इस सितम्बर बन रहा है सहस्राब्दी का सबसे अद्भुत योग -
जानिए तिथि और समय का एक ऐसा योग जो आ रहा है हज़ारों वर्षों बाद। ग्रहों की एक बहुत अद्भुत स्थिति जिसमें एक विशेष अवतार का होगा जन्म।
हज़ारों वर्षों बाद इस वर्ष
सितम्बर माह में एक
निश्चित दिन और समय पर ग्रहों का अद्भुत और शुभ संयोग
बन रहा है। इस योग में पैदा होने
वाला कोई ना कोई बच्चा विश्व इतिहास में अवतार स्वरूप होगा।
आइए आप सबको
यह बताते हैं कि वह शुभ घड़ी कब आ रही है जिसका हम
सभी को एक बार फिर बड़ी
बेसब्री से इंतज़ार है? ऐसा वह कौन सा दिन है जिसमें जन्मा
बालक होगा एक अवतार?
कौन से ऐसे योग हैं जो पिछले हज़ारों वर्षों में नहीं आए?
कैसी ग्रहों की स्थिति है जो
अद्भुत है? यह एक ऐसी तारीख और ऐसा समय है जिसमें
सभी ग्रहों की ऐसी स्थिति
कम-से-कम पिछले २ हज़ार वर्षों में नहीं आई है !!
ज्ञात तथ्यों के आधार पर भगवान राम की कुंडली में ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार बताई जाती है - गुरु उच्च का, मंगल उच्च का, शनि उच्च का, सूर्य उच्च का, शुक्र उच्च का, चन्द्रमा स्वराशिस्थ, केतु और राहु उच्च या स्वराशिस्थ (क्योंकि मतान्तर से राहु को कन्या में तथा केतु को मीन में उच्च का माना जाता है )। केवल बुध ही है जो ना तो स्वराशिस्थ है ना ही उच्च राशि में है।
सितम्बर माह में एक
निश्चित दिन और समय पर ग्रहों का अद्भुत और शुभ संयोग
बन रहा है। इस योग में पैदा होने
वाला कोई ना कोई बच्चा विश्व इतिहास में अवतार स्वरूप होगा।
आइए आप सबको
यह बताते हैं कि वह शुभ घड़ी कब आ रही है जिसका हम
सभी को एक बार फिर बड़ी
बेसब्री से इंतज़ार है? ऐसा वह कौन सा दिन है जिसमें जन्मा
बालक होगा एक अवतार?
कौन से ऐसे योग हैं जो पिछले हज़ारों वर्षों में नहीं आए?
कैसी ग्रहों की स्थिति है जो
अद्भुत है? यह एक ऐसी तारीख और ऐसा समय है जिसमें
सभी ग्रहों की ऐसी स्थिति
कम-से-कम पिछले २ हज़ार वर्षों में नहीं आई है !!
ज्ञात तथ्यों के आधार पर भगवान राम की कुंडली में ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार बताई जाती है - गुरु उच्च का, मंगल उच्च का, शनि उच्च का, सूर्य उच्च का, शुक्र उच्च का, चन्द्रमा स्वराशिस्थ, केतु और राहु उच्च या स्वराशिस्थ (क्योंकि मतान्तर से राहु को कन्या में तथा केतु को मीन में उच्च का माना जाता है )। केवल बुध ही है जो ना तो स्वराशिस्थ है ना ही उच्च राशि में है।
उसी प्रकार भगवान कृष्ण की कुंडली (कृष्ण की कुंडली को लेकर विद्वानो में मतभेद है) में जहाँ बी. वी. रमन के अनुसार चन्द्रमा लग्न में उच्च का, सूर्य स्वराशिस्थ केंद्र में गुरु के साथ, बुध स्वराशिस्थ, नीच का मंगल परन्तु उच्च दृष्टि भाग्य स्थान पर, शनि भाग्य और दशम का स्वामी होकर सप्तम में है।
वहीं ज्योतिष रत्नाकर के अनुसार कृष्ण की कुंडली में चन्द्रमा, सूर्य, और बुध की स्थिति तो वही है; परन्तु मंगल और शनि को स्वराशिस्थ बताया है।
डॉ. भोजराज द्विवेदी के अनुसार चन्द्रमा उच्च का लग्न में, सूर्य और बुध के साथ सिंह राशि में केंद्र में, गुरु उच्च का कर्क में, शनि उच्च का तुला में, राहु उच्च का कन्या में, केतु उच्च का मीन में, और मंगल वृश्चिक का स्वराशि में है।
