Monday, November 10, 2014

प्रेत श्राप

प्रेत श्राप – जन्म-पत्रिका के किसी भी भाव
में शनि-राहू या शनि-केतू की युति हो तो प्रेत श्राप
कानिर्माण करती है | शनि-राहू या शनि-केतू
की युति उस भाव के फल को पूरी तरह
बिगाड़ देती है तथा लाख यत्न करने पर
भी उस भाव का उत्तम फल प्राप्त
नहीं होता है | हर बार आशा तथा हर बार
धोखा की आँख मिचौली जीवन भर
चलती रहती है | वह चाहे धन का भाव
हो, सन्तान सुख, जीवन साथी या कोई अन्य
भाव | भाग्य हर कदम पर रोड़े लेकर खड़ा सा दिखता है जिसको पार
करना बार-बार की हार के बाद जातक के लिए अत्यन्त
कठिन होता है | शनि + राहू = प्रेत श्राप योग
यानि ऐसी घटना जिसे अचनचेत घटना कहा जाता है
अचानक कुछ ऐसा हो जाना जिसके बारे में दूर दूर तक
अंदेशा भी न हो और भारी नुक्सान हो जाये |
इस योग के कारण एक के बाद एक मुसीबत
बडती जाती है यदि शनि या राहू में से
किसी भी ग्रह की दशा चल
रही हो या आयुकाल चल रहा हो यानी 7
से 12 या 36 से लेकर 47 वर्ष तक का समय
हो तो मुसीबतों का दौर थमता नही है | कई
बार ऐसा भी होता है किसी शुभ
या योगकारी ग्रह की दशा काल हो और
शनि + राहू रूपी प्रेत श्राप योग
की दृष्टि का दुष्प्रभाव उस ग्रह पर हो जाये तो उस
शुभ ग्रह के समय में भी मुसीबतें
पड़ती हैं जिस पर अधिकतर ज्योतिष गण ध्यान
नही देते परन्तु पूर्व जन्म के दोषों में इसे शनि ग्रह
से निर्मित पितृ दोष कहा जाता है इस दोष का निवारण
भी घर में सन्तान के जन्म लेते
ही ब्राह्मण की सहायता से
करवा लेना चाहिए अन्यथा मकान सम्बन्धी परेशानियाँ शुरू
हो जाती है |
प्रापर्टी बिकनी शुरू हो जाती है
| कारखाने बंद हो जाते हैं | पिता पर कर्जा चड़ना शुरू हो जाता है |
नौकरी पेशा हो कारोबारी संतान के प्रेत श्राप
योग के कारण बाप का काम बंद होने के कगार पर पहुंच जाता है |
ऐसे योग वाले के घर में निशानी होती है
की जगह जगह दरारें पड़ना | सफाई के बावजूद
भी गंदी बदबू आते रहना | घर में से
जहरीले जीव जन्तु निलकना बिच्छू - सांप
आदि | इस लिए ये प्रेत श्राप योग
भारी मुसीबतें ले कर आता है और इस योग
के दशम भाव पर प्रभाव के कारण ही चलते हुए काम
बंद हो जाते हैं | सप्तम भाव पर प्रभाव के कारण
ही शादिया टूट जाती है | अष्टम भाव पर
इसका प्रभाव हो तो जातक पर जादू – टोना जैसा अजीब
सा प्रभाव रहता है और दर्द नाक मौत होती है |
नवम भाव में हो तो भाग्य
हीनता ही रहती है |
एकादश भाव में हो तो मुसीबतों से लड़ता लड़ता इंसान हार
कर बैठ जाता है मेहनत के बाद भी फल
नही पाता आदि कुंडली के
सभी भावों में इसका बुरा प्रभाव रहता है | ज्योतिष कोई
जादू की छड़ी नहीं है !
