Wednesday, September 3, 2014

फलादेश के नियम

फलादेश के नियम
यह जानना बहुत जरूरी है कि कोई ग्रह जातक
को क्या फल देगा। कोई ग्रह कैसा फल देगा, वह
उसकी कुण्डली में स्थिति, युति एवं
दृष्टि आदि पर निर्भर करता है। जो ग्रह जितना ज्यादा शुभ
होगा, अपने कारकत्व को और जिस भाव में वह स्थित है,
उसके कारकत्वों को उतना ही अधिक दे पाएगा।
नीचे कुछ सामान्य नियम दिए जा रहे हैं, जिससे
पता चलेगा कि कोई ग्रह शुभ है या अशुभ। शुभता ग्रह के बल
में वृद्धि करेगी और अशुभता ग्रह के बल में
कमी करेगी।
नियम 1 -जो ग्रह अपनी उच्च,
अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में
हो - शुभ फलदायक होगा। इसके विपरीत
नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में
ग्रह अशुभफल दायक होगा।
नियम 2 -जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है,
वह शुभ फल देता है।
नियम 3 -जो ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ या मध्य हो वह
शुभ फलदायक होता है। मित्रों के मध्य होने को मलतब यह
है कि उस राशि से, जहां वह ग्रह स्थित है,
अगली और पिछली राशि में मित्र ग्रह
स्थित हैं।
नियम 4 -जो ग्रह अपनी नीच राशि से
उच्च राशि की ओर भ्रमण करे और
वक्री न हो तो शुभ फल देगा।
नियम 5 -जो ग्रह लग्नेहश का मित्र हो।
नियम 6 -त्रिकोण के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं।
नियम 7 -केन्द्र का स्वामी शुभ ग्रह
अपनी शुभता छोड़ देता है और अशुभ ग्रह
अपनी अशुभता छोड़ देता है।
नियम 8 -क्रूर भावों (3, 6, 11) के
स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं।
नियम 9 -उपाच्य भावों (1, 3, 6, 10, 11) में ग्रह के
कारकत्वत में वृद्धि होती है।
नियम 10 -दुष्ट स्थानों (6, 8, 12) में ग्रह अशुभ फल देते
हैं।
नियम 11 -शुभ ग्रह केन्द्र (1, 4, 7, 10) में शुभफल देते
हैं, पाप ग्रह केन्द्र में अशुभ फल देते हैं।
नियम 12 -पूर्णिमा के पास का चन्द्र शुभफलदायक और
अमावस्या के पास का चंद्र अशुभफलदायक होता है।
नियम 13 -बुध, राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं,
वैसा ही फल देते हैं।
नियम 14 -सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते हैं और अशुभ
फल देते हैं।
इन सभी नियम के परिणाम को मिलाकर हम जान
सकते हैं कि कोई ग्रह अपना और स्थित भाव का फल दे
पाएगा कि नहींय़ जैसा कि उपर बताया गया शुभ ग्रह
अपने कारकत्व को देने में सक्षम होता है परन्तु अशुभ ग्रह
अपने कारकत्व को नहीं दे पाता।

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