दान का दिन वृहस्पतिवार होता है और सुबह का समय होता है.
गरीबों को दही चावल खिलाने से वृहस्पत
का बुरा फल समाप्त होता है. गुरु और शिक्षकों की सेवा से भी वृहस्पति अच्छा होता है. बासी भोजन करने से बृहस्पत खराब होता है. माता-पिता व बुजुर्गो और पितरों का ध्यान रखने वाले लोगों का वृहस्पत हमेशा बेहतर फल देता है.
जिस दिन गुरु-पुष्य या पुनर्वसु नक्षत्र हो उस दिन नारायण भगवान, गुरु व माता पिता की सेवा ज़रूर करनी चाहिए.
पीपल के वृक्ष की रक्षा करें तथा मंदिर
की सेवा करें. गंदगी ना फैलाए. किसी भी पूजा स्थल के सामने सिर झुकाकर
जाएं. बेहद खास बात बृहस्पत बहुत अच्छा हो तो अपना जीवन धर्म, देश
समाज को दान कर दें अन्यथा ये भौतिक सुख नहीं लेने देगा.
खराब वृहस्पत जीवन साथी के जेवर
बिकवा देता है और जीवन साथी को कोई
जेवर उपहार में देने से वृहस्पत मज़बूत होता है.

वास्तव में गुरु शुभ है या अशुभ, यह लग्न
कुंडली के द्वारा निर्धारित किया जाता है। जिन लग्नों में गुरु लग्न, द्वितीय, पंचम, नवम एवं आय भाव के स्वामी होते हैं, उन्हीं लग्नों के लिए गुरु शुभ माने जाते हैं। अर्थात धनु, मीन, मेष, वृश्चिक,
सिंह एवं कुंभ लग्न के लिए गुरु शुभता लिए होते हैं। अत: इन लग्नों के व्यक्तियों को गुरु को मजबूत करना चाहिए। यदि गुरु इन्हीं भावों में मौजूद हो, पाप दृष्टि से रहित हो तो गुरु योगकारक माने जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों के सोने के गहने, पुखराज आदि पहनना लाभकारी रहता है।
पीले वस्त्र, पीला भोजन आदि शुभता बढ़ाता है। यदि इन लग्न वाले व्यक्तियों की कुंडली में गुरु 6, 8, 12, या 3, 4, 7 के भावों में हो, नीच का हो तो उन्हें गुरु
की मजबूती के उपाय करने चाहिए
अन्यथा जीवन में असफलता का मुँह
देखना पड़ता है। मिथुन एवं कन्या लग्न के लिए गुरु दो केंद्रों के स्वामी (7, 10, एवं 4, 7) होकर केंद्राधिपत्य दोष से
ग्रस्त हो जाते हैं व अपना कारकत्व खोकर निष्क्रिय हो जाते हैं। अत: ये कुंडली को बल नहीं दे पाते अत: उनका सामान्य स्थिति में रहना ही श्रेयस्कर
होता है। यदि नीच के हो, तो इनकी मजबूती का प्रयास करें।
तुला, वृषभ, मकर लग्न के लिए गुरु 3, 6, 8, 12 भावों के स्वामी होकर प्रतिकूल हो जाते हैं अत: इनका कमजोर होना या 6, 8, 12 में होना (स्वराशिस्थ) ही हितकर होता है। यदि अशुभ भावों के स्वामी होकर गुरु लग्न, पंचम, नवम, दशम आदि शुभ भावों में बैठते हैं, तो साधारणत: प्रतिकूल फल ही अनुभव में आते हैं। इन लग्नों में इनकी उच्च स्थिति बुरा प्रभाव
ही देती है। अत: इन लग्न के व्यक्तियों को सोने के गहने और पुखराज नहीं पहनना चाहिए, गुरु की शरण व गुरु की वस्तुओं का दान करना चाहिए। अपने मुख्य ग्रह लग्न स्वामी को मजबूत करना चाहिए और पीले वस्त्र, पीले भोजन से बचना चाहिए।
कर्क लग्न के लिए गुरु मिला- जुला प्रभाव देते हैं। एक ओर ये छठे भाव के
स्वामी हैं, दूसरी ओर नवम का भी आधिपत्य रखते हैं। अत: इनका सामान्य
स्थिति में रहना आवश्यक है। ये व्यक्ति पुखराज पहन सकते हैं। स्वगृही हो तो शुभ फलदाता हो जाते हैं। खराब गुरु क्या करते हैं - यदि गुरु अशुभ भावों के स्वामी होकर शुभ भावों में हो, उच्च राशि में हो या शुभ भावों के स्वामी होकर अशुभ भावों में हो तो पेट की समस्या, लिवर की खराबी, मोटापा, ज्ञान की कमी, मतिभ्रम, विवाह व संतान न होना, शिक्षा में रुकावट आदि समस्याएँ उत्पन्न होती है। इनका गुरु के बलाबल के अनुसार निदान आवश्यक है।
पुखराज हर समस्या का निदान नहीं है :- पुखराज तभी पहना जाए जब गुरु कारक ग्रह हो, यदि तुला-वृषभ लग्न वाले व्यक्ति पुखराज धारण करते हैं तो बनते काम बिगड़ने लगेंगे। यदि राशि धनु या मीन हो,
मगर लग्न तुला या वृषभ हो तो स्वामी ग्रह के बलाबल का विचार कर रत्न धारण करें। विवाह के लिए पुखराज तभी धारण करें, जब गुरु शुभ भावों का कारक
हो या विवाह भाव से संबंध रखें अन्यथा लाभ की जगह हानि ही होती है।

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