Wednesday, August 29, 2018

बंधी दुकान किसे खोले

बंधी दूकान कैसे खोलें?
******************
कभी-कभी देखने में आता है कि खूब चलती हुईदूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है ।अतः इससे बचने के लिए निम्नलिखितप्रयोग करने चाहिए -

**दुकान में लोबान की धूप लगानी चाहिए ।

**शनिवार के दिन दुकान के मुख्य द्वार परबेदाग नींबू एवं सात हरी मिर्चें लटकानी चाहिए ।

**नागदमन के पौधे की जड़ लाकर इसे दुकान केबाहर लगा देना चाहिए । इससे बँधी हुई दुकान खुल जाती है ।

**दुकान के गल्ले में शुभ-मुहूर्त में श्री-फललाल वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए ।

**प्रतिदिन संध्या के समय दुकान में मातालक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए ।

**दुकान अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान की दीवारपर शूकर-दंत इस प्रकार लगाना चाहिए कि वह दिखाई देता रहे ।

**व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा दुकान को नजर सेबचाने के लिए काले-घोड़े की नाल को मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर ठोकना चाहिए ।

**दुकान में मोरपंख की झाडू लेकर निम्नलिखितमंत्र के द्वारा सभी दिशाओंमेंझाड़ू को घुमाकर वस्तुओं को साफ करना चाहिए । मंत्रः-“ॐह्रीं ह्रींक्रीं”

**शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सम्मुखमोगरे अथवा चमेली के पुष्प अर्पित करने चाहिए ।

**यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान में चूहेआदि जानवरों के बिल हों, तोउन्हें बंद करवाकर बुधवार के दिन गणपति को प्रसाद चढ़ाना चाहिए ।

**सोमवार के दिन अशोक वृक्ष के अखंडित पत्ते लाकर स्वच्छ जल से धोकरदुकानअथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्यद्वार पर टांगना चाहिए । सूती धागे कोपीसी हल्दी में रंगकर उसमें अशोक के पत्तों को बाँधकर लटकाना चाहिए ।

**यदि आपको यह शंका हो कि किसी व्यक्ति नेआपके व्यवसाय को बाँध दिया हैयाउसकी नजर आपकी दुकान को लग गई है, तो उस व्यक्तिका नाम काली स्याही सेभोज-पत्रपर लिखकर पीपल वृक्ष के पास भूमि खोदकर दबा देना चाहिए तथा इसप्रयोग को करते समय किसी अन्य व्यक्तिको नहीं बताना चाहिए । यदि पीपलवृक्षनिर्जन स्थान में हो, तो अधिक अनुकूलता रहेगी ।

**कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर में रंगकरअपनी दुकान पर बाँध देना चाहिए ।

**हुदहुद पक्षी की कलंगी रविवार के दिनप्रातःकाल दुकान पर लाकर रखने सेव्यवसाय को लगी नजर समाप्त होती है और व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धिहोतीहै ।

**कभी अचानक ही व्यवसाय में स्थिरता आ गई हो, तो निम्नलिखितमंत्र का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करने से व्यवसाय में अपेक्षा केअनुरुपवृद्धि होती है ।
मंत्रः-“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्वरीअन्नपूर्णा स्वाहा ।”

**यदि कोई शत्रु आपसी जलन या द्वेष, व्यापारिकप्रतिस्पर्धाके कारण आप पर तंत्र-मंत्र का कोई प्रयोग करके आपके व्यवसायमें बाधा डाल रहा हो, तो ईसे में नीचे लिखे सरल शाबर मंत्र का प्रयोग करकेआप अपनी तथा अपने व्यवसाय की रक्षा करसकते हैं । सर्वप्रथम इस मंत्र की दसमाला जपकर हवन करें । मंत्र सिद्ध हो जाने पर रविवार या मंगलवार की रातइसका प्रयोग करें ।
मंत्रः-“उलटतवेद पलटत काया, जाओ बच्चा तुम्हें गुरु ने बुलाया, सत नाम आदेश गुरु का ।”

