गुरु-चन्द्र का एक दुसरे से केन्द्र में
होना या यूक्ती करना भी गजकेसरी योग
का निर्माण करता है. गजकेसरी योग
व्यक्ति की वाकशक्ति में वृ्द्धि होती है.
इसकी शुभता से धन, संमृद्धि व संतान
की संभावनाओं को भी सहयोग प्राप्त
होता है. गुरु सभी ग्रहों में सबसे शुभ ग्रह है.
इन्हें शुभता, धन, व सम्मान का कारक ग्रह कहा जाता है.
इसी प्रकार चन्द्र को भी धन
वृ्द्धि का ग्रह कहा जाता है. दोनों के संयोग से बनने वाले
गजकेसरी योग से
व्यक्ति को अथाह धन प्राप्ति की संभावनाएं
बनती है.
परन्तु गजकेसरी योग से मिलने वाले फल सदैव
सभी के लिये एक समान नहीं होते है.
अनेक कारणों से गजकेसरी योग के फल प्रभावित होते
है. कई बार यह योग
कुण्डली में बन रहे अन्य योगों के फलस्वरुप भंग
हो रहा होता है. तथा इससे मिलने वाले फलों में
कमी हो रही होती है. परन्तु
योगयुक्त
व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं होती है....
गजकेसरी योग का फलादेश करते समय किस प्रकार
की बातों का ध्यान रखना चाहिए. आईये यह जानने
का प्रयास करते है :-
"गजकेसरी योग" फलादेश सावधानियां"
1. गुरु-चन्द्र स्वामित्व:- गजकेसरी योग से मिलने वाले
फलों का विचार करते समय विश्लेषणकर्ता इस बात पर ध्यान देता है
कि चन्द्र तथा गुरु किन भावों के स्वामी है. इसमें
भी गुरु की राशियां किन भावों में स्थित है,
इसका प्रभाव योग
की शुभता पर विशेष रुप से पडता है.
जन्म कुण्डली में चन्द व गुरु की राशि शुभ
भावों में होंने पर गजकेसरी योग
की शुभता में वृ्द्धि व अशुभ भावों में
इनकी राशियां स्थित होने पर योग
की शुभता कुछ कम होती है.
2. चन्द्र नकारात्मक स्थिति:- जब कुण्डली में चन्द्र
पीडित होना गजकेसरी योग के अनुकुल
नहीं समझा जाता है. अगर चन्द्र केमद्रुम योग में न
हों, चन्द्र से प्रथम, द्वितीय अथवा द्वादश भाव में कोई
ग्रह होने पर चन्द्र के साथ-साथ गजकेसरी योग के
बल में भी वृ्द्धि होती है. इसके
अलावा चन्द का गण्डान्त में होना, पाप ग्रहों से द्रष्टि संबन्ध में
होना, या नीच का होना गजकेसरी योग के
फलों को प्रभावित कर सकता है.
3. गुरु, चन्द्र के अशुभ योग:- कुण्डली में जब गूरु से
चंन्द्र छठे, आंठवे या बारहवें
भाव में होंने पर शकट योग बनता है. यह योग क्योकि गुरु से चन्द्र
की षडाष्टक स्थिति में होने पर बनता है इसलिये
अनिष्टकारी होता है. इसलिये गजकेसरी योग
भी शुभ भावों में बनने पर विशेष शुभ फल देता है.
तथा गुरु व चन्द्र की स्थिति इसके विपरीत
होने पर गजकेसरी योग की शुभता में
कमी होती है.
4. गजकेसरी योग व केमद्रुम योग :-
गजकेसरी योग क्योकि गुरु से चन्द्र के केन्द्र में होने
पर बनता है. इस योग के अन्य नियमों का वर्णन इससे पहले
दिया जा चुका है. इन नियमों में यह भी सम्मिलित
करना चाहिए. कि चन्द्र के दोनों ओर के भावों में सूर्य, राहू-केतु के
अलावा अन्य पांच ग्रहों में से कोई भी ग्रह स्थित
होना चाहिए.
