Saturday, August 23, 2014

प्रेम विवाह कब होता है

आज के आधुनिक एवं भौतिक युग में
स्त्री और पुरुष का मिलन बार-बार होता है
जिस कारण प्रेम-विवाह होना आम बात
हो गई है। आज इस बात की चर्चा करेंगे
कि कहीं आप प्रेम-विवाह
तो नहीं करेंगे। इस
तथ्य का ज्ञान आप अपनी कुण्डली से
जान
सकते हैं।
प्रेम विवाह कब होता है?
ज्योतिष के अनुसार कुण्डली का सातवां भाव
पत्नी या पति का है। शुक्र ग्रह यौन
क्रिया का स्वामी है, मंगल उत्साह व
उत्तेजना का, गुरु योजना बनाने वाला है और
चन्द्रमा मन, भावना व
इच्छा शक्ति का स्वामी है। इन
चारों का प्रभाव सामाजिक स्तर पर प्रणय
योग का उद्भव करता है। यदि इन चारों पर
पापग्रहों की दृष्टि या युति न
हो तो स्वजाति, धर्म, सम्प्रदाय में प्रेम
विवाह होता है।
लेकिन लग्न-लग्नेश, धन व धनेश, पंचम व
पंचमेश, नवम व नवमेश, लाभ भाव व लाभेश,
अष्टमेश से युति सम्बन्ध या शनि, राहु, केतु
व बली चन्द्रमा व गुरु से सम्बन्ध हो तो प्रेम
विवाह अवश्य होता है।
प्रेम विवाह के अनुभूत योग
यहां प्रेम विवाह कराने वाले अनुभूत
योगों की चर्चा करते हैं। इन योगों में से एक
या एक से अधिक योग हो तो जातक
या जातिका प्रेम विवाह करते हैं। अनुभूत
प्रेम विवाह योग इस प्रकार हैं-
1. सप्तमेश शनि से युत या दृष्ट हो या शुक्र
नवम भाव में हो तो जातक के प्रेम विवाह होने
की सम्भावना रहती है।
2. राहु सप्तमेश एवं शुक्र से
युति या दृष्टि सम्बन्ध बनाए तो प्रेम विवाह
होता है।
3. सप्तमेश एकादश भाव में और एकादशेश
सप्तम भाव में स्थित हो तो भी प्रेम विवाह
होता है।
4. मंगल सप्तमेश व लग्नेश के साथ युति करे
तो भी प्रेम विवाह
की सम्भावना बनती है।
5. लग्नेश सप्तम भाव में स्थित हो और उस
पर चन्द्र की दृष्टि पड़े तो प्रेम विवाह
होता है।
6. मंगल-शनि की युति भी प्रेम विवाह
के लिए
प्रेरित करती है। यदि मंगल लग्नेश होकर
तीसरे भाव में हो और शनि से दृष्ट
हो तो अन्तर्जातीय विवाह होने
की सम्भावना बनती है। यदि इस
स्थिति में
उच्च के गुरु की दृष्टि पड़े तो प्रेम होने पर
भी प्रेम विवाह नहीं हो पाता है।
7. लग्न में चन्द्र-शुक्र की युति हो और
शुक्र का शनि या राहु से
युति या दृष्टि सम्बन्ध बने एवं दूसरा भाव
पापग्रह पीड़ित हो तो जातक जातीय
परम्पराओं को त्याग कर प्रेम विवाह
करता है।
8. कर्क लग्न में सातवें चन्द्र हो और शनि से
दृष्ट हो तो जातक अन्तर्जातीय विवाह
करता है जोकि सफल नहीं होता है।
9. कर्क लग्न में शनि हो व लग्नेश निर्बल
होकर बारहवें हो, एकादशेश चौथे भाव में
नवमेश के साथ युति करे, द्वितीयेश,
द्वादशेश व तृतीयेश के साथ पंचम भाव में
युति करे तो जातक-
जातिका जाति का भेदभाव न करके कुल
परम्परा त्याग कर विवाह करती है। यह योग
सोनिया गांधी की कुण्डली में
विद्यमान है।

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