Monday, November 10, 2014

हवन (यज्ञ, अग्निहोत्र) का महत्व

हवन (यज्ञ, अग्निहोत्र) का महत्व . Importance of
Agnihotra (Homam)
क्या आप जानते हैं कि सनातन धर्म में यज्ञ हवन
तथा अग्निहोत्र को इतना महत्व क्यों दिया गया है एवं,
यज्ञों का वैज्ञानिक महत्व क्या है? यज्ञ के समान धार्मिक एवं
वैज्ञानिक महत्व और किसी भी वस्तु
को नहीं दिया गया हमारे धर्म ग्रंथों में!
परन्तु , दुर्भाग्य से हिन्दू सनातन धर्म में सर्वोच्च स्थान पर
विराजमान यह हवन आज प्रायः एक आम आदमी से
दूर है साथ ही आज इसे केवल कुछ वर्ग तक
सीमित कर दिया गया है और, हद तो यह है कि आज
कोई यज्ञ पर प्रश्न कर रहा है तो कोई मजाक!
लेख का उद्देश्य जनमानस को यह याद दिलाना है कि हवन
क्यों इतना पवित्र है और, क्यों यज्ञ करना न सिर्फ हर इंसान
का अधिकार है बल्कि, कर्त्तव्य भी है यह लेख
100 करोड़ हिंदुओं के लिए नहीं है.... बल्कि, यह
लेख दुनिया के 7 अरब मनुष्यों के भलाई से सम्बंधित है!
हिंदू धर्म में सर्वोपरि पूजनीय वेदों और ब्राह्मण
ग्रंथों में यज्ञ/हवन
की क्या महिमा है........उसकी कुछ
झलक इन मन्त्रों में मिलती है-
१. अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्. होतारं
रत्नधातमम्........ [ ऋग्वेद 1/1/1/]
२. समिधाग्निं दुवस्यत घृतैः बोधयतातिथिं. आस्मिन्
हव्या जुहोतन. ........[यजुर्वेद 3/1]
३. अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुवे......... [यजुर्वेद
22/17]
४. सायंसायं गृहपतिर्नो अग्निः प्रातः प्रातः सौमनस्य दाता..........
[अथर्ववेद 19/7/3]
५. प्रातः प्रातः गृहपतिर्नो अग्निः सायं सायं सौमनस्य दाता. .........
[अथर्ववेद 19/7/4]
६. तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः .........[यजुर्वेद
31/9]
७. अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तोधि ब्रुवन्तु तेवन्त्वस्मान ..........
[यजुर्वेद 19/58]
८. यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म ...........[शतपथ ब्राह्मण
1/7/1/5]
९. यज्ञो हि श्रेष्ठतमं कर्म ............[तैत्तिरीय
3/2/1/4]
१०. यज्ञो अपि तस्यै जनतायै कल्पते, यत्रैवं विद्वान
होता भवति [ऐतरेय ब्राह्मण १/२/१]
११. यदैवतः स यज्ञो वा यज्याङ्गं वा.. [निरुक्त ७/४]
उपर्युक्त श्लोकों के निहित अर्थ -
"इस सृष्टि को रच कर जैसे ईश्वर हवन कर रहा है वैसे मैं
भी करता हूँ.", "यह यज्ञ धनों का देने वाला है, "इसे
प्रतिदिन भक्ति से करो, उन्नति करो." "हर दिन इस पवित्र
अग्नि का आधान मेरे संकल्प को बढाता है." "मैं इस हवन कुंड
की अग्नि में अपने पाप और दुःख फूंक डालता हूँ." "इस
अग्नि की ज्वाला के समान सदा ऊपर को उठता हूँ.",
"इस अग्नि के समान स्वतन्त्र विचरता हूँ, कोई मुझे बाँध
नहीं सकता." "अग्नि के तेज से मेरा मुखमंडल चमक
उठा है, यह दिव्य तेज है." "हवन कुंड की यह
अग्नि मेरी रक्षा करती है." "यज्ञ
की इस अग्नि ने मेरी नसों में जान डाल
दी है." "एक हाथ से यज्ञ करता हूँ, दूसरे से
सफलता ग्रहण करता हूँ." "हवन के ये दिव्य मन्त्र
मेरी जीत की घोषणा हैं."
"मेरा जीवन हवन कुंड की अग्नि है,
कर्मों की आहुति से इसे और प्रचंड करता हूँ."
"प्रज्ज्वलित हुई हे हवन की अग्नि! तू मोक्ष के
मार्ग में पहला पग है." "यह अग्नि मेरा संकल्प है. हार और
दुर्भाग्य इस हवन कुंड में राख बने पड़े हैं." "हे सर्वत्र
फैलती हवन की अग्नि!
मेरी प्रसिद्धि का समाचार जन जन तक पहुँचा दे!" "इस
हवन की अग्नि को मैंने हृदय में धारण किया है, अब
कोई अँधेरा नहीं." "यज्ञ और अशुभ वैसे
ही हैं जैसे प्रकाश और अँधेरा. दोनों एक साथ
नहीं रह सकते." "भाग्य कर्म से बनते हैं और कर्म
यज्ञ से. यज्ञ कर और भाग्य चमका ले!" "इस यज्ञ
की अग्नि की रगड़ से बुद्धियाँ प्रज्ज्वलित
हो उठती हैं." "यह ऊपर
को उठती अग्नि मुझे
भी उठाती है." "हे अग्नि! तू मेरे प्रिय
जनों की रक्षा कर!" "हे अग्नि! तू मुझे प्रेम करने
वाला साथी दे. शुभ गुणों से युक्त संतान दे!" "हे अग्नि!
तू समस्त रोगों को जड़ से काट दे!" "अब यह हवन
की अग्नि मेरे सीने में
धधकती है, यह
कभी नहीं बुझ सकती."
"नया दिन, नयी अग्नि और
नयी जीत."

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