5. गुरु नकारात्मक स्थिति:- गुरु का वक्री ,
अस्त ,नीच राशी मे होने पर
गजकेसरी योग की गुणवता में
कमी होती है. जो पाप ग्रह इनसे युति,
द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों उस ग्रह की अशुभ
विशेषताएं योग में आने की संभावनाएं
रहती है.
6. गुरु-चंन्द्र सकारात्मक पक्ष :- अगर गुरु अथवा चन्द्र उच्च,
गुरु सुस्थिति में हों तो यह गजकेसरी योग
व्यक्ति को उतम फल देगा. व अगर चंन्द्र अथवा गुरु दोनों में से कोई
अपनी मूलत्रिकोण राशि में स्थित हों, अच्छे भाव में
हों और दूसरा ग्रह भी शुभ स्थिति में हों तब
भी गजकेसरी योग
की शुभता बनी रहती है.
7. "गजकेसरी योग' दशाओं का प्रभाव:-
सभी योगों के फल इनसे संबन्धित ग्रहों कि दशाओं में
ही प्राप्त होते है. कई बार
किसी व्यक्ति की कुण्डली में
अनेक धनयोग व राजयोग विधमान होते है. परन्तु उस
व्यक्ति को अगर धनयोग व राजयोग बना रहे,
ग्रहों की महादशा न मिलें तो व्यक्ति के लिये ये योग
व्यर्थ सिद्ध होते है. इसी प्रकार
गजकेसरी योग के फल भी व्यक्ति को गुरु व
चन्द्र की महादशा प्राप्त होने पर
ही प्राप्त होते है.
व्यवहारिक रुप में यह देखने में आया है
कि गजकेसरी योग के सर्वोतम फल
उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त हुए है.
जिनकी कुण्डली में यह योग बन
रहा हों तथा जिनका जन्म गुरु या चन्द्र की महादशा में
हुआ हों. उस अवस्था में गजकेसरी योग विशेष रुप से
लाभकारी रहता है. इसके
अलावा गजकेसरी योग के व्यक्तियों को जन्म के समय गुरु
या चन्द्र की अन्तर्दशा प्राप्त
होना भी शुभ फलकारी होता है. या फिर गुरु
में गुरु की महादशा या चन्द्र में चन्द्र कि महादशा में
जन्म होने पर
भी गजकेसरी योग का व्यक्ति अपने
जीवन में धन व यश की प्राप्ति करता है.
***** : चर, स्थिर व द्विस्वभाव राशियों में
गजकेसरी योग-----गजकेसरी योग में गुरु-
चंन्द्र का बल निर्धारण किस प्रकार किया जाता है*****
गजकेसरी योग को धन
योगों की श्रेणी में रखा जाता है. इस योग
का निर्माण गुरु से चन्द्र के केन्द्र में होने पर होता है. यह योग
जब केन्द्र भावों में बने तो सबसे अधिक शुभ माना जाता है.
गजकेसरी योग व्यक्ति को धन, सम्मान व उच्च पद देने
वाला माना गया है.
गजकेसरी योग से मिलने वाले फल भाव, ग्रह, दृष्टि व
ग्रहयुति के साथ साथ राशियों की विशेषताओं से
भी प्रभावित होते है. गजकेसरी योग के
फल चर, स्थिर व द्विस्वभाव राशियों में किस प्रकार के हो सकते है.
आईये यह जानने का प्रयास करते है.
1. "गजकेसरी ' चर राशियों में :- अगर
किसी व्यक्ति की कुण्डली में
गुरु अपनी उच्च राशि में अर्थात कर्क राशि में स्थित
होकर गजकेसरी योग बना रहे है तो इस स्थिति में उस
व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र
की स्थिति मेष, कर्क, तुला व मकर में
रहेगी. क्योकि कर्क राशि से
यही राशियां केन्द्र भाव में पडती है.
अर्थात इस स्थिति में गुरु व चन्द्र दोनों ही चर राशियों में
स्थित हो यह योग बनायेगें.
चर राशियों में बनने वाले गजकेसरी योग के फलों में
भी कुछ स्थिरता की कमी रहने
की संभावना बनती है. यह योग एक ओर
जहां व्यवसायिक क्षेत्र में
व्यक्ति की गतिशीलता को बढायेगा.
वही इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के
जीवन में तरल धन की कमी न
रहने की संभावनाएं भी बनायेगा.