रविवार या मंगलवार की रात को11 बजे के बाद घर से निकलकर चौराहे की ओरजाएँ, अपने साथ थोड़ी-सी शराब लेते जाएँ ।मार्ग में सात कंकड़ उठाते जाएँ ।चौराहे पर पहुँचकर एक कंकड़ पूर्व दिशा की ओर फेंकते हुए उपर्युक्तमंत्रपढ़ें, फिरएक दक्षिण, फिर क्रमशः पश्चिम, उत्तर, ऊपर, नीचेतथा सातवींकंकड़ चौराहे केबीच रखकर उस शराब चढ़ा दें । यह सब करते समय निरन्तर उक्तमन्त्र का उच्चारण करते रहें । फिर पीछे पलट करसीधे बिना किसी से बोले औरबिनापीछे मुड़कर देखे अपने घर वापस आ जाएँ ।
घर पर पहले से द्वार केबाहर पानी रखे रहें । उसी पानी सेहाथ-पैर धोकर कुछ जल अपने ऊपर छिड़क कर, तबअन्दर जाएँ । एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि आते-जाते समय आपके घर काकोई सदस्य आपके सामने न पड़े और चौराहेसे लौटते समय यदि आपको कोई बुलाए याकोई आवाज सुनाई दे, तब भी मुड़कर नदेखें ।

**यदि आपके लाखप्रयत्नों के उपरान्त भी आपके सामान की बिक्री निरन्तर घटती जा रहीहो, तोबिक्री में वृद्धि हेतु किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के गुरुवार के दिनसेनिम्नलिखित क्रिया प्रारम्भ करनी चाहिए -
व्यापार स्थल अथवा दुकान केमुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल सेधोकर स्वच्छ कर लें । इसके उपरान्तहल्दी से स्वस्तिक बनाकर उस पर चने की दाल और गुड़ थोड़ी मात्रा मेंरख दें। इसके बाद आप उस स्वस्तिक को बार-बारनहीं देखें । इस प्रकार प्रत्येकगुरुवार को यह क्रिया सम्पन्न करने से बिक्री में अवश्य ही वृद्धिहोती है ।इस प्रक्रिया कोकम-से-कम11 गुरुवार तक अवश्य करें ।

दूकान की बिक्री अधिक हो
*********************

**“श्री शुक्ले महा-शुक्ले कमल-दलनिवासे श्री महालक्ष्मी नमो नमः। लक्ष्मी माई, सत्त की सवाई। आओ, चेतो, करोभलाई। ना करो, तो सात समुद्रों की दुहाई। ऋद्धि-सिद्धि खावोगी, तो नौ नाथचौरासी सिद्धों की दुहाई।”
विधि- घर से नहा-धोकर दुकान पर जाकरअगर-बत्ती जलाकर उसी से लक्ष्मी जी के चित्र की आरती करके, गद्दी पर बैठकर, १ माला उक्त मन्त्र की जपकर दुकान का लेन-देन प्रारम्भ करें। आशातीत लाभहोगा।

**“भँवरवीर, तू चेला मेरा। खोल दुकान कहा कर मेरा।
उठे जो डण्डी बिके जो माल, भँवरवीर सोखे नहिं जाए।।”
विधि-१॰ किसीशुभ रविवार से उक्त मन्त्र की १० माला प्रतिदिन के नियम से दसदिनों में १०० माला जप कर लें। केवल रविवार के ही दिन इस मन्त्र का प्रयोगकिया जाता है। प्रातः स्नान करके दुकान पर जाएँ। एक हाथ में थोड़े-से कालेउड़द ले लें। फिर ११ बार मन्त्र पढ़कर, उन पर फूँक मारकर दुकान में चारोंओर बिखेर दें। सोमवार को प्रातः उन उड़दों को समेट कर किसी चौराहे पर, बिनाकिसी के टोके, डाल आएँ। इस प्रकार चार रविवार तक लगातार, बिना नागा किए, यह प्रयोग करें।

**इसके साथ यन्त्र का भी निर्माण किया जाता है।इसे लाल स्याही अथवा लाल चन्दन से लिखना है। बीच में सम्बन्धित व्यक्ति कानाम लिखें। तिल्ली के तेल में बत्ती बनाकर दीपक जलाए। १०८ बार मन्त्र जपनेतक यह दीपक जलता रहे। रविवार के दिन काले उड़द के दानों पर सिन्दूर लगाकरउक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। फिर उन्हें दूकान में बिखेरदें।🙏

