ऊपरी बाधाएं—उपरी बाधा के
योग,उपरी बाधा के प्रभाव और
उपरी बाधा निवारण के उपाय…..
ऊपरी बाधाएं—उपरी बाधा के
योग,उपरी बाधा के प्रभाव और उपरी बाधा
निवारण के उपाय…..
हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां
होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं
देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव
डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-
व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं।
इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन
ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं।
भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है
जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो
उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन
पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं।
इस लेख में ऊपरी बाधाओं के कुछ ऐसे ही
प्रमुख योगों तथा उनसे बचाव के उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है—–
—-लग्न में राहु तथा चंद्र और त्रिकोण में मंगल व शनि हों, तो
जातक को प्रेत प्रदत्त पीड़ा होती है।
—–चंद्र पाप ग्रह से दृष्ट हो, शनि सप्तम में हो तथा कोई शुभ
ग्रह चर राशि में हो, तो भूत से पीड़ा होती
है।
—–शनि तथा राहु लग्न में हो, तो जातक को भूत सताता है।
—-लग्नेश या चंद्र से युक्त राहु लग्न में हो, तो प्रेत योग होता
है।
——यदि दशम भाव का स्वामी आठवें या एकादश भाव में
हो और संबंधित भाव के स्वामी से दृष्ट हो, तो उस
स्थिति में भी प्रेत योग होता है।
—– अगर जन्म कुण्डली के पहले भाव में चन्द्र के
साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों।
जब चन्द्र या राहू की दशा आएगी तब
इस योग के होने पर जातक पर भूत-प्रेत या उपरी
हवा का प्रकोप शीघ्र होता है।
—यदि कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई
भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग
भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा
आदि से परेशान रहते हैं।
—-यदि किसी की कुण्डली में
शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी
ऊपरी बाधा तंग करती है।
उक्त योगों के जातकों के आचरण और व्यवहार में बदलाव आने
लगता है।
ऐसे में उन योगों के दुष्प्रभावों से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने
चाहिए—–
इश्वर न करे किसी को ऐसे परेशानी आये
फिर भी यहाँ बता दे रहा हूँ की जब
व्यक्ति दूध पीकर या सफेद मिठाई खाकर या इतर लगाकर
किसी चौराहे को अपने से दाये पार करता है ,तब
ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती
हैं।
चौराहे पार जाते समय हमेशा अपने दाहिने दिशा से पार करे . क्योंकि
उपरी हवा हमेशा उलटे कार्य करने पर
ही परेशान करती है ,
इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता
है। क्यों की जब वह रजस्वला होती
है, तब उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु
व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध
होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक
है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं
के प्रकोप की संभावना रहती है।
रविवार,मंगलवार,शनिवार या अमावश्य तिथि को उपरी बाधा
आने की संभावनाएं प्रबल होती हैं।
( किसी अनजान या निर्जन स्थान में मल-मूत्र करने से
, वहां पर थूकने से भी ऐसे परेशानी आ
जाती है अतः ऐसे स्थान पर कुछ करने से पहले मन
ही मन में माफ़ी जरुर मांगे )
यह सिर्फ उपरोक्त ग्रह की दशा-अर्न्तदशा में
ही या जब ग्रह गोचर में आता है तो
परेशानी आती है, यदि
कुण्डली में इस प्रकार के योग हों तो इनसे बचने के
लिए योगकारक ग्रहों के उपाय कर सकते हैं।
किसी तान्त्रिक, मौलवी या ओझा के पास जाने
से भी कुछ नहीं होगा .
