Tuesday, September 30, 2014

कैसा हो हिंदू घर

कैसा हो हिंदू घर?
1.घर का मुख्य द्वार चार ईशान, उत्तर, पूर्व और पश्चिम में से
किसी एक दिशा में हो।
2.घर के सामने आँगन और पीछे
भी आँगन हो जिसके बीच में
तुलसी का एक पौधा लगा हो।
3.घर के सामने या निकट तिराहा-चौराह
नहीं होना चाहिए।
4.घर का दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए। अर्थात
बीच में से भीतर खुलने वाला हो। दरवाजे
की दीवार के दाएँ शुभ और बाएँ लाभ
लिखा हो।
5.घर के प्रवेश द्वार के ऊपर स्वस्तिक अथवा 'ॐ'
की आकृति लगाएँ।
6 .घर के अंदर आग्नेय कोण में किचन, ईशान में प्रार्थना-ध्यान
का कक्ष हो, नैऋत्य कोण में शौचालय, दक्षिण में
भारी सामान रखने का स्थान आदि हो।
7.घर में बहुत सारे देवी-देवताओं के चित्र
या मूर्ति ना रखें। घर में मंदिर ना बनाएँ।
8.घर के सारे कोने और ब्रह्म स्थान (बीच
का स्थान) खाली रखें।
9.घर की छत में
किसी भी प्रकार का उजालदान ना रखें।
10.घर हो मंदिर के आसपास तो घर में सकारात्मक
ऊर्जा बनी रहती है।
11.घर में किसी भी प्रकार
की नाकारात्मक वस्तुओं का संग्रह ना करें ।
12.घर में सीढ़ियाँ विषम संख्या (5,7, 9) में
होनी चाहिए।
13.उत्तर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व (ईशान) में खुला स्थान अधिक
रखना चाहिए।
14. घर के उपर केसरिया धवज लगाकर रखें।
16. घर में किसी भी तरह के
नकारात्मक कांटेदार पौधे या वृक्ष रोपित ना करें।

नवार्ण महामंत्र

नवार्ण महामंत्र
नवाक्षरी नवार्ण मंत्र
भगवती दुर्गा का प्रसिद्ध महामंत्र है और
बिना इस मंत्र के देवी पाठ या देवी से
संबंधित कोई भी अनुष्ठान सफल एवं सिद्ध
नही हो पाता ।नवार्ण मंत्र अपने आप मे अत्यंत
महत्वपूर्ण और प्रभाव युक्त है। इसे मंत्र और तंत्र मे
समान रूप से प्रयोग किया जाता है । इसी क्रम मे
नवार्ण महामंत्र सम्पूर्ण महामंत्र है इनके उच्चारण मात्र से
ही माई भगवती अतिप्रसन्न
होजाती है।
महामंत्र---ॐ ऐं
ह्रीं क्लीं महादुर्गे
नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके
नवचंडी महा माये महा मोहे महा योग निद्रे जये
मधु कैटभ विद्राविणि महिषासुर मर्द्दिनि ध्रुम लोचन
संहंत्री चंडमुंड विनाशिनी रक्त
बीजांत के निशुंभ ध्वसिनि शुंभ
दर्पघ्नि देवी अष्टादश बाहुके कपाल खट् वाग शूल
खडग् खेटक धारिणि छिन्न मस्तक धारिणि रूधिर मांस भोजिनि समस्त
भूत प्रेतादि योग ध्वंसिनि ब्रह्मेन्द्रदि स्तुते
देवी मां रक्ष रक्ष मम शत्रुन् नाशय
ह्रीं फट् ह्वूं फट् ॐ ऐं
ह्रीं क्लीं चांमुडायै विच्चे।

किस दिशा में किचन (रसोईघर)