2. "गजकेसरी ' स्थिर राशियों में :-
इसी प्रकार गजकेसरी योग में जब गुरु स्थिर
राशियां अर्थात वृषभ, सिंह, वृश्चिक तथा कुम्भ में हों तो चन्द्र
की स्थिति भी इनमें से किसी एक
राशि में ही होनी चाहिए.
इन राशियों में से सिंह व वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी गुरु
व चन्द्र के मित्र है. इसलिये जब गजकेसरी योग इन
दोनों राशियों में बन रहा हों तो मिलने वाले फल अधिक शुभ होते है.
स्थिर राशियों में गजकेसरी योग बनने पर व्यक्ति के धन
में स्थिरता का भाव रहने की संभावनाएं
बनती है.
3. 'गजकेसरी" द्विस्वभाव राशियों में:-
यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में
गुरु किसी भी द्विस्वभाव राशि अर्थात
(मिथुन, कन्या, धनु व मीन) में स्थिति होकर
गजकेसरी योग का निर्माण कर रहा हों तो ऎसे में चन्द्र
भी द्विस्वभाव राशि में ही स्थित होगा.
तभी इस योग का निर्माण हो सकता है. अन्यथा योग
बनने की संभावनाएं नही है. इस प्रकार
यह स्पष्ट है कि 'गजकेसरी योग' में गुरु व चन्द्र
दोनों चर, स्थिर या द्विस्वभाव राशियों में होते है. ऎसा न होने पर यह
योग नहीं बनता है.
***** : गजकेसरी योग में गुरु-चन्द्र के बल
का मूल्यांकन : *****
" गजकेसरी योग मे गूरू व चंन्द्र बली "
गजकेसरी योग बना रहे दोनों ग्रह गुरु व चन्द्र
दोनों कभी भी एक साथ उच्च के
नहीं हो सकते है. क्योकि गुरु कर्क में उच्च के होते
है तथा चन्द्र वृ्षभ में उच्च के होते है. और ये दोनों राशि एक -
दूसरे से तृतीय़ व एकादश भाव
की राशि होती है. ऎसे में गुरु से चन्द्र
केन्द्र स्थान में होने के स्थान पर एकादश भाव में आते है.
जो गजकेसरी योग के नियम विरुद्ध है. इन
दोनों ग्रहों की राशियों का परस्पर केन्द्र में न
होना भी इस योग की शुभता को कम
करता है. गजकेसरी योग में गुरु या चन्द्र दोनों में से कोई
भी ग्रह उच्च राशि में स्थित हों तो व्यक्ति को इस योग
के सर्वोतम, शुभ फल प्राप्त होते है.
"गजकेसरी' योग गुरु व चन्द्र निर्बली"
जिस प्रकार गुरु व चन्द्र गजकेसरी योग में उच्च राशियों में
स्थित नहीं हो सकते है, ठिक उसी प्रकार
इस योग में दोनों ग्रह
अपनी नीच राशियों में भी स्थित
नहीं हो सकते है. गुरु मकर राशि में
नीचता प्रात्प करते है तो चन्द्र
की नीच राशि वृ्श्चिक है. दोनों राशियां फिर
परस्पर तृतीय व एकादश भाव
की राशियां होती है.
गजकेसरी योग के नियम के अनुसार गुरु से चन्द्र केन्द्र
भावों में होना चाहिए. इसलिये जब कुण्डली में
गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा हों तो गुरु या चन्द्र
दोनों में से कोई एक ग्रह ही नीच
का हो सकता है. योग में सम्मिलित जो भी ग्रह
नीच का होकर स्थित होगा उस ग्रह के
कारकतत्वों की प्राप्ति की संभावनाओं में
कमी होगी.
नोट :- "" गजकेसरी योग अगर शूभ प्रभाव मे
हो तो अनूभव मे आया है कि जातक अपने शूरूवात के दिनों मे संघर्ष
करता है ओर बगैर किसी की सहायता के
अपनी मेहनत , होसले ओर सूझ - बूझ के दम पर
धन कमाता है , समाज मे अपने समूदाय मे नाम कमाता है ,
प्रसीद्धी हासिल करता है ओर अंतत:
सफल होता है""
होना या यूक्ती करना भी गजकेसरी योग
का निर्माण करता है. गजकेसरी योग
व्यक्ति की वाकशक्ति में वृ्द्धि होती है.
