Sunday, August 31, 2014

जलपान-गृहों एवं होटलों में वास्तु-नियमों का प्रयोग

जलपान-गृहों एवं होटलों में वास्तु-नियमों का प्रयोग
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जलपान-गृहों व होटलों मे भी वास्तु नियमों का पालन
उसी प्रकार किया जाता है जिस प्रकार अन्य व्यापारिक
भवनों में किया जाता है। रेस्तरां, जलपान गृह व होटल में वास्तु
नियमों का प्रयोग लाभकारी होता है। ऐसे भवनों के
दो महत्वपूर्ण भाग होते है-1. ग्राहकों को भोजन बनाने के
लिए। 2. ग्राहकों को ठहराने के लिए।
होटल में आग संबंधी केंद्र, जैसे-रसोई कक्ष,
बिजली का मेन स्विच वगैरह आग्रेय कोण में
बनाना चाहिए। जलपानगृह व होटल हेतु
बालकनी आग्रेय कोण में बनाना श्रेयस्क र है।
दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा का उपयोग खाद्य-
पदार्थों के लिए भंडारण करना चाहिए।
होटल आदि में शौचालय व स्नानगृह उत्तर-पश्चिम में और
एकयरकंडीशनर व वास-बेसिन पश्चिम दिशा में
बनाना चाहिए। मुख्य द्वार पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व में
रखना श्रेयस्कर है। कैश बाक्स उत्तर दिशा में,
स्वीमिंग पूल, तालाब उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व में
रखना चाहिए।
होटल के उत्तर-पूर्व दिशा का भाग
खाली होना चाहिए अथवा स्वागत कक्ष हेतु उपयोग
में लाया जाना चाहिए। होटल के उत्तरी-
पूर्वी भाग में ग्रहाकों के ठहरने के लिए
कमरों का निर्माण नहीं करना चाहिए। भोज (दावत)
या सम्मेलन-कक्ष उत्तर-पश्चिम दिशा में रखना श्रेयस्कर
होता है। पश्चिमी-दक्षिणी
दिशा का हिस्सा आवास हेतु प्रयुक्त करें। मुख्य भवन के
चारों ओर खुला स्थान रखना बहुत उपयोगी होता है।

वास्तु सलाह

वास्तु सलाह
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• भारी पत्थर व भारी मूर्तियां दक्षिण
तथा पश्चिम दिशा में तब रखे जा सकते हैं जब दक्षिण
तथा पश्चिम में कोई भारी सामान रखने के लिए
उपलब्ध न हो। ये मूर्तियां या पत्थर ऐसे दिखने चाहिए जैसे
इन्हें सजावट के लिए रखा गया हो। पश्चिम एवं दक्षिण
दिशा को भारी करने पर घर,
फैक्टरी या रोजगार के स्थान पर स्थायित्व आता है।
पति-पत्नी में अलगाव रहता है या कार्य पूर्ण रूप
से नहीं चलने के कारण मानसिक
परेशानी रहती है,
तो भी यह उपाय कारगर साबित होता है।
• खिड़कियां सही स्थान पर होती हैं,
तो हवा का संतुलन बना रहता है। मकान या कमरे में उत्तर
या पूर्व की ओर लगी हुई खिड़कियां धन
और उत्तम स्वास्थ्य को देने
वाली होती हैं। इन्हें
खुला रखना लाभदायक होता है। पश्चिम तथा दक्षिण
की खिड़कियों व दरवाजों पर भारी पर्दे
तथा पूर्वी व उत्तरी दरवाजों पर हल्के
व बारीक पर्दों का प्रयोग लाभदायक होता है।
• देवी-देवताओं के चित्र
तथा सजावटी चित्र
उत्तरी या पूर्वी दीवार पर
लगायें।
पूर्वी तथा उत्री दीवार पर
स्वर्गवासी व्यक्ति का वित्र न लगायें। इसके लिए
दक्षिणी दीवार अधिक उपयुक्त
होती है। भारी दिखने वाले जैसे पहाड़,
घने जंगल आदि के चित्र पश्चिम
या दक्षिणी दीवार पर
ही लगायें। युद्घ के चित्र बिना सिर-पैर
की मूर्तियां, कबूतर, सांप, सूअर आदि ऐसे चित्र
अशुभ माने गये हैं।
• मधुर संगती व गीत
भी सकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं।
कर्णभेदी संगीत नकारात्मक प्रभाव
छोड़ते हैं। मधुर संगीत को ही घर में
जगह दें। सीढिय़ां भवन में गलत जगह पर
होती हैं तो दोष उत्पन्न करती हैं।
भवन में सीढिय़ां दक्षिण-पश्चिम या नैर्ऋत्य कोण में
बनाना दक्षिण-पश्चिम या नैर्ऋत्य कोण में बनाना शुभ होता है।
ईशान तथा मध्य में सीढिय़ां बनाना दोषमुक्त
माना गया है। सीढिय़ां उपरोक्त दिशा में न हों, तो ऐसे में
सीढिय़ों के प्रवेश का स्थान सुविधाजनक लम्बा कर लें
और उसे दक्षिण, पश्चिम या नैर्ऋत्य कोण से शुरू करें। इसके
लिए दीवार बनाना संभव न
हो तो सजावटी पौधों आदि के
गमलों की पंक्तियां लगाकर
सीढिय़ों का प्रारंभिक स्थान उपरोक्त दिशा में ले जायें।

सूर्यनारायण सिंह राशि में होंगे

 रविवार को, जब भगवान् सूर्यनारायण सिंह राशि में होंगे, तब
इस दिन व्रत रखें, या फिर भोजन करें पर उसमे नमक ना लें....
या पूरे दिन और रात फलाहार करें, दूध पियें,
यह इतना अधिक प्रभावशाली व्रत होगा, कि पूरे
वर्ष सूर्य से सम्बंधित शुभ फल प्राप्त होंगे... निश्चित रूप से
। जिस किसी को भी कोई
सरकारी काम कराना हो,
या सरकारी नौकरी कि इच्छा है,
या आत्मविश्वास कि कमी हो जिनके अन्दर, वे
प्रातः काल 5:30 बजे तक स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ लाल
या सफ़ेद धोती धारण कर लें । अपने
शरीर पर तिलक कर लें । यज्ञोपवित पहना हुआ
हो । शिखा ग्रंथी लगायें और छत पे जाकर उगते
हुए सूर्य को ताम्बे के लोटे में जल, गुड़, कनेर पुष्प, अक्षत,
घी इत्यादि मिलाकर अर्ध्य दें । पर ऐसा करते समय
अपने पैरों के नीचे एक आसन जरूर बिछा लें । फिर
हाँथ जोड़कर उन्हें प्रणाम करें और
अपनी इच्छा मन ही मन उनसे कह दें

इसके बाद हाँथ में जल लेकर संकल्प करें और न्यासादि सहित
आदित्य हृदय स्तोत्र का सस्वर पाठ करें । ऐसा कम से कम 3
बार करें ।
फिर पूरे दिन में आप मंत्र जाप, साधना, हवन इत्यादि कर सकते
हैं । मगर दिन में ही करें हवन, जाप इत्यादि,
रात्रि में करने का कोई लाभ भी नहीं

आपके दांत बताते हैं आपका भाग्य और स्वभाव.

