Thursday, November 27, 2014

शुक्र के उपाय

शुक्र के उपाय करने से वैवाहिक सुख
की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. वाहन से जुडे
मामलों में भी यह उपाय लाभकारी रहते है.
शुक्र की वस्तुओं से स्नान (Bathe Using the Products
Related to Venus
ग्रह की वस्तुओं से स्नान करना उपायों के अन्तर्गत
आता है. शुक्र का स्नान उपाय करते समय जल में
बडी इलायची डालकर उबाल कर इस जल को स्नान के
पानी में मिलाया जाता है (boil big cardamom in a
water and mix in the bathing water). इसके बाद इस
पानी से स्नान किया जाता है. स्नान करने से वस्तु
का प्रभाव व्यक्ति पर प्रत्यक्ष रुप से पडता है.
तथा शुक्र के दोषों का निवारण होता है.
यह उपाय करते समय
व्यक्ति को अपनी शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए.
तथा उपाय करने कि अवधि के दौरान शुक्र देव
का ध्यान करने से उपाय की शुभता में वृ्द्धि होती है.
इसके दौरान शुक्र मंत्र का जाप करने से भी शुक्र के
उपाय के फलों को सहयोग प्राप्त होता है (recite
Mantra at the time of bathing).
शुक्र की वस्तुओं का दान -Donate Products related
to Venus
शुक्र की दान देने वाली वस्तुओं में घी व चावन (Ghee
and rice are the products of Venus) का दान
किया जाता है. इसके अतिरिक्त शुक्र क्योकि भोग-
विलास के कारक ग्रह है. इसलिये सुख- आराम
की वस्तुओं का भी दान किया जा सकता है. बनाव -
श्रंगार की वस्तुओं का दान भी इसके अन्तर्गत
किया जा सकता है (cosmetics and luxurious
products). दान क्रिया में दान करने वाले व्यक्ति में
श्रद्धा व विश्वास होना आवश्यक है. तथा यह दान
व्यक्ति को अपने हाथों से करना चाहिए. दान से पहले
अपने बडों का आशिर्वाद लेना उपाय
की शुभता को बढाने में सहयोग करता है.
शुक्र मन्त्र का जाप (Enchantment of Venus's
Mantra)
शुक्र के इस उपाय में निम्न श्लोक का पाठ
किया जाता है.
"ऊँ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा "
शुक्र के अशुभ गोचर की अवधि या फिर शुक्र
की दशा में इस श्लोक का पाठ प्रतिदिन या फिर
शुक्रवार के दिन करने पर इस समय के अशुभ फलों में
कमी होने की संभावना बनती है. मुंह के अशुद्ध होने पर
मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए. ऎसा करने पर
विपरीत फल प्राप्त हो सकते है. वैवाहिक जीवन
की परेशानियों को दूर करने के लिये इस श्लोक
का जाप करना लाभकारी रहता है (recite this
Mantra to resolve married life problems). वाहन
दुर्घटना से बचाव करने के लिये यह मंत्र
लाभकारी रहता है.
शुक्र का यन्त्र (Yantra of Venus)
शुक्र के अन्य उपायों में शुक्र यन्त्र का निर्माण
करा कर उसे पूजा घर में रखने पर लाभ प्राप्त होता है.
शुक्र यन्त्र की पहली लाईन के तीन खानों में 11,6,13 ये
संख्याये लिखी जाती है. मध्य की लाईन में 12,10, 8
संख्या होनी चाहिए. तथा अन्त की लाईन में 07,14,9
संख्या लिखी जाती है. शुक्र यन्त्र में प्राण
प्रतिष्ठा करने के लिये किसी जानकार पण्डित
की सलाह ली जा सकती है. यन्त्र पूजा घर में स्थापित
करने के बाद उसकी नियमित रुप से साफ-सफाई
का ध्यान रखना चाहिए

टोटका किया जाए तो हर काम बनने लगते हैं

जीवन में कई ऐसे अवसर आते हैं जब हर काम में
बाधा आने लगती है। काम बनते-बनते बिगड़ जाते हैं।
जहां से हमें उम्मीद होती है
वहीं से निराशा हाथ लगती है। ऐसे समय
में अगर यह टोटका किया जाए तो हर काम बनने लगते हैं और बाधाएं
स्वत: ही दूर हो जाती हैं। टोटका सुबह
उठकर नहाकर साफ पीले कपड़े पहनें। इसके बाद
आसन बिछाकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं
और 7 हल्दी की साबूत गांठे, 7 जनेऊ, 7
पूजा की छोटी सुपारी, 7
पीले फूल व 7 छोटी गुड़
की ढेली एक पीले रंग के कपड़े
में बांध लें। अब भगवान सूर्य का स्मरण करें और
अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें। यह
पोटली घर में कहीं ऐसी जगह
रख दें जहां कोई और उसे हाथ न लगाए। जब आपका कार्य हो जाए
तो यह
पोटली किसी नदी या तालाब में
प्रवाहित कर दें। तंत्र शास्त्र के अंतर्गत अनेक समस्याओं
का समाधान निहित है। यह साधारण तंत्र उपाय
जल्दी ही शुभ परिणाम देते हैं।

