महादशा में गोचर प्रभाव: ---------------
------------ कुण्डली में फलादेश करते समय
सटीक फलादेश के लिए महादशा और अन्तर्दशा के साथ
ग्रहों के गोचर पर दृष्टि रखना आवश्यक होता है .ऐसा इसलिए
होता है कि महादशा और अन्तर्दशा में गोचर में ग्रह क्या परिणाम
दे रहे हैं
इसकी जानकारी नहीं हो तो फलादेश
वास्तविकता से पृथक हो सकता है.
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार
नौ ग्रहों की अपनी अपनी महादशा होती है
और सभी मनुष्य को अपने जीवन में सिर्फ
सात महादशाओं को भोगना पड़ता है .
सभी ग्रहों की दशाओं का एक निश्चित समय
होता है जैसे सूर्य 6 वर्ष, चन्द्र 10 वर्ष, मंगल 7 वर्ष, राहु
18 वर्ष, गुरू-19 वर्ष, बुध, 17 वर्ष, केतु 7 वर्ष और शुक्र 20
वर्ष.यह विंशोत्तरी दशा के अन्तर्गत
ग्रहों की कालावधि है.व्यक्ति का जन्म जिस महादशा में
होता है उससे अगले क्रम में महादशाओं को गिना जाता है.षष्टम,
अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी के साथ जो ग्रह
उपस्थित होते हैं एवं जो ग्रह कुण्डली में इन भावों में
वर्तमान होते हैं उनकी दशा अन्तर्दशा में शुभ फल
नही मिलता है.जो ग्रह केन्द एवं त्रिकोण स्थान में
होते हैं उनकी महादशा एवं अन्तर्दशा में शुभ फल
प्राप्त होता है. महादशा एवं अन्तर्दशा में फल के संदर्भ में
ज्योतिषशास्त्र यह भी कहता है कि जब शुभ
ग्रहों की महादशा चलती है उस समय
शुभ ग्रहों की अन्तर्दशा में शुभ परिणाम मिलता है
जबकि अशुभ ग्रह की अन्तर्दशा अशुभ फल
देती है.पाप ग्रह की महादशा के दौरान पाप
ग्रह की अन्तर्दशा शुभ फलदायक
होती है साथ ही इसमें शुभ ग्रह
की अन्तर्दशा भी शुभ फल
देती है. महादशा और अन्तर्दशा में ग्रह लग्न के
मित्र हों तो मिलने वाला परिणाम शुभ होता है. इसके
विपरीत जिन ग्रहों की महादशा और
अन्तर्दशा चल रही है वह अगर लग्नेश के शत्रु
ग्रह हैं तो वह आपको अशुभ फल देंगे.महादशा और
अन्तर्दशा के स्वामी में से एक मित्र हों और दूसरे शत्रु
तो परिणाम मिलाजुला रहेगा यानी यह महादशा आपके लिए
सम रहेगा न तो इसमे विशेष शुभ फल मिलेंगे और न
ही अशुभ.गोचर में जब लग्नेश के शत्रु
ग्रहों की महादशा और
अन्तर्दशा होती है तब व्यक्ति का स्वास्थ्य प्रभावित
होता है.इस स्थिति के होने पर रोजी रोजगार एवं
नौकरी में अथल पुथल मच जाती
Wednesday, March 8, 2017
महादशा में गोचर प्रभाव
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