भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कुल 9 ग्रह बताए गए हैं।
इसमें 2 छाया ग्रह हैं।
सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ग्रह हैं और राहु-केतु
छाया ग्रह हैं छाया ग्रह से अभिप्राय है
बनावटी ग्रह अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ
बुरा।
मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ये ग्रह समय-समय पर उदय, अस्त,
वक्री मार्गी होते रहते हैं। राहु-केतु
सदैव वक्री रहते हैं।
सूर्य के समीप जो भी ग्रह होता है वह
अस्त हो जाता है
जानिए ग्रहो की शुभ और अशुभ राशियाँ
सूर्य मेष राशि में उच्च, तुला राशि में नीच का होता है।
चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च, वृश्चिक राशि में नीच,
मंगल मकर राशि में उच्च, कर्क राशि में नीच,
बुध कन्या राशि में उच्च, मीन राशि में नीच
का होता है।
गुरु कर्क राशि में उच्च, मकर राशि में नीच,
शनि तुला राशि में उच्च, मेष राशि में नीच का होता है।
राहु मिथुन राशि में उच्च का धनु राशि में नीच का होता है।
केतु धनु राशि में उच्च का, मिथुन राशि में नीच का होता है।
शुभ और अशुभ ग्रह :-
चंद्रमा ,बुध शुक्र और गुरु ,ये क्रम से अधिकाधिक शुभ माने गए है।
अर्थात चंद्रमा से बुध , बुध से शुक्र और शुक्र से गुरु अधिक शुभ
है।
सूर्य , मंगल, शनि और राहू ये क्रम से अधिकाधिक
पापी ग्रह है
अर्थात सूर्य से मंगल, मंगल से शनि और शनि से राहू अधिक
पापी है।
जानिए ग्रहों के शत्रु , मित्र और सम ग्रह
ग्रहो में भी आपसी बैर भाव होता है जिस
कारण वो अपना शुभ और अशुभ परिणाम देते है जैसे -
सूर्य के मित्र ग्रह है - चंद्र, मंगल, गुरु, शत्रु ग्रह -शुक्र,
शनि व बुध सम हैं।
चंद्रमा के मित्र ग्रह - सूर्य, बुध, शत्रु कोई नहीं,
सम -मंगल, गुरु, शुक्र, शनि हैं।
मंगल के मित्र ग्रह- सूर्य, गुरु और शत्रु बुध, सम शुक्र-शनि हैं।
बुध केमित्र ग्रह- सूर्य, शुक्र , चंद्र-मंगल शत्रु, सम गुरु हैं।
गुरु के मित्र ग्रह-सूर्य-चंद्र-मंगल हैं जबकि बुध-शुक्र से
शत्रुता व सम शनि से है।
शुक्र के मित्र ग्रह- बुध-शनि हैं, सूर्य, चंद्र शत्रु हैं, सम गुरु
है।
शनि के मित्र ग्रह- बुध, शुक्र, शत्रु ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल,
समभाव गुरु से है।
राहु-केतु के मित्र बुध, शनि, शुक्र, शत्रु सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु हैं।
ज्योतिष शास्त्र में कुल 12 रशिया और 12 ही लग्न
होते है
मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ,
मीन ये बारह राशियाँ है
सभी राशियों के अपने स्वामी होते है जैसे -
मेष , वृश्चिक का मंगल
वृष और तुला राशि का स्वामी शुक्र
कर्क का चन्द्र , सिंह का सूर्य
मिथुन और कन्या का बुध
धनु और मीन राशि का गुरु
कुम्भ और मीन का शनि स्वामी होता है
प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं, इस भाव से मुख्यत: जातक
का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज,
आरोग्य का विचार होता है।
द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है, इससे कुटुंब-
परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमुल्य
सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-
सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि पर विचार किया जाता है।
तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है।
इसे भातृ भाव भी कहते हैं, इस भाव से भाई-बहन,
दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-
चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन
आदि पर विचार करते है।
चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है , इस भाव से माता, जन्म
समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय,
छाती, पति-
पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले,
चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख का विचार करते है।
पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव
भी कहलाता है, इस भाव से संतान अर्थात्
पुत्र .पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या,
प्रतिष्टा आदि का विचार करते हैं।
षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं, इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग,
मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि का विचार
होता है।
सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव
कहलाता है, इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह
संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों,
सांझेदारी के व्यापार आदि पर विचार किया जाता है।
अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं, आठवें भाव
से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा,
आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ
आदि का विचार होता है।
नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहा जाता हैं ,भाग्य, धर्म पर आस्था,
गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य,
वैराग्य आदि विषयों पर विचार इसी भाव के अन्तर्गत
होता है।
दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है, दशम भाव से कर्म,
नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश,
सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ
धन, दीर्ध यात्राएं, सुख आदि पर विचार किया जाता है।
एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है, इस
भा से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न
कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु
आदि का विचार होता है।
द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है, इस भाव से धन व्यय,
बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश,
दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त
की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य,
राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या,
एवं मोक्ष आदि का विचार किया जाता है।
इसमें 2 छाया ग्रह हैं।
सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ग्रह हैं और राहु-केतु
छाया ग्रह हैं छाया ग्रह से अभिप्राय है
बनावटी ग्रह अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ
बुरा।
मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ये ग्रह समय-समय पर उदय, अस्त,
वक्री मार्गी होते रहते हैं। राहु-केतु
सदैव वक्री रहते हैं।
सूर्य के समीप जो भी ग्रह होता है वह
अस्त हो जाता है
जानिए ग्रहो की शुभ और अशुभ राशियाँ
सूर्य मेष राशि में उच्च, तुला राशि में नीच का होता है।
चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च, वृश्चिक राशि में नीच,
मंगल मकर राशि में उच्च, कर्क राशि में नीच,
बुध कन्या राशि में उच्च, मीन राशि में नीच
का होता है।
गुरु कर्क राशि में उच्च, मकर राशि में नीच,
शनि तुला राशि में उच्च, मेष राशि में नीच का होता है।
राहु मिथुन राशि में उच्च का धनु राशि में नीच का होता है।
केतु धनु राशि में उच्च का, मिथुन राशि में नीच का होता है।
शुभ और अशुभ ग्रह :-
चंद्रमा ,बुध शुक्र और गुरु ,ये क्रम से अधिकाधिक शुभ माने गए है।
अर्थात चंद्रमा से बुध , बुध से शुक्र और शुक्र से गुरु अधिक शुभ
है।
सूर्य , मंगल, शनि और राहू ये क्रम से अधिकाधिक
पापी ग्रह है
अर्थात सूर्य से मंगल, मंगल से शनि और शनि से राहू अधिक
पापी है।
जानिए ग्रहों के शत्रु , मित्र और सम ग्रह
ग्रहो में भी आपसी बैर भाव होता है जिस
कारण वो अपना शुभ और अशुभ परिणाम देते है जैसे -
सूर्य के मित्र ग्रह है - चंद्र, मंगल, गुरु, शत्रु ग्रह -शुक्र,
शनि व बुध सम हैं।
चंद्रमा के मित्र ग्रह - सूर्य, बुध, शत्रु कोई नहीं,
सम -मंगल, गुरु, शुक्र, शनि हैं।
मंगल के मित्र ग्रह- सूर्य, गुरु और शत्रु बुध, सम शुक्र-शनि हैं।
बुध केमित्र ग्रह- सूर्य, शुक्र , चंद्र-मंगल शत्रु, सम गुरु हैं।
गुरु के मित्र ग्रह-सूर्य-चंद्र-मंगल हैं जबकि बुध-शुक्र से
शत्रुता व सम शनि से है।
शुक्र के मित्र ग्रह- बुध-शनि हैं, सूर्य, चंद्र शत्रु हैं, सम गुरु
है।
शनि के मित्र ग्रह- बुध, शुक्र, शत्रु ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल,
समभाव गुरु से है।
राहु-केतु के मित्र बुध, शनि, शुक्र, शत्रु सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु हैं।
ज्योतिष शास्त्र में कुल 12 रशिया और 12 ही लग्न
होते है
मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ,
मीन ये बारह राशियाँ है
सभी राशियों के अपने स्वामी होते है जैसे -
मेष , वृश्चिक का मंगल
वृष और तुला राशि का स्वामी शुक्र
कर्क का चन्द्र , सिंह का सूर्य
मिथुन और कन्या का बुध
धनु और मीन राशि का गुरु
कुम्भ और मीन का शनि स्वामी होता है
प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं, इस भाव से मुख्यत: जातक
का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज,
आरोग्य का विचार होता है।
द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है, इससे कुटुंब-
परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमुल्य
सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-
सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि पर विचार किया जाता है।
तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है।
इसे भातृ भाव भी कहते हैं, इस भाव से भाई-बहन,
दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-
चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन
आदि पर विचार करते है।
चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है , इस भाव से माता, जन्म
समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय,
छाती, पति-
पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले,
चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख का विचार करते है।
पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव
भी कहलाता है, इस भाव से संतान अर्थात्
पुत्र .पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या,
प्रतिष्टा आदि का विचार करते हैं।
षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं, इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग,
मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि का विचार
होता है।
सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव
कहलाता है, इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह
संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों,
सांझेदारी के व्यापार आदि पर विचार किया जाता है।
अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं, आठवें भाव
से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा,
आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ
आदि का विचार होता है।
नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहा जाता हैं ,भाग्य, धर्म पर आस्था,
गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य,
वैराग्य आदि विषयों पर विचार इसी भाव के अन्तर्गत
होता है।
दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है, दशम भाव से कर्म,
नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश,
सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ
धन, दीर्ध यात्राएं, सुख आदि पर विचार किया जाता है।
एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है, इस
भा से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न
कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु
आदि का विचार होता है।
द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है, इस भाव से धन व्यय,
बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश,
दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त
की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य,
राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या,
एवं मोक्ष आदि का विचार किया जाता है।
Sir aap ko saparivaar angrezi navvarsh 2017 ki aur Lohiri ki badhaai
ReplyDeleteKripaya meri kundli aur hastrekha ki photo attach kiya hai dekhiye
Mere janam vivaran. My birth details :
Date of Birth: 10 February 1981 Tuesday
Time of Birth: 21:43 (=09:43 PM), Indian Standard Time
Place of Birth: Bhubaneswar (Orissa), India
Latitude: 20.13N Longitude: 85.50E
Gender : Male ; Marital Status : Single
Maine Electronics and Telecommunication engineering me B.Tech kiya hai. Software Enginerr hoon Bangalore me.
Kripaya Nimna vishayon par uttar den
Vivah kab hoga,
love marriage hoga ya arranged marriage hoga, vivah kis direction me hoga
patni kaisi hogi jaise ki
sundarta,
dhan jaise ki amir gharane se ya uchh madhyabitt gharane se
roop rang (jaise ki gori/swali/kali etc),
height/kad (lambi/medium/naati),
swabhav (vinamra/dominating/adhyatma prabruti/stylish/smart modern etc.),
charitra kaisa hoga,
uski shiksha (kis field se education jaise doctor engineer lawyer ),
naukri (engineer/doctor/lawyer etc.).
vaivahik Jeevan kaisa rahega, koi divorce/talaq ka yoga hai ya nahi
Sumit Tripathy