Wednesday, November 26, 2014

मुर्दे में भी जान डाल देता है राम रक्षा स्त्रोत

चमत्कारी है राम रक्षा स्त्रोत --------मुर्दे में
भी जान डाल देता है राम रक्षा स्त्रोत
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राम रक्षा स्त्रोत को ग्यारह बार एक बार में पढ़ लिया जाए तो पूरे दिन
तक इसका प्रभाव रहता है। अगर आप रोज ४५ दिन तक राम
रक्षा स्त्रोत का पाठ करते हैं तो इसके फल
की अवधि बढ़ जाती है। इसका प्रभाव
दुगुना तथा दो दिन तक रहने लगता है और
भी अच्छा होगा यदि कोई राम रक्षा स्त्रोत को नवरात्रों में
प्रतिदिन ११ बार पढ़े ।
सरसों के दाने एक कटोरी में दाल लें। कटोरी के
नीचे कोई ऊनी वस्त्र या आसन
होना चाहिए। राम रक्षा मन्त्र को ११ बार पढ़ें और इस दौरान
आपको अपनी उँगलियों से सरसों के
दानों को कटोरी में घुमाते रहना है। ध्यान रहे कि आप
किसी आसन पर बैठे हों और राम रक्षा यंत्र आपके
सम्मुख हो या फिर श्री राम कि प्रतिमा या फोटो आपके
आगे होनी चाहिए जिसे देखते हुए आपको मन्त्र
पढ़ना है। ग्यारह बार के जाप से सरसों सिद्ध
हो जायेगी और आप उस सरसों के दानों को शुद्ध और
सुरक्षित पूजा स्थान पर रख लें। जब आवश्यकता पड़े तो कुछ दाने
लेकर आजमायें। सफलता अवश्य प्राप्त होगी।
वाद विवाद या मुकदमा हो तो उस दिन सरसों के दाने साथ लेकर जाएँ और
वहां दाल दें जहाँ विरोधी बैठता है या उसके सम्मुख
फेंक दें। सफलता आपके कदम चूमेगी।
खेल या प्रतियोगिता या साक्षात्कार में आप सिद्ध सरसों को साथ ले जाएँ
और अपनी जेब में रखें।
अनिष्ट की आशंका हो तो भी सिद्ध
सरसों को साथ में रखें।
यात्रा में साथ ले जाएँ आपका कार्य सफल होगा।
राम रक्षा स्त्रोत से पानी सिद्ध करके
रोगी को पिलाया जा सकता है परन्तु
पानी को सिद्ध करने कि विधि अलग है। इसके लिए ताम्बे
के बर्तन को केवल हाथ में पकड़ कर रखना है और
अपनी दृष्टि पानी में रखें और महसूस करें
कि आपकी सारी शक्ति पानी में
जा रही है। इस समय अपना ध्यान
श्री राम की स्तुति में लगाये रखें। मन्त्र
बोलते समय प्रयास करें कि आपको हर वाक्य का अर्थ ज्ञात रहे।
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥
श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान्‌ कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे
विनियोग: ॥
अर्थ: — इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं,
सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं,
सीता शक्ति हैं, हनुमान
जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र
जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र
के जप में विनियोग किया जाता हैं |
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं

नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन
की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने
हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान
स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित
सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन
आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित
तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार
वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है
|
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं
के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे
भगवान् श्री राम का स्मरण करके,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर,
धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार
तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु
अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ
करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे
ललाट की रक्षा करें |
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे
कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और
सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ
की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और
भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले
भगवान् श्रीराम रक्षा करें |
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम
रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम)
को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के
राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के
आश्रयदाता रक्षा करें |
सुग्रीवेश: कटी पातु
सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी,
हडियों की हनुमान के प्रभु और
रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ
रक्षा करें |
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन
वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य
प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर
की श्रीराम रक्षा करें |
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु:
सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्
॥१०॥
शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से
संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह
दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान,
विजयी और विनयशील हो जाता हैं |
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते
रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से
सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते |
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त
पापों से लिप्त नहीं होता.
इतना ही नहीं, वह अवश्य
ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र
को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त
हो जाती हैं |
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं,
उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन
नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल
की ही प्राप्ति होती हैं |
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक
ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे
वैसा ही लिख दिया |
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं,
जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना,
किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा =
सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर
(अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं,
वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥
१७॥
जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल
(पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं,
मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण
करते हैं |
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं,
जो संयमी , तपस्वी एवं
ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण
दोनों भाई हमारी रक्षा करें |
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त
प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और
राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें |
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय
बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण
मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें |
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण
तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर
हमारी रक्षा करें |
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
भगवान् का कथन है की श्रीराम,
दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ ,
पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥
२३॥
वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ,
श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध
यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं |
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं
पीतांबरधारी श्रीराम
की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में
नहीं पड़ता |
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
लक्ष्मण जी के पूर्वज ,
सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन,
करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक ,
राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति,
सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु
भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं
सीताजी के
स्वामी की मैं वंदना करता हूँ |
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम!
हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप
मुझे शरण दीजिए |
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के
चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ,
वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान्
रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके
चरणों की शरण लेता हूँ |
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे
सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं.
उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता |
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और
जानकी जी और सामने हनुमान
ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ
जी की वंदना करता हूँ |
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्

कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में
धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक,
करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार
की श्रीराम की शरण में हूँ |
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत
तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन
पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत
की शरण लेता हूँ |
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥
मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर
अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए
वाल्मीकि रुपी कोयल
की वंदना करता हूँ |
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन
करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-
सम्पति प्रदान करने वाले हैं |
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त
हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर
लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत
सदा भयभीत रहते हैं |
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं |
मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन
करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले
श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ | श्रीराम के
समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत
वत्सल का दास हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं
ही लीन रहूँ | हे श्रीराम!
आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
(शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम-
नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन
करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं
संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

कैसे करें रत्न अभिमंत्रित...

कैसे करें रत्न अभिमंत्रित....
आप में से बहुत से मित्र इस बात से सहमत होंगे कि आखिर
क्या कारण है कि उत्तम गुणवत्तापूर्ण रत्न पहनने के बावजूद
भी किसी तरह का कोई लाभ
नहीं मिला, या हानि हुई या रत्न उदासीन
रहा। हालांकि इसके कई आरंभिक कारण हो सकते हैं जैसे रत्न
वास्तविक ना हो या कुंडली के अनुसार सटीक
रत्न न पहना गया हो गया हो। मेरे विचारानुसार कुंडली के
लिए रत्न तीन प्रकार के हो सकते हैं लाभदायक,
हानिकारक या उदासीन। तो अनावश्यक एवं
विपरीत रत्न के लाभ देने का तो औचित्य
नहीं लेकिन सही और सटीक
रत्न पहनने के बाद भी रत्न का काम न करना,
दर्शाता है कि रत्न को अभिमंत्रित सही तरह से
नहीं किया गया। अभिमंत्रण प्रक्रिया का एक अर्थ रत्न
को दिशा देना है। मेरे एक जानकार विद्वान ज्योतिषी,
जो अब शांत हो चुके हैं, के विषय में कहा जाता था कि वे
विपरीत रत्न से होने वाली आशंकाओं
को अभिमंत्रण द्वारा संभावनाओं में बदल देते थे। आजकल रत्न
को अभिमंत्रित करने का काम जातक दुष्कर समझकर पंडित को सौंप
देता है। भागदौड़, दौङधूप में रत्न खरीदना आसान है
लेकिन रत्न के लिए मंत्रजाप जहमत वाला काम लगता है।
जबकि रत्न को दो तरफा अभिमंत्रित करना चाहिए, एक योग्य पंडित
स्वयं करें, फिर प्रक्रिया का अक्षरशः पालन करते हुए जातक स्वयं
करें। इसके बाद कोई कारण नहीं बचता कि रत्न प्रभावित
न करें। दूसरी चीज, रत्न को अभिमंत्रित
करने के लिए सामान्य ग्रहों के मंत्रों का प्रयोग करने के स्थान पर
रत्न के लिए निर्धारित मंत्र का उपयोग सर्वथा उचित रहता है।
इसलिए रत्न खरीदने के बाद यदि आप आर्थिक रूप से
समृद्ध हो तो भी अभिमंत्रित स्वयं
ही करना चाहिए क्योंकि बिना इसके रत्न हाथ
की शोभा भले ही बढा दें
आपकी बढाने में समर्थ नहीं होगा।
हमारा उद्देश्य मात्र रत्नों का व्यापार
ही नहीं बल्कि ज्योतिष के
प्रति कर्तव्यभावना भी है। किसी ने
यदि पहले से रत्न पहन रखा हो और उसके
निष्प्रभावी या गलत परिणामों से परेशान
हो तो भी संपर्क कर सकते हैं। एक निवेदन उन
मित्रों से हैं जो आवश्यक रत्न जानने के लिए ये झूठ बोलते हैं
कि हमें रत्न खरीदना है, कौनसा पहनना चाहिए। आप
बिना इस झूठ के भी पूछना चाहेंगे
तो भी बता दिया जाता है।
सरस्वती की कृपा से ये सामर्थ्य है
कि कुंडली द्वारा जान सकें कि आप कितने घाट
का पानी पीकर यहां डुबकी मारने
पधारे हैं। हमारे ग्राहक ईश्वर की कृपा से बहुत हैं
और होते रहेंगे। इस तरह की वाक्पटुता न दिखायें।
मेहरबान मित्र ध्यान रखें कि लगभग सबसे ज्यादा रत्न बेचने वाले
लोगो की गिनती में तो हम आते हैं।हम
हमारे दायित्व समझते हैं, आप भी कम से कम ज्योतिष
को, जिस पर आप स्वयं इतना विश्वास करते हैं, उपहास का विषय
ना बनायें।