आपके दांत बताते हैं आपका भाग्य और स्वभाव.
ज्योतिष एक प्रकार का विज्ञान है. हमारे शरीर में
कई अंग होते हैं. शरीर में दांत बहुत
ही अहम भूमिका अदा करते हैं. दांत स्वास्थ्य के
काफी जरूरी और महत्वपूर्ण हैं.
आप दांत से किसी भी व्यक्ति के स्वभाव
व भाग्य की जानकारी ले सकते हैं.
हम आपके समक्ष इन दांतों के गूढ़ अर्थों को रख रहे हैं.
पढ़िए और जानिए अपने और दूसरों के दांतों से अपना और
उसका स्वभाव और भाग्य.
जिस पुरुष के दांत सीधे समान रूप से उठे और चिकने
होते हैं, वह धनी होता है.
जिस व्यक्ति के लंबे दांत होते हैं, उसके पास
कभी भी धन
की कमी नहीं होती.
जिनके बत्तीस दांत होते हैं. वह
जीवन के हर एक क्षेत्र में सफलता पाते हैं.
बत्तीस दांत वाले के बारे में कहा जाता है कि वह
जो बोल देते हैं. वह सत्य हो जाता है.
जिनके दांत धीरे-धीरे उखड़ते रहते हैं,
उनकी आयु लंबी होती है.
जिन स्त्रियों के दांत नोकदार, एक सीध में सफेद और
आपस में मिले हुए होते हैं. वह
सौभाग्यशाली होती है.
जिन स्त्रियों के ऊपर व नीचे 16-16 दांत हों और
सफेद रंग के हों, वह
पति प्यारी होती है.
अगर स्त्री के दांत चिकने आपस में सटे हुए और
कुछ लालिमा लिए होते हैं, तो उसे राजसी सुख प्राप्त
होता है.
कहीं स्त्री के दांत के ऊपर दांत हों,
तो वह चतुर होती है. साथ ही शासन
करने वाली होती है.

Saturday, August 30, 2014

घर की दरिद्रता दूर करती है झाड़ू,

परंपराएं: घर की दरिद्रता दूर करती है झाड़ू, इन
बातों का रखें ध्यान
झाड़ू वैसे तो बहुत सामान्य वस्तु है, लेकिन शास्त्रों में
इसका सीधा संबंध
महालक्ष्मी की कृपा से बताया गया है। झाड़ू
हमारे घर से गंदगी रूपी दरिद्रता को दूर
करती है और साफ-सफाई के रूप में
महालक्ष्मी की कृपा दिलवाती है। जिस
घर साफ-सफाई होती है, वहां लक्ष्मी का वास
होता है। देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त
करने के लिए घर के आसपास किसी भी मंदिर में
तीन झाड़ू रख आएं। यह पुराने समय से
चली आ रही परंपरा है। पुराने समय में लोग
अक्सर मंदिरों में झाड़ू दान किया करते थे।
ध्यान रखें ये बातें:
- मंदिर में झाड़ू सुबह ब्रह्म मुहूर्त में रखना चाहिए।
- यह काम किसी विशेष दिन करना चाहिए। विशेष दिन जैसे
कोई त्यौहार, ज्योतिष के शुभ योग या शुक्रवार को।
- इस काम को बिना किसी को बताए गुप्त रूप से करना चाहिए।
शास्त्रों में गुप्त दान का विशेष महत्व बताया गया है।
- जिस दिन यह काम करना हो, उसके एक दिन पहले
ही बाजार से 3 झाड़ू खरीदकर ले आना चाहिए।
यदि गंदगी, धूल-मिट्टी, मकड़ी के जाले
आदि साफ नहीं किए जाएंगे तो घर का वातावरण नकारात्मक
हो जाता है। झाड़ू से ही गंदगी दूर
की जाती है और इससे घर का वातावरण
सकारात्मक होता है। नकारात्मक वातावरण में रहने वाले लोगों के विचार
भी नकारात्मक हो सकते हैं, जिसका सीधा असर
घर की आर्थिक स्थिति पर होता है। घर में साफ-सफाई
रखेंगे तो स्वत: ही इन बातों से छुटकारा मिल जाता है और
देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
- शास्त्रों में झाड़ू को देवी लक्ष्मी का रूप
माना गया है, अत: किसी भी प्रकार से
इसका अनादर नहीं होना चाहिए। घर में यदि झाड़ू सबके
सामने रखी जाती है तो कई बार अन्य लोगों के पैर
उस पर लगते हैं जो कि अशुभ है। इसी वजह से झाड़ू
को किसी स्थान पर छिपाकर रखना चाहिए।
- झाड़ू को दरवाजे के पीछे रखना काफी शुभ
माना गया है।
- झाड़ू को कभी भी खड़ी करके
नहीं रखना चाहिए। यह अपशकुन माना गया है।
- आज भी अधिकांश बुजूर्ग लोग झाड़ू पर पैर लगने के बाद
क्षमा याचना करते हुए उसे प्रणाम करते हैं।
- हम जब भी किसी नए घर में प्रवेश करें, उस
समय नई झाड़ू लेकर ही घर के अंदर जाना चाहिए। यह
शुभ शकुन माना जाता है। इससे नए घर में सुख-समृद्धि और बरकत
बनी रहेगी।
- यदि घर में कोई छोटा बच्चा है और वो अचानक झाड़ू निकलने लगे
तो समझना चाहिए कि आपके यहां कोई मेहमान आने वाला है।
- हमेशा ध्यान रखें कि ठीक सूर्यास्त के समय झाड़ू
नहीं निकालना चाहिए। यह अपशकुन है।
- झाड़ू को कभी भी घर से बाहर या छत पर
नहीं रखना चाहिए। यह अशुभ माना जाता है। ऐसा करने पर
आपके घर में चोरी होने का भय बना रहता है।
- कभी भी गाय या अन्य जानवर को झाड़ू से
नहीं मारना चाहिए। यह भयंकर अपशकुन माना गया है।
- कोई भी सदस्य किसी खास कार्य के लिए घर
से निकला हो तो उसके जाने के तुरंत बाद घर में झाड़ू
नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने पर उस
व्यक्ति को असफलता का सामना करना पड़ सकता है।
- झाड़ू को भोजन कक्ष में या जहां हम खाना खाते हैं
वहां नहीं रखना चाहिए। भोजन के स्थान पर यदि झाड़ू
रखी जाएगी तो झाड़ू में लगी धूल-
मिट्टी के कारण हमें स्वास्थ्य
संबंधी परेशानियां हो सकती हैं।
झाड़ू को कभी भी बिस्तर पर
नहीं रखना चाहिए
बिस्तर पर झाड़ू रखना, अपशकुन माना जाता है।
किसी भी स्थिति में बिस्तर पर झाड़ू
नहीं रखनी चाहिए। इस अपशकुन के कारण घर
में अलक्ष्मी का आगमन होता है या लक्ष्मी रूठ
जाती है।
इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि झाड़ू से हम साफ-
सफाई करते हैं तो उसमें धूल, कचरा और कई हानिकारक
कीटाणु चिपके रहते हैं। ऐसे में यदि झाड़ू बिस्तर पर
रखी जाएगी तो बिस्तर पर धूल और हानिकारक
कीटाणु आ जाएंगे। इस वजह से स्वास्थ्य
संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। कई लोगों को धूल-
मिट्टी से सर्दी-जुकाम
की समस्या तुरंत ही हो जाती है। इस
वजह से बिस्तर पर झाड़ू नहीं रखना चाहिए।

