Saturday, November 1, 2014

कुंडली में लग्न से छठे भाव तक

कुंडली में लग्न से छठे भाव तक
जीवन का पूर्वाध माना गया हे।
एवं सप्तम से बारह भाव तक
जीवन का उतरार्ध होता हे।
जीवन के जिस भाग में बलवान
ग्रह अर्थात स्वग्रही, उच्च राशि,
उच्च नवांश, वर्गोत्तम,प्रकाशित,
दिग्बली,कालबली ग्रह हो,उस
भाग में धन, प्रसिद्दि, सुख एवं
सभी कार्य सम्पन्न होते हे।
जीवन के जिस भाग में निर्बल
ग्रह अर्थात शत्रु ग्रही, शत्रु नवांश
नीच, अस्त गत, क्षीण प्रकाशित,
दिक् , काल बल से हीन ग्रह हो
तो, चिंता, शोक,अपयश,हानि,
अपमान,धन नाश,व रोग की
स्थिति बनती हे। ॐ हरि ॐ ।

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