📿

Tuesday, August 14, 2018

रावण साधना

रावण एक महासिद्ध तांत्रिक भी था. वह महामाया और भगवान शिव का परम शिष्य था.रावण | एक ऐसा नाम जो की आज घर घर मे प्रचलित है, लेकिन एक तंत्र साधक के लिए ये नाम कोई की व्याख्या पूर्ण रूप से बदल जाती है | वह व्यक्तित्व जो की एक महान शिव भक्त था, शैव तन्त्रो मे अत्यधिक उच्चता प्राप्त व्यक्ति जिस के सामने शिव हमेशा ही प्रत्यक्ष रहते थे. अत्यधिक महान तंत्र ग्रंथो की रचना की थि. ज्योतिष विज्ञान व् नक्षत्र तंत्र मे सिद्ध हस्त वह आचार्य अपने आप मे अजय था जिसकी भृकुटी संकेत मात्र से ग्रह अपनी स्थिति को परावर्तित कर लेते थे ज्योतिष के क्षेत्र मे रुचिवान व्यक्ति इस महान सिद्ध के ज्ञान के बारे मे रावण संहिता को देख कर ही अंदाज़ लगा सकते है.  संगीत का असाधारण ज्ञान तथा संगीत के माध्यम से सम्प्पन होने वाली तांत्रिक क्रियाओ का भी एक वृहद ज्ञानी जिस विषय पर उसने अपने ग्रन्थ ' रावणीय ' मे अपने असाधारण व्यक्तित्व का परिचय दिया है. काल विज्ञान के क्षेत्र मे भी रावणीय निर्णय अपने आप मे बेजोड ग्रन्थ है. नितिशास्त्र मे उसने भाष्य लिखा जो की राज्य किस प्रकार से चलाया जाय उसके सिद्धांत पर आधारित है. इतिहास गवाह है की लंका मे उसके राज्य के समय विश्व के श्रेष्ठतम राज्यों मे वह एक था. पारद विज्ञान के माध्यम से अपनी पूरी लंका को सोने की बना दी थि, साथ ही साथ मृत्युंजय पारद की वजह से उसे चिरंजीवी स्थिति प्राप्त हुई थि. पारद के सिद्धआचार्यो मे आज भी उसकी गणना लंकेश नाम से होती है.  उसका लंकेश सिद्धांत तथा अन्य कई ग्रन्थ अपने आप मे बेजोड है. कर्मकांड के क्षेत्र मे भी उसने ऊंचाईयो को प्राप्त किया था. इसके अलावा उसे यन्त्र विज्ञान का भी अद्भुत ज्ञान था, त्रियक विमान जैसे जटिल और असाधारण उपकरणों पर उसने शोध कर कई विमान का निर्माण किया था, साथ ही साथ विभ्भिन यंत्रो के वह ज्ञाता रहे है. सदगुरुदेव ने भी कई बार इस व्यक्ति के प्रशंशा मे कहा है की तंत्र के क्षेत्र मे विश्वामित्र रावण और त्रिजटा के आगे किसी की गति नहीं है. एक सामान्य से भिक्षुक परिवार मे जन्म लेके एक साधक अपने आप पर ही तूल जाए तो क्या कर दिखा सकता है वह जनमानस के मध्य रख कर उसने एक नए ही अध्याय की रचना की. आज यह ग्रन्थ भले ही अप्राप्य हो गए है लेकिन लुप्त नहीं, कई तांत्रिक घरानों तथा गुप्त आश्रमो ने इसकी बराबर रक्षा की है. सिद्धाचार्य रावण प्रणित साधनाओ का विवरण तो यदा कदा मिल जाता है लेकिन उन से सबंधित साधनाओ का आभाव ही है.  पहले रक्षा मंत्रो से अपने आस पास चौकी देकर जाप के लिए बैठे  देह रक्षा मंत्र :

ओम नमो  परमात्मने परब्रम्ह मम शरीर पाहि पाहि कुरु कुरु स्वाहा !

इसके बाद अपने आस पास जल की धरा से  सुरक्षा घेरा बनाये !
  औंदी खोपड़ी मरघटिया मशन बांद दे बाबा भैरव की आन !  शव वाहिनी माँ चामुण्डे रक्ष रक्ष ! मसान भैरव रक्ष रक्ष ! स्वामी हनुमंत रक्ष रक्ष  रावण की साधना का एक मंत्र   :- " लां  लां लां लंकाधिपतये  लीं लीं लीं लंकेशं लूं लूं लूं लोल जिह्वां, शीघ्रं आगच्छ आगच्छ चंद्रहास खङेन मम शत्रुन विदारय विदारय मारय मारय काटय काटय हूं फ़ट स्वाहा "