ज्योतिष एक विज्ञानं है ! ज्योतिष में जो ग्रह आपको नुकसान करते
है, उनके प्रभाव को कम कर दिया जाता है और जो ग्रह शुभ फल
देता है, उनके प्रभाव को बढ़ा दिया जाता है ! हमारे ज्योतिष
आचार्यो ने शनि को छेवे आठवे दशवे और बारवे भाव का पक्का कारक
माना है जबकि राहु एक छाया ग्रह है ! एक मान्यता के अनुसार
राहु और केतु का फल देखने के लिए पहले शनि को देखा जाता है
क्योंकि यदि शनि शुभ फल दे रहे हो तो राहु और केतु अशुभ फल
नहीं दे सकते और यह भी माना जाता है
कि शनि का शुभ फल देखने के लिए चंद्रमा को देखा जाता है ! कहने
का भाव यह है कि प्रत्येक ग्रह एक दुसरे पर निर्भर है ! इन
सभी ग्रहों में शनि का विशेष स्थान है ! शनि से मकान
और वाहन का सुख देखा जाता है साथ ही इसे कर्म
स्थान का कारक भी माना जाता है,यह चाचा और ताऊ
का भी कारक है ! राहु को आकस्मिक लाभ का कारक
माना गया है ! राहु से कबाड़ का और बिजली द्वारा किये
जाने वाले काम को देखा जाता है ! राहु का सम्बन्ध ससुराल से
होता है अगर ससुराल से दुखी है तो राहु ख़राब चल
रहा है ! ज्योतिष का मानना है कि राहु और केतु जिस
भी ग्रह के साथ आ जाते है वो ग्रह दुषित
हो जाता है और शुभ फल छोड़ देता है ! यदि शनि और राहु एक
साथ एक ही भाव में आ जाये तो व्यक्ति को प्रेत
बाधा आदि टोने टोटके बहुत जल्दी असर करते है
क्योंकि शनि को प्रेत भी माना जाता है और राहु छाया है !
इसे प्रेत छाया योग भी कहा जाता है पर सामान्य
व्यक्ति इसे पितृदोष कहता है ! एक कथा के अनुसार जब हनुमान
जी ने राहु और केतु को हाथो में पकड़ लिया था और
शनि को पूँछ में तब शनि महाराज ने कहा था आज जो हमें इस बालक
से छुड़ा देगा उसे हम जीवन में कभी परेशान
नहीं करेगे
यदि किसी की कुंडली में यह
तीनो ग्रह परेशान कर रहे हो तो एक साबर विधि से
इन्हें हनुमान जी से छूडवा दिया जाता है ! फिर यह
जीवन भर परेशान नहीं करते यदि राहु
की बात की जाये तो राहु जब
भी मुशकिल में होता है तो शनि के पास भागता है ! राहु
सांप को माना गया है और शनि पाताल मतलब धरती के
नीचे सांप धरती के नीचे
ही अधीक निवास करता है ! इसका एक
उदहारण यह भी है कि यदि किसी चोर
या मुजरिम राजनेता रुपी राहु पर मंगल
रुपी पुलीस या सूर्य रुपी सरकार
का पंजा पड़ता है तो वे अपने वकील
रुपी शनि के पास भागते है !
सीधी बात है राहु सदैव शनि पर निर्भर
करता है पर जब शनि के साथ बैठ जाता है तो शनि के फल का नाश
कर देता है ! यह सब पुलीस वकील
आदि किसी न किसी ग्रह के कारक है !