एक बात जो लगभग सबके अनुसार एक सी है, वह है सूर्य और चन्द्रमा की बहुत ही अच्छी स्थिति। साथ ही भगवान राम, कृष्ण, और गौतम बुद्ध तीनों की ही कुंडली में गुरु और शनि की युति या दृष्टि में सम्बन्ध है। यह उनके सामाजिक और आध्यात्मिक ज्ञान की पराकाष्ठा को दर्शाता है। साथ ही मंगल और चंद्रमा का दृष्टि योग है, यह पराक्रम और दयालुता का संगम भी दर्शाता है।
कालचक्र में जब कभी ऐसा समय आया है जब अधिकांश ग्रह या तो उच्च के हों या स्वगृही हों, मार्गी हों, नक्षत्र भी शुभ हो, तिथि भी शुभ हो, दिन भी शुभ हो; तो कोई न कोई अवतार तो होता ही है। ऐसा संयोग हज़ारों वर्षों में एक बार होता है और इस संयोग में उत्पन्न बच्चा इतिहास को बदल देता है। यह बच्चा विश्व में पूजा जाता है, दुनिया को मार्ग दिखाता है तथा भटके इंसानों को राह दिखता है। कृष्ण ने कहा है:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४)
तात्पर्य:
हे भारत, जब जब धर्म का लोप होता है, और अधर्म बढ़ता है,
तब तब मैं स्वयं ही स्वयं की रचना करता हूँ॥
साधु पुरुषों के कल्याण के लिये, दुष्कर्मियों के विनाश के लिये,
तथा धर्म की स्थापना के लिये, मैं युगों-युगों में जन्म लेता हूँ॥
तब तब मैं स्वयं ही स्वयं की रचना करता हूँ॥
साधु पुरुषों के कल्याण के लिये, दुष्कर्मियों के विनाश के लिये,
तथा धर्म की स्थापना के लिये, मैं युगों-युगों में जन्म लेता हूँ॥
कृष्ण के लगभग २५०० वर्ष बाद गौतम बुद्ध का अवतार हुआ था। एक बार पुनः लगभग २५०० वर्ष बीत चुके हैं। पाप और अपराध से धरती त्राहि-त्राहि कर रही है। एक बार पुनः ग्रह अपना प्रभाव दिखाने वाले हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम, विष्णु के पूर्ण अवतार माने जाने वाले भगवान कृष्ण, तथा विष्णु के अंशावतार कहे जाने वाले गौतम बुद्ध; इन सभी
अवतारों के जन्म के समय ग्रहों का अद्भुत संयोग था। जिसकी
चर्चा मैं अपने पहले लेख
में कर चुका हूँ। सितम्बर माह में बनने वाला यह योग तो राम
के अलावा कृष्ण और गौतम बुद्ध के समय भी नहीं था। राम,
कृष्ण, और गौतम बुद्ध को अवतार मानने में उस युग के लोगों
को भी दशकों का समय लग गया। वैसे ही इस समय भी जो युग पुरुष
पैदा होगा उसे भी दुनिया कब पहचानेगी और वह कहाँ जन्म
लेगा यह भविष्यवाणी
मैं अभी नहीं कर सकता (आगे करने का प्रयास करूंगा)।
हो सकता है जब उसकी
पहचान हो मैं इस दुनिया में ना रहूँ, परन्तु इतिहास इस दिन
को जानेगा भी, और मानेगा
भी, यह तय है।
अवतारों के जन्म के समय ग्रहों का अद्भुत संयोग था। जिसकी
चर्चा मैं अपने पहले लेख
में कर चुका हूँ। सितम्बर माह में बनने वाला यह योग तो राम
के अलावा कृष्ण और गौतम बुद्ध के समय भी नहीं था। राम,
कृष्ण, और गौतम बुद्ध को अवतार मानने में उस युग के लोगों
को भी दशकों का समय लग गया। वैसे ही इस समय भी जो युग पुरुष
पैदा होगा उसे भी दुनिया कब पहचानेगी और वह कहाँ जन्म
लेगा यह भविष्यवाणी
मैं अभी नहीं कर सकता (आगे करने का प्रयास करूंगा)।
हो सकता है जब उसकी
पहचान हो मैं इस दुनिया में ना रहूँ, परन्तु इतिहास इस दिन
को जानेगा भी, और मानेगा
भी, यह तय है।
वर्तमान में अराजकता और अपराध पराकाष्ठा पर है।
इतिहास गवाह है कि जब-जब स्त्रियों के साथ दुराचार, संतों
और निरपराध लोंगो के साथ
अत्याचार, प्रकृति के साथ छेड़-छाड़, गौ हत्या की पराकाष्ठा
हुई है; और तत्कालीन व्यवस्था
उसे नियंत्रित करने में असमर्थ हुई है; या यूँ कहूँ कि तत्कालीन