झाड़ू पर पैर लगने से बढ़ती है
पैसों की तंगी?
घर में कई वस्तुएं होती हैं कुछ बहुत सामान्य
रहती है। इनकी ओर
किसी का ध्यान नहीं जाता।
ऐसी चीजों में से एक है झाड़ू जब
भी साफ-सफाई करना हो तभी झाड़ू
का काम होता है। अन्यथा इसकी ओर कोई ध्यान
नहीं देता। शास्त्रों के अनुसार झाड़ू के संबंध कई
महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं।
शास्त्रों के अनुसार झाड़ू को धन
की देवी महालक्ष्मी MAA
SHITLA JI का ही प्रतीक रूप
माना जाता है। इसके पीछे एक वजह यह
भी है कि झाड़ू ही हमारे घर से
गरीबी रूपी कचरे को बाहर
निकालती है और साफ-सफाई बनाए
रखती है। घर यदि साफ और स्वच्छ
रहेगा तो हमारे जीवन में धन
संबंधी कई परेशानियां स्वत: ही दूर
हो जाती हैं।
प्राचीन परंपराओं को मानने वाले लोग आज
भी झाड़ू पर पैर लगने के बाद उसे प्रणाम करते हैं
क्योंकि झाड़ू को लक्ष्मी का रूप माना जाता है।
विद्वानों के अनुसार झाड़ू पर पैर लगने से
महालक्ष्मी का अनादर होता है। झाड़ू घर
का कचरा बाहर करती है और कचरे
को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है।
जिस घर में पूरी साफ-सफाई रहती है
वहां धन, संपत्ति और सुख-शांति रहती है। इसके
विपरित जहां गंदगी रहती है
वहां दरिद्रता का वास होता है। ऐसे घरों में रहने वाले
सभी सदस्यों को कई प्रकार की आर्थिक
परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी कारण घर
को पूरी तरह साफ रखने पर जोर दिया जाता है
ताकि घर की दरिद्रता दूर हो सके और
महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके।
घर से दरिद्रता रूपी कचरे को दूर करके झाड़ू
यानि महालक्ष्मी हमें धन-धान्य, सुख-
संपत्ति प्रदान करती है। जब घर में झाड़ू का कार्य
न हो तब उसे ऐसे स्थान पर रखा जाता है
जहां किसी की नजर न पड़े। इसके
अलावा झाड़ू को अलग रखने से उस पर किसी का पैर
नहीं लगेगा जिससे
देवी महालक्ष्मी का निरादर
नहीं होगा। यदि भुलवश झाड़ू को पैर लग जाए
तो महालक्ष्मी से
क्षमा की प्रार्थना कर लेना चाहिए।

संतान के रूप में कौनआती है

संतान के रूप में
कौनआती है
*पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-
पिता, भाई-बहिन,पति पत्नि- प्रेमिका, मित्र-श त्रु, सगे-
सम्बनधी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते
नाते है। सब मिलते है। क्यों कि इन सबको हमें या तो कुछ
देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है।
वेसे ही संतान के रूप में हमारा कोई पूर्व जन्म
का सम्बन्धी ही आकर जन्म लेता है।
जिसे शास्त्रों में चार प्रकार
का बताया गया है।
1) ऋणानुबन्ध :- पूर्व जन्म का कोई एसा जीव जिससे
आपने ऋण
लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन
नष्ट किया हो तो वो आपके घर में संतान बनकर जन्म लेगा और
आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में
तब तक नष्ट करेगा जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो।
2) शत्रु पुत्र :-पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के
लिये आपके घर में संतान बनकर आयेगा औए बडा होने पर
माता पिता से मारपीट झगडा या उन्हे
सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार
से सताता ही रहेगा !
3) उदासीन :-इस प्रकार की सन्तान
माता पिता को न तो कष्ट देती है ओर
ना ही सुख।
विवाह होने पर यह माता- पिता से अलग हो जाते है।
4)सेवक पुत्र :-पूर्व जन्म में यदि आपने
किसी की खूब सेवा कि है तो वह
अपनी कि हुई सेवा का ऋण उतारने के लिये
आपकि सेवा करने के लिये पुत्र बनकर आता है।
आप यह ना समझे कि यह सब बाते केवल मनुष्य पर
ही लागु होती है।
इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव
भी आ सकता है।
जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा कि है
तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ
सकती है।
यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसके दूध देना बन्द करने
के पश्चात उसे घर से निकाल दिया हो तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र
या पुत्री बनकर जन्म लेगी।
यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है
तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा।
इस लिये जीवन में
कभी किसी का बुरा नहीं करे।
क्यों कि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे।उसे
वह आपको सौ गुना करके देगी। यदि आपने
किसी को एक रूपया दिया है तो समझो आपके खाते में
सौ रूपये जमा हो गये है। यदि आपने किसी का एक
रूपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से
सौ रूपये निकल गये।

चोथ का चांद देखा तो कलंक लगेगा

अगर चोथ का चांद देखा तो कलंक लगेगा गणेश
चतुर्थी - 29 अगस्त , 2014
चन्द्रदर्शन निषिद्ध (चंद्रास्त रात्री 9:17 तक)
अगर चौथ का चाँद देखा तो कलंक लगेगा ! - वैज्ञानिक पक्ष
इन दिन चन्द्र-दर्शन के निषिद्ध होने का वैज्ञानिक पक्ष यह
है कि सुर्र्य-चन्द्र गणना के अनुसार उक्त पिंड इस दिन
ऐसी त्रिभुज कक्षा में स्थित रहता है, जिससे
इसकी प्राणशक्ति में वैषम्य आ जाता है l
चन्द्र सूर्य से प्रकाश पाता है यह एक वैज्ञानिक तथ्य है l
चन्द्रमा की चौथी कला का विकास खासकर
सिंह के सूर्य (भाद्रपद मास) में सूर्य
की मृत्युकिरणवाले भाग से प्रकाशित होता है l उस दिन
चन्द्र-संभूत रश्मियाँ, विकृत विचार-तरंगो में तरंगित होकर मन
को विलक्षण ढंग से प्रभावित करती है l इसलिए इस
दिन चन्द्र दर्शन का फल अशुभ होता है l

दय+अस्त+वक्री ग्रह एवं उनकी अवस्थायों का प्रभाव

दय+अस्त+वक्री ग्रह एवं
उनकी अवस्थायों का प्रभाव
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कोई भी ग्रह कितने ही अंशों का क्यूँ
न हो लेकिन प्रत्येक ग्रहों के ३०-००-०० अंश होते हैं.और
इन्ही से ग्रहों की उदय-अस्त-
वक्री तथा अवस्थाओं का ज्ञान होता है.
अवस्थाओं में ३-९ अंशों के बीच ग्रह बालक
होता है.९-१५ के बीच अंशों के ग्रह कुमार
की श्रेणी में आते हैं. १५-२१ अंशों के
ग्रह युवा कहलाते हैं.२१-२७ के बीच में ग्रह
वृद्ध हो जाते हैं तथा २७-०३ के अंशों में ग्रह मृत्यु को प्राप्त
होते हैं.अगर इसे अस्त कहा जाए तो गलत न होगा.ऐसे
ग्रहों का प्रभाव बहुत ही सूक्ष्म
होता है.प्रत्येक ग्रह में अवस्थाओं के अनुसार फल करते
हैं.
सूर्य के पास के ग्रह अगर सूर्य के अंशों के बराबर हुए
तो ग्रह अस्त हो जाता है
उसकी सारी ताकत सूर्य में
समा जाती है.लेकिन सूर्य से ८ अंशों से आगे ग्रह
आधा अस्त माना जाता है.अगर ग्रह सूर्य से १५ अंशों से
अधिक है तो ग्रह उदय कहलाता है.
वक्री ग्रह सीधे चलते चलते
थोड़ा रास्ते से हटकर चलते हैं.जैसे कोई लक्ष्य पर घूमकर
आता है.लेकिन रुकता नहीं है.जबकि देखने में
लगता है मानों उल्टा चल रहा है हालांकि ऐसा है
नहीं.
कोई भी ग्रह अगर २९-०१ अंश का है तो वह
बहुत ही हानिकारक होता है.अगर लग्न
इसी अंश पर है तो शारीरिक कष्ट मिलते
हैं.इसी के साथ अगर लग्नेश कमजोर हुआ
या ६-८-१२ में चला गया तो मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट होता है.