संकट निवारण हेतु पान, पुष्प, फल, हल्दी, पायस
एवं इलाइची के हवन से दुर्गासप्तशती के
बारहवें अध्याय के तेरहवें श्लोक सर्वाबाधा……..न संशयः मंत्र से
संपुटित नवचंडी प्रयोग कराएं।
दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के चौबीसवें
श्लोक का पाठ करते हुए पलाश की समिधा से घृत और
सीलाभिष की आहुति दें, कष्टों से रक्षा
होगी।
शक्ति तथा सफलता की प्राप्ति हेतुग्यारहवें अध्याय
के ग्यारहवें श्लोक सृष्टि स्थिति विनाशानां……का उच्चारण करते हुए
घी की आहुतियां दें।
शत्रु शमन हेतु सरसों, काली मिर्च,
दालचीनी तथा जायफल की
हवि देकर अध्याय के उनचालीसवें श्लोक का संपुटित
प्रयोग तथा हवन कराएं।
कुछ अन्य उपाय—-
महामृत्युंजय मंत्र का विधिवत् अनुष्ठान कराएं। जप के पश्चात्
हवन अवश्य कराएं।
महाकाली या भद्रकाली माता के मंत्रानुष्ठान
कराएं और कार्यस्थल या घर पर हवन कराएं।
गुग्गुल का धूप देते हुए हनुमान चालीस तथा बजरंग
बाण का पाठ करें।
उग्र देवी या देवता के मंदिर में नियमित श्रमदान करें,
सेवाएं दें तथा साफ सफाई करें।
यदि घर के छोटे बच्चे पीड़ित हों, तो मोर पंख को पूरा
जलाकर उसकी राख बना लें और उस राख से बच्चे को
नियमित रूप से तिलक लगाएं तथा थोड़ी-सी
राख चटा दें।
घर की महिलाएं यदि किसी समस्या या बाधा
से पीड़ित हों, तो निम्नलिखित प्रयोग करें—–
सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ
ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर
काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी
देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां
दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ
मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर
भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें
और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ
धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास
सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी
का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित
महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता
की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने
के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो
जाएगी।
व्यापार स्थल पर किसी भी प्रकार
की समस्या हो, तो वहां श्वेतार्क गणपति तथा
एकाक्षी श्रीफल की स्थापना
करें। फिर नियमित रूप से धूप, दीप आदि से पूजा करें
तथा सप्ताह में एक बार मिठाई का भोग लगाकर प्रसाद यथासंभव
अधिक से अधिक लोगों को बांटें। भोग नित्य प्रति भी लगा
सकते हैं।
कामण प्रयोगों से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए
दक्षिणावर्ती शंखों के जोड़े की स्थापना करें
तथा इनमें जल भर कर सर्वत्र छिड़कते रहें।
हानि से बचाव तथा लाभ एवं बरकत के लिए गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम,
सिंदूर, कपूर, घी, चीनी और
शहद के मिश्रण से अष्टगंध बनाकर उसकी
स्याही से नीचे चित्रित
पंचदशी यंत्र
बनाएं तथा देवी के १०८ नामों को लिखकर पाठ करें।
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बाधा मुक्ति के लिए : किसी भी प्रकार
की बाधा से मुक्ति के लिए मत्स्य यंत्र से युक्त
बाधामुक्ति यंत्र की स्थापना कर उसका नियमित रूप से
पूजन-दर्शन करें।
अकारण परेशान करने वाले व्यक्ति से शीघ्र छुटकारा पाने
के लिए :
यदि कोई व्यक्ति बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा
हो, तो शौच क्रिया काल में शौचालय में बैठे-
बैठे वहीं के पानी से उस व्यक्ति का नाम
लिखें और बाहर निकलने से पूर्व जहां पानी से नाम
लिखा था, उस स्थान पर अपने बाएं पैर से तीन बार ठोकर
मारें। ध्यान रहे, यह प्रयोग स्वार्थवश न करें, अन्यथा हानि हो
सकती है।
रुद्राक्ष या स्फटिक की माला के प्रयोगों से प्रतिकूल
परिस्थितियों का शमन होता है। इसके अतिरिक्त स्फटिक
की माला पहनने से तनाव दूर होता है।
ऊपरी हवा पहचान और निदान…..
