*** विदेश यात्रा ***
विदेश यात्रा (कारक भाव )
-:अष्ठम भाव -जल यात्रा ,समुद्र यात्रा का कारक
-:द्वादश भाव -विदेश यात्रा ,समुद्र
यात्रा ,अनजानी जगह पर यात्रा..
-:सप्तम भाव -व्यवसाईक यात्रा ,
-:नवम भाव -लंबी यात्रा ,धार्मिक यात्रा
-:तृतीय भाव -छोटी यात्रा
** कारक- ग्रह / दिशा **
पूर्व -सूर्य
पश्चिम-शनि
उत्तर -बुध्ध
दक्षिण -मंगल
इशान -गुरु
अग्नि-शुक्र
वायव्य -चन्द्र
नैरुत्य-राहू /केतू
** ग्रह **
चंद्र -समुद्र यात्रा का कारक (विदेश गमन )
गुरु -हवाई यात्रा (यात्रा )
शनि -हवाई यात्रा (विदेश गमन )
राहू -हवाई यात्रा (विदेश गमन )
** योग **
-:मंगल भूमि पुत्र है अगर जन्म कुंडली में विदेश
यात्रा के योग हे और मंगल की दृष्टिचतुर्थ भाव में
हो या मंगल चतुर्थ भाव में हो ,या चतुर्थेश के साथ मंगल
का सम्बन्ध हो तो जातक विदेश में स्थाई
नही रहेता ...
-:नवम भाव , तृतीय भाव , द्वादश भाव
का सम्बन्ध ..प्रबल विदेश योग बनता है
-:द्वादश भाव में राहू
-:चतुर्थ भाव मात्रु भूमि का भाव हे जब यह भाव पाप
कर्तरी में हो या इस भाव में पाप ग्रहों का प्रभाव
हो तो जातक अपने वतन से दूर रहता है ..
-:भाग्येश ,सप्तमेश के साथ सप्तम भाव में हो तो जातक विदेश में
व्यवसाय करता है..
-:सप्तमेश की युति कोई भी शुभ ग्रह से
लग्न में हो तो जातक को बार बार विदेश जाने का योग बनता है..
(जेसे पायलट ,एर होस्टेस )
-:द्वादशेश ,सप्तमेश का परिवर्तन योग ,या इन दोनों भावो का सम्बन्ध
किसी भी प्रकार से हो तो जीवन
साथी विदेश से मिलता है या शादी के
द्वारा विदेश योग बनता है , इसी योग के साथ अगर
तृतीयेश का सम्बन्ध हो जाये तो एडवर्टाइजमेंट के
द्वारा शादी होती हे और विदेश योग
बनता हे (जेसे अखबार केमाध्यम से )
-:भाग्येश द्वादश भाव में हो तो जातक धर्म कार्य के लिए विदेश योग
बनता है..
-:पंचमेश का सम्बन्ध ,द्वादश भाव ,नवम
भाव ,तृतीय भाव से हो तो जातक स्टडी के
लिए विदेश जाता है..
-:चर राशि में ज्यादा ग्रह हो तो विदेश योग बनता है..
-:वायु तत्व राशि में ज्यादा ग्रह हो तो हवाई यात्रा ,जल तत्व राशि में
ज्यादा ग्रह हो तो समुद्र यात्रा ,पृथ्वी तत्व राशि में
ज्यादा ग्रह हो तो ...रोड यात्रा ...यह अनुमान
लगाया जा सकता है..
-:केतु ग्रह सूर्य से 6th ,8th ,12th भाव में हो तो सूर्य
दशा केतु अंतर दशा में विदेश योग बनता है..
** नोट **
-:इन सब योगो में चन्द्र का बलवान होना जरुरी है
(चन्द्र मन का कारक है)
-:लग्न और लग्नेश जितना निर्बल उतना विदेश योग प्रबल
बनता है..
-:चतुर्थ भाव और चतुर्थेश भी निर्बल होना चाहिए
-:भाग्येश की दशा ,द्वादशेश
की दशा ,चन्द्र ,केतु ,राहू महादशा में ज्यादातर
विदेश जाने का योग बनता है..
-:और शनि ढैया,पनोती का समय भी विदेश
जाने के योग बनते है....