शनि उस व्यक्ति को कभी बुरा फल नहीं देते
जो मजदूरों और फोर्थ क्लास लोगो का सम्मान करता है क्योंकि मजदूर
शनि के कारक है ! जो छोटे दर्जे के लोगो का सम्मान
नहीं करता उसे शनि सदैव बुरा फल ही देते
है ! आप अपनी कुंडली ध्यान से देखे
अगर आपकी कुंडली में भी राहु
और शनि एक साथ बैठे है तो यह उपाय करे ! हररोज
मजदूरों को तम्बाकु की पुडिया दान दे ! ऐसा 43 दिन करे
आपको कभी यह योग बुरा फल
नहीं देगा क्योंकि मजदूर रुपी शनि है और
तम्बाकु राहु है, जब मजदूर रुपी शनि तम्बाकु
को खायेगा तो अच्छा तम्बाकु ग्रहण कर लेगा और बुरा राहु बाहर
थुक देगा ! सीधी बात है शनि अच्छा राहु
ग्रहण कर लेगा और बुरा राहु बाहर थुक देगा ! आप यह उपाय
जरूर कीजिये मैने हजारो लोगो पर इस उपाय
को आजमाया है ! प्राचीन ग्रामीण कहावतें
भी ज्योतिष से अपना सम्बन्ध रखने
वाली मानी जाती थी,
जिनके गूढ अर्थ को अगर समझा जाये तो वे अपने अपने अनुसार
बहुत ही सुन्दर कथन और जीवन के
प्रति सावधानी को उजागर
करती थी। इसी प्रकार से एक
कहावत इस प्रकार से कही जाती है- "
मंगल मगरी, बुद्ध खाट, शुक्र झाडू बारहबाट,
शनि कल्छुली रवि कपाट, सोम
की लाठी फ़ोरे टांट ", यह कहावत भदावर
से लेकर चौहानी तक
कही जाती है। इसे अगर समझा जाये
तो मंगलवार को राहु का कार्य घर में छावन के रूप में चाहे वह छप्पर
के लिये हो या छत बनाने के लिये हो, किसी प्रकार से टेंट
आदि लगाकर किये जाने वाले कार्यों से हो या छाया बनाने वाले साधनों से
हो वह हमेशा दुखदायी होती है।
शुक्रवार को राहु के रूप में झाडू अगर लाई जाये, तो वह घर में
जो भी है उसे साफ़
करती चली जाती है। शनिवार के
दिन लोहे का सामान जो रसोई में काम आता है लाने से वह कोई न कोई
बीमारी लाता ही रहता है,
रविवार को मकान दुकान या किसी प्रकार के रक्षात्मक
उपकरण जो किवाड गेट आदि के रूप में लगाये जाते है वे
किसी न किसी कारण से धोखा देने वाले होते
है, सोमवार को लाया गया हथियार अपने लिये ही सामत
लाने वाला होता है। शनि राहु की युति के लिये
भी कई बाते मानी जाती है,
शनि राहु अगर अपनी युति बनाकर लगन में विराजमान है
और लगनेश से सम्बन्ध रखता है तो व्यक्ति एक शरीर
से कई कार्य एक बार में ही निपटाने
की क्षमता रखता है। वह अच्छे
कार्यों को भी करना जानता है और बुरे
कामों को भी करने वाला होता है, वह जाति के
प्रति भी कार्य करता है और कुजाति के
प्रति भी कार्य करता है। वह
कभी तो आदर्शवादी की श्रेणी में
अपनी योग्यता को रखता है तो कभी बेहद
गंदे व्यक्ति के रूप में समाज में अपने को प्रस्तुत करता है। यह
प्रभाव उम्र के दो तिहाई समय तक
ही प्रभावी रहता है |
शनि की सिफ़्त को समझने के लिये ’कार्य’ का रूप
देखा जाता है और राहु से लगन मे सफ़ाई कर्मचारी के
रूप मे भी देखा जाता है तो लगन से दाढी वाले
व्यक्ति से भी देखा जाता है। राहु का प्रभाव शनि के साथ
लगन में होता है तो वह पन्चम भाव और नवम भाव
