Sunday, August 17, 2014

पूजा में चावल क्यों चढ़ाते हैं

पूजा में चावल क्यों चढ़ाते हैं? :
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चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्षत
का अर्थ होता है जो टूटा न हो। इसका रंग सफेद होता है।
पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है।
किसी भी पूजन के समय गुलाल,
हल्दी, अबीर और कुंकुम अर्पित करने
के बाद अक्षत चढ़ाए जाते हैं। अक्षत न हो तो पूजा पूर्ण
नहीं मानी जाती।
शास्त्रों के अनुसार पूजन कर्म में चावल
का काफी महत्व रहता है। देवी-
देवता को तो इसे समर्पित किया जाता है साथ
ही किसी व्यक्ति को जब तिलक
लगाया जाता है तब भी अक्षत का उपयोग
किया जाता है। भोजन में भी चावल का उपयोग
किया जाता है।
कुंकुम, गुलाल, अबीर और
हल्दी की तरह चावल में कोई विशिष्टï
सुगंध नहीं होती और न
ही इसका विशेष रंग होता है। अत: मन में यह
जिज्ञासा उठती है कि पूजन में अक्षत का उपयोग
क्यों किया जाता है? दरअसल अक्षत
पूर्णता का प्रतीक है। अर्थात यह टूटा हुआ
नहीं होता है। अत: पूजा में अक्षत चढ़ाने
का अभिप्राय यह है कि हमारा पूजन अक्षत
की तरह पूर्ण हो।
अन्न में श्रेष्ठ होने के कारण भगवान को चढ़ाते समय यह भाव
रहता है कि जो कुछ भी अन्न हमें प्राप्त
होता है वह भगवान की कृपा से
ही मिलता है। अत: हमारे अंदर यह
भावना भी बनी रहे। इसका सफेद रंग
शांति का प्रतीक है। अत: हमारे प्रत्येक कार्य
की पूर्णता ऐसी हो कि उसका फल हमें
शांति प्रदान करे। इसीलिए पूजन में अक्षत एक
अनिवार्य सामग्री है ताकि ये भाव हमारे अंदर
हमेशा बने रहें।
भगवान को चावल चढ़ाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि चावल
टूटे हुए न हों। अक्षत पूर्णता का प्रतीक है
अत: सभी चावल अखंडित होने चाहिए। चावल साफ
एवं स्वच्छ होने चाहिए। शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से
शिवजी अतिप्रसन्न होते हैं और भक्तों अखंडित
चावल की तरह अखंडित धन, मान-सम्मान प्रदान
करते हैं। श्रद्धालुओं को जीवनभर धन-धान्य
की कमी नहीं होती हैं।
पूजन के समय अक्षत इस मंत्र के साथ भगवान को समर्पित
किए जाते हैं-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठकुङ्कमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥
इस मंत्र का अर्थ है कि हे पूजा! कुंकुम के रंग से सुशोभित
यह अक्षत आपको समर्पित कर रहा हूं, कृपया आप इसे
स्वीकार करें। इसका यही भाव है
कि अन्न में अक्षत यानि चावल को श्रेष्ठ माना जाता है। इसे
देवान्न भी कहा गया है। अर्थात देवताओं का प्रिय
अन्न है चावल। अत: इसे सुगंधित द्रव्य कुंकुम के साथ
आपको अर्पित कर रहे हैं। इसे ग्रहण कर आप भक्त
की भावना को स्वीकार करें।

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