यह एक अति उग्र मंत्र है.  कमजोर दिल वाले तथा बच्चे और महिलायें इस मंत्र को न करें. अपने गुरु से अनुमति लेकर ही इस साधना को करें. साधना काल में भयानक अनुभव हो सकते हैं. दक्षिण दिशा में देखते हुए दोनों हाथ ऊपर उठाकर जाप करना है. २१००० मंत्र जाप रात्रि काल में करें. २१०० मंत्र से हवन करें. बिना डरे जाप पूर्ण करें. दशानन रावण की कृपा प्राप्ति होगी. मैंने स्वयं कई वर्षो तक रावण के कई मंत्रो की साधना की है वो अत्यंत उग्र और भीषण होते है ! गुरु या किसी परम सिद्ध व्यक्ति के मार्गदर्शन में ये साधना संपन्न करे   रावण से सबंधित ऐसा लघु विधान भी प्रदत   करता हू  जिसके माध्यम से सिद्धाचार्यलंकेश स्वप्न मे या भावावस्था मे दर्शन दे कर साधक को आशीर्वचन प्रदान करते है. सदगुरुदेव से माफ़ीसह प्रार्थना करते हुए और सिद्धाचार्यरावण को श्रद्धासुमन प्रणाम करते हुए आप सब के मध्य यह विधान प्रस्तुत कर रहा हू. साधक इस साधना को सोमवार रात्रि मे 10 बजे के बाद शुरू करे. अपने सामने पारदशिवलिंग और भगवान शिव का कोई फोटो स्थापित करे और उसका पूजन करे.उसके बाद मन ही मन सिद्धाचार्यरावण को दर्शन के लिए प्रार्थना कर निम्न मंत्र की 11 माला रुद्राक्ष माला से करे. इस साधना मे दिशा उत्तर रहे, वस्त्र व् आसन सफ़ेद रहे.

ओम लंकेशसिद्ध लंका थापलो शिव शम्भू को सेवक दास तिहारो दर्शय दर्शय आदेश

यह क्रम अगले सोमवार तक (कुल 8 दिन) नियमित रहे. साधना के बीच मे या आखरी दिन साधक को लंकेश के दर्शन हो जाते है. माला को विसर्जित ना करे, उसे पहना जा सकता है.

Monday, August 13, 2018

शाबर मंत्र

शाबर मंत्र आम लोगों का कल्याण करने, उन्हें समस्यामुक्त करने और उनके दैनिक जीवन को ऊंचा उठाने में अत्यंत कारगर है। यहां ऐसे ही कुछ मंत्रों की जानकारी दी जा रही है, जो दैनिक जीवन से जुड़े हैं और जिनका प्रयोग अत्यंत आसान है।1-महालक्ष्मी मंत्र

मंत्र-- राम-राम क्या करे, चीनी मेरा नाम। सर्वनगरी बस में करूं, मोहूं सारा गांव।

राजा की बकरी करूं, नगरी करूं बिलाई। नीचा में ऊंचा करूं, सिद्ध गौरखनाथ का दुहाई।

प्रयोग विधि : जिस गुरुवार को पुष्य नक्षत्र हो, उस दिन से प्रतिदिन एकांत में बैठकर कमलगट्टे की माला पर उक्त मंत्र का 108 बार जप करें। 40  दिनों में मंत्र सिद्ध हो जाता है। फिर नित्य 11 बार जप करते रहें। मां महालक्ष्मी की कृपा अवश्य प्राप्त होगी।2- शरीर रक्षा मंत्र

(अ) उत्तर बांधों, दक्खिन बांधों, बांधों मरी मसान, डायन भूत के गुण बांधों, बांधों कुल परिवार, नाटक बांधों, चाटक बांधों, बांधों भुइयां वैताल, नजर गुजर देह बांधों, राम दुहाई फेरों।

(ब) जल बांधों, थल बांधों, बांधों अपनी काया, सात सौ योगिनी बांधों, बांधों जगत की माया, दुहाई कामरू कमक्षा नैना योगिनी की, दुहाई गौरा पार्वती की, दुहाई वीर मसान की।

प्रयोग विधि : उक्त दोनों में से किसी एक मंत्र को पर्व, संक्रांति, ग्रहण समेत किसी भी सिद्धकाल में कम से कम 2100 (11000 हो सके तो उत्तम) जपने पर प्रयोग के लिए तैयार हो जाता है। शरीर रक्षा की आवश्यकता पड़े तो सिद्ध मंत्र का नौ बार उच्चारण कर हथेली पर नौ बार फूंक मारें और हथेली को पूरे शरीर पर फिरा दें। इससे शरीर सुरक्षित हो जाएगा।3-उदर पीड़ा निवारक हनुमान मंत्र

मंत्र-- जो जो हनुमंत धगधजित फलफलित आयुराष: खरूराह

यह मंत्र रामबाण की तरह असरकारक है। उदर से संबंधित किसी भी तरह के रोगी की हालत में तत्काल सुधार होने लगता है। चौबीस घंटे में स्थिति संतोषजनक रूप से सुधरती नजर आती है। यह प्रयोग रोगी के पूरी तरह ठीक होने तक प्रतिदिन दो बार करना चाहिए। इसके प्रयोग के लिए निम्न दो प्रमुख विधियां हैं। इनमें से सुविधानुसार एक या दोनों का एक साथ प्रयोग किया जा सकता है।