को भी प्रभावित करता है, इसी प्रकार से
अगर दूसरे भाव मे होता है तो छठे भाव और दसवे भाव
को भी प्रभावित करता है, तीसरे भाव में
होता है तो सातवें और ग्यारहवे भाव में
भी प्रभावकारी होता है, चौथे भाव में
होता है तो वह आठवें और बारहवें भाव
को भी प्रभावित करता है। लगन में राहु का प्रभाव
शनि के साथ होने से जातक
की दाढी भी लम्बी और
काली होगी तो उसके पेट में
भी बाल लम्बे और घने होंगे तथा उसके पेडू और पैरों में
भी बालों का घना होना माना जाता है। शनि से
चालाकी को अगर माना जाये तो उसके
पिता भी झूठ आदि का सहारा लेने वाले होंगे आगे आने
वाले उसके बच्चे भी झूठ आदि का सहारा ले सकते है।
लेकिन यह शर्त पौत्र आदि पर लागू
नही होती है। मंगल के साथ शनि राहु
का असर होने से जातक के खून के सम्बन्ध पर
भी असरकारक होता है। शनि राहु से मंगल अगर चौथे
भाव में है तो वह जातक को कसाई जैसे कार्य करने के लिये बाध्य
करता है, शनि से कर्म और राहु से तेज हथियार तथा चौथे मंगल से
खून का बहाना आदि। अगर मंगल शनि राहु से दूसरे भाव में है
तो जातक को धन और भोजन आदि के लिये किसी न
किसी प्रकार से झूठ का सहारा लेना पडता है जातक के
अन्दर तकनीकी रूप से तंत्र आदि के
प्रति जानकारी होती है और अपने कार्यों में
वह तर्क वितर्क द्वारा लोगों को ठगने का काम भी कर
सकता है। तीसरे भाव में मंगल के होने से जातक के
अन्दर लडाई झगडे के प्रति लालसा अधिक होगी वह
आंधी तूफ़ान की तरह लडाई झगडे में अपने
को सामने करेगा और जो भी करना है वह पलक झपकते
ही कर जायेगा। पंचम भाव में मंगल के होने से जातक के
अन्दर दया का असर नही होगा वह
किसी भी प्रकार से
तामसी कारणो को दिमाग में रखकर चलेगा और
जल्दी से धन प्राप्त करने के लिये खेल
आदि का सहारा ले सकता है
किसी भी अफ़ेयर आदि के द्वारा वह केवल
अपने लिये धन प्राप्त करने की इच्छा करेगा। छठे भाव मे
मंगल के होने से जातक के अन्दर डाक्टरी कारण बनते
रहेंगे या तो वह शरीर
वाली बीमारियों के
प्रति जानकारी रखता होगा या अपने को अस्पताल में
हमेशा जाने के लिये किसी न किसी रोग को पाले
रहेगा। इसी प्रकार से अन्य भावों के लिये
जाना जा सकता है | शनि, राहु, हनुमान दे इन पांच सुखों का आनंद
शनि हर व्यक्ति जीवन में अनेक रुपों में सुख भोगता है।
कभी अपने तो कभी परिवार के सुख
की लालसा जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ
चलती है। धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति इन
सुखों को पाने या कमी न होने के लिए
देवकृपा की हमेशा आस रखता है। हर गृहस्थ
या अविवाहित जीवन में बुद्धि, ज्ञान, संतान, भवन,
वाहन इन पांच सुखों की कामना जरूर करता है। यहां इन
सुखों का खासतौर पर जिक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि ज्योतिष
विज्ञान के अनुसार जब
किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में