इसकी शुभता से धन, संमृद्धि व संतान
की संभावनाओं को भी सहयोग प्राप्त
होता है. गुरु सभी ग्रहों में सबसे शुभ ग्रह है.
इन्हें शुभता, धन, व सम्मान का कारक ग्रह कहा जाता है.
इसी प्रकार चन्द्र को भी धन
वृ्द्धि का ग्रह कहा जाता है. दोनों के संयोग से बनने वाले
गजकेसरी योग से
व्यक्ति को अथाह धन प्राप्ति की संभावनाएं
बनती है.
परन्तु गजकेसरी योग से मिलने वाले फल सदैव
सभी के लिये एक समान नहीं होते है.
अनेक कारणों से गजकेसरी योग के फल प्रभावित होते
है. कई बार यह योग
कुण्डली में बन रहे अन्य योगों के फलस्वरुप भंग
हो रहा होता है. तथा इससे मिलने वाले फलों में
कमी हो रही होती है. परन्तु
योगयुक्त
व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं होती है....
गजकेसरी योग का फलादेश करते समय किस प्रकार
की बातों का ध्यान रखना चाहिए. आईये यह जानने
का प्रयास करते है :-
"गजकेसरी योग" फलादेश सावधानियां"
1. गुरु-चन्द्र स्वामित्व:- गजकेसरी योग से मिलने वाले
फलों का विचार करते समय विश्लेषणकर्ता इस बात पर ध्यान देता है
कि चन्द्र तथा गुरु किन भावों के स्वामी है. इसमें
भी गुरु की राशियां किन भावों में स्थित है,
इसका प्रभाव योग
की शुभता पर विशेष रुप से पडता है.
जन्म कुण्डली में चन्द व गुरु की राशि शुभ
भावों में होंने पर गजकेसरी योग
की शुभता में वृ्द्धि व अशुभ भावों में
इनकी राशियां स्थित होने पर योग
की शुभता कुछ कम होती है.
2. चन्द्र नकारात्मक स्थिति:- जब कुण्डली में चन्द्र
पीडित होना गजकेसरी योग के अनुकुल
नहीं समझा जाता है. अगर चन्द्र केमद्रुम योग में न
हों, चन्द्र से प्रथम, द्वितीय अथवा द्वादश भाव में कोई
ग्रह होने पर चन्द्र के साथ-साथ गजकेसरी योग के
बल में भी वृ्द्धि होती है. इसके
अलावा चन्द का गण्डान्त में होना, पाप ग्रहों से द्रष्टि संबन्ध में
होना, या नीच का होना गजकेसरी योग के
फलों को प्रभावित कर सकता है.
3. गुरु, चन्द्र के अशुभ योग:- कुण्डली में जब गूरु से
चंन्द्र छठे, आंठवे या बारहवें
भाव में होंने पर शकट योग बनता है. यह योग क्योकि गुरु से चन्द्र
की षडाष्टक स्थिति में होने पर बनता है इसलिये
अनिष्टकारी होता है. इसलिये गजकेसरी योग
भी शुभ भावों में बनने पर विशेष शुभ फल देता है.
तथा गुरु व चन्द्र की स्थिति इसके विपरीत
होने पर गजकेसरी योग की शुभता में
कमी होती है.
4. गजकेसरी योग व केमद्रुम योग :-
गजकेसरी योग क्योकि गुरु से चन्द्र के केन्द्र में होने
पर बनता है. इस योग के अन्य नियमों का वर्णन इससे पहले
दिया जा चुका है. इन नियमों में यह भी सम्मिलित
करना चाहिए. कि चन्द्र के दोनों ओर के भावों में सूर्य, राहू-केतु के
अलावा अन्य पांच ग्रहों में से कोई भी ग्रह स्थित
होना चाहिए.
5. गुरु नकारात्मक स्थिति:- गुरु का वक्री ,
अस्त ,नीच राशी मे होने पर
गजकेसरी योग की गुणवता में
कमी होती है. जो पाप ग्रह इनसे युति,
द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों उस ग्रह की अशुभ
विशेषताएं योग में आने की संभावनाएं
रहती है.
