आइए जानें, किस समस्या के लिए कौन से मंत्र का जाप
करना फलदायक होता है :
ध्यान रखें कि मंत्र आस्था से जुड़ा है और यदि आपका मन इन
मंत्रों को स्वीकार करता है तभी इसका जाप
करें। मंत्र जप करते समय शांत चित्त रहने का प्रयास करें। आंखें
यथासंभव बंद रखें और ध्यान दोनों आंखों के मध्य
ही केन्द्रित रखें। वातावरण को अगरबत्ती,
धूप या सुंगंधित पदार्थों का प्रयोग करके सुगंधित रखें। दोनों कानों के
पीछे इत्र या परफ्यूम लगा लें। ईश्वर और स्वयं पर
विश्वास आवश्यक है।
मंत्र शब्द का निर्माण मन से हुआ है। मन के द्वारा और मन के
लिए। मन के द्वारा यानी मनन करके और मन के लिए
यानी 'मननेन त्रायते इति मन्त्रः' जो मनन करने पर त्राण
यानी लक्ष्य पूर्ति कर दे, उसे मन्त्र कहते हैं। मंत्र
अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनने वाली वह
ध्वनि है जो हमारे लौकिक और पारलौकिक हितों को सिद्ध करने के
लिए प्रयुक्त होती है। यह सृष्टि प्रकाश और शब्द
द्वारा निर्मित और संचालित मानी जाती है। इन
दोनों में से कोई भी ऊर्जा एक-दूसरे के बिना सक्रिय
नहीं हो सकती और शब्द मंत्र
का ही स्वरूप है। आप किसी कार्य
को या तो स्वयं करते हैं या निर्देश देते हैं। आप निर्देश या तो लिखित
स्वरूप में देते हैं या मौखिक रूप में देते हैं। मौखिक रूप में दिए गए
निर्देश को हम मंत्र भी कह सकते हैं। हर शब्द
और अपशब्द एक मंत्र ही है। इसीलिए
अपशब्दों एवं नकारात्मक शब्दों और वचनों के प्रयोग से हमें
बचना चाहिए।
किसी भी मंत्र के जाप से पूर्व संबंधित
देवता व गणपति के ध्यान के साथ गुरु का ध्यान, स्मरण और पूजन
आवश्यक है। यदि कोई गुरु न हो तो जिस ग्रंथ से आपको मंत्र
प्राप्त हुए हैं उस ग्रंथ के लेखक को अथवा शिव को मन में
ही प्रणाम करें।
कब किस मंत्र का जाप करें...
कभी-कभार ऐसा होता है
कि आपकी गलती न होने पर
भी उस कर्म के लिए आपको ही जिम्मेदार
ठहराया जाता है। बेवजह के लांछन से आपका मन परेशान
हो उठता है। ऐसे में इस मंत्र का जाप आपको इस समस्या से
मुक्ति दिला सकता है।
ॐ ह्रीं घृणी: सूर्याय आदित्य
श्रीं ।।
ॐ ह्रौं जूँ
सः क्लीं क्लीं क्लीं ।।
किसी ग्रह के फेर, भय और शंका से आप घिरे रहते
हैं। ऐसे में जब कोई अपना घर से निकलता है तो अनिष्ट
की आशंका मन में सताने लगती है। इस
वक्त भगवान का स्मरण करते हुए आप इस मंत्र का जाप कर
सकते हैं।
ॐ जूँ सः (पूरा नाम) पालय पालय सः जूँ ॐ
ॐ ॐ।।
यदि आप किसी मुसीबत में पड़े हों और
आपको न चाहते हुए भी मौत का भय
सता रहा हो तो इस मंत्र का जाप करना शुरू कर दें।ॐ
ह्रौं जूँ सः।।
“ ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव
बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥”
यदि आप अपने करियर में खुद को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं
तो इस मंत्र का जाप फलदायक साबित हो सकता है।
“ ॐ भूर्भुव: स्वः। तत्सवितुर् वरेण्यं ।। भर्गो देवस्य
धीमहि। धियो योनः प्रचोदयात्
क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ।।”
जब किसी भी कारणों से मन खिन्न हो और
आपका मन आपके कंट्रोल में न आ रहा हो तो यह मंत्र
आपको शांति प्रदान करेगा।
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथ्वी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
कोई बड़ी डील बनते-बनते बिगड़ने
की कगार पर हो या फिर कोई नुकसान का भय हो तो इस
मंत्र का जाप करें।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
इम्तिहान अच्छा तो हुआ, लेकिन इसमें कामयाब होने के लिए अब
भी कुछ करना चाहते हों तो यह पढ़ें।
ऐं ह्रीं ऐं॥
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ऐं ऐं ऐं॥