1-108 मंत्र का जप करते हुए रोगी के पेट पर ऊपर से नीचे की तरफ हाथ फेरें।

2-जल (गंगा जल मिले तो ज्यादा अच्छा) को एक पात्र में रखकर 108 बार मंत्र जप कर अभिमंत्रित करें। इसके बाद उसे रोगी को पिलाएं।4-दुकान में बिक्री बढ़ाने का मंत्र

श्री शुक्ले महा-शुक्ले कमल-दल-निवासे श्री महा-लक्ष्मी नमो नम:। लक्ष्मी माई सत्त की सवाई। आओ, चेतो, करो भलाई। ना करो, तो सात समुद्रों की दुहाई। ऋद्धि-सिद्धि खावोगी, तो नौ नाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई।।

प्रयोग विधि : यदि दुकान/व्यवसाय में उपेक्षित बिक्री नहीं हो रही है या किसी कारण से अचानक घट गई है तो सुबह घर से नहा-धोकर दुकान पर जाएं और अगरबत्ती जलाकर उसी से लक्ष्मी जी के चित्र की आरती कर गद्दी पर बैठ जाएं। फिर उक्त मंत्र का एक माला जप कर कामकाज शुरू करें। निश्चय ही आशातीत सफलता मिलेगी।5-धन के लिए शिव की मंजू घोष साधना

मंत्र---- अ र व च ल धीं

यदि लगातार आर्थिक संकट से जूझ रहे हों और बच निकलने का मार्ग न मिल रहा हो तो शिव के मंजू घोष रूप की उच्छिष्ट साधना करें। इससे आपको थोड़े दिनों में ही आर्थिक संकट से छुटकारा मिल जाएगा। खाना खाने के बाद जूठी थाली में बचे अन्न, दाल, सब्जी या पानी से उंगली के सहारे डमरू का आकार बनाएं। उस डमरू के ऊपर और नीचे उंगली से ही अ र व च ल धीं मंत्र लिखें। फिर उच्छिष्ट मुंह और हाथ लिये 108 बार इस मंत्र का जप करें। कुछ ही दिन में आर्थिक संकट से छुटकारा मिल जाएगा।6-नजर उतारने का मंत्र

ओम नमो आदेश गुरु का। गिरह-बाज नटनी का जाया, चलती बेर कबूतर खाया, पीवे दारू खाय जो मांस, रोग-दोष को लावे पांस। कहां-कहां से लावेगा? गुदगुद में सुद्रावेगा, बोटी-बोटी में से लावेगा, चाम-चाम में से लावेगा, नौ नाड़ी बहत्तर कोठा में से लावेगा, मार-मार बंदी कर लावेगा। न लावेगा तो अपनी माता की सेज पर पग रखेगा। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा।

प्रयोग विधि : अक्सर बच्चे एवं सुंदर महिला को नजर लग जाती है और उसकी तबीयत अचानक खराब हो जाती है। दवा से फायदा नहीं मिल पाता। ऐसे में उक्त मंत्र पढ़कर मोर फंख से पीडि़त को झाड़ दें, उसे तत्काल आराम मिलने लगेगा और नजर दोष दूर हो जाएगा। ध्यान रहे कि प्रयोग से पूर्व मंत्र को पर्व, संक्रांति, ग्रहण समेत किसी भी सिद्धकाल में कम से कम 1100 जप कर लें। इसके बाद ही आवश्यकतानुसार प्रयोग प्रारंभ करें।7-संकट से उबारने वाला गुरुमंत्र

