Thursday, September 4, 2014

लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय करते समय ध्यान रखें

लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय करते समय ध्यान रखें
शास्त्रों की ये बातें भी:
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सुखी और
समृद्धिशाली जीवन के लिए
देवी-देवताओं के पूजन
की परंपरा काफी पुराने समय से
चली आ रही है। आज
भी बड़ी संख्या में लोग इस
परंपरा को निभाते हैं। पूजन से हमारी मनोकामनाएं
पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास
नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए। अन्यथा पूजन
का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है।
यहां कुछ ऐसे नियम बताए जा रहे हैं जो सामान्य पूजन में
भी ध्यान रखना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इन
बातों का ध्यान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ
प्राप्त हो सकते हैं।
ये नियम इस प्रकार हैं...
-तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक
बासी नहीं माना जाता है।
इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन:
भगवान को अर्पित किया जा सकता है।
- आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान
को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए।
फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में
रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर
देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।
- तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन
का पानी नहीं रखना चाहिए।
- हमेशा इस बात का ध्यान रखें
कि कभी भी दीपक से
दीपक नहीं जलाना चाहिए। शास्त्रों के
अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक
जलते हैं, वे रोगी होते हैं।
- बुधवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल
अर्पित नहीं करना चाहिए।
- सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं,
इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप
से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन
करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे
लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त
होती है।
- शिवजी, गणेशजी और
भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
- मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास)
नहीं चढ़ानी चाहिए। यह
गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित
की जाती है।
- सूर्य देव को शंख के जल से अघ्र्य
नहीं देना चाहिए।
- तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए
नहीं तोडऩा चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई
व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के
पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान
द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।
- रविवार, एकादशी, द्वादशी,
संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते
नहीं तोडऩा चाहिए।
- दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार
को नहीं तोडऩी चाहिए।
- केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित
नहीं करना चाहिए।
- मां लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित
किया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन:
चढ़ा सकते हैं।
- शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र
छह माह तक बासी नहीं माने जाते
हैं। अत: इन्हें जल छिड़क कर पुन: शिवलिंग पर अर्पित
किया जा सकता है।
- किसी भी पूजा में
मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य
चढ़ानी चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने
दोषों को छोडऩे का संकल्प लेना चाहिए।
दोषों को जल्दी से जल्दी छोडऩे पर
मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।
- प्लास्टिक की बोतल में
या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल
नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम
और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ
रहता है।
- स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख
नहीं बजाना चाहिए। यह इस नियम का पालन
नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है,
वहां से
देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।
- शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में
पांच बार करना चाहिए। सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त
में पूजन और आरती होनी चाहिए।
इसके बाद प्रात: 9 से 10 बजे तक दूसरी बार
का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन
करना चाहिए। इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए।
शाम के समय चार-पांच बजे पुन: पूजन और आरती।
रात को 8-9 बजे शयन
आरती करनी चाहिए। जिन घरों में नियमित
रूप से पांच बार पूजन किया जाता है,
वहां सभी देवी-देवताओं का वास
होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई
कमी नहीं होती है।
- मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के
सामने कभी भी पीठ दिखाकर
नहीं बैठना चाहिए।
- भगवान की आरती करते समय ध्यान
रखें ये बातें- भगवान के चरणों की चार बार
आरती करें, नाभि की दो बार और मुख
की एक या तीन बार
आरती करें। इस प्रकार भगवान के समस्त
अंगों की कम से कम सात बार
आरती करनी चाहिए।
- पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख
रखकर करनी चाहिए। यदि संभव हो सके तो सुबह
6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें।
- पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन
ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।
- घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य
जलाएं। एक दीपक घी का और एक
दीपक तेल का जलाना चाहिए।
- पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद
उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य
करनी चाहिए।

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