न्यायाधीश बनने के कुछ योग – —
यदि जन्मकुण्डली के किसी भाव में बुध-गुरू अथवा राहु-बुध की युति हो।
यदि गुरू, शुक्र एवं धनेश तीनों अपने मूल त्रिकोण अथवा उच्च राशि में केन्द्रस्थ अथवा त्रिकोणस्थ हो तथा सूर्य मंगल द्वारा दृष्ट हो तो जातक न्यायशास्त्र का ज्ञाता होता हैं।
यदि गुरू पंचमेश अथवा स्वराशि का हो और शनि व बुध द्वारा दृष्ट हो।
यदि लग्न, द्वितीय, तृतीय, नवम्, एकादश अथवा केन्द्र में वृश्चिक अथवा मकर राशि का शनि हो अथवा नवम भाव पर गुरू-चन्द्र की परस्पर दृष्टि हो।
यदि शनि से सप्तम में गुरू हो।
यदि सूर्य आत्मकारक ग्रह के साथ राशि अथवा नवमांश में हो।
यदि सप्तमेश नवम भाव में हो तथा नवमेश सप्तम भाव में हो।
यदि तृतीयेश, षष्ठेश, गुरू तथा दशम भाव – ये चारों बलवान हो।
शिक्षक के कुछ योग –
यदि चन्द्रलग्न एवं जन्मलग्न से पंचमेश बुध, गुरू तथा शुक्र के साथ लग्न चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा दशम भाव में स्थित हो।
यदि चतुर्थेश चतुर्थ भाव में हो अथवा चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो अथवा चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह स्थित हो।
यदि पंचमेश स्वगृही, मित्रगृही, उच्चराशिस्थ अथवा बली होकर चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा दशम भाव में स्थित हो और दशमेश का एकादशेश से सम्बन्ध हो।
यदि पंचम भाव में सूर्य-मंगल की युति हो अथवा राहु, शनि, शुक्र में से कोई ग्रह पंचम भाव में बैठा हो और उस पर पापग्रह की दृष्टि भी हो तो जातक अंग्रेजी भाषा का विद्वान अथवा अध्यापक होता हैं।
यदि पंचमेश बुध, शुक्र से युक्त अथवा दृष्ट हो अथवा पंचमेश जिस भाव में हो उस भाव के स्वामी पर शुभग्रह की दृष्टि हो अथवा उसके दोनों ओर शुभग्रह बैठें हो।
यदि बुध पंचम भाव में अपनी स्वराशि अथवा उच्चराशि में स्थित हो।
यदि द्वितीय भाव में गुरू या उच्चस्थ सूर्य, बुध अथवा शनि हो तो जातक विद्वान एवं सुवक्ता होता हैं।
यदि बृहस्पति ग्रह चन्द्र, बुध अथवा शुक्र के साथ शुभ स्थान में स्थित होकर पंचम एवं दशम भाव से सम्बन्धित हो।
सूर्य,चन्द्र और लग्न मिथुन,कन्या या धन राशि में हो व नवम तथा पंचम भाव शुभ व बली ग्रहों से युक्त हो ।
ज्योतिष शास्त्रीय ग्रन्थों में सरस्वती योग शारदा योग, कलानिधि योग, चामर योग, भास्कर योग, मत्स्य योग आदि विशिष्ट योगों का उल्लेख हैं। अगर जातक की कुण्डली में इनमे से कोई योग हो तो वह विद्वान अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, यशस्वी एवं धनी होता है
Friday, April 29, 2016
न्यायाधीश बनने के कुछ योग
आइये जाने धन प्राप्ति/शिक्षा/रोजगार के कुछ खास/महत्वपूर्ण करक योग
आइये जाने धन प्राप्ति/शिक्षा/रोजगार के कुछ खास/महत्वपूर्ण करक योग—
इंजीनियरिंग शिक्षा के कुछ योग –
जन्म, नवांश या चन्द्रलग्न से मंगल चतुर्थ स्थान में हो या चतुर्थेश मंगल की राशि में स्थित हो।
मंगल की चर्तुथ भाव या चतुर्थेश पर दृष्टि हो अथवा चतुर्थेश के साथ युति हो।
मंगल और बुध का पारस्परिक परिवर्तन योग हो अर्थात मंगल बुध की राशि में हो अथवा बुध मंगल की राशि में हो।