जानिए की किस दिशा में किचन (रसोईघर) होने पर
क्या होगा हानि और लाभ----
किसी भी घर में किचन (रसोईघर)
अत्यन्त महत्वपूर्ण है। घर
की गृहिणी का किचन से विशेष
नाता रहता है। गृहणियां हमेशा इस बात का खयाल
रखती हैं कि उनका किचन आग्नेय कोण में हो और
यदि ऐसा नहीं हो तो किसी भी परेशानी का कारण
किचन के वास्तुदोष पूर्ण होने को ही मान
लिया जाता है, जो उचित नहीं है।
यह सही है कि घर के आग्नेय कोण में किचन
का स्थान सर्वोत्तम है, पर यदि संभव हो तो उसे
किसी अन्य स्थान पर बनाया जा सकता है।
---आग्नेय कोण:---किचन की यह स्थिति बहुत
शुभ होती है । आग्नेय कोण में किचन होने पर
घर की स्त्रियां खुश रहती हैं। घर में
समस्त प्रकार के सुख रहते हैं।
----दक्षिण दिशा:----- इस दिशा में किचन होने से परिवार में
मानसिक अशांति बनी रहती है। घर के
मालिक को क्रोध अधिक आता है और उसका स्वास्थ्य साधारण
रहता है।
----नैर्ऋत्य कोण:--- जिस घर में किचन दक्षिण या नैर्ऋत्य
कोण में होता है उस घर की मालकिन ऊर्जा से
भरपूर उत्साहित एवं रोमांटिक मिजाज
की होती है।
----पश्चिम दिशा:---- जिस घर में किचन पश्चिम दिशा में
होता है, उस घर का सारा कार्य घर की मालकिन
देखती है। उसे अपनी बहू-बेटियों से
काफी खुशियां प्राप्त होती हैं। घर
की सभी महिला सदस्यों में
आपसी तालमेल अच्छा बना रहते हैं, परंतु
खाद्यान्न की बर्बादी जरूर
ज्यादा होती है।
---वायत्य कोण: -----जिस घर का किचन वायव्य कोण में
होता है, उसका मुखिया रोमांटिक होता है। उसकी कई
महिला मित्र होती हैं, किन्तु
बेटी को गर्भाशय की समस्या और
कभी कभी उसकी बदनामी भी होती है।
-----उत्तर दिशा:--- जिस घर में किचन उत्तर दिशा में
होता है, उसकी स्त्रियां बुद्धिमान
तथा स्नेहशील होती हैं। उस परिवार
के पुरूष सरलता से अपना कारोबार करते हैं और उन्हें धनार्जन
में सफलता मिलती है।
-----ईशान कोण: --ईशान कोण में किचन होने पर परिवार के
सदस्यों को सामान्य सफलता मिलती है। परिवार
की बुजुर्ग महिला पत्नी,
बड़ी बेटी या बड़ी बहु
धार्मिक प्रवृति की होती है, परंतु घर
में कलह भी होती है।
---पूर्व दिशा:--- जिस घर में पूर्व दिशा में किचन होता है,
उसकी आय
अच्छी होती है। घर
की पूरी कमान पत्नी के पास
होती है।
पत्नी की खुशियों में
कमी रहती है। साथ
ही उसे पित्त गर्भाशय स्नायु तंत्र आदि से संबंधित
रोग होने की संभावना रहती

Sunday, September 28, 2014

राहु का नवम भाव में फल

राहु का नवम भाव में फल ,
अग्नि तत्व की राशि में :- विदेश यात्रा ,दाम्पत्य
जीवन सुखी , अल्प संतान
-----------
वायु तत्व की राशि में :- भाई के सुख से
हीन , पत्नी से कम प्रेम , संतान में
परेसानी ----------
पृथ्वी तत्व की राशि में :- भाई के साथ
उन्नति नहीं , संतान सुख में
परेसानी ,धनी -----------
जल तत्व की राशि में :- पिता से वैचारिक
मतभेद ,विदेश यात्रा ,भाग्यवान ---------
हमारा अनुभव :- नवम भाव में राहु संतान सुख
आसानी से नहीं देता है । पिता से
बैचारिक मतभेद हमेसा रहते है । भाई अगर साथ रहता है
तो दोनों को सफलता नहीं मिलती है ,अगर
अलग रहे तो सफल हो सकते है । बहुत
तिकड़मी दिमाग के मालिक होते है । अच्छे लोगो के
साथ रहना बहुत पसंद होता है । कुल मिलाकर बडिया फल
ज्यादा देखने को मिलते है । --------