Friday, August 29, 2014

हनुमान चालीसा है राम बाण

हनुमान चालीसा है राम बाण
बचपन से ही हमें सिखाया गया है कि अगर
कभी भी मन अशांत लगे या फिर
किसी चीज से डर लगे तो, हनुमान
चालीसा पढ़ो। ऐसा करने से मन शांत होता है और डर
भी नहीं लगता। हिंदू धर्म में हनुमान
चालीसा का बड़ा ही महत्व है। हनुमान
चालीसा पढ़ने से शनि ग्रह और साढे़
साती का प्रभाव कम होता है।
हनुमान जी राम जी के परम भक्त हुए
हैं। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर हनुमान
जी जैसी सेवा-भक्ति विद्यमान है। हनुमान-
चालीसा एक ऐसी कृति है, जो हनुमान
जी के माध्यम से व्यक्ति को उसके अंदर विद्यमान
गुणों का बोध कराती है। इसके पाठ और मनन करने से
बल बुद्धि जागृत होती है। हनुमान-
चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति खुद
अपनी शक्ति, भक्ति और कर्तव्यों का आंकलन कर
सकता है।
हनुमान चालीसा का पाठ करने से :-
1. बुरी आत्माओं को भगाए:
हनुमान जी अत्यंत बलशाली थे और वह
किसी से नहीं डरते थे। हनुमान
जी को भगवान माना जाता है और वे हर
बुरी आत्माओं का नाश कर के लोगों को उससे
मुक्ती दिलाते हैं। जिन लोगों को रात मे डर लगता है या फिर
डरावने विचार मन में आते रहते हैं, उन्हें रोज हनुमान
चालीसा का पाठ करना चाहिये।
2. साढे़ साती का प्रभाव कम करे:
हनुमान चालीसा पढ़ कर आप शनि देव को खुश कर
सकते हैं और साढे साती का प्रभाव कम करने में सफल
हो सकते हैं। कहानी के मुताबिक हनुमान
जी ने शनी देव की जान
की रक्षा की थी, और फिर
शनि देव ने खुश हो कर यह बोला था कि वह आज के बाद से
किसी भी हनुमान भक्त का कोई नुकसान
नहीं करेगें।
3. पाप से मुक्ती दिलाए:
हम कभी ना कभी जान बूझ कर या फिर
अनजाने में ही गल्तियां कर बैठते हैं। लेकिन आप
उसकी माफी हनुमान चालीसा पढ़
कर मांग सकते हैं। रात के समय हनुमान चालीसा को 8
बार पढ़ने से आप सभी प्रकार के पाप से मुक्त हो सकते
हैं।
4. बाधा हटाए:
जो भी इंसान हनुमान चालीसा को रात में
पढे़गा उसे हनुमान जी स्वंय आ कर सुरक्षा प्रदान
करेगें।

बहुत परेशान हैं तो सोमवार को करें यह उपाय

आप बहुत परेशान हैं तो सोमवार को करें यह उपाय :
कुंडली में ग्रह दोषों की वजह से
जीवन में कई प्रकार
की परेशानियों आती रहती है।
ऐसे में यदि ग्रह दोषों को दूर करने के लिए ज्योतिष में बताए गए उपाय
करने पर निश्चित ही लाभ प्राप्त होता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में
चंद्र से संबंधित कोई दोष हो तो सोमवार यह उपाय करें-
- सोमवार को शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप
करें।
- शिवजी को जल चढ़ाने के बाद दूध चढ़ाएं।
- दूध के बाद बिल्वपत्र, अक्षत (चावल), कुमकुम, पुष्प
आदि अर्पित करें।
- प्रति सोमवार शिवजी की विधि-विधान से
पूजा करें।
- किसी जरूरतमंद या ब्राह्मण को सफेद वस्त्रों का दान
करें।
- किसी मंदिर में शकर, चावल, दूध का दान करें।
- छोटी-छोटी लड़कियों को खीर
बनाकर खिलाएं।
- नदी, तालाब या कुएं में दूध प्रवाहित करें।
- चंद्र ग्रह के निमित्त किसी ब्राह्मण से विशेष पूजन
कराएं।

गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी की आप
सभी कों हार्दिक
कोटी कोटी शुभकामनाएँ .......
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धर्म ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष
की चतुर्थी तिथि को भगवान
श्रीगणेश का जन्म हुआ था। इसीलिए
इस चतुर्थी को विनायक चतुर्थी,
सिद्धिविनायक चतुर्थी और श्रीगणेश
चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार गणेश
चतुर्थी का पर्व 29 अगस्त, शुक्रवार को है।
ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो स्नान, उपवास और दान
किया जाता है, उसका फल भगवान श्रीगणेश
की कृपा से सौ गुना हो जाता है। व्रत करने से
मनोवांछित फल मिलता है। इस दिन श्रीगणेश
जी का पूजन व व्रत इस प्रकार करें-
विधि ..........
सुबह जल्दी उठकर स्नान एवं नित्यकर्म से
शीघ्र निवृत्त हों। अपने सामथ्र्य के अनुसार सोने,
चांदी, तांबे, पीतल
या मिट्टी से बनी भगवान
श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें
(शास्त्रों में मिट्टी से बनी गणेश
प्रतिमा की स्थापना को ही श्रेष्ठ
माना है)। संकल्प मंत्र के बाद षोडशोपचार पूजन व
आरती करें।
गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं।
मंत्र बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। 21 लड्डुओं का भोग
लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और 5 ब्राह्मण
को दे दें। शेष लड्डू प्रसाद रूप में बांट दें। ब्राह्मणों को भोजन
कराएं और उन्हें दक्षिणा देने के बाद शाम के समय स्वयं भोजन
ग्रहण करें। पूजन के समय यह मंत्र बोलें-
ऊं गं गणपतये नम:
दूर्वा दल चढ़ाने का मंत्र
गणेशजी को 21 दूर्वा दल चढ़ाई
जाती है। दूर्वा दल चढ़ाते समय नीचे
लिखे मंत्रों का जप करें-
ऊं गणाधिपतयै नम:
ऊं उमापुत्राय नम:
ऊं विघ्ननाशनाय नम:
ऊं विनायकाय नम:
ऊं ईशपुत्राय नम:
ऊं सर्वसिद्धप्रदाय नम:
ऊं एकदन्ताय नम:
ऊं इभवक्त्राय नम:
ऊं मूषकवाहनाय नम:
ऊं कुमारगुरवे नम:
इस तरह पूजन करने से भगवान श्रीगणेश
अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर
मुराद पूरी करते हैं।
श्रीगणेश स्थापना व पूजन के शुभ मुहूर्त
29 अगस्त को श्रीगणेश स्थापना व पूजन
का श्रेष्ठ मुहूर्त विजय है, जो दोपहर वृश्चिक लगन में
12:15 से 01:04 तक रहेगा। इसके अलावा अन्य मुहूर्त इस
प्रकार हैं- सुबह 10:30 से 12:00 तक राहु काल हैं ,
जो पूजा के लिए अच्छा नहीं हैं...............
सुबह 06:27 बजे से 08:00 बजे तक- चर
सुबह 08:00 बजे से 09:33 बजे तक- लाभ
सुबह 09:33 बजे से 11:06 बजे तक- अमृत
दोपहर 12:39 बजे से 02:13 बजे तक- शुभ
शाम 05:19 बजे से 06:52 बजे तक- चर