चिकित्सक (डाक्टर )शिक्षा के कुछ योग –
जैमिनि सूत्र के अनुसार चिकित्सा से सम्बन्धित कार्यो में बुध और शुक्र का विशेष महत्व हैं। ’’शुक्रन्दौ शुक्रदृष्टो रसवादी (1/2/86)’’ – यदि कारकांश में चन्द्रमा हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो रसायनशास्त्र को जानने वाला होता हैं। ’’ बुध दृष्टे भिषक ’’ (1/2/87) – यदि कारकांश में चन्द्रमा हो और उस पर बुध की दृष्टि हो तो वैद्य होता हैं।
जातक परिजात (अ.15/44) के अनुसार यदि लग्न या चन्द्र से दशम स्थान का स्वामी सूर्य के नवांश में हो तो जातक औषध या दवा से धन कमाता हैं। (अ.15/58) के अनुसार यदि चन्द्रमा से दशम में शुक्र – शनि हो तो वैद्य होता हैं।
वृहज्जातक (अ.10/2) के अनुसार लग्न, चन्द्र और सूर्य से दशम स्थान का स्वामी जिस नवांश में हो उसका स्वामी सूर्य हो तो जातक को औषध से धनप्राप्ति होती हैं। उत्तर कालामृत (अ. 5 श्लो. 6 व 18) से भी इसकी पुष्टि होती हैं।
फलदीपिका (5/2) के अनुसार सूर्य औषधि या औषधि सम्बन्धी कार्यो से आजीविका का सूचक हैं। यदि दशम भाव में हो तो जातक लक्ष्मीवान, बुद्धिमान और यशस्वी होता हैं (8/4) ज्योतिष के आधुनिक ग्रन्थों में अधिकांश ने चिकित्सा को सूर्य के अधिकार क्षेत्र में माना हैं और अन्य ग्रहों के योग से चिकित्सा – शिक्षा अथवा व्यवसाय के ग्रहयोग इस प्रकार बतलाए हैं –
सूर्य एवं गुरू — फिजीशियन
सूर्य एवं बुध — परामर्श देने वाला फिजीशियन
सूर्य एवं मंगल — फिजीशियन
सूर्य एवं शुक्र एवं गुरू — मेटेर्निटी
सूर्य,शुक्र,मंगल, शनि—- वेनेरल
सूर्य एवं शनि —– हड्डी/दांत सम्बन्धी
सूर्य एवंशुक्र , बुध —- कान, नाक, गला
सूर्य एवं शुक्र $ राहु , यूरेनस —- एक्सरे
सूर्य एवं युरेनस —- शोध चिकित्सा
सूर्य एवं चन्द्र , बुध — उदर चिकित्सा, पाचनतन्त्र
सूर्य एवंचन्द्र , गुरू — हर्निया , एपेण्डिक्स
सूर्य एवं शनि (चतुर्थ कारक) — टी0 बी0, अस्थमा
सूर्य एवं शनि (पंचम कारक) —- फिजीशियन
Thursday, April 28, 2016
शाबर मंत्र सिद्धि
इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र में उपासना सम्बन्धी अनेक योग हैं । शाबर मन्त्र को सिद्ध करने में कौन-कौन-से योग महत्त्व-पूर्ण हैं, इससे सम्बन्धी कुछ योग इस प्रकार हैं –
१॰ नवम स्थान में शनि हो, तो साधक शाबर मन्त्र में अरुचि रखता है अथवा वह शाबर-साधना सतत नहीं करेगा । यदि वह शाबर साधना करेगा, तो अन्त में उसको वैराग्य हो जाएगा ।
२॰ नवम स्थान में बुध होने से जातक को शाबर मन्त्र की सिद्धि में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है अथवा शाबर मन्त्र की साधना में प्रतिकूलताएँ आएँगी ।
३॰ पञ्चम स्थान के ऊपर यदि मंगल की दृष्टि हो, तो जातक कुल-देवता, कुल-देवी का उपासक होता है । पञ्चम स्थान के ऊपर गुरु की दृष्टि हो, तो साधक शाबर साधना में विशेष सफलता मिलती है । पञ्चम स्थान पर सूर्य की दृष्टि हो तो साधक सूर्य या विष्णु की उपासना में सफल होता है । यदि राहु की दृष्टि हो, तो वह भैरव उपासक बनता है । इस प्रकार के साधक को यदि पथ-निर्देशन नहीं मिलता, तो वह निम्न स्तर के देवी-देवताओं की उपासना करने लगता है ।