आदिनाथ कैलास निवासी, उदयनाथ काटे जम फांसी।

सत्यनाथ सारणी संत भाखे, संतोषनाथ सदा संतन की राखे।

कन्थडिऩाथ सदा सुख दायी, अचती अचम्भेनाथ सहायी।

ज्ञान पारखी सिद्ध चौरंगी, मच्छेन्द्रनाथ दादा बहुरंगी।

गोरखनाथ सकल घट व्यापी, काटे कलिमल तारे भव पीड़ा।

नव नाथों के नाम सुमिरिये, तनिक भस्मि ले मस्तक धरिये।

रोग शोक दारिद्र नशावे, निर्मल देह परम सुख पावे।

भूत प्रेत भय भञ्जना, नव नाथों के नाम।

सेवक सुमिरे चन्द्रनाथ, पूर्ण होय सब काम।

प्रयोग विधि : ग्रहण, संक्रांति या किसी अन्य शुभ समय में उक्त मंत्र का 1008 जप कर लें। फिर दशांश हवन कर भस्म को सुरक्षित रख लें। किसी भी संकट, विशेष कार्य, रोग-शोक आदि होने पर मंत्र का एक से पांच बार तक जप कर मस्तक पर भस्म लगा लें। कार्य अवश्य सिद्ध होगा। यदि जीवन में कोई गंभीर संकट उपस्थित हो गया हो तो स्नान के बाद गीले शरीर में ही उक्त मंत्र का तीन बार जप कर लें। पंद्रह दिन में समस्या का निराकरण हो जाएगा। ध्यान रहे कि इस मंत्र का अकारण प्रयोग या जप उचित नहीं है। इसके बदले गुरु गोरखनाथ सहित सभी नौ गुरुओं का ध्यान, प्रणाम करना ही उचित होगा।

Thursday, August 2, 2018

जन्मतिथि का उच्चरण और कार्य सिद्धि

चमत्कारी ज्योतिष सूत्र

                                प्रयोग करे लाभ उठाये

क ★ यदि आर्थिक समस्याआपको रहती है तो प्रातः उठने के साथ ही अपनी जन्म तिथि का21 बार उच्चारण करे।
जैसे आप का जन्म शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ है तो आप “ शुक्ल पक्ष पंचमी- शुक्ल पक्ष पंचमी “ का नियमित रूप से 21 बार उच्चारण करे।इसी प्रकार सोने के लिये बिस्तर पर जाने पर कहे, यानि दिन में दो बार करे।
कुछ ही समय मे चमत्कार महसूस होगा।यह कार्य जितने विश्वास से करेंगे, उतना ही शीघ्र लाभ दृष्टि गोचर होगा।

ख ★ इसी प्रकार जन्म वार के दिन दिन में दो बार उच्चारण से आयु में वृद्धि होती है।
जिनकी पत्रिका में आयु कम का योग है वह भी करे।

ग ★ जन्म नक्षत्र के दिन में दो बार उच्चारण से अनजाने में होने वाले गलतियों से मुक्ति मिलती है।

घ★ दिन में दो बार जन्म योग के उच्चारण से रोग से मुक्ति मिलकर शरीर स्वस्थ रहता है।

च ★ यदि आपको कार्यो में कोई अचानक ही बाधा आ जाती है तो या कोई कार्य बार-बार रुक जाता है तो दिन में दो बार उपरोक्त प्रकार से अपने जन्म करण का उच्चारण करे।

छ★ आप अपना कोई विशेष कार्य सिद्ध करना चाहते हैं तो मन से उस कार्य को करने का प्रयास करते रहे तथा दिन में किसी भी एक विशेष समय यानि जैसे आप यह उपाय शाम को सात बजे करते है तो आप नियमित रूप से सात बजे ही करे।

आपका जो भी कार्य हो उसका उच्चारण 21 बार करे यानी जैसे आपको परीक्षा में उतीर्ण होना है तो आप अध्ययन के साथ नियमित रूप से 21 बार उच्चारण करे कि “ मुझे अवश्य ही उतीर्ण होना है “ या आपको नोकरी की तलाश है तो आप नियमित रूप से उचारण करे कि “ मुझे शीघ्र ही तथा अवश्य ही नौकरी मिलेगी “
इस उपाय से आप बहुत ही शीघ्र चमत्कार महसूस करेंगे।उपाय जितने विश्वास से करेंगे, फल उतना ही जल्दी तथा अवश्य प्राप्त होगा।

वशीकरण इत्र प्रयोग

मोहिनी वशीकरण इत्र प्रयोग-

मोहनी प्रयोग द्वारा किसी को भी अपने वश में इत्र के जरिए किया जाता है इसमें मंत्रो द्वारा इनको अभिमंत्रित कर इसका प्रयोग लोगों को सम्मोहित करने के लिए करते हैं और यह बहुत ही प्रभावकारी प्रयोग  है पर ध्यान रहे यदि कोई त्रुटि हुई तो प्रयोग कार्य नहीं करेगा इसका उपयोग कभी भी गलत भावनाओं के वशीभूत होकर नहीं करना चाहिए