करना फलदायक होता है :
ध्यान रखें कि मंत्र आस्था से जुड़ा है और यदि आपका मन इन
मंत्रों को स्वीकार करता है तभी इसका जाप
करें। मंत्र जप करते समय शांत चित्त रहने का प्रयास करें। आंखें
यथासंभव बंद रखें और ध्यान दोनों आंखों के मध्य
ही केन्द्रित रखें। वातावरण को अगरबत्ती,
धूप या सुंगंधित पदार्थों का प्रयोग करके सुगंधित रखें। दोनों कानों के
पीछे इत्र या परफ्यूम लगा लें। ईश्वर और स्वयं पर
विश्वास आवश्यक है।
मंत्र शब्द का निर्माण मन से हुआ है। मन के द्वारा और मन के
लिए। मन के द्वारा यानी मनन करके और मन के लिए
यानी 'मननेन त्रायते इति मन्त्रः' जो मनन करने पर त्राण
यानी लक्ष्य पूर्ति कर दे, उसे मन्त्र कहते हैं। मंत्र
अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनने वाली वह
ध्वनि है जो हमारे लौकिक और पारलौकिक हितों को सिद्ध करने के
लिए प्रयुक्त होती है। यह सृष्टि प्रकाश और शब्द
द्वारा निर्मित और संचालित मानी जाती है। इन
दोनों में से कोई भी ऊर्जा एक-दूसरे के बिना सक्रिय
नहीं हो सकती और शब्द मंत्र
का ही स्वरूप है। आप किसी कार्य
को या तो स्वयं करते हैं या निर्देश देते हैं। आप निर्देश या तो लिखित
स्वरूप में देते हैं या मौखिक रूप में देते हैं। मौखिक रूप में दिए गए
निर्देश को हम मंत्र भी कह सकते हैं। हर शब्द
और अपशब्द एक मंत्र ही है। इसीलिए
अपशब्दों एवं नकारात्मक शब्दों और वचनों के प्रयोग से हमें
बचना चाहिए।
किसी भी मंत्र के जाप से पूर्व संबंधित
देवता व गणपति के ध्यान के साथ गुरु का ध्यान, स्मरण और पूजन
आवश्यक है। यदि कोई गुरु न हो तो जिस ग्रंथ से आपको मंत्र
प्राप्त हुए हैं उस ग्रंथ के लेखक को अथवा शिव को मन में
ही प्रणाम करें।
कब किस मंत्र का जाप करें...
कभी-कभार ऐसा होता है
कि आपकी गलती न होने पर
भी उस कर्म के लिए आपको ही जिम्मेदार
ठहराया जाता है। बेवजह के लांछन से आपका मन परेशान
हो उठता है। ऐसे में इस मंत्र का जाप आपको इस समस्या से
मुक्ति दिला सकता है।
ॐ ह्रीं घृणी: सूर्याय आदित्य
श्रीं ।।
ॐ ह्रौं जूँ
सः क्लीं क्लीं क्लीं ।।
किसी ग्रह के फेर, भय और शंका से आप घिरे रहते
हैं। ऐसे में जब कोई अपना घर से निकलता है तो अनिष्ट
की आशंका मन में सताने लगती है। इस
वक्त भगवान का स्मरण करते हुए आप इस मंत्र का जाप कर
सकते हैं।
ॐ जूँ सः (पूरा नाम) पालय पालय सः जूँ ॐ
ॐ ॐ।।
यदि आप किसी मुसीबत में पड़े हों और
आपको न चाहते हुए भी मौत का भय
सता रहा हो तो इस मंत्र का जाप करना शुरू कर दें।ॐ
ह्रौं जूँ सः।।
“ ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव
बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥”
यदि आप अपने करियर में खुद को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं
तो इस मंत्र का जाप फलदायक साबित हो सकता है।
“ ॐ भूर्भुव: स्वः। तत्सवितुर् वरेण्यं ।। भर्गो देवस्य
धीमहि। धियो योनः प्रचोदयात्
क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ।।”
जब किसी भी कारणों से मन खिन्न हो और
आपका मन आपके कंट्रोल में न आ रहा हो तो यह मंत्र
आपको शांति प्रदान करेगा।
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथ्वी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
कोई बड़ी डील बनते-बनते बिगड़ने
की कगार पर हो या फिर कोई नुकसान का भय हो तो इस
मंत्र का जाप करें।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
इम्तिहान अच्छा तो हुआ, लेकिन इसमें कामयाब होने के लिए अब
भी कुछ करना चाहते हों तो यह पढ़ें।
ऐं ह्रीं ऐं॥
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ऐं ऐं ऐं॥
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