४॰ ज्योतिष विद्या का प्रसिद्ध ग्रन्थ “जैमिनि-सूत्र” है । इसके प्रणेता महर्षि जैमिनि है । इस ग्रन्थ से उपासना सम्बन्धी उत्तम मार्ग-दर्शन मिलता है यथा –
क॰ सबसे अधिक अंशवाले ग्रह को आत्मा-कारक ग्रह कहते हैं । नवमांश में यदि यदि आत्मा-कारक शुक्र हो, तो जातक लक्ष्मी की साधना करता है । ऐसे जातक को लक्ष्मी देवी के मन्त्र की साधना से लाभ-ही-लाभ मिलता है ।
ख॰ नवमांश में यदि आत्मा-कारक मंगल होता है, तो जातक भगवान् कार्तिकेय की उपासना से लाभान्वित होता है ।
ग॰ बुध व शनि से भगवान् विष्णु और गुरु के बलाबल से भगवान् सदा-शिव की उपासना लाभदायक होती है ।
घ॰ राहु से तामसिक देवी-देवताओं की उपासना सिद्ध होती है ।
ङ॰ शनि के उच्च-कोटि के होने पर साधक को उच्च-कोटि की सिद्धि सहज में मिलती है । इसके विपरित यदि शनि निम्न-कोटि का होता है, साधना की सिद्धि में विलम्ब होता है ।
च॰ जन्म-चक्र में यदि द्वादश स्थान में राहु होता है, तो साधक परमात्मा के साक्षात्कार हेतु उत्साहित रहता है । ऐसे बन्धुओं को मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र की सिद्धि द्वारा भौतिक लाभ-प्राप्ति से दूर रहना चाहिए, क्योंकि द्वादश स्थान मोक्ष-प्राप्ति का सूचक है । द्वादश स्थान में राहु के होने से वह साधना की सिद्धि में सहायक और लाभ-प्रद रहता है ।
छ॰ दशम स्थान में यदि सूर्य हो, तो साधक को भगवान् राम की उपासना करनी चाहिए और दशम स्थान में यदि चन्द्र हो, तो कृष्ण की उपासना करनी चाहिए ।
ज॰ सधम स्थान में यदि गुरु हो, तो साधक अन्तः-प्रेरणा या अन्तः-स्फुरण से उपासना करता है और सफल होता है ।
Wednesday, April 27, 2016
शनि की ढईया और साढ़े साती
ज्योतिष विधा के अनुसार शनिदेव जब गोचर में चन्द्र राशि से द्वादश भाव में आते हैं एवं द्वितीय भाव की राशि में रहते हैं तो साढ़े साती की अवधि कहलाती है (Shani’s sade sati starts when Saturn enters the 12th sign from the Moonsign). साढ़े साती की भांति ढैय्या भी काफी महत्वपूर्ण होती है.ढैय्या की अवधि वह होती है जब चन्द्र राशि से शनि चतुर्थ एवं अष्टम में होता है.गोचर मे शनि जब साढ़े साती अथवा ढैय्या के रूप में किसी व्यक्ति के जीवन में प्रवेश करता है तो लोग भयानक अनिष्ट की शंका से भयभीत हो उठते हैं.जबकि इस संदर्भ में ज्योतिषशास्त्र की कुछ अलग ही मान्यताएं हैं.
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार जिस व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शनि कारक ग्रह होता है उन्हें साढ़े साती और ढैय्या के समय शनि किसी प्रकार नुकसान नहीं पहुंचाते (If Saturn is a significator planet, then it will not harm the native even during the Sade-sati) बल्कि इस समय शनिदेव की कृपा से इन्हें सुख, समृद्धि, मान-सम्मान एवं सफलताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है.जिनकी कुण्डली में शनि मित्र ग्रह शुक्र की राशि वृषभ अथवा तुला में वास करते हैं उन्हें अनिष्ट फल नहीं देते हैं.बुध की राशि मिथुन एवं कन्या में होने पर भी शनि व्यक्ति को पीड़ित नहीं करते हैं.