साधना विधि –

इस साधना को करने के लिए सर्वप्रथम बाजार से कोई स्वर्ण सर्वोत्तम इत्र की शीशी ले आए और उसे पूजा स्थल पर रख दे और किसी शुक्रवार को  सुबह सूर्योदय से पहले  स्नान कर स्वच्छ हो होकर 108 बार मंत्र पढ़कर इत्र में एक बार फूंक मारे  इसी तरह आपको यह क्रिया  10 बार करनी है  अर्थात आपको 10 बार आपको  इत्र में फूंक मारनी है  और उसके बाद उस इत्र को किसी स्वच्छ जगह रख दे और कुछ समय बाद आप देखेंगे कि इत्र अपनी शीशी में ऊपर नीचे हो रहा है या सिद्ध करता है की इत्र अब अभिमंत्रित हो गया है और यह सम्मोहित करने के लिए प्रयुक्त हो गया जाएगा, फिर इस इत्र को आप जिस भी स्त्री या पुरुष के कपड़े में  लगा देंगे वह आपके वशीभूत हो जाएगा यदि आप  किसी स्त्री को  इस इत्र को  सूघा देते हैं  तो वह स्त्री तुरंत आपके वश में हो जाएगी और आपके  बातों का  पालन करने लगेगी  पर ध्यान रहे की इत्र का प्रयोग गलत भावनाओं या स्वयं हित में नहीं करना चाहिए

मंत्र-

अलहम्दोगवानी  हो दीवानी जो न हो दीवानी सैयदः कादऱ अब्दुल् जलानी चुट्ट पकड़कर दिवानी

रंभा साधना

रम्भा साधना

उच्चकोटि कि अप्सराओं कि श्रेणी में रम्भा का प्रथम स्थान है, जो शिष्ट और मर्यादित मणि जाती है, सौंदर्य कि दृष्टि से अनुपमेय कही जा सकती है | शारीरिक सौंदर्य वाणी कि मधुरता नृत्य, संगीत, काव्य तथा हास्य और विनोद यौवन कि मस्ती, ताजगी, उल्लास और उमंग ही तो रम्भा है | जिसकी साधना से वृद्ध व्यक्ति भी यौवनवान होकर सौभाग्यशाली बन जाता है |

जिसकी साधना से योगी भी अपनी साधनाओं में पूर्णता प्राप्त करता है | अभीप्सित पौरुष एवं सौंदर्य प्राप्ति के लिए प्रतेक पुरुष एवं नारी को इस साधना में अवश्य रूचि लेनी चाहिए | सम्पूर्ण प्रकृति सौंदर्य को समेत कर यदि साकार रूप दिया तो उसका नाम रम्भा होगा |

सुन्दर मांसल शारीर, उन्नत एवं सुडौल वक्ष: स्थल, काले घने और लंबे बाल, सजीव एवं माधुर्य पूर्ण आँखों का जादू मन को मुग्ध कर देने वाली मुस्कान दिल को गुदगुदा देने वाला अंदाज यौवन भर से लदी हुई रम्भा बड़े से बड़े योगियों के मन को भी विचिलित कर देती है | जिसकी देह यष्टि से प्रवाहित दिव्य गंध से आकर्षित देवता भी जिसके सानिध्य के लिए लालायित देखे जाते हैं |

सुन्दरतम वर्स्त्रलान्कारों से सुसज्जित, चिरयौवन, जो प्रेमिका या प्रिय को रूप में साधक के समक्ष उपस्थित रहती है | साधक को सम्पूर्ण भौतिक सुख के साथ मानसिक उर्जा, शारीरिक बल एवं वासन्ती सौंदर्य से परिपूर्ण कर देती है |

इस साधना के सिद्ध होने पर वह साधक के साध छाया के तरह जीवन भर सुन्दर और सौम्य रूप में रहती है तथा उसके सभी मनोरथों को पूर्ण करने में सहायक होती है |

रम्भा साधना सिद्ध होने पर सामने वाला व्यक्ति स्वंय खिंचा चला आये यही तो चुम्बकीय व्यक्तिव है|

साधना से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं वृद्धता समाप्त हो जाती है |

यह जीवन कि सर्वश्रेष्ठ साधना है | जिसे देवताओं ने सिद्ध किया इसके साथ ही ऋषि मुनि, योगी संन्यासी आदि ने भी सिद्ध किया इस सौम्य साधना को |

इस साधना से प्रेम और समर्पण के कला व्यक्ति में स्वतः प्रस्फुरित होती है | क्योंकि जीवन में यदि प्रेम नहीं होगा तो व्यक्ति तनावों में बिमारियों से ग्रस्त होकर समाप्त हो जायेगा | प्रेम को अभिव्यक्त करने का सौभाग्य और सशक्त माध्यम है रम्भा साधना | जिन्होंने रम्भा साधना नहीं कि है, उनके जीवन में प्रेम नहीं है, तन्मयता नहीं है, प्रस्फुल्लता भी नहीं है |

