सोमवार को पड़ने
वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते
हैं। ये वर्ष में लगभग एक ही बार
पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष
महत्व होता है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के
दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है।
इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है।
शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत
की भी संज्ञा दी गयी है।
अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष। इस दिन विवाहित
स्त्रियों द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध,
जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के
चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान
होता है। धान, पान और
खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान
पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढ़ाया जाता है। इस दिन
पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व
समझा जाता है। कहा जाता है कि महाभारत में
भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते
हुए कहा था कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने
वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से
मुक्त होगा। ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से
पितरों कि आत्माओं को शांति मिलती है।
वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते
हैं। ये वर्ष में लगभग एक ही बार
पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष
महत्व होता है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के
दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है।
इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है।
शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत
की भी संज्ञा दी गयी है।
अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष। इस दिन विवाहित
स्त्रियों द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध,
जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के
चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान
होता है। धान, पान और
खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान
पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढ़ाया जाता है। इस दिन
पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व
समझा जाता है। कहा जाता है कि महाभारत में
भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते
हुए कहा था कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने
वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से
मुक्त होगा। ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से
पितरों कि आत्माओं को शांति मिलती है।
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