Wednesday, November 12, 2014

वास्तु शास्त्र

वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी भी भवन
अथवा स्थान की दृष्टि से एक मध्य स्थान और आठ
दिशाएं होती हैं। इन सभी दिशाओं
का अपना अलग-अलग महत्त्व है।
जिस दिशा से सूर्य देवता उदय होते हैं वह पूर्व
दिशा होती है। इस दिशा के स्वामी इंद्र
भगवान हैं। पूर्व दिशा अग्नि तत्व है जिसे
कभी भी बंद
नहीं करना चाहिए। इस दिशा को बंद करने से
वहां रहने वालों को कष्ट, अपमान, ऋण, कार्यों में रुकावट और पितृ
दोष का सामना करना पड़ता है।
सूर्य देवता के अस्त होने की दिशा पश्चिम है। इस
दिशा के स्वामी वरुण देवता और तत्व वायु हैं। इस
दिशा को बंद करने से जीवन में असफलता, शिक्षा में
रूकावट, मानसिक तनाव, धन की कमी,
मेहनत के बावजूद लाभ न मिलने जैसी समस्याओं
का सामना करना पड़ता है।
उत्तर दिशा जल तत्व से सम्बन्ध रखती है। इस
दिशा के स्वामी कुबेर हैं। इस दिशा में कोई
भारी सामान नहीं रखना चाहिए और न
ही इसे बंद करना चाहिए। धन रखने
वाली तिजोरी का मुख सदैव उत्तर दिशा में
ही खुलना शुभ माना गया है। इस दिशा को पवित्र और
खुला रखने से धन, धान्य, सुख, समृद्धि और
विद्या की प्राप्ति होती है।
पृथ्वी तत्व से सम्बंधित दक्षिण दिशा के
स्वामी यम हैं। इस दिशा को सदैव बंद
रखना ही शुभ माना जाता है। यदि इस दिशा में
खिड़की हों तो उन्हें बंद
रखना ही श्रेष्ठकर है। इस दिशा में
कभी भी पैर करके
नहीं सोना चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर – पूर्व दिशा को ईशान कोण
माना गया है। जल तत्व से सम्बन्ध रखने वाली इस
दिशा के स्वामी रूद्र हैं। इस
दिशा को भी सदैव पवित्र रखना चाहिए अन्यथा घर परिवार
में कलह और कष्ट होने के साथ-साथ कन्या संतान अधिक होने
की सम्भावना भी बनी रहती है।
दक्षिण – पूर्व दिशा को वास्तु शास्त्र में आग्नेय कोण माना गया है।
अग्नि तत्व से सम्बंधित इस दिशा के
स्वामी अग्नि देवता हैं। यदि इस दिशा को दूषित रखा जाए
तो घर में बीमारियाँ और अग्निकांड होने
का खतरा बना रहता है। इस दिशा में बिजली के
मीटर, विद्युत् उपकरण और गैस चूल्हा आदि रहने
चाहिए।
दक्षिण-पश्चिम दिशा को वास्तु शास्त्र में नैरित्य कोण कहा जाता है।
इस दिशा का सम्बन्ध पृथ्वी तत्व से है और इस
दिशा के स्वामी नैरूत हैं। इस दिशा के दूषित होने से
चरित्र हनन, शत्रु भय, भूत-प्रेत बाधा,
दुर्घटना जैसी समस्याओं का सामना करना पड सकता है।
वास्तु शास्त्र में उत्तर-पश्चिम दिशा को वायव्य कोण का नाम
दिया गया है। वायु तत्व वाली इस दिशा के
स्वामी भी वरुण देवता हैं। इस दिशा के
पवित्र रहने से घर में रहने वालों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है
और उनकी आयु
भी अच्छी रहती है।
वास्तु शास्त्र में भवन का मध्य भाग सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है
क्योंकि यह भाग ब्रम्हा का होने से इसे सदैव खुला और
खाली रखने की सलाह
दी जाती है। आकाश तत्व वाले इस पवित्र
स्थान के स्वामी सृष्टि के
रचियता ब्रह्मा जी हैं।

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