Thursday, April 28, 2016

शाबर मंत्र सिद्धि

इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र में उपासना सम्बन्धी अनेक योग हैं । शाबर मन्त्र को सिद्ध करने में कौन-कौन-से योग महत्त्व-पूर्ण हैं, इससे सम्बन्धी कुछ योग इस प्रकार हैं –
१॰ नवम स्थान में शनि हो, तो साधक शाबर मन्त्र में अरुचि रखता है अथवा वह शाबर-साधना सतत नहीं करेगा । यदि वह शाबर साधना करेगा, तो अन्त में उसको वैराग्य हो जाएगा ।
२॰ नवम स्थान में बुध होने से जातक को शाबर मन्त्र की सिद्धि में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है अथवा शाबर मन्त्र की साधना में प्रतिकूलताएँ आएँगी ।
३॰ पञ्चम स्थान के ऊपर यदि मंगल की दृष्टि हो, तो जातक कुल-देवता, कुल-देवी का उपासक होता है । पञ्चम स्थान के ऊपर गुरु की दृष्टि हो, तो साधक शाबर साधना में विशेष सफलता मिलती है । पञ्चम स्थान पर सूर्य की दृष्टि हो तो साधक सूर्य या विष्णु की उपासना में सफल होता है । यदि राहु की दृष्टि हो, तो वह भैरव उपासक बनता है । इस प्रकार के साधक को यदि पथ-निर्देशन नहीं मिलता, तो वह निम्न स्तर के देवी-देवताओं की उपासना करने लगता है ।
४॰ ज्योतिष विद्या का प्रसिद्ध ग्रन्थ “जैमिनि-सूत्र” है । इसके प्रणेता महर्षि जैमिनि है । इस ग्रन्थ से उपासना सम्बन्धी उत्तम मार्ग-दर्शन मिलता है यथा –
क॰ सबसे अधिक अंशवाले ग्रह को आत्मा-कारक ग्रह कहते हैं । नवमांश में यदि यदि आत्मा-कारक शुक्र हो, तो जातक लक्ष्मी की साधना करता है । ऐसे जातक को लक्ष्मी देवी के मन्त्र की साधना से लाभ-ही-लाभ मिलता है ।
ख॰ नवमांश में यदि आत्मा-कारक मंगल होता है, तो जातक भगवान् कार्तिकेय की उपासना से लाभान्वित होता है ।
ग॰ बुध व शनि से भगवान् विष्णु और गुरु के बलाबल से भगवान् सदा-शिव की उपासना लाभदायक होती है ।
घ॰ राहु से तामसिक देवी-देवताओं की उपासना सिद्ध होती है ।
ङ॰ शनि के उच्च-कोटि के होने पर साधक को उच्च-कोटि की सिद्धि सहज में मिलती है । इसके विपरित यदि शनि निम्न-कोटि का होता है, साधना की सिद्धि में विलम्ब होता है ।
च॰ जन्म-चक्र में यदि द्वादश स्थान में राहु होता है, तो साधक परमात्मा के साक्षात्कार हेतु उत्साहित रहता है । ऐसे बन्धुओं को मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र की सिद्धि द्वारा भौतिक लाभ-प्राप्ति से दूर रहना चाहिए, क्योंकि द्वादश स्थान मोक्ष-प्राप्ति का सूचक है । द्वादश स्थान में राहु के होने से वह साधना की सिद्धि में सहायक और लाभ-प्रद रहता है ।
छ॰ दशम स्थान में यदि सूर्य हो, तो साधक को भगवान् राम की उपासना करनी चाहिए और दशम स्थान में यदि चन्द्र हो, तो कृष्ण की उपासना करनी चाहिए ।
ज॰ सधम स्थान में यदि गुरु हो, तो साधक अन्तः-प्रेरणा या अन्तः-स्फुरण से उपासना करता है और सफल होता है ।

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