सपने में छिपा है एक खास संकेत

, हर सपने में छिपा है एक खास संकेत ::
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सपनों की अपनी एक अलग दुनिया है,
जिसे आज तक कोई समझ नहीं पाया है। एक शोध
के अनुसार दुनिया का हर व्यक्ति रात को सोते समय सपने जरूर
देखता है। इस दावे में कितनी सच्चाई है, इसके बारे
में तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन हिंदू मान्यता के
अनुसार हर सपने का एक विशेष फल अवश्य प्राप्त होता है।
मान्यता के अनुसार सपने हमें भविष्य में होने
वाली अच्छी-बुरी घटनाओं
के बारे में पहले से ही सूचित कर देते हैं, लेकिन
हम उन संकेतों को समझ नहीं पाते।
प्राचीन धर्म ग्रंथ जैसे वाल्मीकि रामायण,
अग्निपुराण व भविष्यपुराण में भी कहीं-
कहीं सपनों के माध्यम से भविष्य में होने
वाली घटनाओं के बारे में जानने का वर्णन मिलता है।
सपनों का संसार बहुत ही रोचक है। कुछ समय
पहले तक जहां यह विषय पुराण, इतिहास व ज्योतिष तक
ही सीमित था, वहीं आज
यह परामनोविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान आदि में
भी शोध का विषय बन चुका है। आज हम
आपको कुछ सामान्य सपनों तथा उनसे संबंधित संभावित संकेतों के
बारे में बता रहे हैं-
सपने फल
1- आंखों में काजल लगाना- शारीरिक कष्ट होना
2- स्वयं के कटे हाथ देखना- किसी निकट परिजन
की मृत्यु
3- सूखा हुआ बगीचा देखना-
कष्टों की प्राप्ति
4- मोटा बैल देखना- अनाज सस्ता होगा
5- पतला बैल देखना - अनाज महंगा होगा
6- भेडिय़ा देखना- दुश्मन से भय
7- राजनेता की मृत्यु देखना- देश में समस्या होना
8- पहाड़ हिलते हुए देखना-
किसी बीमारी का प्रकोप होना
9- पूरी खाना- प्रसन्नता का समाचार मिलना
10- तांबा देखना- गुप्त रहस्य पता लगना
11- पलंग पर सोना- गौरव की प्राप्ति
12- थूक देखना- परेशानी में पडऩा
13- हरा-भरा जंगल देखना- प्रसन्नता मिलेगी
14- स्वयं को उड़ते हुए देखना-
किसी मुसीबत से छुटकारा
15- छोटा जूता पहनना- किसी स्त्री से
झगड़ा
16- स्त्री से मैथुन करना- धन
की प्राप्ति
17- किसी से लड़ाई करना- प्रसन्नता प्राप्त होना
18- लड़ाई में मारे जाना- राज प्राप्ति के योग
19- चंद्रमा को टूटते हुए देखना- कोई समस्या आना
20- चंद्रग्रहण देखना- रोग होना
21- चींटी देखना-
किसी समस्या में पढऩा
22- चक्की देखना- शत्रुओं से हानि
23- दांत टूटते हुए देखना- समस्याओं में वृद्धि
24- खुला दरवाजा देखना- किसी व्यक्ति से
मित्रता होगी
25- बंद दरवाजा देखना- धन की हानि होना
26- खाई देखना- धन और प्रसिद्धि की प्राप्ति
27- धुआं देखना- व्यापार में हानि
28- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
29- सुराही देखना- बुरी संगति से हानि
30- चश्मा लगाना- ज्ञान बढऩा
31- दीपक जलाना- नए
अवसरों की प्राप्ति
32- आसमान में बिजली देखना- कार्य-व्यवसाय में
स्थिरता
33- मांस देखना- आकस्मिक धन लाभ
34- विदाई समारोह देखना- धन-संपदा में वृद्धि
35- टूटा हुआ छप्पर देखना- गड़े धन
की प्राप्ति के योग
36- पूजा-पाठ करते देखना- समस्याओं का अंत
37- शिशु को चलते देखना- रुके हुए धन की प्राप्ति
38- फल की गुठली देखना-
शीघ्र धन लाभ के योग
39- दस्ताने दिखाई देना- अचानक धन लाभ
40- शेरों का जोड़ा देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
41- मैना देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
42- सफेद कबूतर देखना- शत्रु से मित्रता होना
43- बिल्लियों को लड़ते देखना- मित्र से झगड़ा
44- सफेद बिल्ली देखना- धन
की हानि
45- मधुमक्खी देखना- मित्रों से प्रेम बढऩा
46- खच्चर दिखाई देना- धन संबंधी समस्या
47- रोता हुआ सियार देखना- दुर्घटना की आशंका
48- समाधि देखना- सौभाग्य की प्राप्ति
49- गोबर दिखाई देना- पशुओं के व्यापार में लाभ
50- चूड़ी दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
51- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति
52- सीना या आंख खुजाना- धन लाभ
53- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना
54- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना
55- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना
56- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना
57- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ
58- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति
59- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना
60- चील देखना- शत्रुओं से हानि
61- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना
62- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना
63- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना
64- चांदी देखना- धन लाभ होना
65- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा
66- कैंची देखना- घर में कलह होना
67- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति
68- लाठी देखना- यश बढऩा
69- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान
होना
70- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना
71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना
72- सोना मिलना- धन हानि होना
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना-
किसी परिजन की मृत्यु के योग
74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु
का समाचार मिलना
75- धुआं देखना- व्यापार में हानि
76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी
77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना- किसी रोग से मृत्यु
होना
80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु
होना
81- रुई देखना- निरोग होने के योग
82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन
83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा
84- उल्लू देखना- धन हानि होना
85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति
86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना
87- नदी का पानी पीना-
सरकार से लाभ
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति
89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना
90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु
और सुख में वृद्धि
91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना
92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना
93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
94- दीवार में कील ठोकना-
किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा
96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना
97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दु:ख मिलना
98- मृत व्यक्ति से बात करना-
मनचाही इच्छा पूरी होना
99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति
100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट
व्यक्ति से धोखा मिलना
101- अनार देखना- धन प्राप्ति के योग
102- गड़ा धन दिखाना- अचानक धन लाभ
103- सूखा अन्न खाना- परेशानी बढऩा
104- अर्थी देखना-
बीमारी से छुटकारा
105- झरना देखना- दु:खों का अंत होना
106- बिजली गिरना- संकट में फंसना
107- चादर देखना- बदनामी के योग
108- जलता हुआ दीया देखना- आयु में वृद्धि
109- धूप देखना- पदोन्नति और धनलाभ
110- रत्न देखना- व्यय एवं दु:ख