फेंगशुई के 10 उपाय

भाग्यशाली होता है तीन टांगों वाला मेंढक,
जानिए फेंगशुई के 10 उपाय :
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फेंगशुई एक चाइनीज शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है
वायु और जल। घरों का निर्माण किस प्रकार करें, कैसे घरों को सुंदर
बनाएं, घरों में क्या-क्या सामान होना चाहिए? इन
सभी बातों की जानकारी हमें
फेंगशुई में आसानी से मिलती है। फेंगशुई
मूल रूप से चीन का वास्तु शास्त्र है। यह
भारतीय वास्तु शास्त्र से काफी मिलता-
जुलता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार वास्तु शास्त्र का उपयोग
प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है। आप
भी फेंगशुई टिप्स अपना कर घर के वास्तु
दोषों को आसानी से दूर कर सकते हैं। ये हैं फेंगशुई
टिप्स-
---तीन टांगों वाला मेंढक :-
फेंगशुई में तीन टांगों वाला मेंढक बहुत
भाग्यशाली माना जाता है। मुंह में सिक्के लिए हुए
तीन टांगों वाले मेंढक की उपस्थिति बहुत
महत्वपूर्ण होती है। इसे अपने घर के
भीतर मुख्य दरवाजे के आसपास रखना चाहिए। मेंढक
को किचन या शौचालय के भीतर ना रखें। ऐसा करना दुर्भाग्य
को आमंत्रित करता है।
--लाफिंग बुद्धा :
अगर आपको आर्थिक सफलता पाना है तो लॉफिंग बुद्धा निश्चित
ही आपकी मदद करेगा। अपने लिविंग रूम में
मुख्य द्वार से तिरछी तरफ एक हंसता हुआ लाफिंग
बुद्धा बैठा दें। फिर देखिए समृद्धि आपके घर में अवश्य
आएगी। लाफिंग बुद्धा मुख्य द्वार के एकदम सामने न
रखें। बुद्धा समृद्धि के देवता हैं। इनकी मुस्कान में
ही समृद्धि है।
--ड्रैगन का जोड़ा :-
फेंगशुई में दो ड्रैगन का जोड़ा समृद्धि का प्रतीक है।
इनके पैर के पंजों में ज्यादा मोती सबसे ज्यादा ऊर्जा संजोए
हुए होते हैं। फेंगशुई में ड्रैगन को चार दिव्य प्राणियों में
गिना जाता है। ड्रैगन पुरुषत्व, हिम्मत और
बहादुरी का प्रतीक है, इसमें अपार
शक्ति होती है। डबल ड्रैगन को यूं
तो किसी भी दिशा में रखा जा सकता है लेकिन
पूर्व दिशा में रखना सबसे ज्यादा लाभदायक है। फेंगशुई में ड्रैगन
को बहुत शुभ मानते हैं।
---सिक्के :
अपने घर के दरवाजे के हैंडल में सिक्के लटकाना घर में सम्पत्ति,
धन और सौभाग्य लाने का सर्वोत्तम मार्ग है। आप तीन
पुराने चीनी सिक्कों को लाल रंग के धागे
अथवा रिबन में बांध कर अपने घर के हैंडल में लटका सकते हैं।
इससे घर के सभी लोग लाभांवित होंगे। ये सिक्के दरवाजे के
अंदर की ओर लटकाने चाहिए न कि बाहर
की ओर। घर के सभी दरवाजों के हैंडल में
सिक्के नहीं लटकाना चाहिए, केवल मुख्य द्वार के
हैंडल पर ही सिक्के लटकाना ठीक
रहता है।
---गोल्डफिश :
फिश पॉट को अपने ड्रॉइंग रूम में रखें। इसमें 9 फिश रखें। इनमें 8
मछलियां लाल या सुनहरी और एक काले रंग
की होनी चाहिए।
किसी गोल्डफिश के मर जाने पर आप उसे बदल दें, नई
मछली ले आएं। ऐसा माना जाता है कि जब आपके घर
की कोई गोल्डफिश मर जाती है तो वह
अपने साथ कई दुर्भाग्यों को भी ले जाती है।
---बंद रखें अलमारियां:-
पुस्तकें यदि खुली अलमारी में
रखी जाएं तो ये अशुभ ऊर्जा को उत्पन्न
करती हैं। जो इस कमरे में रहने वाले व्यक्ति के लिए
बहुत बुरी होती है। इसलिए
अलमारियों को हमेशा बंद रखना चाहिए।
अलमारी खुली छोडऩे पर इस कमरे में रहने
वाला व्यक्ति बीमार पड़ सकता है।
---दरवाजे के सामने नहीं सोना चाहिए:
चीन में दरवाजे की ओर पांव करके सोना मृत्यु
का सूचक माना जाता है। वास्तव में मृत शरीर
इसी अवस्था में रखा जाता है, जो उसके लिए
अच्छा माना जाता है। परन्तु, जीवित व्यक्ति के लिए यह
स्थिति अत्यधिक हानिकारक है। इससे बचना चाहिए।
----अधेरा कोना ना छोड़ें :
फेंगशुई के अनुसार एक
अंधेरा कोना किसी भी जगह पर बुरा प्रभाव
डालता है, क्योंकि यह
ची यानी एनर्जी का फ्री फ्लो नहीं होने
देता। ऐसे अंधेरे कोने में फेंगशुई आर्टपीस रखने से
एनर्जी का प्रवाह सुचारू रूप से होने लगता है।
---शयन कक्ष में आईना लगाना वर्जित :
शयन कक्ष में आईना लगाना वर्जित है। पलंग के सामने
आईना बिल्कुल नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे पति-
पत्नी के वैवाहिक संबंधों में भारी तनाव
पैदा हो सकता है। इसके कारण पति-पत्नी के संबंधों के
बीच किसी तीसरे
व्यक्ति का प्रवेश भी हो सकता है।
----दर्पण के बुरे प्रभाव कैसे करें दूर:
दर्पण का निगेटिव प्रभाव कम करने के लिए उन्हें ढक कर
रखना चाहिए अथवा इन्हें अलमारियों के अन्दर की ओर
लगवाने चाहिए। पलंग पर सो रहे पति-
पत्नी को प्रतिबिंबित करने वाला आईना तलाक तक
का कारण बन सकता है। इसलिए रात्रि के समय दर्पण दृष्टि से
ओझल होना चाहिए।

