**** ज्योतिष शास्त्र में पति ओर पत्नि का महत्व****
विवाह मानव जीवन कि एक प्रमुख घटना है ।
विवाह के बाद एक पुरूष ओर
स्त्री को आजीवन एक साथ
रहना होता है । शास्त्रों में पत्नि को ""
अर्द्धान्गिनी"" कहा गया है । पति का दुःख ओर
सुख पत्नि का भी दुख, सुख होता है ।
दोनों का भाग्य एक दूसरे से जुड जाता है । कई बार देखने में
आया है कि पति कि कुण्डली में राजयोग
नहीं हो ओर पत्नि कि कुण्डली में
राजयोग हो तो पत्नि के राजयोग का सुख पति को मिलता है,
क्यों कि पत्नि "" अर्द्धान्गिनी है ।
पति कि कुण्डली में राजयोग हो ओर
पत्नि कि कुण्डली में ना हो तथा दरिद्रता के योग बने
हुये हो तो पति कि कुण्डली का राजयोग
अपना प्रभाव नहीं दिखाता है । तथा विवाह के बाद
व्यक्ति कि अवनति होने लगति लगति है । क्यों कि पत्नि ""
अर्द्धांगिनी"" है । पति ओर पत्नि में प्रमुख स्थान
पति का है । पत्नि के लिये पति ही परमेश्वर है,
लेकिन पति के लिये
पत्नि परमेश्वरी नहीं है।
पत्नि को गृहलक्ष्मी इसलिये
ही कहा गया है । क्यों कि विवाह के बाद
पत्नि का 100% भाग्य पति से ही जुड जाता है ।
ज्योतिष शास्त्र में अनेक स्थान पर "" स्त्री सुख ""
के योग बताये गये है । लेकिन "" पुरूष सुख"" इस नाम का योग
कहीं नहीं है ।
स्त्री का जब पुरूष के जीवन में प्रवेश
होता है तब पुरूष के जीवन में आश्चर्यजनक
परिवर्तन होते है , यह स्त्री दोस्त, प्रेमिका, ओर
पत्नि इन तीन रूपों में पुरूष के भाग्य को प्रभावित
करती है । लेकिन पुरूष का भाग्य पत्नि के भाग्य
को प्रभावित नहीं करता है ।
क्यों कि पति को पत्नि कि प्राप्ति भाग्य से
ही होती है । पत्नि पति को दान में
मिलती है । शास्त्रों में
पत्नि को गृहलक्ष्मी तो कहा है लेकिन पुरूष
को नारायण नहीं कहा है ।
(वेसे तो यह सारा संसार ही नारायण स्वरूप है,
लेकिन यहाँ बात केवल पति ओर पत्नि कि है)
उपरोक्त बातों का संक्षिप्त में सार यही है
कि पत्नि का भाग्य पति को प्रभावित करता है लेकिन पति का भाग्य
पत्नि को प्रभावित नहीं करता है । कन्या के भाग्य
में अगर राजयोग है ओर उसका विवाह किसी दरिद्र
से भी कर दिया जाये तो वह दरिद्र 100% पत्नि के
राजयोग का सुख भोगेगा, क्यों कि वह पति के लिये
लक्ष्मी बनकर आई है । अगर
पत्नि कि कुण्डली में दुख लिखा है तो वह राजा के
घर में जाकर भी सुख नहीं भोग
पायेगी । मेने बहुत बार देखा है:--
1. कन्या कि सगाई लडके से होते ही लडके
का एक्सीडेन्ट देखा है ।
2. विवाह के 1-2 दिन बाद ही पति कि मृत्यु
देखी है ।
3. कन्या कि सगाई लडके से होते ही लडके
को राजकिय नौकरी मिलते देखा है ।
4. विवाह के पति के पतन ओर उन्नति दोनों को देखा है ।
या तो पति कि लाइफ बन जाती है या खराब
होजाती है ।
अगर दोनों कि कुण्डली में साधारण
ही योग हो तो दोनों साधारण स्तर
का जीवन व्यतीत करते है ।
पत्नि अगर धन कमाने में सक्षम मिलति है