प्रायः सभी धर्मग्रंथों में ऊपरी हवाओं,
नजर दोषों आदि का उल्लेख है। कुछ ग्रंथों में इन्हें
बुरी आत्मा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत
और जिन्न।
यहां ज्योतिष के आधार पर नजर दोष का विश्लेषण प्रस्तुत है—–
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार गुरु पितृदोष, शनि यमदोष, चंद्र व शुक्र
जल देवी दोष, राहु सर्प व प्रेत दोष, मंगल
शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का
कारक होता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के
कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यक्ति के लग्न
(शरीर), गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा
द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तो उस पर
ऊपरी हवा की संभावना होती
है।
इन लक्षण से जाने नजर दोष….
नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति का शरीर
कंपकंपाता रहता है। वह अक्सर ज्वर, मिरगी आदि
से ग्रस्त रहता है।
कब और किन स्थितियों में डालती हैं ऊपरी
हवाएं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव?
जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर
किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी
हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं।
गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है,
इसीलिए ऐसी जगहों पर जाने वाले लोगों को
ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का
प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं,
बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है।
विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय
होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के १२ बजे
दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।
दूध व सफेद मिठाई चंद्र के द्योतक हैं। चौराहा राहु का द्योतक है।
चंद्र राहु का शत्रु है। अतः जब कोई व्यक्ति उक्त
चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर
ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना
रहती है।
कोई स्त्री जब रजस्वला होती है, तब
उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के
शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध
होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक
है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं
के प्रकोप की संभावना रहती है।
कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और
चंद्र जल स्थान का कारक है। चंद्र राहु का शत्रु है,
इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का
प्रभाव होता है।
जब किसी व्यक्ति की कुंडली
के किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरु, चंद्र व मंगल का
प्रभाव होता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर
आते हैं। ये सभी ग्रह शनि व राहु के शत्रु हैं, अतः
मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएं व्यक्ति को परेशान
कर सकती हैं।
दिन व रात के १२ बजे सूर्य व चंद्र अपने पूर्ण बल
की अवस्था में होते हैं। शनि व राहु इनके शत्रु हैं,
अतः इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु
की द्योतक है। अतः जब राहु क्षेत्र में चंद्र या सूर्य
को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने
की संभावना प्रबल होती है।
मनुष्य की दायीं आंख पर सूर्य का और
बायीं पर चंद्र का नियंत्रण होता है। इसलिए
ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आंखों पर
ही पड़ता है।