111- चेक लिखकर देना- विरासत में धन मिलना
112- कुएं में पानी देखना- धन लाभ
113- आकाश देखना - पुत्र प्राप्ति
114- अस्त्र-शस्त्र देखना- मुकद्में में हार
115- इंद्रधनुष देखना - उत्तम स्वास्थ्य
116- कब्रिस्तान देखना- समाज में प्रतिष्ठा
117- कमल का फूल देखना- रोग से छुटकारा
118- सुंदर स्त्री देखना- प्रेम में सफलता
119- चूड़ी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
120- कुआं देखना- सम्मान बढऩा
121- गुरु दिखाई देना - सफलता मिलना
122- गोबर देखना- पशुओं के व्यापार में लाभ
123- देवी के दर्शन करना- रोग से मुक्ति
124- चाबुक दिखाई देना- झगड़ा होना
125- चुनरी दिखाई देना- सौभाग्य
की प्राप्ति
126- छुरी दिखना- संकट से मुक्ति
127- बालक दिखाई देना- संतान की वृद्धि
128- बाढ़ देखना- व्यापार में हानि
129- जाल देखना- मुकद्में में हानि
130- जेब काटना- व्यापार में घाटा
131- चंदन देखना- शुभ समाचार मिलना
132- जटाधारी साधु देखना- अच्छे समय
की शुरुआत
133- स्वयं की मां को देखना- सम्मान
की प्राप्ति
134- फूलमाला दिखाई देना- निंदा होना
135- जुगनू देखना- बुरे समय की शुरुआत
136- टिड्डी दल देखना- व्यापार में हानि
137- डाकघर देखना - व्यापार में उन्नति
138- डॉक्टर को देखना- स्वास्थ्य संबंधी समस्या
139- ढोल दिखाई देना-
किसी दुर्घटना की आशंका
140- सांप दिखाई देना- धन लाभ
141- तपस्वी दिखाई देना- दान करना
142- तर्पण करते हुए देखना- परिवार में
किसी बुुजुर्ग की मृत्यु
143- डाकिया देखना - दूर के
रिश्तेदार से मिलना
144- तमाचा मारना- शत्रु पर विजय
145- उत्सव मनाते हुए देखना- शोक होना
146- दवात दिखाई देना- धन आगमन
147- नक्शा देखना- किसी योजना में सफलता
148- नमक देखना- स्वास्थ्य में लाभ
149- कोर्ट-कचहरी देखना- विवाद में पडऩा
150- पगडंडी देखना- समस्याओं का निराकरण
151- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति
152- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि
153- ताश देखना- समस्या में वृद्धि
154- तीर दिखाई देना- लक्ष्य की ओर
बढऩा
155- सूखी घास देखना- जीवन में
समस्या
156- भगवान शिव को देखना-
विपत्तियों का नाश
157- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय
की शुरुआत
158- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
159- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ
160- दूध देखना- आर्थिक उन्नति
161- मंदिर देखना- धार्मिक कार्य में सहयोग करना
162- नदी देखना- सौभाग्य वृद्धि
163- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग
164- नीलगाय देखना- भौतिक
सुखों की प्राप्ति
165- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति
166- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि
167- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ
मिलना
168- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल
169- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना
170- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि
171- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि
172- स्वयं की बहन देखना- परिजनों में प्रेम
बढऩा
173- भाई को देखना- नए मित्र बनना
174- भीख मांगना- धन हानि होना
175- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता
176- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति
177- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना
178- पैसा दिखाई देना- धन लाभ
179- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि
180- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढऩा
181- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना
182- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में
भारी संकट
183- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि
184- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा
185- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
186- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि
187- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना
188- छिपकली दिखाई देना- घर में
चोरी होना
189- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति
190- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
191- भोजन की थाली देखना-
धनहानि के योग
192- इलाइची देखना - मान-सम्मान
की प्राप्ति
193- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के
योग
194- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत
195- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय
196- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य
की प्राप्ति
197- कन्या को घर में आते देखना-
मां लक्ष्मी की कृपा मिलना
198- सफेद बिल्ली देखना- धन
की हानि
199- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के
योग
200- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ
201- अंगूठी पहनना- सुंदर
स्त्री प्राप्त करना
202- आकाश में उडऩा- लंबी यात्रा करना
203- आकाश से गिरना- संकट में फंसना
204- आम खाना- धन प्राप्त होना
205- अनार का रस पीना- प्रचुर धन प्राप्त होना
206- ऊँट को देखना- धन लाभ
207- ऊँट की सवारी- रोगग्रस्त होना
208- सूर्य देखना- खास व्यक्ति से मुलाकात
209- आकाश में बादल देखना-
जल्दी तरक्की होना
210- घोड़े पर चढऩा- व्यापार में उन्नति होना
211- घोड़े से गिरना- व्यापार में हानि होना
212- आंधी-तूफान देखना- यात्रा में कष्ट होना
213- दर्पण में चेहरा देखना-
किसी स्त्री से प्रेम बढऩा
214- ऊँचाई से गिरना- परेशानी आना
215- बगीचा देखना- खुश होना
216- बारिश होते देखना- घर में अनाज
की कमी
217- सिर के कटे बाल देखना- कर्ज से छुटकारा
218- बर्फ देखना-
मौसमी बीमारी होना
219- बांसुरी बजाना- परेशान होना
220- स्वयं को बीमार देखना- जीवन में
कष्ट
221- बाल बिखरे हुए देखना- धन की हानि
222- सुअर देखना- शत्रुता और स्वास्थ्य
संबंधी समस्या
223- बिस्तर देखना- धनलाभ और दीर्घायु होना
224- बुलबुल देखना- विद्वान व्यक्ति से मुलाकात
225- भैंस देखना- किसी मुसीबत में
फंसना
226- बादाम खाना- धन की प्राप्ति
227- अंडे खाना- पुत्र प्राप्ति
228- स्वयं के सफेद बाल देखना- आयु बढ़ेगी
229- बिच्छू देखना- प्रतिष्ठा प्राप्त होगी
230- पहाड़ पर चढऩा- उन्नति मिलेगी
231- फूल देखना- प्रेमी से मिलन
232- शरीर पर गंदगी लगाना- धन
प्राप्ति के योग
233- पिंजरा देखना- कैद होने के योग
234- पुल पर चलना- समाज हित में कार्य करना
235- प्यास लगना- लोभ बढऩा
236- पान खाना- सुंदर स्त्री की प्राप्ति
237- पानी में डूबना- अच्छा कार्य करना
238- तलवार देखना- शत्रु पर विजय
239- हरी सब्जी देखना- प्रसन्न
होना
240- तेल पीना- किसी भयंकर रोग
की आशंका
241- तिल खाना- दोष लगना
242- तोप देखना- शत्रु नष्ट होना
243- तीर चलाना- इच्छा पूर्ण होना
244- तीतर देखना- सम्मान में वृद्धि
245- स्वयं को हंसते हुए देखना- किसी से विवाद
होना
246- स्वयं को रोते हुए देखना- प्रसन्नता प्राप्त होना
247- तरबूज खाते हुए देखना- किसी से
दुश्मनी होगी
248- तालाब में नहाना- शत्रु से हानि
249- जहाज देखना- दूर
की यात्रा होगी
250- झंडा देखना- धर्म में आस्था बढ़ेगी
251- धनवान व्यक्ति देखना- धन प्राप्ति के योग