गुरू बृहस्पति की राशि धनु एवं मीन व स्वराशि मकर एवं कुम्भ में विराजमान होने पर शनिदेव अनिष्ट फल नहीं देते हैं.सूर्य एवं चन्द्र की राशि सिंह एवं कर्क में होने पर शनिदेव मिला जुला फल देते हैं.इस राशि में जिनके शनिदेव होते हैं उन्हें शनि की साढ़े साती एवं ढैय्या में सुख एवं दु:ख दोनों ही बारी बारी से मिलते हैं.शनि अपने शत्रु ग्रह मंगल की राशि मेष और वृश्चिक में होने पर उग्र होता है.इस राशि में शनि की साढ़े साती होने पर व्यक्ति को शनि की पीड़ा का सामना करना होता है.इनके लिए शनि कष्टमय स्थिति पैदा करते है.
जन्म राशि और शनि का गोचर (Moonsign and Saturn’s transit)ज्योतिष विधा के अनुसार जन्म राशि वृषभ, मकर अथवा कुम्भ होने पर शनि का गोचर बहुत अधिक शुभफलदायी नहीं होता है.जिनका जन्म लग्न वृषभ, तुला, मकर या कुम्भ है उनके लिए शनि का गोचर अत्यंत लाभप्रद होता है.इसी प्रकार शनि जिस राशि में गोचर कर रहा है और कुण्डली में उसी राशि में गुरू है तो शनिदेव शुभ फल प्रदान करते हैं.शनिदेव जिस राशि में विचरण कर रहें हैं जन्मपत्री में उस राशि में राहु स्थित है तो शनि अपना फल तीव्र गति से प्रदान करते हैं.गोचर में शनिदेव उस समय भी शुभ फल प्रदान करते हैं जब कुण्डली में जिस राशि में शनि होते है उस राशि से शनि गोचर कर रहे होते हैं…
जन्म पत्रिका के 12 भावो में आकाशीय ग्रहों को जन्म लग्न के अनुसार स्थान दिया जाता है। व्यक्ति के जन्म के पश्चात ग्रह जिस प्रकार से जन्म पत्रिका के चक्र में घूमते हैं उसे ग्रहो का गोचर कहा जाता है।
सभी ग्रह समय समय पर अपने भाव के अनुसार प्रभाव देते हैं इसमें शनि का गोचर क्या कहता है देखें (Saturn’s transit refers to the journey of Saturn through the 12 signs)।
गोचर शनि की विशेषता (Importance of Saturn’s Transit)—-
शनि देव के नाम से बड़े से बड़ा सूरमा भी घबराता है। शनि का गोचर राजा को रंक और शक्तिशाली को शक्तिहीन बना देता है। लेकिन जरूरी नहीं कि गोचर में शनि देव सभी के लिए अशुभ कारक होते हैं। गोचर में शनि के कुछ सामान्य फल होते हैं तो कुछ विशेष प्रभाव भी होता है। साढ़े साती और कण्टक शनि ये दो शनिदेव के विशेष गोचर माने गये हैं। गोचर में साढ़े साती के दौरान शनि देव ढ़ाई ढ़ाई वर्ष के अन्तराल पर राशि परिवर्तन कर व्यक्ति की अलग अलग प्रकार से परीक्षा लेते हैं।
गोचर में शनि की साढ़े साती (Saturn’s Sade-sati transit)—–
जब शनि का गोचर जन्म राशि से 12 वीं राशि में होता है तब साढ़े साती की शुरूआत होती है। ढाई वर्ष बाद जब शनि गोचर में जन्म राशि में पहुंचता है तब सिर पर साढ़ेसाती होती है जो ढ़ाई वर्ष तक रहती है अंतिम ढ़ाई वर्ष में शनि का गोचर जन्मराशि से एक राशि आगे होता है इस समय उतरती साढ़ेसाती होती है। गोचर में यह शनि काफी अनिष्टकारी माना जाता है। चढ़ती साढ़ेसाती के दौरान शनि धन की हानि करते हैं और जीवन को इस प्रकार अस्त व्यस्त कर देते हैं कि चैन से जीना मुश्किल हो जाता है। मानसिक और शारीरिक तौर पर भी व्यक्ति परेशान और पीड़ित होता है
Monday, April 18, 2016
विवाह बंधन से पहले ज्योतिष की उपयोगिता