6. गुरु-चंन्द्र सकारात्मक पक्ष :- अगर गुरु अथवा चन्द्र उच्च,
गुरु सुस्थिति में हों तो यह गजकेसरी योग
व्यक्ति को उतम फल देगा. व अगर चंन्द्र अथवा गुरु दोनों में से कोई
अपनी मूलत्रिकोण राशि में स्थित हों, अच्छे भाव में
हों और दूसरा ग्रह भी शुभ स्थिति में हों तब
भी गजकेसरी योग
की शुभता बनी रहती है.
7. "गजकेसरी योग' दशाओं का प्रभाव:-
सभी योगों के फल इनसे संबन्धित ग्रहों कि दशाओं में
ही प्राप्त होते है. कई बार
किसी व्यक्ति की कुण्डली में
अनेक धनयोग व राजयोग विधमान होते है. परन्तु उस
व्यक्ति को अगर धनयोग व राजयोग बना रहे,
ग्रहों की महादशा न मिलें तो व्यक्ति के लिये ये योग
व्यर्थ सिद्ध होते है. इसी प्रकार
गजकेसरी योग के फल भी व्यक्ति को गुरु व
चन्द्र की महादशा प्राप्त होने पर
ही प्राप्त होते है.
व्यवहारिक रुप में यह देखने में आया है
कि गजकेसरी योग के सर्वोतम फल
उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त हुए है.
जिनकी कुण्डली में यह योग बन
रहा हों तथा जिनका जन्म गुरु या चन्द्र की महादशा में
हुआ हों. उस अवस्था में गजकेसरी योग विशेष रुप से
लाभकारी रहता है. इसके
अलावा गजकेसरी योग के व्यक्तियों को जन्म के समय गुरु
या चन्द्र की अन्तर्दशा प्राप्त
होना भी शुभ फलकारी होता है. या फिर गुरु
में गुरु की महादशा या चन्द्र में चन्द्र कि महादशा में
जन्म होने पर
भी गजकेसरी योग का व्यक्ति अपने
जीवन में धन व यश की प्राप्ति करता है.
***** : चर, स्थिर व द्विस्वभाव राशियों में
गजकेसरी योग-----गजकेसरी योग में गुरु-
चंन्द्र का बल निर्धारण किस प्रकार किया जाता है*****
गजकेसरी योग को धन
योगों की श्रेणी में रखा जाता है. इस योग
का निर्माण गुरु से चन्द्र के केन्द्र में होने पर होता है. यह योग
जब केन्द्र भावों में बने तो सबसे अधिक शुभ माना जाता है.
गजकेसरी योग व्यक्ति को धन, सम्मान व उच्च पद देने
वाला माना गया है.
गजकेसरी योग से मिलने वाले फल भाव, ग्रह, दृष्टि व
ग्रहयुति के साथ साथ राशियों की विशेषताओं से
भी प्रभावित होते है. गजकेसरी योग के
फल चर, स्थिर व द्विस्वभाव राशियों में किस प्रकार के हो सकते है.
आईये यह जानने का प्रयास करते है.
1. "गजकेसरी ' चर राशियों में :- अगर
किसी व्यक्ति की कुण्डली में
गुरु अपनी उच्च राशि में अर्थात कर्क राशि में स्थित
होकर गजकेसरी योग बना रहे है तो इस स्थिति में उस
व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र
की स्थिति मेष, कर्क, तुला व मकर में
रहेगी. क्योकि कर्क राशि से
यही राशियां केन्द्र भाव में पडती है.
अर्थात इस स्थिति में गुरु व चन्द्र दोनों ही चर राशियों में
स्थित हो यह योग बनायेगें.
चर राशियों में बनने वाले गजकेसरी योग के फलों में
भी कुछ स्थिरता की कमी रहने
की संभावना बनती है. यह योग एक ओर
जहां व्यवसायिक क्षेत्र में
व्यक्ति की गतिशीलता को बढायेगा.
वही इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के
जीवन में तरल धन की कमी न
रहने की संभावनाएं भी बनायेगा.
