Wednesday, September 24, 2014

सनातन धर्म में नवरात्रि विवरण

सनातन धर्म में नवरात्रि विवरण :-
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सनातन धर्म के अंतर्गत भारतीय संस्कृति में वह दिन
जब हम जीवन का प्रारंभ करते हैं हम
सभी के लिए नव वर्ष कहलाता है ।
आप चाहे आत्मविश्वास की मजबूती चाहते
हों या फिर रोजगार की प्राप्ति या वृद्धि,सम्मान चाहते
हो या फिर संतान सुख या परिवार का आरोग्य ,आर्थिक उन्नति चाहते
हो या कार्य में सफलता ,जीवन में प्रेम
की अभिलाषा आदि ।
“अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया |
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः || ”
यदि आप परिवार के साथ पूजन कर रहे हैं तब भी और
यदि आप अकेले पूजन कर रहे हैं तब
भी किसी भी पारिवारिक सदस्य
या आत्मीय के नाम से संकल्प ले सकते हैं ।
नवीन संवत्सर की उपलब्धियों को आप अपने
जीवन में स्वतः ही देखेंगे. इस प्रयोग के
द्वारा आप सभी को अपने अभीष्ट
की प्राप्ति हो और आपकी अशुभता और
दुर्भाग्य की समाप्ति होकर सुनहरे पल का सुख प्रदान
करता है ।
नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें। इन
नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति- देवी के
नौ रूपों की पूजा की जाती है।
दसवा दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। यह पर्व वर्ष में चार बार
आता है।
१- चैत्र शुक्ल पक्ष - वासन्तीय नवरात्रारम्भ
२- आषाढ - शुक्ल पक्ष { गुप्त नवरात्रारम्भ }
३- आश्विन -शुक्ल पक्ष -शारदीय नवरात्रारम्भ
४- माघ -शुक्ल पक्ष { गुप्त नवरात्रारम्भ }
अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है।
नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों -
महाकाली ,महालक्ष्मी,
महासरस्वती ।
दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे
नवदुर्गा कहते हैं।
इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति - देवी के
नौ रूपों की पूजा की जाती है।
दुर्गा का मतलब जीवन के दुख
कॊ हटानेवाली होता है।
नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे सम्पूर्ण भारत में
महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
नौ देवियाँ है :-
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१- श्री शैलपुत्री - शैल पर्वत
की पुत्री है।
२- श्री ब्रह्मचारिणी - ब्रह्मचर्य
को धारण करनेवाली ।
३- श्री चन्द्र घंटा - चाँद की तरह चमकने
वाली।
४- श्री कूष्माडा - सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड उनके पैर में
है।
५- श्री स्कंदमाता - कार्तिक
स्वामी की माता।
६- श्री कात्यायनी - कात्यायन
ऋषि कि पुत्री हैं ।
७- श्री कालरात्रि - काल का नाश करने वली।
८- श्री महागौरी - गौर वर्ण
वाली माँ ।
९- श्री सिद्धिदात्री - सर्व सिद्धि देने
वाली।
शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र
प्रतिपदा से नवमी तिथि तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र,
नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से
मनाया जा रहा है।
सर्वप्रथम मर्यादा पुरुषोत्तम
श्री रामचंद्रजी ने इस शारदीय
नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें
दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त
की।
तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म
की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा।
माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम
सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार
की सिद्धियाँ देने वाली हैं।
इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर
ही आसीन होती हैं।
नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में ''काली''
ही प्रमुख हैं।
भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में
अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविद्यायें अनंत
सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं।
दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक
संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं।
देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के
बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में
इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है।
सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व
इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।
नवरात्रि भारत वर्ष के विभिन्न भागों में अलग ढंग से
मनायी जाती है।
गुजरात में इस त्योहार को बड़े पैमाने से मनाया जाता है। गुजरात में
नवरात्रि समारोह डांडिया और गरबा के रूप में पसिद्ध है । यह
पूरी रात भर चलता है। देवी के सम्मान में
भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, 'आरती' से पहले
किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद।
पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में
दुर्गा पूजा बंगाली कैलेंडर में विख्यात है । नवरात्रि उत्सव
देवी ''अम्बा '' विद्युत् का प्रतिनिधित्व है।
वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु
की शुरुआत, जलवायु और सूरज के
प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है।
इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने
जाते है।त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार
निर्धारित होती हैं।
ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान
की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप
गायत्री साधना का हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य
होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया।
उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब
अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित
प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक
कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय
की स्थिति में आ गए।
महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और
अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं
और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा।
देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण
करना पड़ा । तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर
देवताओं ने
देवी दुर्गा की रचना की।
महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने
अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और इन देवताओं के
सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं
थी।
इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और
अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर
मर्दिनी कहलायीं।
क्षत्रियों का यह बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन ब्राह्मण
सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते
हैं।
विजयादशमी या दशहरा एक राष्ट्रीय पर्व
है। अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय
होने के समय 'विजयकाल' रहता है।
यह सभी कार्यों को सिद्ध करता है। आश्विन शुक्ल
दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध, परविद्धा शुद्ध और श्रवण
नक्षत्रयुक्त सूर्योदयव्यापिनी सर्वश्रेष्ठ
होती है। अपराह्न काल, श्रवण नक्षत्र
तथा दशमी का प्रारंभ विजय यात्रा का मुहूर्त माना गया है।
दुर्गा-विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाग,
शमी पूजन तथा नवरात्र-पारण इस पर्व के महान कर्म
हैं।
इस दिन संध्या के समय नीलकंठ
पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है।
क्षत्रिय- राजपूतों इस दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर
संकल्प मंत्र लेते हैं। इसके पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-
शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है।
नवरात्रि के दौरान कुछ भक्तों उपवास और प्रार्थना, स्वास्थ्य और
समृद्धि के संरक्षण के लिए रखते हैं। भक्त इस व्रत के समय मांस,
शराब, अनाज, गेहूं और प्याज नही खाते।
नवरात्रि आत्मनिरीक्षण और शुद्धि का अवधि है और
पारंपरिक रूप से नए क्रिया-कलाप शुरू करने के लिए एक शुभ और
धार्मिक समय है।
इस वर्ष २५ सितम्बर २०१४ दिन- गुरूवार को शारदीय
नवरात्र है ---
शास्त्रों में कहा गया है कि ----
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे
नौका प्रकीर्त्तिता ॥
इसका अर्थ --
सोमवार व रविवार को प्रथम पूजा यानि कलश स्थापन होने पर
मां दुर्गा हाथी पर आती हैं।
शनिवार तथा मंगलवार को कलश स्थापन होने पर माता का वाहन
घोड़ा होता है।
गुरु तथा शुक्रवार को कलश स्थापन होने पर माता का वाहन
डोली होता है ।
बुधवार को कलश स्थापन होने पर माता का वाहन नौका होता है ।
गुरूवार को माता डोली में बैठ कर आ रही है
जिसका फल प्रजा में महामारी-उपद्रव-आदि अशुभ
सूचक है । लेकिन महिलाओं की स्थिति में सुधार
दिखायी देगा,महिलाएं सम्मानित
की जायेंगी ।
इनका विसर्जन इसबार ०३ अक्टूबर २०१४ दिन - शुक्रवार
को किया जायेगा ,उस समय हाथी पर विराजमान होकर
प्रस्थान करेंगी ,जिसका फल अधिक वर्ष होने का सूचक
है ।
----विशेष----
१- व्रत करने वाले को जमीन पर सोना चाहिए।
२- ब्रह्माचर्य का पालन करना चाहिए।
३- व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए।
४- व्रती को संकल्प लेना चाहिए कि हमेशा क्षमा , दया ,
उदारता का भाव रखेगा।
५- इन दिनों व्रती को क्रोध , मोह , लोभ
आदि दुष्प्रवत्तियों का त्याग करना चाहिए।
सर्व रूपमयी देवी सर्वं देवीमयं
जगत ।
अतोऽहं विश्वरूपां तां नमामि परमेश्वरीम।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:!!

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