एक व्यक्ति में बाहरी आकर्षण तो हो सकता है, लेकिन भीतर से वह पत्थर हृदय वाला और स्वार्थी हो सकता है, इसीलिए लोग विवाह बंधन से पहले कुंडली की व्याख्या कराना जरूरी समझते हैं। कुंडली के बारह भावों में सप्तम भाव दांपत्य का है। इस भाव के अलावा आयु, भाग्य, संतान, सुख, कर्म, स्थान का पूर्णत: विश्लेषण एक सीमा में अनिवार्य माना जाता है।
वैवाहिक बंधन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण बंधन है। विवाह प्यार और स्नेह पर अधारित एक संस्था है। यह वह पवित्र बंधन है, जिसपर पूरे परिवार का भविष्य निर्भर करता है। समान्यत: कुंडली में अष्ट कुट एवं मांगलिक दोष ही देखा जाता है, लेकिन यह जान लेना अनिवार्य है कि कुंडली मिलान की अपेक्षा कुंडली की मूल संरचना अति महत्वपूर्ण है।
एक व्यक्ति में बाहरी आकर्षण तो हो सकता है, लेकिन भीरत से वह पत्थर हृदय वाला और स्वार्थी भी हो सकता है, जाहिर है कि कुंडली की विस्तृत व्याख्या अनिवार्य मानी जाती है। कुंडली के बारह भावों में सप्तम भाव दांपत्य का है, इस भाव के अलावे आयु, भाग्य, संतान, सुख, कर्म, स्थान का पूर्णत: विश्लेषण एक सीमा में अनिवार्य है।
चन्द्रमा का शुभत्व
चंद्रमा= सूर्य को ज्योतिष में राजा कहा गया तो चंद्रमा रानी या यह भी कह ले सूर्य पिता तो चन्द्रमा माता है जलीय ग्रह है और वेसे इसको सुभ ग्रह मानते है पर बुद्ध की तरह् इसको हम सुभ या असुभ नहीं कह सकते जितना सूर्य से दूर होगा उतना बलबान सूर्य एक पास जितना होगा उतना बलहीन होगा यह एक लग्न भी है उत्तर भारत में तो लग्न कुंडली के साथ चन्द्र कुंडली भी बनाई जाती है यह लग्न का काम भी करता है और दैनिक राशि फल इससे ही देखे जाते है माता का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्वब करता है यह जितना बलबान होगा उतना माँ के लिए सुभ जितना बलहीन माता को कष्ट कारक प्रश्न कुंडली आदि भी इससे ही देखि जाता है वेसे इसकी किसी से स्त्रुता नहीं है सिर्फ छाया ग्रह राहु को सत्रु मानता है सफेद वस्तु का कारक है चेहरे का भी और स्त्री ग्रह है स्त्री आदि प्रश्नो में भी यह देखा जाता है यह चन्द्रमा मन या मष्तिक का भी कारक है 4 भाव का कारक है यह स्थान हमारे भावना आदि का भी तो है तो मानशिक पीड़ा पागलपन आदि भी पीड़ित होने पे देता है यह जलीय ग्रह है बलबान होगा तो जल आदि के व्यवसाय से लाभ देगा मन की भावना यह ही है तो जब सुभ या सात्विक ग्रहो के संपर्क में होगा सात्विक और तामशिक ग्रहों के संपर्क में होगा तो जातक तामशिक क्योंकि यह खाने पिने की चीजो का कारक है राहु के द्वारा चंद्रमा पीड़ित होना जातक ज्यादा सराबी होते है यह देखा गया है सूर्य के साथ बलहीन तो असुभ मंगल के साथ सुभ ही रहता है बुध चंद्रमा भी ज्यादा असुभ नहीं गुरु के साथ राजयोग कारक होता है शुक्र के साथ स्त्री के साथ स्त्री ग्रह सुभ ही फल देता है शनि के साथ इसको असुभ ही मानते है माता को कष्ट अदि आदि पर एक पहलु से शनि के साथ वैराग्य ग्रह शनि है आध्यात्मिक दृष्टि से शनि से युति ठीक रहती है लिखने को तो और भी वो फिर कभी
Saturday, April 16, 2016
चन्द्रमा की खराबी