आप मंगल से प्रभावित है

क्या आप मंगल से प्रभावित है?
अगर सोते वक्त आपकी आंखे थोड़ी-2
खुली रहती है या आपका मुँह
सोते वक्त खुला रहता है / सामने की तरफ
सीधा देखने पर भी आंख
का डेला थोड़ा उपर की तरफ हो या डेले
की नीचे
की सफेदी दिखती होतो इसका मतलब आप
मंगलीक है ; ऐसे
लोगो का मंगल अमूमन १ २ ४ ७ ८ या १२ वें
ख़ाना में होता है.....
अगर उपर लिखी बातें आप से मिलती है तो आप
मंगलीक/मंगल से
प्रभावित हैं॥ मंगल नेक व बद दो तरह
का जिसके अलग अलग
किय़ाफे हैं......

अशुभ नक्षत्रों में जन्म होने पर

इन अशुभ नक्षत्रों में जन्म होने पर इस
अशुभता को दूर करने के लिये उपाय करने पड्ते
है. गोचर में जब ग्रह अनिष्ट फल दे
रहा हो या फिर दशा में कष्ट देने
कि स्थिति में हों ऎसे में ग्रह के उपाय
करना हितकारी रहता है.
जन्म कुण्डली में जब किसी ग्रह का सहयोग
प्राप्त न होने की स्थिति में उस ग्रह से जुडे
उपाय करने से ग्रह का शुभ सहयोग प्राप्त
होता है. ये उपाय ग्रह से संबन्धित कार्यो में
भी किये जा सकते है. जैसे:- शिक्षा में
रुचि कम होने पर बुध के उपाय करने
लाभकारी रहते है (remedies for Mercury to
increase interest in education). इसी तरह बुध से
संबधित अन्य कार्यो में भी बुध के उपाय
करना हितकारी रहता है.
1. बुध की वस्तुओं से स्नान (Remedy for
Mercury Through Bathing)
बुध की वस्तुओं का स्नान करने के लिये
स्नान के पानी में साबुत चावल के दाने डालकर
स्नान किया जाता है (put raw rice in the water
and bathe with it). तांबे के बर्तन में जल भरकर
रात भर रखने के बाद इस जल को ग्रहण
किया जाता है (fill water in the copper utensil for
a night and drink it in the morning for Mercury's
Remedy). ऎसा करने पर तांबे के गुण जल के साथ
व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते है. तथा बुध
से जुडे रोगों होने पर यह उपाय करने पर लाभ
प्राप्त होता है. इस उपाय को करते समय बुध के
मंत्र का जाप करने पर उतम फल प्राप्त होते है
(chant Mantra of Mercury along with this remedy
to get more beneficial results).
2. बुध के दान (Astrological Remedy for Mercury
Through Donation)
बुध के लिये किये जाने वाली वस्तुओं में
हरी मूंग की दाल (donate green Moong Dal for
Mercury Remedy) आती है. बुध की वस्तुओं में
तांबे का दान भी किया जा सकता है. बुध
की वस्तुएं दान करने पर बुद्धि व
शिक्षा कार्यो में सफलता मिलती है. ये दान
प्रत्येक बुधवार को किये जा सकते है. दान
कि मात्रा अपने सामर्थ्य के अनुसार
लेनी चाहिए.
3. बुध का मंत्र (Mercury Astrological Remedy by
Chanting Mantra)
बुध मंत्र में "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:"
का जप करना चाहिए. इस मंत्र का एक
माला अर्थात 108 बार जाप करने से बुध ग्रह
की शान्ति होती है. बुध ग्रह जब गोचर में
व्यक्ति के अनुकुल फल नहीं दे रहा हों तो इस
मंत्र का जाप प्रतिदिन करना चाहिए (Recite
Mantra of Mercury everyday during its transit to
get favorable results). बुध की महादशा के शुभ फल
पाने के लिये बुध की महादशा अन्तर्दशा में
नियमित रुप से इस मंत्र का जाप
करना लाभकारी रहता है.
4. बुध यंत्र को धारण करना (Remedy by
Establishment by Mercury Yantra)
बुध यंत्र को अपने या अपनी संतान के अध्ययन
कक्ष में लगाने से शिक्षा में उतम फल प्राप्त
होने की संभावना बनती है. इस यंत्र को विशेष
रुप से अपने व्यापारिक क्षेत्र में लगाने से
व्यापार में उन्नति की संभावनाएं बनती है.
बुध ग्रह के अंकों का योग करने पर योगफल 24
आता है (the total sum of this Yantra is 24). इस
यन्त्र को तांबे के पत्र पर, भोजपत्र पर या फिर
कागज पर बनाया जा सकता है. जब इस यन्त्र
को भोजपत्र या फिर कागज पर स्वयं बनाते समय
इसके लिये अनार की कलम व स्याही के लिये
लाल चन्दन, कस्तूरी व केसर
की स्याही का प्रयोग किया जाना चाहिए
(make it on paprus or copper sheet with the help
of pomegranate quill, red sandalwood, saffron and
musk). यन्त्र का निर्माण करते समय
शुद्धता का ध्यान रखना आवश्यक होता है.
यन्त्र तैयार होने के बाद इसे व्यापार
वृ्द्धि के लिये इसे व्यापारिक क्षेत्र में