चरणामृत का महत्व

चरणामृत का महत्व (Charanamrit - Holy Water)
अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें
भगवान का चरणामृत देते है.
क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश
की. कि चरणामृतका क्या महत्व है.
शास्त्रों में कहा गया है
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल
समस्त पाप-व्याधियोंका शमन करने वाला है
तथा औषधी के समान है।
जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म
नहीं होता" जल तब तक जल
ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से
नहीं लगता, जैसे ही भगवान के
चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है.
जब भगवान का वामन अवतार हुआ,
और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब
उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए
जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए
और दूसरे मेंऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे
ही ब्रह्म लोक में उनका चरण
गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में से जल
लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने
कमंडल में रख लिया.
वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज
भी सारी दुनिया के
पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पास कहाँ से आई
ये शक्ति है भगवान के चरणों की. जिस पर
ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर
चरणों का स्पर्श होते ही बन गई
गंगा जी . जब हम बाँके
बिहारी जी की आरती गाते
है तो कहते है -
"चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने
सारी दुनिया तारी "
धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है
तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवनकिया जाता है।
चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है। कहते हैं
भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप
में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से
पारहो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार
दिया। चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक
ही नहीं चिकित्सकीय
भी है।
चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने
की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल
में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से
शरीर में रोगों से लडऩे
की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग
नहीं होते। इसमें तुलसी के पत्ते डालने
की परंपरा भी है जिससे इस जल
की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़
जाती है। तुलसी के पत्ते पर जल इतने
परिमाण में होना चाहिए कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए।
ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा,
बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत
औषधी के समान है। यदि उसमें
तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके
औषधीय गुणों में और
भी वृद्धि हो जाती है।
कहते हैं सीधे हाथ में
तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ काम
या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है। इसीलिए
चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये, लेकिन
चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत
होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं।
चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है
या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं?
दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ
रखना अच्छा नहीं माना जाता है। कहते हैं इससे
विचारों में
सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है।
इसीलिए चरणामृत लेकर
कभी भी सिर पर हाथ
नहीं फेरना चाहिए।