2. "गजकेसरी ' स्थिर राशियों में :-
इसी प्रकार गजकेसरी योग में जब गुरु स्थिर
राशियां अर्थात वृषभ, सिंह, वृश्चिक तथा कुम्भ में हों तो चन्द्र
की स्थिति भी इनमें से किसी एक
राशि में ही होनी चाहिए.
इन राशियों में से सिंह व वृश्चिक दोनों राशियों के स्वामी गुरु
व चन्द्र के मित्र है. इसलिये जब गजकेसरी योग इन
दोनों राशियों में बन रहा हों तो मिलने वाले फल अधिक शुभ होते है.
स्थिर राशियों में गजकेसरी योग बनने पर व्यक्ति के धन
में स्थिरता का भाव रहने की संभावनाएं
बनती है.
3. 'गजकेसरी" द्विस्वभाव राशियों में:-
यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में
गुरु किसी भी द्विस्वभाव राशि अर्थात
(मिथुन, कन्या, धनु व मीन) में स्थिति होकर
गजकेसरी योग का निर्माण कर रहा हों तो ऎसे में चन्द्र
भी द्विस्वभाव राशि में ही स्थित होगा.
तभी इस योग का निर्माण हो सकता है. अन्यथा योग
बनने की संभावनाएं नही है. इस प्रकार
यह स्पष्ट है कि 'गजकेसरी योग' में गुरु व चन्द्र
दोनों चर, स्थिर या द्विस्वभाव राशियों में होते है. ऎसा न होने पर यह
योग नहीं बनता है.
***** : गजकेसरी योग में गुरु-चन्द्र के बल
का मूल्यांकन : *****
" गजकेसरी योग मे गूरू व चंन्द्र बली "
गजकेसरी योग बना रहे दोनों ग्रह गुरु व चन्द्र
दोनों कभी भी एक साथ उच्च के
नहीं हो सकते है. क्योकि गुरु कर्क में उच्च के होते
है तथा चन्द्र वृ्षभ में उच्च के होते है. और ये दोनों राशि एक -
दूसरे से तृतीय़ व एकादश भाव
की राशि होती है. ऎसे में गुरु से चन्द्र
केन्द्र स्थान में होने के स्थान पर एकादश भाव में आते है.
जो गजकेसरी योग के नियम विरुद्ध है. इन
दोनों ग्रहों की राशियों का परस्पर केन्द्र में न
होना भी इस योग की शुभता को कम
करता है. गजकेसरी योग में गुरु या चन्द्र दोनों में से कोई
भी ग्रह उच्च राशि में स्थित हों तो व्यक्ति को इस योग
के सर्वोतम, शुभ फल प्राप्त होते है.
"गजकेसरी' योग गुरु व चन्द्र निर्बली"
जिस प्रकार गुरु व चन्द्र गजकेसरी योग में उच्च राशियों में
स्थित नहीं हो सकते है, ठिक उसी प्रकार
इस योग में दोनों ग्रह
अपनी नीच राशियों में भी स्थित
नहीं हो सकते है. गुरु मकर राशि में
नीचता प्रात्प करते है तो चन्द्र
की नीच राशि वृ्श्चिक है. दोनों राशियां फिर
परस्पर तृतीय व एकादश भाव
की राशियां होती है.
गजकेसरी योग के नियम के अनुसार गुरु से चन्द्र केन्द्र
भावों में होना चाहिए. इसलिये जब कुण्डली में
गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा हों तो गुरु या चन्द्र
दोनों में से कोई एक ग्रह ही नीच
का हो सकता है. योग में सम्मिलित जो भी ग्रह
नीच का होकर स्थित होगा उस ग्रह के
कारकतत्वों की प्राप्ति की संभावनाओं में
कमी होगी.
नोट :- "" गजकेसरी योग अगर शूभ प्रभाव मे
हो तो अनूभव मे आया है कि जातक अपने शूरूवात के दिनों मे संघर्ष
करता है ओर बगैर किसी की सहायता के
अपनी मेहनत , होसले ओर सूझ - बूझ के दम पर
धन कमाता है , समाज मे अपने समूदाय मे नाम कमाता है ,
प्रसीद्धी हासिल करता है ओर अंतत:
सफल होता है""
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