सुर सुन्दरी यक्षिणी
यह साधना २४(24) रात्रि की है। साधक को हर रात हकीक की माला से ५१(51) माला जाप करना होगा। यह साधना आप कोई भी शुक्रवार से प्रारम्भ कर सकते है। सबसे पहले साधक को एक भोजपत्र पर अनार की कलम और केशर की स्याही बनाकर यह यक्षिणी का यंत्र बनाना होगा .
यह याद रहे कि यंत्र प्राण - प्रतिष्ठा युक्त मंत्र शिद्धि चैतन्य होना चाहीये। साधना के दिन से हर रात साधक को ८ (8) बजे स्नान करके ९ (9) बजेके भीतर साधना मे बैठ्ना होगा। आपका बस्त्र तथा आसन लाल रंग का हो तथा आसन ऊन का हो।
आसन मे बैठने के बाद आपको गुरू से प्राप्त रक्षा मंत्र की ३ (3) माला जाप करें .अगर रक्षा मंत्र नही है तो रक्षात्मक ताबीज आप धारण कर सकते है।
रक्षा का विधान संम्पन्न होने के वाद आपको अपने ईष्ट देव पितृदेव तथा कुलदेव का स्मरण करके उनसे साधना मे सफलता हेतु आशिर्वाद मागें।
सामने एक चौकी लगाकर उसके उपर लाल कपडा बिछाये तथा ठीक सामने चौकी के उपर मिट्टी के दिये मे तिल का तेल डालकर दीप प्रज्वलित करें।दीपक के दाये भाग मे चावल बिछाये तथा उसके उपर मूल यक्षिणी यंत्र स्थापित करें और बाये और एक तांम्वे की प्लेट पर यक्षिणी चित्र को स्थापित करके तीनों बस्तु का पुजन करे।
दीपक यंत्र और चित्र पर हिना या फिर चमेली का ईत्र भी अर्पित करे तथा थोडा अपने शरीर मे भी प्रयोग करें।पुजन मे केवल चमेली के फूल का ही प्रयोग करे।
पुजन समाप्त होने के वाद देवीको मोति चुर के लड्डु का भोग लगाये।तथा देवी के चित्र पर ध्यान देकर मंत्र जाप प्रारम्भ करे। जाप समाप्त होने पर साधक को वही स्थान मे शयन करना होगा। दिन मे सोना वर्जित है।
अपने अनुभव तथा चामात्कारीक दृस्य को कभी नही अन्य लोगो के सामने व्यक्त ना करे। साधना मे कुछ समस्या हुवा तो केवल गुरू से पुछ सकते है।
अनुभव आपको डराने के लिये है यदि आप घवराकर साधना बीच मे ही खंडित करेंगे तो आपकी की साधना भी निष्फल हो जायेगी है।ब्रह्मचार्य धर्मकी पालना करे।
अपना खाना तथा बस्त्र खुद देखे।आपको जरूर सफलता मिलेगा.
।।।मंत्र।।।
।।औम् ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा।
No comments:
Post a Comment