यहां ऊपरी हवाओं से संबद्ध ग्रहों, भावों आदि का
विश्लेषण प्रस्तुत है—-
राहु-केतु : जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, शनिवत राहु
ऊपरी हवाओं का कारक है। यह प्रेत बाधा का सबसे
प्रमुख कारक है। इस ग्रह का प्रभाव जब भी मन,
शरीर, ज्ञान, धर्म, आत्मा आदि के भावों पर होता है,
तो ऊपरी हवाएं सक्रिय होती हैं।
शनि : इसे भी राहु के समान माना गया है। यह
भी उक्त भावों से संबंध बनाकर भूत-प्रेत
पीड़ा देता है।
चंद्र : मन पर जब पाप ग्रहों राहु और शनि का दूषित प्रभाव होता
है और अशुभ भाव स्थित चंद्र बलहीन होता है,
तब व्यक्ति भूत-प्रेत पीड़ा से ग्रस्त होता है।
गुरु : गुरु सात्विक ग्रह है। शनि, राहु या केतु से संबंध होने पर
यह दुर्बल हो जाता है। इसकी दुर्बल स्थिति में
ऊपरी हवाएं जातक पर अपना प्रभाव
डालती हैं।
लग्न : यह जातक के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।
इसका संबंध ऊपरी हवाओं के कारक राहु, शनि या केतु
से हो या इस पर मंगल का पाप प्रभाव प्रबल हो, तो व्यक्ति के
ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना
बनती है।
पंचम : पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित कर्मों का विचार किया जाता
है। इस भाव पर जब ऊपरी हवाओं के कारक पाप
ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, तो इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति के
पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों में कमी है। अच्छे कर्म
अल्प हों, तो प्रेत बाधा योग बनता है।
अष्टम : इस भाव को गूढ़ विद्याओं व आयु तथा मृत्यु का भाव
भी कहते हैं। इसमें चंद्र और पापग्रह या
ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह का संबंध प्रेत बाधा को
जन्म देता है।
नवम : यह धर्म भाव है। पूर्व जन्म में पुण्य कर्मों में
कमी रही हो, तो यह भाव दुर्बल होता
है।
राशियां : जन्म कुंडली में द्विस्वभाव राशियों मिथुन, कन्या
और मीन पर वायु तत्व ग्रहों का प्रभाव हो, तो प्रे्रत
बाधा होती है।
वार : शनिवार, मंगलवार, रविवार को प्रेत बाधा की
संभावनाएं प्रबल होती हैं।
तिथि : रिक्ता तिथि एवं अमावस्या प्रेत बाधा को जन्म देती
है।
नक्षत्र : वायु संज्ञक नक्षत्र प्रेत बाधा के कारक होते हैं।
योग : विष्कुंभ, व्याघात, ऐंद्र, व्यतिपात, शूल आदि योग प्रेत बाधा को
जन्म देते हैं।
करण : विष्टि, किस्तुन और नाग करणों के कारण व्यक्ति प्रेत बाधा
से ग्रस्त होता है।
दशाएं : मुख्यतः शनि, राहु, अष्टमेश व राहु तथा केतु से पूर्णतः
प्रभावित ग्रहों की दशांतर्दशा में व्यक्ति के भूत-प्रेत
बाधाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती
है।
इस युति से जाने दोष…..
किसी स्त्री के सप्तम भाव में शनि, मंगल
और राहु या केतु की युति हो, तो उसके पिशाच
पीड़ा से ग्रस्त होने की संभावना
रहती है।
गुरु नीच राशि अथवा नीच राशि के नवांश में
हो, या राहु से युत हो और उस पर पाप ग्रहों की
दृष्टि हो, तो जातक की चांडाल प्रवृत्ति
होती है।
पंचम भाव में शनि का संबंध बने तो व्यक्ति प्रेत एवं क्षुद्र देवियों
की भक्ति करता है।
ऊपरी हवाओं के कुछ अन्य मुख्य
ज्योतिषीय योग—–
यदि लग्न, पंचम, षष्ठ, अष्टम या नवम भाव पर राहु, केतु, शनि,
मंगल, क्षीण चंद्र आदि का प्रभाव हो, तो जातक के
ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना
रहती है। यदि उक्त ग्रहों का परस्पर संबंध हो, तो
जातक प्रेत आदि से पीड़ित हो सकता है।
यदि पंचम भाव में सूर्य और शनि की युति हो, सप्तम में
क्षीण चंद्र हो तथा द्वादश में गुरु हो, तो इस स्थिति में
