Sunday, August 17, 2014

मंत्र सिद्घ होते ही प्रकट होने लगते हैं यह लक्षण

मंत्र सिद्घ होते ही प्रकट होने लगते हैं यह
लक्षण
:-
ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए
अथवा अपनी मनोकामना पूरी करने के
लिए मंत्र जप किया जाता है। मंत्र जप सफल हुआ
या नहीं इसके संकेत स्वयं ही मिलने
लगते हैं।
जब मंत्र, साधक के भ्रूमध्य या आज्ञा-चक्र में अग्नि-
अक्षरों में लिखा दिखाई दे, तो मंत्र-सिद्ध हुआ समझाना चाहिए ।
जप में चित्त
की एकाग्रता ही सफलता की गारंटी है।
मंत्र का सीधा सम्बन्ध ध्वनि से है। ध्वनि प्रकाश,
ताप, अणु-शक्ति, विधुत -शक्ति की भांति एक
प्रत्यक्ष शक्ति है।
मन्त्रों में नियत अक्षरों का एक खास क्रम, लय और
आवर्तिता से उपयोग होता है। इसमें प्रयुक्त शब्द का निश्चित
भार, रूप, आकार, शक्ति, गुण और रंग होता हैं। एक निश्चित
उर्जा, फ्रिक्वेन्सि और वेवलेंथ होती हैं।
इन बारीकियों का धयान रखा जाए
तो मंत्रों की मिट्टी से
बनायी गई आकृति से
भी उसी तरह
की ध्वनी आती है।
उदाहरण के लिए
गीली मिट्टी से ॐ
की पोली आकृति बनाई जाए और उसके
एक सिरे पर फूंक मारी जाए तो ॐ
की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है जैसे
पास ही कोई ओम मन्त्र का उच्चारण कर रहा हो।
जप के दौरान उत्पन्न होने वाली ध्वनि एक कम्पन
लाती है।
उस से सूक्ष्म ऊर्जा-गुच्छ पैदा होते है और वे
ही घनी भूत होकर मन्त्र को सफल
बनाते हैं।
सफलता की उस प्रक्रिया पर ज्यादा कुछ
कहना जल्दबाजी होग। सिर्फ उन
की सफलता के लक्षणों की बारे में
बताया जा सकता है। सफलता के जो लक्षण हैं उनमें कुछ इस
प्रकार है।
जब बिना जाप किये साधक को लगे की मंत्र-जाप
स्वतः चल रहा हैं तो मंत्र
की सिद्धि होनी अभिष्ट हैं।
साधक सदैव अपने इष्ट -देव की उपस्थिति अनुभव
करे और उनके दिव्य-गुणों से अपने को भरा समझे तो मंत्र-सिद्ध
हुआ जाने। शुद्धता, पवित्रता और चेतना का उर्ध्गमन
का अनुभव करे, तो मंत्र-सिद्ध हुआ जानें मंत्र सिद्धि के पश्चात
साधक की शुभ और सात्विक इच्छाए
पूरी होने लगती हैं |
प्रातःकाल बिना किसी से बोले निम्न मंत्र का मात्र
तीन बार जप कर लें तो जीवन में
आश्चर्य जनक परिवर्तन अपने आप दिखेगा।
इससे आपकी स्मरण शक्ति बढ़ने के साथ
ही सदैव तर्क में विजय होगी और
आपका एक-एक शब्द जबर्दस्त रूप से
प्रभावशाली होगा । शर्त यह है कि बिस्तर से
उठते ही मुख से सबसे पहले
इसी मंत्र का तीन बार उच्चारण
करना जरूरी है। अर्थात जगने के बाद यदि मुँह से
कोई शब्द निकलेगा तो यही मंत्र निकलेगा ।
ऊँ मा निषाद प्रतिष्ठा त्वमगम:शाश्वती समाः ।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काम मोहितम् ॥
इस मंत्र का प्रभाव सप्ताह भर में दिखना आरंभ हो जाता है।
इसके प्रभाव से व्यक्ति भाषण कला, कविता और साहित्य लेखन
तथा तर्क में प्रवीण हो जाता है।
पढ़ने वाले बच्चे इसका प्रयोग करें तो उनकी स्मरण
शक्ति में आश्चर्यजनक रूप से
बढ़ोतरी होती है।
इसके साथ ही विद्या-बुद्धि और स्मरण शक्ति के
लिए सरस्वती के बीज मंत्र ‘ऎं’ का जप
करें । जब भी आप फुरसत में हों, इस मंत्र का जप
करें। एक लाख से ज्यादा हो जाने पर इसका फायदा अपने आप
लगेगा। यह जरूरी नहीं कि एक स्थान
पर बैठकर ही इसका जप करें, आप जब
कभी फुर्सत में हों, इसका जाप करें।
आप जानते हैं,जप में माला का प्रयोग क्यों होता है ?
आपने देखा होगा कि बहुत से लोग ध्यान करने के लिए और
भगवान का नाम जपने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग
उंगलियों पर गिन कर भी ध्यान जप करते हैं। लेकिन
शास्त्रों में माला पर जप करना अधिक शुद्घ और
पुण्यदायी कहा गया है।
इसके पीछे धार्मिक मान्याताओं के अलावा वैज्ञानिक
कारण भी है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो अंगिरा ऋषि के
कथन पर ध्यान देना होगा ।
अंगिरा ऋषि के अनुसार...
"असंख्या तु यज्ज्प्तं, तत्सर्वं निष्फलं भवेत ।"
अर्थात - बिना माला के संख्याहीन जप का कोई फल
नहीं मिलता है ।
इसका कारण यह है कि, जप से पहले जप
की संख्या का संकल्प लेना आवश्यक होता है।
संकल्प संख्या में कम ज्यादा होने पर जप निष्फल माना जाता है।
इसलिए त्रुटि रहित जप के लिए माला का प्रयोग उत्तम
माना गया है ।
जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह माना जाता है कि अंगूठे और
उंगली पर माला का दबाव पड़ने से एक विद्युत तरंग
उत्पन्न होती है। यह धमनी के रास्ते
हृदय चक्र को प्रभावित करता है जिससे मन एकाग्र और शुद्घ
होता है। तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।
मध्यमा उंगली का हृदय से सीधा संबंध
होता है। हृदय में आत्मा का वास है इसलिए
मध्यमा उंगली और उंगूठे से जप किया जाता है !

No comments:

Post a Comment