Thursday, August 14, 2014

तृतीय भाव

तृतीय भाव
///जीवन की उन्नति में यदि //
तीसरे भाव का सहयोग नहीं है तो//
कुछ भी सम्भव नहीं है.
//क्यूंकि जातक कर्म करके ही,//उन्नति करेगा.//
//हाँ वो बात अलग है,//जातक के भाग्य में
जैसी //उन्नति व भाग्य है,//
//वही उन्नति एवम //भाग्य वैसे
ही कर्म कराएगा.///
//जैसे कि उदाहरणहैं,,///
//लग्न माने ///जातक,///चन्द्र माने सोच व मन,////दशम भाव
जिसे जातक का लक्ष्य कहते हैं./////
//अब अगर तृतीय भाव घुमा कर देखा जाए तो//
तृतीय से नवम उसका साझेदार है और एकादश भाग्य
तथा लग्न लाभ है.
//यानि कि कर्म का लाभ-हानि जातक स्वयं पायेगा.//
छठा उसका सुख है,जिससे हम लोग डरते है.//आठवाँ से
तृतीय डरता है क्यूंकि //उसका ये शत्रु है.///
//तृतीय भाव भी अष्टम से अष्टम
होकर मृत्यु को दर्शाता है.///इसीलिए
दुर्घटना,लड़ाई-झगड़े ,चोरी-हत्या,आत्महत्या,कर्म
से ही होते हैं.
//चतुर्थ //से १२ वें मन का तथा घर
की हानि भी है///.इसीसे
जातक परदेश की सोचता है.///इसीसे
दाम्पत्य जीवन का दुःख-सुख जाना //
जा सकता है.///क्यूंकि यह सातवें का भाग्य है.///इसका छठे
से सीधा सम्बन्ध बनता है.///और छठा विवाद
है.///अगर सप्तमेश छठे हो //तो दाम्पत्य जीवन
विवादित व भ्रमित हो जाता है.////
//दशम/// से ६-८ का संयोग बनता है.///इसलिए जातक दशम
से हमेशा सावधान व चौकन्ना रहता है.///

No comments:

Post a Comment