Thursday, August 28, 2014

ग्रह पीड़ा निवारक टोटके

ग्रह पीड़ा निवारक टोटके-
सूर्य
१॰ सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल
सूर्योदय के समय उठकर लाल पूष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल
से सींचना चाहिए।
२॰ रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे
दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
३॰ ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।
४॰ लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ
भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर
नहीं डालना चाहिए।
५॰ किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर
जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर
निकलना चाहिए।
६॰ हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर
बाँधना चाहिए।
७॰ लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार
का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी
तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ
होते हैं।
चन्द्रमा
१॰ व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए।
रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।
२॰ रात्रि में ऐसे स्थान पर सोना चाहिए जहाँ पर
चन्द्रमा की रोशनी आती हो।
३॰ ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह
नहीं होना चाहिए।
४॰ वर्षा का पानी काँच की बोतल में
भरकर घर में रखना चाहिए।
५॰ वर्ष में एक बार किसी पवित्र
नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए।
६॰ सोमवार के दिन मीठा दूध
नहीं पूना चाहिए।
७॰ सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर
उनकी देखभाल करनी चाहिए।
चन्द्रमा के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु
सोमवार का दिन, चन्द्रमा के नक्षत्र (रोहिणी,
हस्त तथा श्रवण) तथा चन्द्रमा की होरा में अधिक
शुभ होते हैं।
मंगल
१॰ लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में
रखनी चाहिए।
२॰ ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर
में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।
३॰ बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से
भी मंगल शुभ बनता है।
४॰ लाल वस्त्र लिकर उसमें दो मुठ्ठी मसूर
की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन
किसी भिखारी को दान
करनी चाहिए।
५॰ मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर
लिकर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।
६॰ बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
७॰ अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर
उनकी देखभाल करनी चाहिए।
मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु
मंगलवार का दिन, मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा)
तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
बुध
१॰ अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए
तथा निरन्तर उसकी देखभाल
करनी चाहिए। बुधवार के दिन
तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
२॰ बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान
करनी चाहिए।
३॰ हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय
को खिलाना चाहिए।
४॰ बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के
लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
५॰ घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं
ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
६॰ अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष
नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध
ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
७॰ तोता पालने से भी बुध ग्रह
की अनुकूलता बढ़ती है।
बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार
का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती)
तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
गुरु
१॰ ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य
पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए
तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद
लेना चाहिए।
२॰ सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर
पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए
या टीका लगाना चाहिए।
३॰ ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर
निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
४॰ किसी भी मन्दिर या इबादत घर के
सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
५॰ ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध
नहीं रखने चाहिए।
६॰ गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत
का दीपक जलाना चाहिए।
७॰ गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने
की दाल, गुड़ एवं
पीसी हल्दी डालकर गाय
को खिलानी चाहिए।
गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार
का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद)
तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
शुक्र
१॰
काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
२॰ शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
३॰ किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद
मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।
४॰ किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय १०
वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके
आशीर्वाद लेना चाहिए।
५॰ अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
६॰ किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर
मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।
७॰ शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।
शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु
शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-
फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र
की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
शनि
१॰ शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़
पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।
२॰ शनिवार के दिन लोहे, चमड़े,
लकड़ी की वस्तुएँ एवं
किसी भी प्रकार का तेल
नहीं खरीदना चाहिए।
३॰ शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ
नही कटवाने चाहिए।
४॰ भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
५॰ भिखारी को उड़द की दाल
की कचोरी खिलानी चाहिए।
६॰ किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने
हाथों से पोंछने चाहिए।
७॰ घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए।
शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार
का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद)
तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
राहु
१॰ ऐसे व्यक्ति को अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण
करना चाहिए।
२॰ हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।
३॰ अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद
चन्दन की माला भी धारण
की जा सकती है।
४॰ जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
५॰ दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई
महत्त्वपूर्ण कार्य नहीम करना चाहिए।
६॰ यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक
गया हो, तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
७॰ झुठी कसम
नही खानी चाहिए।
राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु
शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती,
शतभिषा) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
केतु
१॰ भिखारी को दो रंग का कम्बल दान देना चाहिए।
२॰ नारियल में मेवा भरकर भूमि में दबाना चाहिए।
३॰ बकरी को हरा चारा खिलाना चाहिए।
४॰ ऊँचाई से गिरते हुए जल में स्नान करना चाहिए।
५॰ घर में दो रंग का पत्थर लगवाना चाहिए।
६॰ चारपाई के नीचे कोई भारी पत्थर
रखना चाहिए।
७॰ किसी पवित्र नदी या सरोवर का जल
अपने घर में लाकर रखना चाहिए।
केतु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु
मंगलवार का दिन, केतु के नक्षत्र (अश्विनी,
मघा तथा मूल) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ
होते हैं।......................

किचन से जुड़ी वास्तु जानकारियां

किचन से जुड़ी वास्तु की कुछ अन्य
जानकारियां निम्नलिखित हैं,
जिनका किचन बनाते समय ध्यान रखना चाहिए। जिस घर में किचन
के अंदर ही स्टोर
हो तो गृहस्वामी को अपनी नौकरी या व्यापार
में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन
कठिनाइयों से बचाव के लिए किचन व स्टोर रूम अलग-अलग बनाने
चाहिए।
किचन व बाथरूम का एक सीध में साथ-साथ होना शुभ
नहीं होता है। ऐसे घर में रहने
वालांें को जीवन-यापन करने में
काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। स्वास्थ्य
भी ठीक नहीं रहता। ऐसे
घर की कन्याओं के जीवन में
अशांति रहती है।
किचन में पूजा स्थान बनाना भी शुभ
नहीं होता है। जिस घर में किचन के अंदर
ही पूजा का स्थान होता है उसमें रहने वाले गरम
दिमाग के होते हैं। परिवार के किसी सदस्य को रक्त
संबंधी शिकायत
भी हो सकती है।
घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने किचन
नहीं बनाना चाहिए। मुख्य द्वार के एकदम सामने
का किचन गृहस्वामी के भाई के लिए अशुभ
होता है। यदि किचन भूमिगत
पानी की टंकी या कुएं के
साथ लगा हो तो भाइयों में मतभेद रहते हैं। घर के
स्वामी को धन कमाने के लिए बहुत यात्राएं
करनी पड़ती हैं। घर
की बैठक में भोजन बनाना या बैठक खाने के
ठीक सामने किचन का होना अशुभ होता है। ऐसे में
रिश्तेदारों के मध्य शत्रुता रहती है एवं
बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाइयां आती हैं।
जिस घर में किचन मुख्य द्वार से जुड़ा हो वहां प्रारंभ में
पति पत्नी के मध्य बहुत प्रेम रहता है, घर
का वातावरण भी सैहार्दपूर्ण रहता है, किंतु कुछ
समय बाद बिना कारण आपस में मतभेद पैदा होने लगते हैं।
अनुभव में पाया गया है कि जिनके घरों में किचन में भोजन बनाने के
साधन जैसे, गैस, स्टोव, माइक्रोवेव ओवन इत्यादि एक से अधिक
होते हैं, उनमें आय के साधन भी एक से अधिक
होते हैं। ऐसे परिवार के सभी सदस्यों को कम से
कम एक समय का भोजन साथ मिलकर करना चाहिए। ऐसा करने से
आपसी संबंध मजबूत होते हैं तथा साथ मिलकर
रहने
की भावना भी बलवती होती है।