साधना विधि

सामग्री – प्राण प्रतिष्ठित रम्भोत्कीलन यंत्र, रम्भा माला, सौंदर्य गुटिका तथा साफल्य मुद्रिका |

यह रात्रिकालीन २७ दिन कि साधना है | इस साधना को किसी भी पूर्णिमा को, शुक्रवार को अथवा किसी भी विशेष दिन प्रारम्भ करें | साधना प्रारम्भ करने से पूर्व साधक को चाहिए कि स्नान आदि से निवृत होकर अपने सामने चौकी पर गुलाबी वस्त्र बिछा लें, पीला या सफ़ेद किसी भी आसान पर बैठे, आकर्षक और सुन्दर वस्त्र पहनें | पूर्व दिशा कि ओर मुख करके बैठें | घी का दीपक जला लें | सामने चौकी पर एक थाली या पलते रख लें, दोनों हाथों में गुलाब कि पंखुडियां लेकर रम्भा का आवाहन करें |

|| ओम ! रम्भे अगच्छ पूर्ण यौवन संस्तुते ||

यह आवश्यक है कि यह आवाहन कम से कम १०१ बार अवश्य हो प्रत्येक आवाहन मन्त्र के साथ एक गुलाब के पंखुड़ी थाली में रखें | इस प्रकार आवाहन से पूरी थाली पंखुड़ियों से भर दें |

अब अप्सरा माला को पंखुड़ियों के ऊपर रख दें इसके बाद अपने बैठने के आसान पर ओर अपने ऊपर इत्र छिडके | रम्भोत्कीलन यन्त्र को माला के ऊपर आसान पर स्थापित करें | गुटिका को यन्त्र के दाँयी ओर तथा साफल्य मुद्रिका को यन्त्र के बांयी ओर स्थापित करें | सुगन्धित अगरबती एवं घी का दीपक साधनाकाल तक जलते रहना चाहिए |

सबसे पहले गुरु पूजन ओर गुरु मन्त्र जप कर लें | फिर यंत्र तथा अन्य साधना सामग्री का पंचोपचार से पूजन सम्पन्न करें |स्नान, तिलक, धुप, दीपक एवं पुष्प चढावें |

इसके बाद बाएं हाथ में गुलाबी रंग से रंग हुआ चावल रखें, ओर निम्न मन्त्रों को बोलकर यन्त्र पर चढावें

|| ॐ दिव्यायै नमः ||

|| ॐ प्राणप्रियायै नमः ||

|| ॐ वागीश्वये नमः ||

|| ॐ ऊर्जस्वलायै नमः ||

|| ॐ सौंदर्य प्रियायै नमः ||

|| ॐ यौवनप्रियायै नमः ||

|| ॐ ऐश्वर्यप्रदायै नमः ||

|| ॐ सौभाग्यदायै नमः ||

|| ॐ धनदायै रम्भायै नमः ||

|| ॐआरोग्य प्रदायै नमः ||

इसके बाद उपरोक्त रम्भा माला से निम्न मंत्र का ११ माला प्रतिदिन जप करें |

मंत्र : ||ॐ हृीं रं रम्भे ! आगच्छ आज्ञां पालय मनोवांछितं देहि ऐं ॐ नमः ||

प्रत्येक दिन अप्सरा आवाहन करें, ओर हर शुक्रवार को दो गुलाब कि माला रखें, एक माला स्वंय पहन लें, दूसरी माला को रखें, जब भी ऐसा आभास हो कि किसी का आगमन हो रहा है अथवा सुगन्ध एक दम बढने लगे अप्सरा का बिम्ब नेत्र बंद होने पर भी स्पष्ट होने लगे तो दूसरी माला सामने यन्त्र पर पहना दें |

२७ दिन कि साधना प्रत्येक दिन नये-नये अनुभव होते हैं, चित्त में सौंदर्य भव भाव बढने लगता है, कई बार तो रूप में अभिवृद्धि स्पष्ट दिखाई देती है | स्त्रियों द्वारा इस साधना को सम्पन्न करने पर चेहरे पर झाइयाँ इत्यादि दूर होने लगती हैं |

साधना पूर्णता के पश्चात मुद्रिका को अनामिका उंगली में पहन लें, शेष सभी सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें | यह सुपरिक्षित साधना है | पूर्ण मनोयोग से साधना करने पर अवश्य मनोकामना पूर्ण होती ही है |.