शासन व्यवस्था ही इन अपराधों
का अंग बन गयी है; तब-तब ईश्वर ने पृथ्वी पर अवतरित होकर
इसे भार मुक्त किया है।
वर्तमान परिस्थिति में समाज की क्या दशा है, स्त्रियों की क्या
स्थिति है इसपर कुछ नहीं कहना
चाहूँगा क्योंकि यह सब आपको ज्ञात है।
इतिहास गवाह है कि जब-जब स्त्रियों के साथ दुराचार, संतों
और निरपराध लोंगो के साथ
अत्याचार, प्रकृति के साथ छेड़-छाड़, गौ हत्या की पराकाष्ठा
हुई है; और तत्कालीन व्यवस्था
उसे नियंत्रित करने में असमर्थ हुई है; या यूँ कहूँ कि तत्कालीन
शासन व्यवस्था ही इन अपराधों
का अंग बन गयी है; तब-तब ईश्वर ने पृथ्वी पर अवतरित होकर
इसे भार मुक्त किया है।
वर्तमान परिस्थिति में समाज की क्या दशा है, स्त्रियों की क्या
स्थिति है इसपर कुछ नहीं कहना
चाहूँगा क्योंकि यह सब आपको ज्ञात है।
रामायण में गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है, "विप्र, धेनु,
सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार"। यहाँ ‘विप्र’ अर्थात ब्राह्मण
नहीं बल्कि ज्ञानी पुरुष, ‘सुर-संत’ अर्थात ऐसे लोग जो सत्य
की राह पर चलते हैं, तथा समाज का भला सोचते हैं।
सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार"। यहाँ ‘विप्र’ अर्थात ब्राह्मण
नहीं बल्कि ज्ञानी पुरुष, ‘सुर-संत’ अर्थात ऐसे लोग जो सत्य
की राह पर चलते हैं, तथा समाज का भला सोचते हैं।
ऐसे ही महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को नारियों की अस्मिता
की रक्षा को लेकर कहा है:
की रक्षा को लेकर कहा है:
क्रोश्यन्त्यो यस्य वै राष्ट्राद्ध्रियन्ते तरसा स्त्रियः।
क्रोशतां पतिपुत्राणां मृतोऽसौ न च जीवति ॥३१॥
क्रोशतां पतिपुत्राणां मृतोऽसौ न च जीवति ॥३१॥
(अध्याय ६१, अनुशासनपर्व, महाभारत)
अर्थात - "जिस राजा के राज्य में चीखती-चिल्लाती स्त्रियों का
बलपूर्वक अपहरण होता है और उनके पति-पुत्र रोते-चिल्लाते
रहते हैं, वह राजा मरा हुआ है
न कि जीवित।"
बलपूर्वक अपहरण होता है और उनके पति-पुत्र रोते-चिल्लाते
रहते हैं, वह राजा मरा हुआ है
न कि जीवित।"
और वर्तमान में शक्ति स्वरूपा स्त्रियों की क्या स्थिति है यह
बताने की आवश्यकता नहीं।
बताने की आवश्यकता नहीं।
यहाँ तुलसी दास रचित रामायण की एक और पंक्ति को कहना चाहूंगा:
जब-जब होंहि धरम की हानि, बाढहिं असुर अधम अभिमानी।
तब-तब प्रभु धरी विविध शरीरा, हरिहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
तब-तब प्रभु धरी विविध शरीरा, हरिहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
जब कभी भी लगभग सभी ग्रह उच्चस्थ, स्वराशिस्थ हों, मार्गी हों;
सूर्य और चद्रमा राहु-केतु और शनि के प्रभाव में ना हों, तिथि
और योग भी शुभ हों और
साथ में नक्षत्र भी शुभ हों तो इतिहास गवाह है कोई अवतार ही
हुआ है। ऐसा ही अद्भुत
योग एक बार पुनः आ रहा है और यह योग हज़ारों वर्षों के बाद
आ रहा है। अतः कोई
अवतार तो अवश्य होगा।
सूर्य और चद्रमा राहु-केतु और शनि के प्रभाव में ना हों, तिथि
और योग भी शुभ हों और
साथ में नक्षत्र भी शुभ हों तो इतिहास गवाह है कोई अवतार ही
हुआ है। ऐसा ही अद्भुत
योग एक बार पुनः आ रहा है और यह योग हज़ारों वर्षों के बाद
आ रहा है। अतः कोई
अवतार तो अवश्य होगा।
मैं ज्योतिष में और ईश्वर में आस्था रखने वाला व्यक्ति हूँ और
इसीलिए ज्योतिष तथा अपने पवित्र पौराणिक, आध्यात्मिक,