परिवार में चन्द्रमा के खराब होने की पहिचान होती है कि घर के किसी व्यक्ति को ह्रदय वाली बीमारी हो जाती है,और घर का पैसा अस्पताल में ह्रदय रोग को ठीक करने के लिये जाने लगता है,ह्रदय का सीधा सा सम्बन्ध नशों से होता है,किसी कारण से ह्रदय के अन्दर के वाल्व अपना काम नही कर पाते है,उनके अन्दर अवरोध पैदा हो जाता है,और ह्रदय के अन्दर आने और जाने वाले खून की सप्लाई बाधित हो जाती है,लोग अस्पताल में जाते है,लाखो रुपये का ट्रीटमेंट करवाते है,दो चार साल ठीक रहते है फ़िर वहीं जाकर अपना इलाज करवाते है,मगर हो वास्तब में होता है,उसके ऊपर उनकी नजर नही जाती है,ह्रदय रोग के लिये चन्द्रमा बाधित होता है,तभी ह्रदय रोग होता है,और चन्द्रमा का दुश्मन लालकिताब के अनुसार केवल बुध को ही माना गया है,कुन्डली का तीसरा भाव ही ह्रदय के लिये जिम्मेदार माना जाता है,इसका मतलब होता है,कि कुन्डली का तीसरे भाव का चन्द्रमा खराब है,इस के लिये बुध का उपाय करना जरूरी इसलिये होता है कि बुध ही नशों का मालिक होता है,और किसी भी शारीरिक प्रवाह में अपना काम करता है,बुध के उपाय के लिये कन्या भोजन करवाना और कन्या दान करना बहुत उत्तम उपाय बताये जाते है,इसके अलावा तुरत उपाय के लिये कन्याओं को हरे कपडे दान करना और कन्याओं को खट्टे मीठे भोजन करवाना भी बेहतर उपाय बताये जाते है.
स्नायु रोगों के लिये बुध को ही जिम्मेदार माना जाता है,संचार का मालिक ग्यारहवां घर ही माना जाता है,आज के वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है,कि किसी भी प्रकार से ग्यारहवां घर शनि का घर नही है,शनि कर्म का दाता है,और शनि के लिये संचार का मालिक होना नही के बराबर है,युरेनस को संचार का मालिक कहा गया है,और ग्यारहवा,सातवां और तीसरा घर आपस में मुख्य त्रिकोण भी बनाते है,इस प्रकार से यह त्रिकोण जीवन साथी या साझेदार के साथ अपना लगाव भी रखता है,स्नायु रोग का मुख्य कारण अति कामुकता होती है,वीर्य जो शरीर का सूर्य होता है,और इस सूर्य का सहगामी और सबसे पास रहने वाला ग्रह बुध ही इसे संभालकर रखता है,अगर किसी प्रकार से यूरेनस की चाल इसकी समझ मे आजाता है,तो यह शरीर के अन्दर लगातार चलता रहता है,इसके चलते ही और अपने को प्रदर्शित करने के चक्कर में यह उल्टी सीधी जगह पर चला जाता है,दिमाग में विरोधी सेक्स के प्रति अधिक चाहत रहने से यह अपने को अपने स्थान पर रोक नही पाता है,और खराब हो जाता है,इसके कारण ही नशों में दुर्बलता और चेहरे की चमक चली जाती है,हाथ पैर और शरीर के अवयव सुन्न से हो जाते है,दिमाग में कितनी ही कोशिशों के बाद भी कोई बात नही बैठ पाती है,याददास्त कमजोर हो जाती है,कोई भी किया गया काम कुछ समय बाद दिमाग से निकल जाता है,बुध के उपाय के लिये कन्याओं को भोजन करवाना,और कन्या के प्रति श्रद्धा रखने से यह विचारों में परिवर्तन लाता है,और दिमागी हालत को ठीक रखने में अपना योगदान करता है,ब्राह्मण जो गुरु का कारक होता है,को पेठा जो बुध और मंगल की युति का बखान करता है,को दान करना उत्तम माना जाता है,सबसे अधिक प्रभाव स्नायु रोग के होने का दांतो पर पडता है,दांतो के द्वारा पता चलता है,कि स्नायु रोग है,इसके लिये फ़िटकरी से दांत साफ़ करना भी अचूक उपायों के अन्दर आता है
राहु मंत्र
राहु मंत्र का विनियोग