शनि-राहु की युति बन जाती है, तब इन पांच
सुखों को जरूर प्रभावित करती है। जन्म
कुण्डली में यह पांच सुख चौथे और पांचवे भाव नियत
करते हैं। खासतौर पर जब जन्मकुण्डली में शनि-राहु
की युति चौथे भाव में बन रही हो। तब वह
पांचवे भाव पर भी असर करती है।
हालांकि दूसरे ग्रहों के योग और दृष्टि अच्छे और बुरे फल दे
सकती है। लेकिन यहां मात्र शनि-राहु
की युति के असर और उसकी शांति के उपाय
पर गौर किया जा रहा है। हिन्दू पंचांग में शनिवार का दिन न्याय के
देवता शनि की उपासना कर पीड़ा और कष्टों से
मुक्ति का माना जाता है। यह दिन
शनि की पीड़ा, साढ़े
साती या ढैय्या से होने वाले बुरे
प्रभावों की शांति के लिए
भी जरुरी है। किंतु शनिवार का दिन एक ओर
क्रूर ग्रह राहु दोष की शांति के लिए
भी अहम माना जाता है। राहु के बुरे प्रभाव से भयंकर
मानसिक पीड़ा और अशांति हो सकती है।
इसी तरह यह दिन रामभक्त हनुमान
की उपासना से संकट, बाधाओं से मुक्त होकर ताकत,
अक्ल और हुनर पाने का माना जाता है।
यही नहीं श्री हनुमान
की उपासना करने वाले
व्यक्ति को शनि पीड़ा कभी नहीं सताती है।
ऐसा शास्त्रों में स्वयं शनिदेव की वाणी है।
इसी तरह राहु का कोप भी हनुमान
उपासना करने वालों को हानि नहीं पहुंचाता। अगर आप
इन पांच सुखों को पाने में परेशानी महसूस कर रहे
हो या कुण्डली में बनी शनि-राहु
की युति से प्रभावित हो, तो यहां जानते हैं
सुखों का आनंद लेने के लिए हनुमान भक्ति और शनि-राहु
युति की दोष शांति के सरल उपाय – शनिवार
की सुबह यथासंभव जितना जल्दी हो सके
उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनें। एक शुद्ध जल या उसमें
गंगाजल मिलाकर घर के समीप या मंदिर में स्थित
पीपल के पेड़ में जाकर चढ़ाएं। पीपल
की सात परिक्रमा करें। अगरबत्ती, तिल के
तेल का दीपक लगाएं। समय होने पर गजेन्दमोक्ष
स्तवन का पाठ करें। इस बारे में किसी विद्वान ब्राह्मण से
जानकारी ले सकते हैं। इसी तरह
किसी मंदिर के बाहर बैठे भिक्षुक को तेल में
बनी वस्तुओं जैसे कचोरी, समोसे, सेव,
पकोड़ी यथाशक्ति खिलाएं या उस निमित्त धन दें।
श्री हनुमान की प्रतिमा के सामने एक
नारियल पर स्वस्तिक बनाकर अर्पित कर दें। समयाभाव होने पर यह
तीन उपाय न केवल
आपकी मुसीबतों को कम करते
हैं,बल्कि जीवन को सुखी और शांति से भर
देते हैं। किंतु समय होने पर शनिवार के दिन शनिदेव,
श्री हनुमान और राहू पूजा की पंचोपचार
पूजा और विशेष सामग्रियों को अर्पित करें। शनि मंत्र ऊँ शं शनिश्चराये
नम: और राहू मंत्र ऊँ रां राहुवे नम: का जप करें। हनुमान
चालीसा का पाठ भी बहुत
प्रभावी होता है। शनि मंदिर में जाकर लोहे
की वस्तु चढाएं या दान करें, तिल का तेल
का दीप जलाएं। तेल से बने पकवानों का भोग लगाएं।
श्री हनुमान को गुड़, चना या चूरमें का भोग लगाएं। सिंदूर
का चोला चढाएं। राहु की प्रसन्नता के लिए
तिल्ली की मिठाईयां और तेल
का दीप लगाएं। प्रेत श्राप का अनुभूत उपाय निम्न प्रकार