तो पत्नि का कमाया हुआ सारा धन पति के ही काम
आता है । अगर पत्नि एकाधिकार जमाये तो रिश्ता खराब
हो जायेगा । पति का स्वयं के धन से केवल
पत्नि कि जरूरतों को पूरा करता है । पति के बिना पत्नि का कोइ
अस्तित्व नहीं है लेकिन पत्नि के बिना पति पर कोइ
विशेष फर्क नहीं पडता है ।
क्यों कि प्राचीन समाज में
विधवा स्त्री को हेय कि दृष्टि से देखा जाता था लेकिन
विधुर पुरूष को दूसरा विवाह करने का अधिकार था । पत्नि के लिये
पति ही परमेश्वर है ओर जहाँ जहाँ पत्नि ने
परमेश्वरी बनने का प्रयत्न अर्थात स्वयं को पति से
श्रेष्ठ साबित करने का प्रयत्न किया है उस स्थान कि सुख
शान्ति चैन छिनकर उस कुल का विनाश हुआ है ओर जब जब
पति ने निर्दोष पत्नि पर अत्याचार किया है तब तब
पति कि दुर्गति होकर वह निर्धनता को प्राप्त हुआ है,
तथा मृत्यु के बाद एसा पति घोर नरकों कि यातनाओं को भोगता है ।
नोट:-- यहाँ जो भी लिखा गया है यह सब शास्त्रिय
ओर प्राचीन समाज का दृष्टिकोण है ।
जो काफी हद तक
सही भी है
क्यों कि कलयुगी मानव कि बुद्धि हमारे उन
ऋषि मुनियों कि बराबरी 100 जन्मों में
भी नहीं कर सकती है
जिन्होने इन शास्त्र ओर समाज के नियम बनाये थे ।
आज बहुत कुछ बदलरहा है । सभी अपने
आपको आधुनिक कहकर ओर सुनकर गर्व महसुस करते है ।
अगर आपको इस लेख से असहमति है तो शान्ति से
असहमति व्यक्त कर दे । अश्लील ओर कटु
शब्दों का प्रयोग करके आपके कुल के संस्कारों का परिचय
नहीं दे ।
विवाह मानव जीवन कि एक प्रमुख घटना है ।
विवाह के बाद एक पुरूष ओर
स्त्री को आजीवन एक साथ
रहना होता है । शास्त्रों में पत्नि को ""
अर्द्धान्गिनी"" कहा गया है । पति का दुःख ओर
सुख पत्नि का भी दुख, सुख होता है ।
दोनों का भाग्य एक दूसरे से जुड जाता है । कई बार देखने में
आया है कि पति कि कुण्डली में राजयोग
नहीं हो ओर पत्नि कि कुण्डली में
राजयोग हो तो पत्नि के राजयोग का सुख पति को मिलता है,
क्यों कि पत्नि "" अर्द्धान्गिनी है ।
पति कि कुण्डली में राजयोग हो ओर
पत्नि कि कुण्डली में ना हो तथा दरिद्रता के योग बने
हुये हो तो पति कि कुण्डली का राजयोग
अपना प्रभाव नहीं दिखाता है । तथा विवाह के बाद
व्यक्ति कि अवनति होने लगति लगति है । क्यों कि पत्नि ""
अर्द्धांगिनी"" है । पति ओर पत्नि में प्रमुख स्थान
पति का है । पत्नि के लिये पति ही परमेश्वर है,
लेकिन पति के लिये
पत्नि परमेश्वरी नहीं है।
पत्नि को गृहलक्ष्मी इसलिये
ही कहा गया है । क्यों कि विवाह के बाद
पत्नि का 100% भाग्य पति से ही जुड जाता है ।
ज्योतिष शास्त्र में अनेक स्थान पर "" स्त्री सुख ""
के योग बताये गये है । लेकिन "" पुरूष सुख"" इस नाम का योग
कहीं नहीं है ।
स्त्री का जब पुरूष के जीवन में प्रवेश
होता है तब पुरूष के जीवन में आश्चर्यजनक
परिवर्तन होते है , यह स्त्री दोस्त, प्रेमिका, ओर
पत्नि इन तीन रूपों में पुरूष के भाग्य को प्रभावित