और ऐतिहासिक ग्रंथों को आधार
और उदाहरण मानकर ही मैं यह भविष्वाणी कर रहा हूँ।
इसीलिए ज्योतिष तथा अपने पवित्र पौराणिक, आध्यात्मिक,
और ऐतिहासिक ग्रंथों को आधार
और उदाहरण मानकर ही मैं यह भविष्वाणी कर रहा हूँ।
सबसे पहले देखते हैं कि उस दिन ग्रहों की स्थिति क्या है:
सूर्य - सिंह राशि (स्वराशि में )
चन्द्रमा - वृषभ राशि (उच्च का)
मंगल - वृश्चिक राशि (स्वराशि में )
बुध - कन्या राशि में (बुध की स्व और उच्च राशि)
गुरु - कर्क राशि (उच्च राशि में )
शुक्र - सिंह राशि (सूर्य के साथ)
शनि - तुला राशि (उच्च राशि में )
राहु - कन्या राशि (उच्च राशि में )
केतु - मीन राशि (उच्च राशि में )
चन्द्रमा - वृषभ राशि (उच्च का)
मंगल - वृश्चिक राशि (स्वराशि में )
बुध - कन्या राशि में (बुध की स्व और उच्च राशि)
गुरु - कर्क राशि (उच्च राशि में )
शुक्र - सिंह राशि (सूर्य के साथ)
शनि - तुला राशि (उच्च राशि में )
राहु - कन्या राशि (उच्च राशि में )
केतु - मीन राशि (उच्च राशि में )
भाव एवं दृष्टि योग
उच्च का चन्द्रमा और स्वराशिस्थ मंगल का दृष्टि योग अर्थात
दयालुता और पराक्रम की पराकाष्ठा।
उच्च का गुरु और उच्च के शनि का दृष्टि सम्बन्ध
(राम, कृष्ण, और बुद्ध तीनों की कुंडली में उपस्थित),
अर्थात अध्यात्म और सामाजिक सरोकार की पराकाष्ठा।उच्च का केतु अर्थात अद्भुत पराक्रम, त्वरित और शक्तिशाली
निर्णय लेने में समर्थ, अत्यधिक निर्भीक, विपरीत परिस्थितियों
में भी अद्भुत शौर्य की
पराकाष्ठा, मोक्ष प्रदाता।
गुरु की दृष्टि मंगल और गुरु की ही मीन राशि में स्थित केतु पर,
अर्थात पराक्रम, शौर्य कूटनीति, राजनीती सबकुछ धर्म और
समाज के लिए।
ग्रहों के साथ-साथ तिथि का भी अत्यंत महत्त्व है, तो तिथि भी
है अष्टमी तिथि। अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ
था। यह तिथि, तिथियों में जया के नाम से जानी जाती है।
यह अत्यन्त ही प्रभावशाली तिथि है, और माँ भवानी से सम्बंधित है,
अतः यह तिथि शक्ति स्वरूपा है।
उच्च का चन्द्रमा और स्वराशिस्थ मंगल का दृष्टि योग अर्थात
दयालुता और पराक्रम की पराकाष्ठा।
उच्च का गुरु और उच्च के शनि का दृष्टि सम्बन्ध
(राम, कृष्ण, और बुद्ध तीनों की कुंडली में उपस्थित),
अर्थात अध्यात्म और सामाजिक सरोकार की पराकाष्ठा।उच्च का केतु अर्थात अद्भुत पराक्रम, त्वरित और शक्तिशाली
निर्णय लेने में समर्थ, अत्यधिक निर्भीक, विपरीत परिस्थितियों
में भी अद्भुत शौर्य की
पराकाष्ठा, मोक्ष प्रदाता।
गुरु की दृष्टि मंगल और गुरु की ही मीन राशि में स्थित केतु पर,
अर्थात पराक्रम, शौर्य कूटनीति, राजनीती सबकुछ धर्म और
समाज के लिए।
ग्रहों के साथ-साथ तिथि का भी अत्यंत महत्त्व है, तो तिथि भी
है अष्टमी तिथि। अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ
था। यह तिथि, तिथियों में जया के नाम से जानी जाती है।
यह अत्यन्त ही प्रभावशाली तिथि है, और माँ भवानी से सम्बंधित है,
अतः यह तिथि शक्ति स्वरूपा है।
दिन है सोमवार, अद्भुत योग, सोमवार का दिन भगवान शिव को
समर्पित है, अतः दिन और तिथियों के योग को देखूँ तो शिव और
शक्ति का अद्भुत संयोग।
समर्पित है, अतः दिन और तिथियों के योग को देखूँ तो शिव और
शक्ति का अद्भुत संयोग।
और अब अंत में तारीख जिसका आपको बेसब्री से है इंतज़ार-
वह है १५ सितम्बर, २०१४.