धनवान बनने के चमत्कारिक उपाय


धनवान बनने के चमत्कारिक उपाय
घर में सुख-समृद्धि बनी रहे। आर्थिक पक्ष
को लेकर समस्याएं न उत्पन्न हों, ऐसी प्रत्येक
व्यक्ति की कामना होती है। यहॉ मैं
आर्थिक सम्पन्नता देने
वाली ऐसी छोटी-
छोटी बातें लिख रहा हॅू जो अधिकांश
लोगों को पता तो होती हैं, परंतु कुछ तो आलस्यवश
तथा कुछ अज्ञानतावश वह उनसे मिलने वाले लाभ से वंचित रह
जाते हैं। इन्हें अपनाने का कोई विशेष नियम
भी नहीं है। सहज मन से
कभी और किसी भी समय
इन्हें प्रारंभ किया जा सकता है। अन्य
उपायों की तरह इनके प्रयाग से अहित
की लेशमात्र
भी संभावना नहीं है। इन
छोटी-छोटी बातों के लिए आत्मविश्वास
परम आवश्यक है। इन उपायों के शुभप्रभाव में विलम्ब
तो अवश्य हो सकता है परंतु उनसे जब लाभ मिलना प्रारंभ
होगा तो वह होगा स्थाई रूप से।
ऽ प्रातःकाल उठ कर सर्वप्रथम अपने
दोनों हाथों की हथेलियों को कुछ क्षण देखकर उन्हें
चूमें और उन्हें परस्पर रगड़ कर अपने चेहरे पर
तीन चार बार फिराएं।
ऽ नाक के छिद्रों में से एकाग्र होकर यह देखें
कि उसका दायों स्वर चल रहा है या बायां।
जो भी स्वर चल रहा हो, सर्वप्रथम उस ओर के
हाथ की उंगली से
धरती का स्पर्श करके माथे से लगाएं और उसके बाद
पहला स्वर चलने वाला पैर
ही धरती से लगाएं।
ऽ घर में बनने वाले खाने में से
पहली रोटी गाय की निकालें।
ऽ अपने खाने में से थोड़ा सा अंश निकाल कर कौओें अथवा अन्य
पक्षीयों को डाला करें।
ऽ रात्रि के खाने के पश्चात बचे खाने का कुछ भाग कुत्ते के नाम
का निकाला करें। घर का बचा खाना नाली में न फेकें,
पशु-पक्षियों को दे दिया करें।
ऽ यदि घर में आटा गेंहॅू पीस कर उपलब्ध
होता है तो आटा केवल शनिवार को ही पिसवाने
का नियम बना लें। आटा पिसते समय उसमें 100 ग्राम काले चने
भी पिसने के लिए डाल दिया करें।
ऽ शनिवार को खाने में किसी भी रुप में
काला चना अवश्य ले लिया करें।
ऽ घर की रसोई में
किसी भी दिन कहीं से एक
काली तुम्वी लाकर टांग दें।
ऽ जब भी मन करे
चीटिंयों को चीनी मिश्रित
आटा खिलाया करें। यथा संभव यह प्रयास किया करें आपके पैरों से
चीटियॉ अथवा अन्य निरीह छोटे-छोटे
कीट-पतंगे कुचले न जाएं।
ऽ घर में उपलब्ध प्रत्येक देवी-देवताओं और टंगे
हुए दिवंगत आत्माओं के चित्रों पर रोली, अष्टगंध
तथा अक्षत का तिलक अवश्य लगा लिया करें। अपने पूर्वजों के
चित्रों पर फूलों का हार भी चढ़ाया करें।
ऽ प्रातःकाल कुछ भी खाने से पूर्व सर्वप्रथम घर
में झाड़़ू. अवश्य लगानी चाहिए।
ऽ संध्या समय जब दोनों समय मिलते है, घर में झाड़़ू.-पोंछे
का कार्य न करें।
ऽ संध्या होने पूर्व घर का कोई भी सदस्य घर में
प्रकाश अवश्य कर दिया करे।
ऽ घर की कोई सौभाग्यशाली विवाहित
स्त्री इस समय तैयार होकर प्रफुल्ल मन से
देवी-देवताओं धूप-दीप दिखाया करें।
ऽ घर से प्रातः चाहे
जितनी जल्दी निकलना पड़े, बिना झाड़़ू.
लगे न निकले।
ऽ घर से बाहर जब भी किसी उद्देश्य
से अथवा धन सम्बन्धी किसी कार्य
को निकलें, निराहार मॅुह न निकलें। कुछ न कुछ खा अवश्य लें।
निकलने से पूर्व यदि मीठा दही खाकर
निकलें तो और भी सौभाग्यशाली है।
ऽ घर की कोई
स्त्री व्यक्ति को विदा करने से पूर्व नहा-धोकर
स्वच्छ अवश्य हो जाए।
ऽ किसी सुहागिन स्त्री को गुरुवार के
दिन सुहाग अथवा श्रृंगार प्रसाधन देने से
लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
ऽ घर बाहर स्त्री का आदर करने से
तथा कुआरी कन्याओं (दस वर्ष से कम आयु
की) को देवी स्वरुप मान कर प्रसन्न
करने से सुख-
समृद्धि की वृद्धि होती है।
ऽ किसी दरिद्र अथवा असहाय
व्यक्ति की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर सकते है
तो कर दें, उसका तिरस्कार अथवा उपहास कदापि न करें।
ऽ किसी न किसी तरह दरिद्र,
असहाय और हिजड़ों की शुभकामनाएं लिया करें।
ऽ शीतकाल में
किसी भी अमवस्या की अर्द्धरात्रि में
एक कम्बल शीत से ठिठुरते
किसी भिखारी के ऊपर चुपचाप डाल कर
घर लौट आएं।
ऽ दरिद्र को यथाशक्ति भोजन और कपड़ा दान दिया करें।
ऽ धन सम्बन्धी समस्त कार्यो के लिए सोमवार
अथवा बुधवार चुना करें।
ऽ घर के पूजास्थल में एक जटा वाला नरियल रखा करें।
ऽ धन सम्बन्धी कार्य पर निकलने से पूर्व घर में
उपलब्ध देवी-देवताओं के चित्र, मूर्ति अथवा यंत्र के
दर्शन अवश्य किया करें। उन पर चढ़ाये हुए फूलों में से एक