विदेश यात्रा (कारक भाव )
-:अष्ठम भाव -जल यात्रा ,समुद्र यात्रा का कारक
-:द्वादश भाव -विदेश यात्रा ,समुद्र
यात्रा ,अनजानी जगह पर यात्रा..
-:सप्तम भाव -व्यवसाईक यात्रा ,
-:नवम भाव -लंबी यात्रा ,धार्मिक यात्रा
-:तृतीय भाव -छोटी यात्रा
** कारक- ग्रह / दिशा **
पूर्व -सूर्य
पश्चिम-शनि
उत्तर -बुध्ध
दक्षिण -मंगल
इशान -गुरु
अग्नि-शुक्र
वायव्य -चन्द्र
नैरुत्य-राहू /केतू
** ग्रह **
चंद्र -समुद्र यात्रा का कारक (विदेश गमन )
गुरु -हवाई यात्रा (यात्रा )
शनि -हवाई यात्रा (विदेश गमन )
राहू -हवाई यात्रा (विदेश गमन )
** योग **
-:मंगल भूमि पुत्र है अगर जन्म कुंडली में विदेश
यात्रा के योग हे और मंगल की दृष्टिचतुर्थ भाव में
हो या मंगल चतुर्थ भाव में हो ,या चतुर्थेश के साथ मंगल
का सम्बन्ध हो तो जातक विदेश में स्थाई
नही रहेता ...
-:नवम भाव , तृतीय भाव , द्वादश भाव
का सम्बन्ध ..प्रबल विदेश योग बनता है
-:द्वादश भाव में राहू
-:चतुर्थ भाव मात्रु भूमि का भाव हे जब यह भाव पाप
कर्तरी में हो या इस भाव में पाप ग्रहों का प्रभाव
हो तो जातक अपने वतन से दूर रहता है ..
-:भाग्येश ,सप्तमेश के साथ सप्तम भाव में हो तो जातक विदेश में
व्यवसाय करता है..
-:सप्तमेश की युति कोई भी शुभ ग्रह से
लग्न में हो तो जातक को बार बार विदेश जाने का योग बनता है..
(जेसे पायलट ,एर होस्टेस )
-:द्वादशेश ,सप्तमेश का परिवर्तन योग ,या इन दोनों भावो का सम्बन्ध
किसी भी प्रकार से हो तो जीवन
साथी विदेश से मिलता है या शादी के
द्वारा विदेश योग बनता है , इसी योग के साथ अगर
तृतीयेश का सम्बन्ध हो जाये तो एडवर्टाइजमेंट के
द्वारा शादी होती हे और विदेश योग
बनता हे (जेसे अखबार केमाध्यम से )
-:भाग्येश द्वादश भाव में हो तो जातक धर्म कार्य के लिए विदेश योग
बनता है..
-:पंचमेश का सम्बन्ध ,द्वादश भाव ,नवम
भाव ,तृतीय भाव से हो तो जातक स्टडी के
लिए विदेश जाता है..
-:चर राशि में ज्यादा ग्रह हो तो विदेश योग बनता है..
-:वायु तत्व राशि में ज्यादा ग्रह हो तो हवाई यात्रा ,जल तत्व राशि में
ज्यादा ग्रह हो तो समुद्र यात्रा ,पृथ्वी तत्व राशि में
ज्यादा ग्रह हो तो ...रोड यात्रा ...यह अनुमान
लगाया जा सकता है..
-:केतु ग्रह सूर्य से 6th ,8th ,12th भाव में हो तो सूर्य
दशा केतु अंतर दशा में विदेश योग बनता है..
** नोट **
-:इन सब योगो में चन्द्र का बलवान होना जरुरी है
(चन्द्र मन का कारक है)
-:लग्न और लग्नेश जितना निर्बल उतना विदेश योग प्रबल
बनता है..
-:चतुर्थ भाव और चतुर्थेश भी निर्बल होना चाहिए
-:भाग्येश की दशा ,द्वादशेश
की दशा ,चन्द्र ,केतु ,राहू महादशा में ज्यादातर
विदेश जाने का योग बनता है..
-:और शनि ढैया,पनोती का समय भी विदेश
जाने के योग बनते है....
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