वह है १५ सितम्बर, २०१४.
जी हाँ, १५ सितम्बर, २०१४ ऐसी तारीख है जिस दिन हज़ारों
वर्षों के बाद बन रहा है यह अद्भुत संयोग। अब आपका अगला
प्रश्न होगा की समय कौन सा है ?
वर्षों के बाद बन रहा है यह अद्भुत संयोग। अब आपका अगला
प्रश्न होगा की समय कौन सा है ?
वैसे तो इस दिन सभी ग्रहों की स्थिति ऐसी ही है। अतः इस दिन
जन्मा प्रत्येक बच्चा अद्भुत ही होगा। परन्तु इसमें भी रात्रि काल
में स्थूल मान से लगभग
०९:३० से ११ बजे के बीच जन्मा बच्चा सबसे प्रभावशाली होगा,
क्योंकि इस दौरान:
लग्न - वृषभ
योग - सिद्धि
नक्षत्र - मृगशिरा
तिथि - अष्टमी
अर्थात १५ सितम्बर, २०१४ को रात्रि ०९:३० से ११ बजे के बीच
(दिल्ली के समयानुसार)।
जन्मा प्रत्येक बच्चा अद्भुत ही होगा। परन्तु इसमें भी रात्रि काल
में स्थूल मान से लगभग
०९:३० से ११ बजे के बीच जन्मा बच्चा सबसे प्रभावशाली होगा,
क्योंकि इस दौरान:
लग्न - वृषभ
योग - सिद्धि
नक्षत्र - मृगशिरा
तिथि - अष्टमी
अर्थात १५ सितम्बर, २०१४ को रात्रि ०९:३० से ११ बजे के बीच
(दिल्ली के समयानुसार)।
यह एक ऐसा समय आ रहा है जब ग्रहों, नक्षत्र, तिथि,
योग का हज़ारों वर्ष बाद ऐसा अद्भुत संयोग देखने को मिलेगा और
अवश्य ही होगा
कोई महावतार, जो दुनिया को अपराध मुक्त करेगा और दिखायेगा
भटकों को राह।
योग का हज़ारों वर्ष बाद ऐसा अद्भुत संयोग देखने को मिलेगा और
अवश्य ही होगा
कोई महावतार, जो दुनिया को अपराध मुक्त करेगा और दिखायेगा
भटकों को राह।
विशेष और विनम्र अनुरोध:
आप सबसे मेरा यह विनम्र अनुरोध है कि यह संयोग ईश्वर स्वयं
बना रहा है, इसमें हमारा और आपका कोई योगदान नहीं है।
उस समय जन्मे हज़ारों
बच्चों में से कोई एक ही अवतार होगा और वह भी उस माँ की
गर्भ से जिसे ईश्वर ने
स्वयं चुना होगा। अतः इस समय और तारीख को, आप जान
बूझकर या ऑपरेशन के द्वारा
ज़बरदस्ती किसी बच्चे को जन्म देने का प्रयास ना करें। हाँ किसी
भी जन्मे बच्चे की ख़ुशी
अवश्य मनाएँ।
बना रहा है, इसमें हमारा और आपका कोई योगदान नहीं है।
उस समय जन्मे हज़ारों
बच्चों में से कोई एक ही अवतार होगा और वह भी उस माँ की
गर्भ से जिसे ईश्वर ने
स्वयं चुना होगा। अतः इस समय और तारीख को, आप जान
बूझकर या ऑपरेशन के द्वारा
ज़बरदस्ती किसी बच्चे को जन्म देने का प्रयास ना करें। हाँ किसी
भी जन्मे बच्चे की ख़ुशी
अवश्य मनाएँ।
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