भी व्यक्ति प्रेत बाधा का शिकार होता है।
यदि लग्न पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो, लग्न निर्बल
हो, लग्नेश पाप स्थान में हो अथवा राहु या केतु से युत हो, तो
जातक जादू-टोने से पीड़ित होता है।
लग्न में राहु के साथ चंद्र हो तथा त्रिकोण में मंगल, शनि अथवा
कोई अन्य क्रूर ग्रह हो, तो जातक भूत-प्रेत आदि से
पीड़ित होता है।
यदि षष्ठेश लग्न में हो, लग्न निर्बल हो और उस पर मंगल
की दृष्टि हो, तो जातक जादू-टोने से पीड़ित
होता है। यदि लग्न पर किसी अन्य शुभ ग्रह
की दृष्टि न हो, तो जादू-टोने से पीड़ित
होने की संभावना प्रबल होती है। षष्ठेश
के सप्तम या दशम में स्थित होने पर भी जातक जादू-
टोने से पीड़ित हो सकता है।
यदि लग्न में राहु, पंचम में शनि तथा अष्टम में गुरु हो, तो जातक
प्रेत शाप से पीड़ित होता है।
ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्ति के सरल उपाय—-
ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु शास्त्रों में अनेक उपाय
बताए गए हैं। अथर्ववेद में इस हेतु कई मंत्रों व स्तुतियों का
उल्लेख है। आयुर्वेद में भी इन हवाओं से मुक्ति के
उपायों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यहां कुछ प्रमुख सरल
एवं प्रभावशाली उपायों का विवरण प्रस्तुत है—–
ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान
चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा
हवन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल
मिर्ची जलानी चाहिए।
रोज सूर्यास्त के समय एक साफ-सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो
कच्चा दूध लेकर उसमें शुद्ध शहद की नौ बूंदें मिला लें।
फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान की
छत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने,
गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए
द्वार तक आएं और बचे हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें।
क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरण करते रहें। यह क्रिया
इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर
प्रभावी ऊपरी हवाएं दूर हो
जाएंगी।
रविवार को बांह पर काले धतूरे की जड़ बांधें,
ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।
लहसुन के रस में हींग घोलकर आंख में डालने या
सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को ऊपरी हवाओं
से मुक्ति मिल जाती है।
ऊपरी बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नोक्त मंत्र का
यथासंभव जप करना चाहिए।
इस मंत्र का 11 बार जाप कर के यह प्रयोग करे –
मंत्र :- ॐ नमो भगवते नारायणाय मम शरीर
रक्ष्याय कुरु कुरु स्वाहा.
रविवार,मंगलवार या शनिवार को दाहिने बांह पर काले धतूरे
की जड़ और भंग का बीज साथ में अपराजिता
के बीज बांधें ऊपरी हवाओं से मुक्ति
मिलेगी।
उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें
धूनी की विशिष्ट वस्तुएं डालें और उससे
उत्पन्न होने वाला धुआं पीड़ित व्यक्ति को सुंघाएं।
यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति से करवाएं जो
अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।
प्रातः काल बीज मंत्र ÷क्लीं’ का उच्चारण
करते हुए काली मिर्च के नौ दाने सिर पर से घुमाकर
दक्षिण दिशा की ओर फेंक दें, ऊपरी बला
दूर हो जाएगी।
ऐसे समय में सिर्फ हनुमान जी की
आराधना और बजरंग बाण का पथ 45 दिनों तक नित्य करें।
किसी भी शुक्लपक्ष के मंगलवार से
प्रारम्भ कर सकते हैं,
रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपड़े की