आपके हस्ताक्षर कुछ कहते हैं

आपके हस्ताक्षर कुछ कहते हैं
सिग्नेचर से जानिए अपना स्वभाव::
हमारे मन एवं मस्तिष्क में सोच, विचार, स्वभाव, व्यक्तित्व,
अंत:करण, मित्रता, शत्रुता, दुख, सुख, संयम, परिश्रम
की मिली-
जुली स्थितियां निर्मित होती हैं,
जिनकी अभिव्यक्ति हमारे बाह्य
शारीरिक अंगों से प्रदर्शित क्रिया से
पता चलती है। हस्ताक्षर
भी ‍‍मस्तिष्क के आदेश से
ही अंगुलियों द्वारा संपादित होता है। इस वजह से
इस माध्यम से व्यक्ति मनोवृत्ति का पता लगाया जा सकता है।
महर्षि पाराशर ने लघु ग्रंथ 'धीप्र' में अक्षरों के
स्वरूप से उनकी भाषा को स्पष्ट किया हैं। इसे सरल
शब्दों में कह सकते हैं कि आपके अक्षर आपके अपने बारे में
क्या कहते हैं, यह उन्होंने विस्तार से समझाया है। फ्रांस के
विद्वान मिंको ने भी इस विधा पर विशेष अध्ययन
किया है। आइए जाने व्यक्ति के हस्ताक्षर से उसके स्वभाव के
बारे में -
1. जिस व्यक्ति के सिग्नेचर में अक्षर नीचे से
ऊपर की ओर जाते हैं तो वह ईश्वर पर
आस्था रखने एवं आशावादी होता है।
2. ऊपर से नीचे की ओर सिग्नेचर
करने वाले नकारात्मक विचारों वाले एवं अव्यावहारिक होते हैं।
इनकी मित्रता कम लोगों से रहती है।
3. सरल रेखा में हस्ताक्षर करने वाले सरल स्वभाव और साफ
दिल के रहते हैं, लेकिन इनका स्वभाव तार्किक रहता है।
4. अंत में डॉट या डेश लगाने वाले व्यक्ति डरपोक, शंकालु
प्रवृत्ति के होते हैं।
5. पेन पर जोर देकर लिखने वाले भावुक, उत्तेजक,
हठी और स्पष्टवादी होते हैं।
6. बिना पेन उठाए एक ही बार में पूरा शब्द लिखने
वाले रहस्यवादी, गुप्त प्रवृत्ति एवं ‍वाद-विवादकर्ता
होते हैं।
7. अवरोधक चिह्न लगाने वाले व्यक्ति कुंठाग्रस्त, सामाजिकता व
नैतिकता की देते हैं एवं
आलसी प्रवृत्ति के होते हैं।
8. जल्दी से हस्ताक्षर करने वाले कार्य को गति से
हल करने व तीव्र तात्कालिक बुद्धि वाले होते हैं।
9. शिरो रेखा से हस्ताक्षर जागरूक, सजग एवं
बुद्धि का सही उपयोग करने वाले होते हैं।
10. स्पष्ट सिग्नेचर करने वाले खुले मन के, विचारवान
तथा पारदर्शी प्रवृत्ति कार्य करने वाले होते हैं।

इस मंत्र से दूर होगी मुश्किल

इस मंत्र के जप से दूर होगी हर मुश्किल
भगवान गणेश को विघ्नविनाशक कहा जाता है अर्थात इनका नाम
लेने से ही हर संकट दूर हो जाता है और
बड़ी से बड़ी मुश्किल आसान
हो जाती है। भगवान श्रीगणेश के
नीचे लिखे मंत्र का यदि विधि-विधान से जप किया जाए
तो हर समस्या कुछ ही क्षणों में दूर
हो सकती है। यह मंत्र इस प्रकार है-
मंत्र
गजाननं भूत गणादि सेवितं कपित्थ जम्बू फल चारूभक्षणं।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्रेश्वर पाद पंकजम।।
जप विधि
- इस मंत्र जप का प्रारंभ बुधवार से करें।
- बुधवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान
आदि करने के पश्चात साफ वस्त्र पहनकर भगवान
श्रीगणेश का पूजन करें और उन्हें दुर्वा चढ़ाएं।
- इसके बाद कुश के आसन पर बैठकर पन्ने
की या रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र
का जप करें।
- कुछ ही दिनों में आपकी हर
समस्या का निदान हो जाएगा।

गायत्री-मन्त्र से रोग-ग्रह-शान्ति

श्रीगायत्री-मन्त्र से रोग-ग्रह-शान्ति
१॰ क्रूर से क्रूर ग्रह-शान्ति में, शमी-वृक्ष
की लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े कर,
गूलर-पाकर-पीपर-बरगद की समिधा के
साथ ‘गायत्री-मन्त्र से १०८ आहुतियाँ देने से
शान्ति मिलती है।
२॰ महान प्राण-संकट में कण्ठ-भर या जाँघ-भर जल में खड़े
होकर नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र जपने से
प्राण-रक्षा होती है।
३॰ घर के आँगन में चतुस्र यन्त्र बनाकर १ हजार बार
गायत्री मन्त्र का जप कर यन्त्र के
बीचो-बीच भूमि में शूल गाड़ने से भूत-
पिशाच से रक्षा होती है।
४॰ शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे
गायत्री मन्त्र जपने से सभी प्रकार
की ग्रह-बाधा से रक्षा होती है।
५॰ ‘गुरुचि’ के छोटे-छोटे टुकड़े कर गो-दुग्ध में डुबोकर नित्य १०८
बार गायत्री मन्त्र पढ़कर हवन करने से ‘मृत्यु-
योग’ का निवारण होता है। यह मृत्युंजय-हवन’ है।
६॰ आम के पत्तों को गो-दुग्ध में डुबोकर ‘हवन’ करने से
सभी प्रकार के ज्वर में लाभ होता है।
७॰ मीठा वच, गो-दुग्ध में मिलाकर हवन करने से
‘राज-रोग’ नष्ट होता है।
८॰ शंख-पुष्पी के पुष्पों से हवन करने से कुष्ठ-
रोग का निवारण होता है।
९॰ गूलर की लकड़ी और फल से नित्य
१०८ बार हवन करने से ‘उन्माद-रोग’ का निवारण होता है।
१०॰ ईख के रस में मधु मिलाकर हवन करने से ‘मधुमेह-रोग’
में लाभ होता है।
११॰ गाय के दही, दूध व घी से हवन
करने से ‘बवासीर-रोग’ में लाभ होता है।
१२॰ बेंत की लकड़ी से हवन करने से
विद्युत्पात और राष्ट्र-विप्लव की बाधाएँ दुर
होती हैं।
१३॰ कुछ दिन नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र जपने
के बाद जिस तरफ मिट्टी का ढेला फेंका जाएगा, उस
तरफ से शत्रु, वायु, अग्नि-दोष दूर हो जाएगा।
१४॰ दुःखी होकर, आर्त्त भाव से मन्त्र जप कर
कुशा पर फूँक मार कर शरीर का स्पर्श करने से
सभी प्रकार के रोग, विष, भूत-भय नष्ट हो जाते
हैं।
१५॰ १०८ बार गायत्री मन्त्र का जप कर जल
का फूँक लगाने से भूतादि-दोष दूर होता है।
१६॰ गायत्री जपते हुए फूल का हवन करने से
सर्व-सुख-प्राप्ति होती है।
१७॰ लाल कमल या चमेली फुल एवं शालि चावल से
हवन करने से लक्ष्मी-प्राप्ति
होती है।
१८॰ बिल्व -पुष्प, फल, घी, खीर
की हवन-सामग्री बनाकर बेल के छोटे-
छोटे टुकड़े कर, बिल्व की लकड़ी से
हवन करने से भी लक्ष्मी-प्राप्ति
होती है।
१९॰ शमी की लकड़ी में गो-
घृत, जौ, गो-दुग्ध मिलाकर १०८ बार एक सप्ताह तक हवन
करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
२०॰ दूध-मधु-गाय के घी से ७ दिन तक १०८ बार
हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
२१॰ बरगद की समिधा में बरगद
की हरी टहनी पर गो-घृत,
गो-दुग्ध से बनी खीर रखकर ७ दिन
तक १०८ बार हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
२२॰ दिन-रात उपवास करते गुए गायत्री मन्त्र जप
से यम पाश से मुक्ति मिलती है।
२३॰ मदार की लकड़ी में मदार का कोमल
पत्र व गो-घृत मिलाकर हवन करने से विजय-
प्राप्ति होती है।
२४॰ अपामार्ग, गाय का घी मिलाकर हवन करने से
दमा रोग का निवारण होता है।
विशेषः- प्रयोग करने से पहले कुछ दिन नित्य १००८ या १०८ बार
गायत्री मन्त्र का जप व हवन करना चाहिए