केले का पौधा :
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हम आपको ऐसे वृक्ष व पौधों से परिचित करा रहे हैं, जिन्हें
भारतीय संस्कृति में पूज्य माना गया है। यह पौधा है
केले का। सनातन धर्म में केले का पौधा पूजनीय
माना गया है। केले के फल, तना और पत्तों को हमारे पूजा विधान
में अनेक तरह से उपयोग किया जाता है। यह शुभ और
पवित्रता का प्रतीक है। केले के वृक्ष में देवगुरु
बृहस्पति का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार सात गुरुवार
नियमित रूप से केले की पूजा करने से सब मनोकामनाएं
पूरी हो जाती हैं। कन्याओं
को अच्छा वर प्राप्त होता है।
केले के वृक्ष और पत्तों का महत्व :
कदली व्रत में इस पेड़
की पूजा होती है तो कथा-पूजन में केले
के पत्ते सजाए जाते हैं। ऋषि पंचमी के दिन केले के
पत्ते पर चंदन से सप्त ऋषियों के प्रतीक-चिह्नï
बनाकर
उनकी पूजा की जाती है।
श्री सत्यनारायण की कथा में
भी केले के पत्तों का मंडप बनाया जाता है। दक्षिण
भारत में केले के पत्ते पर भोजन परोसा जाता है।
पलाशपद्मनीचूतकदलीहेमराजते।
मधुपत्रेषु भोक्तव्यं ग्रासमेकं तु गोफलम्॥
अर्थात- पलाश (ढाक), पद्मिनी (कमल), आम और
केले से बनी पत्तल, सोने और चांदी के
बर्तनों में तथा महुए के पत्ते पर भोजन करना लाभप्रद है।
पूजन में केले का भोग :
पुरी में भगवान जगन्नाथ एवं भगवान
श्रीकृष्ण को केले के फूल से बनी शाक
का भोग लगाया जाता है। चैतन्य महाप्रभु
को भी यह भोग अत्यंत प्रिय था। केले
की पवित्रता का अनुमान इस बात से
भी लगाया जा सकता है कि पुराने समय में इसके तने
से निकाले गए पानी से ही उपवास के
लिए पापड़ आदि पदार्थ बनाए जाते थे।
ऐसे करें केले का पूजन :
- प्रात: मौन पालन कर स्नान करें और केले के वृक्ष को प्रणाम
कर जल चढ़ाएं।
- हल्दी की गांठ, चने
की दाल और गुड़ केल को समर्पित करें।
- कुंकू, अक्षत, पुष्प आदि मंगल द्रव्य चढ़ाएं और
परिक्रमा करें।
- घर के आंगन के वृक्ष को छोड़ दूरस्थ पेड़
की ही पूजा करना चाहिए।
केले के औषधीय उपयोग :
केले के वृक्ष का औषधीय महत्व
भी है। इसके पत्ते और तने विभिन्न
बीमारियों के उपचार में सहायक होते हैं। इससे
अच्छा आहार और फलाहार कोई नहीं। इसके फल
में लोहा, पोटेशियम, मैग्नेशियम सहित अन्य पोषक तत्व होते
हैं। आहार विशेषज्ञों मानते हैं कि पोषण
की दृष्टि से केवल यह फल पूर्ण आहार है। दूध
के साथ केला खाने वाला व्यक्ति जीवनभर स्वस्थ
रहता है।
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हम आपको ऐसे वृक्ष व पौधों से परिचित करा रहे हैं, जिन्हें
भारतीय संस्कृति में पूज्य माना गया है। यह पौधा है
केले का। सनातन धर्म में केले का पौधा पूजनीय
माना गया है। केले के फल, तना और पत्तों को हमारे पूजा विधान
में अनेक तरह से उपयोग किया जाता है। यह शुभ और
पवित्रता का प्रतीक है। केले के वृक्ष में देवगुरु
बृहस्पति का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार सात गुरुवार
नियमित रूप से केले की पूजा करने से सब मनोकामनाएं
पूरी हो जाती हैं। कन्याओं
को अच्छा वर प्राप्त होता है।
केले के वृक्ष और पत्तों का महत्व :
कदली व्रत में इस पेड़
की पूजा होती है तो कथा-पूजन में केले
के पत्ते सजाए जाते हैं। ऋषि पंचमी के दिन केले के
पत्ते पर चंदन से सप्त ऋषियों के प्रतीक-चिह्नï
बनाकर
उनकी पूजा की जाती है।
श्री सत्यनारायण की कथा में
भी केले के पत्तों का मंडप बनाया जाता है। दक्षिण
भारत में केले के पत्ते पर भोजन परोसा जाता है।
पलाशपद्मनीचूतकदलीहेमराजते।
मधुपत्रेषु भोक्तव्यं ग्रासमेकं तु गोफलम्॥
अर्थात- पलाश (ढाक), पद्मिनी (कमल), आम और
केले से बनी पत्तल, सोने और चांदी के
बर्तनों में तथा महुए के पत्ते पर भोजन करना लाभप्रद है।
पूजन में केले का भोग :
पुरी में भगवान जगन्नाथ एवं भगवान
श्रीकृष्ण को केले के फूल से बनी शाक
का भोग लगाया जाता है। चैतन्य महाप्रभु
को भी यह भोग अत्यंत प्रिय था। केले
की पवित्रता का अनुमान इस बात से
भी लगाया जा सकता है कि पुराने समय में इसके तने
से निकाले गए पानी से ही उपवास के
लिए पापड़ आदि पदार्थ बनाए जाते थे।
ऐसे करें केले का पूजन :
- प्रात: मौन पालन कर स्नान करें और केले के वृक्ष को प्रणाम
कर जल चढ़ाएं।
- हल्दी की गांठ, चने
की दाल और गुड़ केल को समर्पित करें।
- कुंकू, अक्षत, पुष्प आदि मंगल द्रव्य चढ़ाएं और
परिक्रमा करें।
- घर के आंगन के वृक्ष को छोड़ दूरस्थ पेड़
की ही पूजा करना चाहिए।
केले के औषधीय उपयोग :
केले के वृक्ष का औषधीय महत्व
भी है। इसके पत्ते और तने विभिन्न
बीमारियों के उपचार में सहायक होते हैं। इससे
अच्छा आहार और फलाहार कोई नहीं। इसके फल
में लोहा, पोटेशियम, मैग्नेशियम सहित अन्य पोषक तत्व होते
हैं। आहार विशेषज्ञों मानते हैं कि पोषण
की दृष्टि से केवल यह फल पूर्ण आहार है। दूध
के साथ केला खाने वाला व्यक्ति जीवनभर स्वस्थ
रहता है।
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