अपनी जेब में रखकर साथ ले जाया करें।
ऽ किसी प्रकार अपने पूर्वजों के चित्र
आदि भी देखकर यात्रा किया करें।
‘प्रबिशि नगर कीजे सब काजा, हृदय राखि कौशलपुर
राजा।’
मंत्र बोलकर घर से प्रस्थान करने पर प्रभु
आपकी सद्यात्रा में सदैव रक्षा करते हैं।
ऽ नौकरी, व्यवसाय आदि शुभकार्यों में प्रस्थान करने
से पूर्व घर कोई भी सदस्य एक
मुठठी काले उड़द आपके ऊपर से
धरती पर छोड़ दें, कार्य सिद्ध होगा।
ऽ घर खाली हाथ कभी न लौटें।
बिना क्रय की हुई कोई भी वस्तु घर
लाने का नियम बना लें, भले ही वह राह में
पड़ा हुआ कागज का टुकड़ा अथवा ऐसा ही कुछ
अन्य।
ऽ रविवार को सहदेई वृक्ष की जड़ घर लायें। उसे
लाल कपड़े में लपेटकर कहीं पवित्र स्थान पर रख
दें।
ऽ काली हल्दी मिल जाए तों घर में रख
लें।
ऽ सफेद रत्ती, एकाक्षी नरियल,
दक्षिणवर्ती शंख, हाथ जोड़ी, सियार
सिंही, बिल्ली की जेल, एक
मुखी रुद्राक्ष, गोरोचन, नागकेसर, सांप
की अखंडित केंचुली, मोर के पंख,
अष्टगंध आदि में
श्री लक्ष्मी जी को रिझाने
का विलक्षण गुण होता है। ये वस्तुएं, सुलभ हो सकें तो उन्हें
ऐसे ही घर में रख लें,
लक्ष्मी प्रसन्न होगीं।
ऽ मिर्च तथा नींबू की तरह
निर्गुण्डी का जड़ सहित पूरा पौधा, नागकेसर और
पीली सरसों के दाने एक साथ
किसी बुधवार को दुकान के द्वार पर टांगने से व्यापार में
वृद्धि होती है।
ऽ पुष्य नक्षत्र में बहेड़ा वृक्ष की जड़
तथा उसका एक पत्ता लाकर पैसे रखने के स्थान में रख लिया करें।
ऽ शंखपुष्पी की जड़ रवि-पुष्य
नक्षत्र में लाकर घर में रखा करें। इसे
चांदी की डिब्बी में रख सकें
तो अधिक शुभ होगा।
ऽ घर की दीवारों, फर्श आदि में
बच्चों को पेन्सिल, चॉक, कोयले आदि से लकीरें न
बनाने दें, इससे ऋण बड़ता है।
ऽ शेर का दॉत मिल जाए तो जेब में रखा करें।
ऽ बरगद अथवा बड़ के ताजे तोड़े पत्ते पर
हल्दी से स्वास्तिक बना कर पुष्य नक्षत्र में घर
में रखें।
ऽ खच्चर का दॉत बुधवार को धोकर साफ कर लें। धन
सम्बन्धी कार्य पर जाते समय उसे साथ रखा करें।
ऽ दीवाली की रात
अथवा किसी भी ग्रहण काल में एक-
एक लौंग तथा छोटी इलाइची जला कर
भस्म बना लें। इस भस्म से देवी देवताओं के
चित्रों अथवा यंत्रों पर तिलक लगाया करें।
ऽ किसी भी सूर्य के नक्षत्र में ऐसे
पेड़ की टहनी तोड़ कर
अपनी कुर्सी अथवा गद्दी के
नीचे रख लें, जहॉ चमगादड़ों का स्थाई वास हो।
ऽ व्यापार सम्बन्धी पत्राचार करते समय उस पर
हल्दी अथवा केसर के छींटे
लगा दिया करें।
ऽ ऐसे पत्रों में देवताओं पर चढ़े फूल के टुकड़े
भी रख दिया करें।
ऽ बैंक में पैसा जमा करते समय
लक्ष्मी जी का कोई मंत्र मन
ही मन जप लिया करें।
ऽ बैंक की किताब, चैक बुक अथवा धन
सम्बन्धी पेपर आप श्रीयंत्र
अथवा कुबेर यंत्र के पास रखा करें।
ऽ मुर्गे के पेट में यदा-कदा एक सफेद रंग
की पथरी निकलती है, उसे
साफ करके घर में रख लें। शुभ कार्य में जाते समय यह साथ
रखें।
ऽ सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें नियमित रुप से लाल
फूल, लाल चंदन, गौरोचन, केसर, जावित्री,
जौ अथवा तिल युक्त जल चढ़ाएं।
ऽ कार्यालय, दुकान आदि खोलने पर सर्वप्रथम अपने इष्टदेव
को अवश्य याद किया करें।
ऽ अपने से बड़ों को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद
लिया करें।
ऽ कभी कोई कर्म ऐसा न करें जिससे
किसी की आत्मा को लेशमात्र
भी कष्ट पहॅुचे।
ऽ गीता के नवे अध्याय का नित्य पाठ करें।
ऽ विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जिस घर में होता है
वहॉ लक्ष्मी जी निवास
करती हैं।
ऽ दुर्गा सप्तशती का नियमित रुप से पाठ करें।
ऽ वेदों में ‘अधमर्षण सूक्त’ दरिद्रता नाश करने
वाला माना गया है।
ऽ इसी प्रकार ‘श्री सूक्त’,
‘नासदीय सूत्र’ धन सम्बन्धी कायरें में
लाभदायक है।
ऽ ‘राम रक्षा स्तोत्र’ का लक्ष्मी दायक यह मंत्र
धनलाभ करवाने में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।
‘‘आपदाम् अपहर्तारम् दातारम् सर्व सम्पदाम्।
लोकाभिरामम् श्री रामम् भूयो भूयो नमाम्यहम्।।
ऽ श्रम प्रधान बनें और ऋण लेने से सर्वदा बचे रहें।
ऽ लक्ष्मी-साधकों के लिए ऊनी और
रेशमी आसन तथा कमलगट्टे
की माला विशेष रुप से सिद्धि प्रदायक
होती है।
ऽ आध्यात्मिक क्षेत्र में आडम्बर के स्थान पर पवित्रतता और
सात्विकता को महत्व देना आवश्यक है।
ऽ लक्ष्मी जी का परमप्रिय फूल कमल
माना गया है।