ऊँ कया निश्चत्रेति मंत्रस्य वामदेव ऋषि: गायत्री छन्द: राहुर्देवता: राहुप्रीत्यर्थे जपे विनोयोग:॥
दाहिने हाथ में जाप करते वक्त पानी या चावल ले लें,और यह मंत्र जपते हुये वे चावल या पानी राहुदेव की प्रतिमा या यंत्र पर छोड दें।
राहु मंत्र का देहागंन्यास
कया शिरसि। न: ललाटे। चित्र मुखे। आ कंठे । भुव ह्रदये। दूती नाभौ। सदा कट्याम। वृध: मेढ्रे सखा ऊर्वौ:। कया जान्वो:। शचिष्ठ्या गुल्फ़यो:। वृता पादयो:।
क्रम से सिर माथा मुंह कंठ ह्रदय नाभि कमर छाती जांघे गुदा और पैरों को उपरोक्त मंत्र बोलते हुये दाहिने हाथ से छुये।
राहु मंत्र का करान्यास
कया न: अंगुष्ठाभ्यां नम:। चित्र आ तर्ज्जनीभ्यां नम:। भुवदूती मध्यमाभ्यां नम:। सदावृध: सखा अनामिकाभ्यां नम:। कया कनिष्ठकाभ्यां नम:। शचिष्ट्या वृता करतलपृष्ठाभ्यां नम:॥
राहु मंत्र का ह्रदयान्यास
कयान: ह्रदयाय नम:। चित्र आ शिर्षे स्वाहा। भुवदूती शिखायै वषट। सदावृध: सखा कवचाय: हुँ। कया नेत्रत्रयाय वौषट। शचिष्ठ्या वृता अस्त्राय फ़ट।
राहु मंत्र के लिये ध्यान
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी करालवक्त्र: करवालशूली। चतुर्भुजश्चक्रधरश्च राहु: सिंहाधिरूढो वरदोऽस्तु मह्यम॥
राहु गायत्री
नीलवर्णाय विद्यमहे सैहिकेयाय धीमहि तन्नो राहु: प्रचोदयात ।
राहु का वैदिक बीज मंत्र
ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ कया नश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठ्या व्वृता ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: भ्रौँ भ्रीँ भ्राँ ऊँ राहुवे नम:॥
राहु का जाप मंत्र
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहुवे नम:॥ १८००० बार रोजाना,शांति मिलने तक॥
राहु स्तोत्र
राहु: दानव मन्त्री च सिंहिकाचित्त नन्दन:। अर्धकाय: सदा क्रोधी चन्द्र आदित्य विमर्दन:॥
रौद्र: रुद्र प्रिय: दैत्य: स्वर-भानु:-भानु भीतिद:। ग्रहराज: सुधा पायी राकातिथ्य-अभिलाषुक:॥
काल दृष्टि: काल रूप: श्री कण्ठह्रदय-आश्रय:। विधुन्तुद: सैहिकेय: घोर रूप महाबल:॥
ग्रह पीडा कर: दंष्ट्री रक्त नेत्र: महोदर:। पंचविंशति नामानि स्मृत्वा राहुं सदा नर:॥
य: पठेत महतीं पीडाम तस्य नश्यति केवलम। आरोग्यम पुत्रम अतुलाम श्रियम धान्यम पशून-तथा॥
ददाति राहु: तस्मै य: पठते स्तोत्रम-उत्तमम। सततम पठते य: तु जीवेत वर्षशतम नर:॥
राहु मंगल स्तोत्र
राहु: सिंहल देश जश्च निऋति कृष्णांग शूर्पासनो। य: पैठीनसि गोत्र सम्भव समिद दूर्वामुखो दक्षिण:॥
य: सर्पाद्यधि दैवते च निऋति प्रत्याधि देव: सदा। षटत्रिंस्थ: शुभकृत च सिंहिक सुत: कुर्यात सदा मंगलम॥
उपरोक्त दोनो स्तोत्रों का नित्य १०८ पाठ करने से राहु प्रदत्त समस्त प्रकार की कालिमा भयंकर क्रोध अकारण मस्तिष्क की गर्मी अनिद्रा अनिर्णय शक्ति ग्रहण योग पति पत्नी विवाद तथा काल सर्प योग सदा के लिये समाप्त हो जाते हैं,स्तोत्र पाठ करने के फ़लस्वरूप अखंड शांति योग की परिपक्वता पूर्ण निर्णय शक्ति तथा राहु प्रदत्त समस्त प्रकार के कष्टों से निवृत्ति हो जाती है।
राहु
Friday, April 15, 2016
राहु उपाय
राहु के समय में अधिक से अधिक चांदी पहननी चाहिये