छोटी थैली में तुलसी के आठ
पत्ते, आठ काली मिर्च और सहदेई की
जड़ बांधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा से मुक्ति
मिलेगी।
निम्नोक्त मंत्र का 108 बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर
लें और उससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर
मालिश करें, व्यकित पीड़ामुक्त हो जाएगा।
मंत्र : ॐ नमोह काली कपाला देहि
देहिस्वाहा ।
ऊपरी हवाओं के शक्तिषाली होने
की स्थिति में शाबर मंत्रों का जप एवं प्रयोग किया जा
सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मंत्रों का
दीपावली की रात को अथवा
होलिका दहन की रात को जलती हुई
होली के सामने या फिर श्मषान में 108 बार जप कर
इन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए।
यहां यह उल्लेख कर देना आवष्यक है कि इन्हें सिद्ध करने
के इच्छुक साधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि
हो सकती है।
निम्न मंत्र से थोड़ा-सा जीरा 07 बार अभिमंत्रित कर
रोगी के शरीर से स्पर्श कराएं और उसे
अग्नि में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बैठाना चाहिए कि
उसका धूंआ उसके मुख के सामने आये। इस प्रयोग से भूत-प्रेत
बाधा की निवृत्ति होती है।
मंत्र : जीरा जीरा महाजीरा
जिरिया चलाय। जिरिया की शक्ति से फलानी
चलि जाय॥ जीये तो रमटले मोहे तो मशान टले। हमरे
जीरा मंत्र से अमुख अंग भूत चले॥ जाय हुक्म
पाडुआ पीर की दोहाई॥
एक मुट्ठी धूल को निम्नोक्त मंत्र से ३ बार अभिमंत्रित
करें और नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति पर फेंकें, व्यक्ति को दोष से
मुक्ति मिलेगी।
मंत्र : तह कुठठ इलाही का बान। कूडूम
की पत्ती चिरावन। भाग भाग अमुक अंक से
भूत। मारुं धुलावन कृष्ण वरपूत। आज्ञा कामरु कामाख्या। हारि
दासीचण्डदोहाई।
थोड़ी सी हल्दी को ३ बार
निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके अग्नि में इस तरह छोड़ें कि
उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए। इसे
हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।
हल्दी गीरी बाण बाण को लिया
हाथ उठाय ।
हल्दी बाण से नीलगिरी
पहाड़ थहराय ॥
यह सब देख बोलत बीर हनुमान ।
डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान ॥
आज्ञा कामरू कामाक्षा माई ।
आज्ञा हाडि की चंडी की
दोहाई ॥
जौ, तिल, सफेद सरसों, गेहूं, चावल, मूंग, चना, कुष,
शमी, आम्र, डुंबरक पत्ते और अषोक, धतूरे, दूर्वा,
आक व ओगां की जड़ को मिला लें और उसमें दूध,
घी, मधु और गोमूत्र मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें।
फिर संध्या काल में हवन करें और निम्न मंत्रों का १०८ बार जप कर
इस मिश्रण से १०८ आहुतियां दें।
मंत्र : ओम नमः भवे भास्कराय आस्माक अमुक सर्व ग्रहणं
पीड़ा नाशनं कुरु-कुरु स्वाहा।
ऊपरी हवाओं से बचाव के कुछ अनुभूत प्रयोग——
लहसुन के तेल में हींग मिलाकर दो बूंद नाक में डालने,
नीम के पत्ते, हींग, सरसों, बच व सांप
की केंचुली की
धूनी देने तथा रविवार को काले धतूरे की जड़
हाथ में बांधने से ऊपरी बाधा दूर होती है।
इसके अतिरिक्त गंगाजल में तुलसी के पत्ते व
काली मिर्च पीसकर घर में छिड़कने,
गायत्री मंत्र के (सुबह की अपेक्षा संध्या
समय किया गया गायत्री मंत्र का जप अधिक
लाभकारी होता है) जप, हनुमान जी
की नियमित रूप से उपासना, राम रक्षा कवच या रामवचन
कवच के पाठ से नजर दोष से शीघ्र मुक्ति
मिलती है। साथ ही, पेरीडॉट,
संग सुलेमानी, क्राइसो लाइट, कार्नेलियन जेट,
साइट्रीन, क्राइसो प्रेज जैसे रत्न धारण करने से
भी लाभ मिलता है।
क्या होता हें उतारा करना..???