हैं जिनसे जातक लाभान्वित हो सकते हैं – शुक्रवार
रात्री को तकिये के नीचे एक
रुपया का सिक्का रखकर सोएँ तथा सुबह उठकर उस सिक्के को शमसान
में बाहर से फेंक दें | शनिवार से प्रारम्भ कर 11 लौंग अपने ऊपर
से सात बार उल्टा वारकर आग में 11 दिन तक लगातार जलायें | सिन्दूर
तथा राई को सिर से सात बार वारकर 11 दिन तक जलायें | काले कुत्ते
को चार माह तक दूध, ब्रेड या रोटी खिलाएँ |
पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा ‘ॐ
श शनैश्चराये नमः’, ‘ॐ रां राहवे नमः’ मंत्र
का काली हकीक की माला से
जाप करते हुये करें | हनुमान चालीसा पढ़े
तथा तिल्ली के तेल की मिठाई का भोग लगाएँ |
दीप जलाकर शनि व राहू
की आरती करें | मन्दिर के बाहर बैठे
भिक्षुक को कचौड़ी, समोसे या नमकीन
भुजिया खिलाएँ | शनिवार को सरसों के तेल की मालिश करें |
मन्दिर तक सवारी से न जाकर पैदल ही जाएँ
| पश्चिम दिशा की ओर मुख करके, काले आसान पर
बैठकर सूर्योदय से पहले ‘ॐ एं ह्रीं राहवे
नमः’तथा सूर्योदय के बाद ‘ॐ एं
ह्रीं श्रीं श्रेष्ठायः नमः’मंत्र का जाप काले
हकीक की माला से तीन
माला जाप करें | शनि के साथ केतु केतु चंद्रमा के दक्षिण नोड सिर के
बिना एक शरीर है. इस समग्र दुनिया में जुदाई, अलगाव,
आध्यात्मिकता, अहित का प्रतिनिधित्व करता है | राहु बातें
करना चाहता है और केतु बातें नहीं करना चाहता | केतु
कर्म है, राहु और केतु किसी भी ग्रहों के
साथ बैठता है जब भी, हमारे अवचेतन मन में
हताशा देकर आध्यात्मिक विकास प्रस्तुत करते हैं | शनि कर्म,
सीमाओं, सीमाओं, हीन
भावना और जिम्मेदारी का ग्रह है | यह राशि चक्र
बेल्ट में 10 वीं, 11 वीं घर पर राज | ये घर
जिम्मेदारी, वाहक, प्रतिष्ठा, उच्च महत्वाकांक्षा, धन,
सामाजिक नेटवर्क का मुख्य घर हैं और आदि शनि जीवन
में ग्रह सामग्री दुनिया और व्यावहारिकता है | शनि पुराने
लोगों, श्रम वर्ग प्लम्बर की तरह हाथ से काम करते
हैं, या इमारतों में काम करने वाले उन लोगों पर सहमत,
हताशा का ग्रह है | दोनों ग्रह की प्रकृति, कुंठा,
जीवन में असंतोष, असहमत और चीजों के
इनकार में चिंतित, दर्दनाक अनुभव में गंभीर
की हैं | शनि के साथ केतु - जीवन में कुछ
दुख का उत्पादन | केतु अध्यात्मवाद का ग्रह है और शनि ग्रह
चुप्पी या ध्यान है | इसलिए केतु लोगों को परमात्मा के
स्रोत के साथ कनेक्ट करने के लिए अद्वितीय
क्षमता है, वे मन की शांति हासिल कर सकते है. उपाय
केतु बाधा का ग्रह है | भगवान गणेश केतु का देवता है | भगवान
गणेश से केतु के द्वारा बनाई गई बाधा को दूर करने के लिए
पूजा करनी चाहिए | शनि के लिए भगवान हनुमान
की पूजा करनी चाहिए तथा रुद्राभिषेक
कराना चाहिए एवं पलाश विधि से प्रेत मुक्ति के लिए नारायण
बलि करना चाहिए ये विधि किसीभी देवता के
मंदिर में पंचमी एकादशी अथवा श्रवण
नक्षत्र में करना उत्तम

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