राहु के रत्न गोमेद,तुरसा,साफ़ा आदि माने जाते है,लेकिन राहु के लिये कभी भी रत्नों को चांदी के अन्दर नही धारण करना चाहिये,क्योंकि चांदी के अन्दर राहु के रत्न पहिनने के बाद वह मानसिक चिन्ताओं को और बढा देता है,गले में और शरीर में खाली चांदी की वस्तुयें पहिनने से फ़ायदा होता है। बुधवार या शनिवार को को मध्य रात्रि में आर्द्रा नक्षत्र में अच्छा रत्न धारण करने के बाद ४० प्रतिशत तक फ़ायदा हो जाता है,रत्न की जब तक उसके ग्रह के अनुसार विधि विधान पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है,तो वह रत्न पूर्ण प्रभाव नही देता है,इसलिये रत्न पहिनने से पहले अर्थात अंगूठी या पेन्डल में लगवाने के बाद प्राण प्रतिष्ठा अवश्य करवालेनी चाहिये। क्योंकि पत्थर अपने आप में पत्थर ही है,जिस प्रकार से किसी मूर्ति को दुकान से लाने के बाद उसे मन्दिर में स्थापित करने के बाद प्रतिष्ठा करने के बाद ही वह फ़ल देना चालू करती है,और प्राण प्रतिष्ठा नही करवाने पर पता नही और कौन सी आत्मा उसके अन्दर आकर विराजमान हो जावे,और बजाय फ़ल देने के नुकसान देने लगे,उसी प्रकार से रत्न की प्राण प्रतिष्ठा नही करने पर भी उसके अन्दर और कौन सी शक्ति आकर बैठ जावे और जो किया जय वह खाकर गलत फ़ल देने लगे,इसका ध्यान रखना चाहिये,राहु की दशा और अन्तर दशा में तथा गोचर में चन्द्र सूर्य और लगन पर या लगनेश चन्द्र लगनेश या सूर्य लगनेश के ऊपर जब राहु की युति हो तो नीला कपडा भूल कर नही पहिनना चाहिये,क्योंकि नीला कपडा राहु का प्रिय कपडा है,और उसे एकपडे के पहिनने पर या नीली वस्तु प्रयोग करने पर जैसे गाडी या सामान पता नही कब हादसा देदे यह पता नही होता है।
राहु की जडी बूटियां
चंदन को माथे में लगाने वाला राहु से नही घबडाता
रत्न की अनुपस्थिति में राहु के लिये जडी बूटियों का प्रयोग भी आशातीत फ़ायदा देता है,इसकी जडी बूटियों में सफ़ेद चंदन को महत्ता दी गयी है,इसे आर्द्रा नक्षत्र में बुधवार या शनिवार को आधी रात के समय काले धागे में बांध कर पुरुष अपनी दाहिनी बाजू में और स्त्रियां अपनी बायीं बाजू में धारण कर सकती है। इसके धारण करने के बाद राहु का प्रभाव कम होना चालू हो जाता है।
राहु के लिये दान
आर्द्रा स्वाति शभिषा नक्षत्रों के काल में अभ्रक लौह जो हथियार के रूप में हो,तिल जो कि किसी पतली किनारी वाली तस्तरी में हो,नीला कपडा,छाग,तांबे का बर्तन,सात तरह के अनाज,उडद (माह),गोमेद,काले फ़ूल,खुशबू वाला तेल,धारी वाले कम्बल,हाथी का बना हुआ खिलौना,जौ धार वाले हथियार आदि।
राहु से जुडे व्यापार और नौकरी
यदि राहु अधिक अंशों में बलवान है,तो इस प्रकार व्यापार और नौकरी फ़ायदा देने वाले होते है,गांजा,अफ़ीम,भांग,रबड का व्यापार,लाटरी कमीशन, सर्कस की नौकरी,सिनेमा में नग्न दृश्य,प्रचार और मीडिया वाले कार्य,म्यूनिसपल्टी के काम,सडक बनाने के काम,जिला परिषद के काम,विधान सभा और लोक सभा के काम,उनकी सदस्यता आदि।
राहु का वैदिक मंत्र
राहु ग्रह सम्बन्धित पाठ पूजा आदि के स्तोत्र मंत्र तथा राहु गायत्री को पाठको की सुविधा के लिये यहां मै लिख रहा हूँ,वैदिक मंत्र अपने आप में अमूल्य है,इनका कोई मूल्य नही होता है,किसी दुखी व्यक्ति को प्रयोग करने से फ़ायदा मिलता है,तो मै समझूंगा कि मेरी मेहनत वसूल हो गयी है।
राहु