लगाने से लाभ व उन्नति प्राप्त होने
की संभावनाएं बनती है (this Yantra can help to
get favorable results in the business). बुध यन्त्र
इस प्रकार है.
5. गुरु ग्रह के शान्ति उपाय (Remedies for
Jupiter according to Astrology)
गोचर में या दशा में जब गुरु के शुभ फल
प्राप्त न होने की स्थिति में गुरु ग्रह
की शान्ति के उपाय करना लाभकारी रहता है.
गुरु सबसे शुभ ग्रह है (Jupiter is a Karak planet
of money, knowledge and child). इसलिये
इनकी शुभता की सबसे अधिक
आवश्यकता होती है. जब कुण्डली में गुरु अशुभ
भावों का स्वामी हों तो गुरु की महादशा में
इसकी शान्ति के उपाय करने लाभकारी रहते है
(perform its remedies when Jupiter is under malefic
influence or is a lord of the inauspicious planets).
गुरु धन, ज्ञान व संतान के कारक ग्रह है.
इसलिये गुरु के उपाय करने पर धन, ज्ञान व
संतान का सुख प्राप्त होने कि संभावनाएं
बनती है. गुरु के शान्ति उपायों में निम्न
उपाय आते है:-
1. गुरु की वस्तुओं से स्नान (Remedy for
Jupiter Through Bathing)
इस उपाय के लिये गंगाजल में
पीली सरसों या शह्द दोनों को मिलाकर स्नान
किया जाता है (mix yellow mustard and honey in
the Ganga water and bathe with it). स्नान करते
समय गुरु मंत्र का जाप करना लाभकारी रहता है.
तथा इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कर
लिया जाता है. यह उपाय करने पर स्नान करने पर
वस्तु का प्रभाव रोमछिद्रों से होते हुए
व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते है. उपाय के
फलस्वरुप व्यक्ति को गुरु के गोचर या फिर
दशा में शुभ फल प्राप्त होने की संभावना बढ
जाती है.
2. गुरु की वस्तुओं का दान (Astrological
Remedy for Jupiter Through Donation)
स्नान करने के उपाय के अतिरिक्त
इसकी वस्तुओं का दान करने से
भी व्यक्ति को लाभ प्राप्त होते है. दान
की जाने वाली वस्तुओं में नमक,
हल्दी की गांठें, नींबू आदि का दान
किया जा सकता है (donate salt, turmeric and
lemon as a products of Jupiter). इनमें से
किसी एक वस्तु या फिर सभी वस्तुओं का दान
गुरुवार को किया जा सकता है. दान करते समय
शुभ समय में गौधुली मुहूर्त (Godhuli Muhurtha)
का प्रयोग किया जा सकता है. वस्तुओं
का दान करते समय अपने सामर्थय से अधिक
वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए. जिस
व्यक्ति के लिये यह दान किया जा रहा है.
उसके स्वयं के संचित धन का प्रयोग इस कार्य
के लिये करना विशेष रुप से शुभ रहता है.
3. गुरु मंत्र का जाप करना (Jupiter's Astrological
Remedy by Chanting Mantra)
गुरु की शुभता प्राप्त करने के लिये गुरु
मंत्र का जाप किया जा सकता है. " ऊं गुं
गुरुवाये नम: " इस मंत्र का जाप प्रतिदिन एक
माला या एक से अधिक माला प्रतिदिन
करना शुभ रहता है. इसके अलावा गुरु का जाप
गुरुवार के दिन करना भी लाभकारी रहता है.
जिस अवधि के लिये यह उपाय किया जा रहा है
उस अवधि में हवन कार्यो में इस मंत्र का जाप
किया जा सकता है (recite this Mantra during
Yajna too).
4. गुरु यन्त्र निर्माण (Remedy by Formation of
Jupiter's Yantra)
गुरु यन्त्र (Guru Yantra) की पूजा करने से
या फिर इसे धारण करने से धन संबन्धित
परेशानियों में कमी होती है. आर्थिक
स्थिति को सुदृढ करने में भी गुरु यन्त्र
(Guru Yantra) उपयोगी रहता है (this remedy is
auspicious to build good financial status). गुरु
यन्त्र (Guru Yantra) के प्रभाव से संतान सुख
प्राप्ति की संभावनाओं को सहयोग प्राप्त
होगा. शिक्षा क्षेत्र में सफलता पाने के
लिये यह योग विशेष रुप से
लाभकारी सिद्धि होता है. गुरु यन्त्र
की सभी संख्याओं का योग 27 होता है.
गुरु यन्त्र को बनाकर धन स्थान में या फिर
पूजा स्थान में रखकर पूजा करने से इस यन्त्र
के सभी शुभ फल प्राप्त होने
की संभावना बनती है. इसकी पहली लाईन में 10,
5,12 ये संख्यायें आती है. मध्य की लाईन में
11,9,7 संख्याएं आती है. तथा अन्तिम लाईन में
6,13 व 8 ये संख्यायें आती है. गुरु यन्त्र
की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिये
किसी योग्य पण्डित
की सहायता ली जा सकती है