उतारा शब्द का तात्पर्य व्यक्ति विशेष पर हावी
बुरी हवा अथवा बुरी आत्मा, नजर आदि के
प्रभाव को उतारने से है। उतारे आमतौर पर मिठाइयों द्वारा किए जाते
हैं, क्योंकि मिठाइयों की ओर ये श्ीाघ्र
आकर्षित होते हैं।
उतारा करने की विधि :—-
उतारे की वस्तु सीधे हाथ में लेकर नजर
दोष से पीड़ित व्यक्ति के सिर से पैर की
ओर सात अथवा ग्यारह बार घुमाई जाती है। इससे वह
बुरी आत्मा उस वस्तु में आ जाती है।
उतारा की क्रिया करने के बाद वह वस्तु
किसी चौराहे, निर्जन स्थान या पीपल के
नीचे रख दी जाती है और
व्यक्ति ठीक हो जाता है।
किस दिन किस मिठाई से उतारा करना चाहिए, इसका विवरण यहां
प्रस्तुत है—–
रविवार को तबक अथवा सूखे फलयुक्त बर्फी से उतारा
करना चाहिए।
सोमवार को बर्फी से उतारा करके बर्फी गाय
को खिला दें।
मंगलवार को मोती चूर के लड्डू से उतार कर लड्डू
कुत्ते को खिला दें।
बुधवार को इमरती से उतारा करें व उसे कुत्ते को खिला दें।
गुरुवार को सायं काल एक दोने में अथवा कागज पर पांच मिठाइयां रखकर
उतारा करें। उतारे के बाद उसमें छोटी इलायची
रखें व धूपबत्ती जलाकर किसी
पीपल के वृक्ष के नीचे पश्चिम दिशा में
रखकर घर वापस जाएं। ध्यान रहे, वापस जाते समय
पीछे मुड़कर न देखें और घर आकर हाथ और पैर
धोकर व कुल्ला करके ही अन्य कार्य करें।
शुक्रवार को मोती चूर के लड्डू से उतारा कर लड्डू
कुत्ते को खिला दें या किसी चौराहे पर रख दें।
शनिवार को उतारा करना हो तो इमरती या बूंदी
का लड्डू प्रयोग में लाएं व उतारे के बाद उसे कुत्ते को खिला दें।
इसके अतिरिक्त रविवार को सहदेई की जड़,
तुलसी के आठ पत्ते और आठ काली मिर्च
किसी कपड़े में बांधकर काले धागे से गले में बांधने से
ऊपरी हवाएं सताना बंद कर देती हैं।
नजर उतारने अथवा उतारा आदि करने के लिए कपूर, बूंदी
का लड्डू, इमरती, बर्फी, कड़वे तेल
की रूई की बाती, जायफल,
उबले चावल, बूरा, राई, नमक, काली सरसों,
पीली सरसों मेहंदी, काले तिल,
सिंदूर, रोली, हनुमान जी को चढ़ाए जाने वाले
सिंदूर, नींबू, उबले अंडे, गुग्गुल, शराब,
दही, फल, फूल, मिठाइयों, लाल मिर्च, झाडू, मोर छाल,
लौंग, नीम के पत्तों की धूनी
आदि का प्रयोग किया जाता है।
स्थायी व दीर्घकालीन लाभ के
लिए संध्या के समय गायत्री मंत्र का जप और जप के
दशांश का हवन करना चाहिए। हनुमान जी
की नियमित रूप से उपासना, भगवान शिव की
उपासना व उनके मूल मंत्र का जप, महामृत्युंजय मंत्र का जप, मां
दुर्गा और मां काली की उपासना करें। स्नान
के पश्चात् तांबे के लोटे से सूर्य को जल का अर्य दें।
पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा स्वयं
करें अथवा किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से
सुनें। संध्या के समय घर में दीपक जलाएं, प्रतिदिन
गंगाजल छिड़कें और नियमित रूप से गुग्गुल की
धूनी दें। प्रतिदिन शुद्ध आसन पर बैठकर सुंदर कांड का
पाठ करें। किसी के द्वारा दिया गया सेव व केला न खाएं।
रात्रि बारह से चार बजे के बीच कभी स्नान
न करें।
बीमारी से मुक्ति के लिए नीबू
से उतारा करके उसमें एक सुई आर-पार चुभो कर पूजा स्थल पर रख
दें और सूखने पर फेंक दें। यदि रोग फिर भी दूर न हो,
तो रोगी की चारपाई से एक बाण निकालकर
रोगी के सिर से पैर तक छुआते हुए उसे सरसों के तेल
में अच्छी तरह भिगोकर बराबर कर लें व लटकाकर जला
दें और फिर राख पानी में बहा दें।
उतारा आदि करने के पश्चात भलीभांति कुल्ला अवश्य
करें।
इस तरह, किसी व्यक्ति पर पड़ने वाली
किसी अन्य व्यक्ति की नजर उसके
जीवन को तबाह कर सकती है। नजर
दोष का उक्त लक्षण दिखते ही ऊपर वर्णित सरल व
सहज उपायों का प्रयोग कर उसे दोषमुक्त किया जा सकता है।