लक्ष्मी जी को तुलसी अर्थात्
मंजरी भेंट
नहीं करनी चाहिए।
ऽ साधना कक्ष में लक्ष्मी उपासना के समय पुष्प
उनके सामने, अगरबत्ती बाएं, नैवेद्य दक्षिण में
तथा दीप सदा दायीं ओर रखें।
ऽ साधना के समय पश्चिम अथवा पूरब दिशा की ओर
ही मुंह करके बैठें।
ऽ हवन सामग्री में काले तिल, जौ,
देसी घी और कमल गट्टे
भी अवश्य मिलाया करें, इससे
लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
ऽ यह धारणा मन में स्थिर कर लें कि प्रारब्ध के अतिरिक्त
वर्तमान में किए गए सत्कर्म भी धन
सम्बन्धी विषयों में आशानुकूल परिणाम देते हैं।
ऽ प्रत्येक शनिवार को घर से गन्दगी निकालने
का नियम बना लें। इस दिन घर के मकड़ी के जाले,
रद्दी, टूटी-फूटी घर में
प्रयोग होने वाली सामग्री आदि घर से
बाहर कूड़े में फेंक दिया करें।
ऽ घर के मुख्य द्वार के ऊपर गणेश
जी की प्रतिमा अथवा चित्र इस प्रकार
लगाएं जिससे कि उनका मुंह घर के अन्दर की ओर
रहे।
ऽ मन में पूर्णतया यह निष्ठा जागृत कर लें कि मैं धनवान
बनूंगा ही।
ऽ प्रातः और सांय काल जहॉ तक सम्भव हो घर का प्रत्येक
सदस्य प्रसन्नचित रहे।
ऽ सूर्योदय और सूर्यास्त के समय घर में बच्चे और
बीमार के अतिरिक्त अन्य कोई न सोया करे।
ऽ बिल्ली की जेल,
हत्था जोड़ी तथा सफेद आक में
लक्ष्मी जी को रिझाने का गुणधर्म
छुपा है। यह पदार्थ कहीं सुलभ हो तो घर में रख
लें।
ऽ हीरा रत्न यदि रास आ जाए तो अतुलित वैभव
देता है।
ऽ घर में
यदि तुलसी लगी हो तो सायंकाल
वहॉ एक दीपक जला दिया करें।
ऽ शंखपुष्पी की जड़ घर में
लाना मंगलकारी है।
ऽ कभी ऐसा देखने को मिलता है कि एक वृक्ष पर
दूसरा वृक्ष निकल आता है। यह वृक्ष के सन्धि स्थल पर
होता है। इस संयोग को बांदा कहते हैं। अशोक,
पीपल, अनार, वट, गूलर, आम, बड़ आदि वृक्षों के
बांदे मिल जाएं तो शुभ मुहुर्त में घर ले आएं।
ऽ श्वेत अपराजिता का पौधा धन
लक्ष्मी को आकर्षित करता है।
ऽ जिस सघन वृक्ष पर चमगादड़ों का स्थाई वास होता है,
उसकी छोटी-
सी लकड़ी ग्रहण काल में तोड़ लाएं।
इसे अपने कर्म स्थल
की कुर्सी अथवा गद्दी के