कई तरह के फूल- पत्तों को चढ़ाना बड़ी ही शुभ माना गया है

विधियों में कई तरह के फूल-
पत्तों को चढ़ाना बड़ी ही शुभ माना गया है।
धार्मिक अनुष्ठान, पूजन, आरती आदि कार्य बिना पुष्प के
अधूरे ही माने जाते हैं। कुछ विशेष फूल देवताओं
को चढ़ाना निषेध होता है। किंतु शास्त्रों में ऐसे भी फूल
बताए गए हैं, जिनको चढ़ाने से हर
देवशक्ति की कृपा मिलती है यह बहुत
शुभ, देवताओं को विशेष प्रिय होते हैं और हर तरह का सुख-
सौभाग्य बरसाते हैं। कौन से भगवान की पूजा किस फूल
से करें, इसके बारे में यहां संक्षिप्त
जानकारी दी जा रही है। इन
फूलों को चढ़ाने से आपकी हर
मनोकामना शीघ्र
ही पूरी हो जाती है-
हमारे जीवन में फूलों का काफी महत्व है।
फूल ईश्वर की वह रचना है,
जिसकी खुशबू से हमारे घर की नकारात्मक
शक्तियां दूर होती हैं। इसकी खुशबू मन
को शांति देती है। वैसे तो भगवान भक्ति के भूखे हैं,
लेकिन हमारे देश में भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनपर उनके
प्रिय फूलों को चढ़ाने की मान्यता भी है।
कहा जाता है कि भगवान के पसंदीदा रंगों के आधार
मानकर उनपर उन्हीं रंगों के फूल चढ़ाए जाते हैं। ध्यान
रखें, भगवान
की पूजा कभी भी सूखे फूलों से
न करें। कमल का फूल को लेकर मान्यता यह है कि यह फूल दस
से पंद्रह दिन तक
भी बासी नहीं होता।
चंपा की कली के
अलावा किसी भी पुष्प
की कली देवताओं को अर्पित
नहीं की जानी चाहिए।
श्रीगणेश- आचार भूषण ग्रंथानुसार भगवान
श्रीगणेश को तुलसीदल को छोड़कर
सभी प्रकार के फूल चढ़ाए जा सकते हैं। पद्मपुराण
आचाररत्न में भी लिखा है कि 'न तुलस्या गणाधिपम'
अर्थात् तुलसी से गणेश
जी की पूजा कभी न करें। गणेश
जी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है। गणेश
जी को दूर्वा बहुत ही प्रिय है । दूर्वा के
ऊपरी हिस्से पर तीन या पांच
पत्तियां हों तो बहुत ही उत्तम है।
शंकरजी- भगवान शंकर को धतूरे के पुष्प, हरसिंगार, व
नागकेसर के सफेद पुष्प, सूखे कमल गट्टे, कनेर, कुसुम, आक, कुश
आदि के पुष्प चढ़ाने का विधान है। भगवान शंकर को धतूरे का फूल
सबसे अधिक प्रिय है। इसके अलावा इनको बेलपत्र और
शमी पत्र चढ़ाना बहुत ही शुभ
माना जाता है। भगवान शिव जी को सेमल, कदम्ब, अनार,
शिरीष , माधवी, केवड़ा, मालती,
जूही और कपास के पुष्प नहीं चढ़ाये जाते
है ।
सूर्य नारायण- इनकी उपासना कुटज के पुष्पों से
की जाती है। इसके अलावा आक, कनेर,
कमल, चंपा, पलाश, अशोक, बेला, आक, मालती, आदि के
