Wednesday, April 27, 2016

शनि की ढईया और साढ़े साती

ज्योतिष विधा के अनुसार शनिदेव जब गोचर में चन्द्र राशि से द्वादश भाव में आते हैं एवं द्वितीय भाव की राशि में रहते हैं तो साढ़े साती की अवधि कहलाती है (Shani’s sade sati starts when Saturn enters the 12th sign from the Moonsign). साढ़े साती की भांति ढैय्या भी काफी महत्वपूर्ण होती है.ढैय्या की अवधि वह होती है जब चन्द्र राशि से शनि चतुर्थ एवं अष्टम में होता है.गोचर मे शनि जब साढ़े साती अथवा ढैय्या के रूप में किसी व्यक्ति के जीवन में प्रवेश करता है तो लोग भयानक अनिष्ट की शंका से भयभीत हो उठते हैं.जबकि इस संदर्भ में ज्योतिषशास्त्र की कुछ अलग ही मान्यताएं हैं.
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार जिस व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शनि कारक ग्रह होता है उन्हें साढ़े साती और ढैय्या के समय शनि किसी प्रकार नुकसान नहीं पहुंचाते (If Saturn is a significator planet, then it will not harm the native even during the Sade-sati) बल्कि इस समय शनिदेव की कृपा से इन्हें सुख, समृद्धि, मान-सम्मान एवं सफलताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है.जिनकी कुण्डली में शनि मित्र ग्रह शुक्र की राशि वृषभ अथवा तुला में वास करते हैं उन्हें अनिष्ट फल नहीं देते हैं.बुध की राशि मिथुन एवं कन्या में होने पर भी शनि व्यक्ति को पीड़ित नहीं करते हैं.
गुरू बृहस्पति की राशि धनु एवं मीन व स्वराशि मकर एवं कुम्भ में विराजमान होने पर शनिदेव अनिष्ट फल नहीं देते हैं.सूर्य एवं चन्द्र की राशि सिंह एवं कर्क में होने पर शनिदेव मिला जुला फल देते हैं.इस राशि में जिनके शनिदेव होते हैं उन्हें शनि की साढ़े साती एवं ढैय्या में सुख एवं दु:ख दोनों ही बारी बारी से मिलते हैं.शनि अपने शत्रु ग्रह मंगल की राशि मेष और वृश्चिक में होने पर उग्र होता है.इस राशि में शनि की साढ़े साती होने पर व्यक्ति को शनि की पीड़ा का सामना करना होता है.इनके लिए शनि कष्टमय स्थिति पैदा करते है.
जन्म राशि और शनि का गोचर (Moonsign and Saturn’s transit)ज्योतिष विधा के अनुसार जन्म राशि वृषभ, मकर अथवा कुम्भ होने पर शनि का गोचर बहुत अधिक शुभफलदायी नहीं होता है.जिनका जन्म लग्न वृषभ, तुला, मकर या कुम्भ है उनके लिए शनि का गोचर अत्यंत लाभप्रद होता है.इसी प्रकार शनि जिस राशि में गोचर कर रहा है और कुण्डली में उसी राशि में गुरू है तो शनिदेव शुभ फल प्रदान करते हैं.शनिदेव जिस राशि में विचरण कर रहें हैं जन्मपत्री में उस राशि में राहु स्थित है तो शनि अपना फल तीव्र गति से प्रदान करते हैं.गोचर में शनिदेव उस समय भी शुभ फल प्रदान करते हैं जब कुण्डली में जिस राशि में शनि होते है उस राशि से शनि गोचर कर रहे होते हैं…
जन्म पत्रिका के 12 भावो में आकाशीय ग्रहों को जन्म लग्न के अनुसार स्थान दिया जाता है। व्यक्ति के जन्म के पश्चात ग्रह जिस प्रकार से जन्म पत्रिका के चक्र में घूमते हैं उसे ग्रहो का गोचर कहा जाता है।

सभी ग्रह समय समय पर अपने भाव के अनुसार प्रभाव देते हैं इसमें शनि का गोचर क्या कहता है देखें (Saturn’s transit refers to the journey of Saturn through the 12 signs)।

गोचर शनि की विशेषता (Importance of Saturn’s Transit)—-
शनि देव के नाम से बड़े से बड़ा सूरमा भी घबराता है। शनि का गोचर राजा को रंक और शक्तिशाली को शक्तिहीन बना देता है। लेकिन जरूरी नहीं कि गोचर में शनि देव सभी के लिए अशुभ कारक होते हैं। गोचर में शनि के कुछ सामान्य फल होते हैं तो कुछ विशेष प्रभाव भी होता है। साढ़े साती और कण्टक शनि ये दो शनिदेव के विशेष गोचर माने गये हैं। गोचर में साढ़े साती के दौरान शनि देव ढ़ाई ढ़ाई वर्ष के अन्तराल पर राशि परिवर्तन कर व्यक्ति की अलग अलग प्रकार से परीक्षा लेते हैं।

गोचर में शनि की साढ़े साती (Saturn’s Sade-sati transit)—–
जब शनि का गोचर जन्म राशि से 12 वीं राशि में होता है तब साढ़े साती की शुरूआत होती है। ढाई वर्ष बाद जब शनि गोचर में जन्म राशि में पहुंचता है तब सिर पर साढ़ेसाती होती है जो ढ़ाई वर्ष तक रहती है अंतिम ढ़ाई वर्ष में शनि का गोचर जन्मराशि से एक राशि आगे होता है इस समय उतरती साढ़ेसाती होती है। गोचर में यह शनि काफी अनिष्टकारी माना जाता है। चढ़ती साढ़ेसाती के दौरान शनि धन की हानि करते हैं और जीवन को इस प्रकार अस्त व्यस्त कर देते हैं कि चैन से जीना मुश्किल हो जाता है। मानसिक और शारीरिक तौर पर भी व्यक्ति परेशान और पीड़ित होता है

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