करती है । लेकिन पुरूष का भाग्य पत्नि के भाग्य
को प्रभावित नहीं करता है ।
क्यों कि पति को पत्नि कि प्राप्ति भाग्य से
ही होती है । पत्नि पति को दान में
मिलती है । शास्त्रों में
पत्नि को गृहलक्ष्मी तो कहा है लेकिन पुरूष
को नारायण नहीं कहा है ।
(वेसे तो यह सारा संसार ही नारायण स्वरूप है,
लेकिन यहाँ बात केवल पति ओर पत्नि कि है)
उपरोक्त बातों का संक्षिप्त में सार यही है
कि पत्नि का भाग्य पति को प्रभावित करता है लेकिन पति का भाग्य
पत्नि को प्रभावित नहीं करता है । कन्या के भाग्य
में अगर राजयोग है ओर उसका विवाह किसी दरिद्र
से भी कर दिया जाये तो वह दरिद्र 100% पत्नि के
राजयोग का सुख भोगेगा, क्यों कि वह पति के लिये
लक्ष्मी बनकर आई है । अगर
पत्नि कि कुण्डली में दुख लिखा है तो वह राजा के
घर में जाकर भी सुख नहीं भोग
पायेगी । मेने बहुत बार देखा है:--
1. कन्या कि सगाई लडके से होते ही लडके
का एक्सीडेन्ट देखा है ।
2. विवाह के 1-2 दिन बाद ही पति कि मृत्यु
देखी है ।
3. कन्या कि सगाई लडके से होते ही लडके
को राजकिय नौकरी मिलते देखा है ।
4. विवाह के पति के पतन ओर उन्नति दोनों को देखा है ।
या तो पति कि लाइफ बन जाती है या खराब
होजाती है ।
अगर दोनों कि कुण्डली में साधारण
ही योग हो तो दोनों साधारण स्तर
का जीवन व्यतीत करते है ।
पत्नि अगर धन कमाने में सक्षम मिलति है
तो पत्नि का कमाया हुआ सारा धन पति के ही काम
आता है । अगर पत्नि एकाधिकार जमाये तो रिश्ता खराब
हो जायेगा । पति का स्वयं के धन से केवल
पत्नि कि जरूरतों को पूरा करता है । पति के बिना पत्नि का कोइ
अस्तित्व नहीं है लेकिन पत्नि के बिना पति पर कोइ
विशेष फर्क नहीं पडता है ।
क्यों कि प्राचीन समाज में
विधवा स्त्री को हेय कि दृष्टि से देखा जाता था लेकिन
विधुर पुरूष को दूसरा विवाह करने का अधिकार था । पत्नि के लिये
पति ही परमेश्वर है ओर जहाँ जहाँ पत्नि ने
परमेश्वरी बनने का प्रयत्न अर्थात स्वयं को पति से
श्रेष्ठ साबित करने का प्रयत्न किया है उस स्थान कि सुख
शान्ति चैन छिनकर उस कुल का विनाश हुआ है ओर जब जब
पति ने निर्दोष पत्नि पर अत्याचार किया है तब तब
पति कि दुर्गति होकर वह निर्धनता को प्राप्त हुआ है,
तथा मृत्यु के बाद एसा पति घोर नरकों कि यातनाओं को भोगता है ।
नोट:-- यहाँ जो भी लिखा गया है यह सब शास्त्रिय
ओर प्राचीन समाज का दृष्टिकोण है ।
जो काफी हद तक
सही भी है
क्यों कि कलयुगी मानव कि बुद्धि हमारे उन
ऋषि मुनियों कि बराबरी 100 जन्मों में
भी नहीं कर सकती है
जिन्होने इन शास्त्र ओर समाज के नियम बनाये थे ।
आज बहुत कुछ बदलरहा है । सभी अपने
आपको आधुनिक कहकर ओर सुनकर गर्व महसुस करते है ।
अगर आपको इस लेख से असहमति है तो शान्ति से
असहमति व्यक्त कर दे । अश्लील ओर कटु
शब्दों का प्रयोग करके आपके कुल के संस्कारों का परिचय
नहीं दे ।
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