पुष्प भी प्रिय हैं। भविष्यपुराण में तो यहां तक
कहा गया है कि सूर्य भगवान पर यदि एक आक का फूल चढ़ाया जाए
तो इससे स्वर्ण की दस अशर्फियों को चढ़ाने
जैसा ही फल मिल जाता है। भगवान सूर्य को लाल फूल
बहुत ही पसंद है ।
भगवती गौरी- शंकर भगवान को चढऩे वाले
पुष्प मां भगवती को भी प्रिय हैं। इसके
अलावा बेला, सफेद कमल, पलाश, चंपा के फूल भी चढ़ाए
जा सकते हैं।
माँ दुर्गा - माँ दुर्गा को लाल गुलाब और गुड़हल का फूल
भी बहुत प्रिय है। माता दुर्गा जी को बेला,
अशोक, माधवी, केवड़ा, अमलतास के फूल
भी चढ़ाये जाते है । लेकिन माता को दूर्वा,
तुलसीदल और तमाल के पुष्प
भी नहीं चढ़ाये जाते है ।
श्रीकृष्ण- अपने प्रिय पुष्पों का उल्लेख महाभारत में
युधिष्ठिर से करते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं- मुझे
कुमुद, करवरी, चणक, मालती, नंदिक, पलाश
व वनमाला के फूल प्रिय हैं।
लक्ष्मीजी-
मां लक्ष्मी का सबसे अधिक प्रिय पुष्प कमल है।
उन्हें पीला फूल चढ़ाकर भी प्रसन्न
किया जा सकता है। इन्हें लाल गुलाब का फूल
भी काफी प्रिय है।विष्णुजी-
भगवान विष्णु को कमल, मौलसिरी, जूही,
कदम्ब, केवड़ा, चमेली, अशोक, मालती,
वासंती, चंपा, वैजयंती के पुष्प विशेष प्रिय
हैं। इनको इनको पीले फूल बहुत
ही पसंद है । विष्णु भगवान तुलसी दल
चढ़ाने से अति शीघ्र प्रसन्न होते है । कार्तिक मास में
भगवान नारायण केतकी के फूलों से पूजा करने से विशेष रूप
से प्रसन्न होते है । लेकिन विष्णु जी पर आक, धतूरा,
शिरीष, सहजन, सेमल, कचनार और गूलर आदि के फूल
नहीं चढ़ाने चाहिए । विष्णु जी पर अक्षत
भी नहीं चढ़ाये जाते है ।
सरस्वती जी -
विद्या की देवी माँ सरस्वती को प्रसन्न
करने के लिए सफेद या पीले रंग का फूल चढ़ाएं जाते
यही । सफेद गुलाब, सफेद कनेर या फिर
पीले गेंदे के फूल से
भी मां सरस्वती वहुत प्रसन्न
होती हैं।
किसी भी देवता के पूजन में
केतकी के पुष्प नहीं चढ़ाए जाते।बजरंग
बली- बजरंग बली को लाल
या पीले रंग के फूल विशेष रूप से अर्पित किए जाने
चाहिए। इन फूलों में गुड़हल, गुलाब, कमल, गेंदा, आदि का विशेष
महत्व रखते हैं। हनुमानजी को नित्य इन फूलों और
केसर के साथ घिसा लाल चंदन का तिलक लगाने से जातक
की सभी मनोकामनाएँ शीघ्र
ही पूरी होती है ।
शनि देव - शनि देव को नीले लाजवन्ती के
फूल चढ़ाने चाहिए, इसके अतिरिक्त कोई
भी नीले या गहरे रंग के फूल चढ़ाने से
शनि देव शीघ्र ही प्रसन्न हो