वास्तु शास्त्र में पूजा-पाठ, जप-तप के लिए कुछ आवश्यक सुझाव
दिए गए हैं, जिनका पालन करने से पूजन को विशेष
फलदायी बनाया जा सकता है।
1 देवालय स्थापित करने के लिए ईशान कोण यानि उत्तर व पूर्व
का समागम कोण सबसे उत्तम है। ईशान का अर्थ होता है ईश्वर
का स्थान। अगर इस दिशा में पूजा स्थल बनाना संभव न हो तो इसे
उत्तर या पूर्व दिशा में बनाएं।
2 जहां देवालय स्थापित किया हो वहां सूर्य
की रोशनी एवं ताजा हवा का समावेश
अवश्यक रूप से होना चाहिए।
3 पूजन कक्ष में चमड़े की कोई वस्तु, जूता-चप्पल,
मृतकों, पूर्वजों के चित्र न रखें। पूर्वजों के चित्र दक्षिण
दिशा की दीवार पर लगाने चाहिए।
4 पूजा-स्थल और मंदिर में अंतर होता है। वास्तु के मतानुसार ईश-
प्रतिमा की स्थापना घर में
नहीं करनी चाहिए। अंगूठे के एक पर्व से
लेकर एक बलिस्त तक की ईश-
प्रतिमा की स्थापना गृहस्थ को पूजा-स्थल में
करनी चाहिए।
5 शास्त्रों में पूजा की पांच पद्धतियों का वर्णन
किया गया है अभिगमन, उपादान, योग, स्वाध्याय व इज्या। पूजन के
समय इन पद्धतियों का उपयोग करने से भौतिक सुखों के साथ-साथ
आध्यात्मिक उपलब्धियां भी प्राप्त होती है।
6 पूजन के दौरान बासी फूल, पत्ते व जल को प्रयोग में न
लाएं मगर गंगाजल और
तुलसी पत्ता कभी बासी नहीं होते।
7 खंडित,सूंघा हुआ, आग में झुलसा हुआ फूल भगवान को कदापि न
चढ़ाएं।
8 पूजन के समय ध्वनि का भी अत्यधिक महत्व है।
शंख व घंटानाद न सिर्फ देवों को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है
बल्कि इससे वातावरण भी शुद्ध होता है।---
दिए गए हैं, जिनका पालन करने से पूजन को विशेष
फलदायी बनाया जा सकता है।
1 देवालय स्थापित करने के लिए ईशान कोण यानि उत्तर व पूर्व
का समागम कोण सबसे उत्तम है। ईशान का अर्थ होता है ईश्वर
का स्थान। अगर इस दिशा में पूजा स्थल बनाना संभव न हो तो इसे
उत्तर या पूर्व दिशा में बनाएं।
2 जहां देवालय स्थापित किया हो वहां सूर्य
की रोशनी एवं ताजा हवा का समावेश
अवश्यक रूप से होना चाहिए।
3 पूजन कक्ष में चमड़े की कोई वस्तु, जूता-चप्पल,
मृतकों, पूर्वजों के चित्र न रखें। पूर्वजों के चित्र दक्षिण
दिशा की दीवार पर लगाने चाहिए।
4 पूजा-स्थल और मंदिर में अंतर होता है। वास्तु के मतानुसार ईश-
प्रतिमा की स्थापना घर में
नहीं करनी चाहिए। अंगूठे के एक पर्व से
लेकर एक बलिस्त तक की ईश-
प्रतिमा की स्थापना गृहस्थ को पूजा-स्थल में
करनी चाहिए।
5 शास्त्रों में पूजा की पांच पद्धतियों का वर्णन
किया गया है अभिगमन, उपादान, योग, स्वाध्याय व इज्या। पूजन के
समय इन पद्धतियों का उपयोग करने से भौतिक सुखों के साथ-साथ
आध्यात्मिक उपलब्धियां भी प्राप्त होती है।
6 पूजन के दौरान बासी फूल, पत्ते व जल को प्रयोग में न
लाएं मगर गंगाजल और
तुलसी पत्ता कभी बासी नहीं होते।
7 खंडित,सूंघा हुआ, आग में झुलसा हुआ फूल भगवान को कदापि न
चढ़ाएं।
8 पूजन के समय ध्वनि का भी अत्यधिक महत्व है।
शंख व घंटानाद न सिर्फ देवों को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है
बल्कि इससे वातावरण भी शुद्ध होता है।---
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