Friday, August 15, 2014

जीवन में तृतीय भाव की अहमियत

जीवन में तृतीय भाव
की अहमियत
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इस भाव के बिना व्यक्ति अपाहिज व निकम्मा होता है.यह भाव
एक सीढ़ी है जिससे जातक अपने
लक्ष्य को पाता है.यह जातक का पराक्रम है तो जातक
इसका लाभ है.जातक का भाग्य तृतीय
की पत्नी है.पराक्रम का पराक्रम पंचम
जो कि तृतीय का पराक्रम है और जातक का प्रारब्ध
है जिसे परिश्रम से तृतीय निकालता है फिर अपने
भाग्य से ( एकादश जोकि जातक का लाभ है.).. लेकर जातक
को देता है.अंतरजातीय विवाह में
इसीकी अहम
भूमिका होती है वर्ना विवाह
नहीं हो सकता है.यही आत्महत्या भी है
कारण है तो किसी की हत्या में
भी यही हिम्मत देता है.यह
पिता की मृत्यु है तो स्वयं की मृत्यु
को भी दर्शाता है.माता की आँख है
तो बड़े भाई
की ऋण,शत्रु,बीमारी
है.तो बच्चों का लाभ है तो बड़े भाई के पुत्र हैं.छोटा भाई है
दाहिना हाथ भी यही है
इसीसे जातक लेखक बनता है.पत्नी व
भागीदारी का भाग्य है.मान-सम्मान
का शत्रु है. व्यय का सुख है.शत्रुओं से बचाव व
तरीका बताता है.छोटी छोटी यात्राएं
व एक स्थान से दुसरे स्थान में
भटकाता है.नौकरी का विधाता है.

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