Sunday, August 10, 2014

मंगल का महत्त्व

 मंगल का महत्त्व
भारतीय वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह को मुख्य तौर
पर ताकत और मर्दानगी का कारक माना जाता है।
मंगल प्रत्येक व्यक्ति में शारीरिक ताकत तथा मानसिक
शक्ति एवम मजबूती का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मानसिक शक्ति का अभिप्राय यहां पर निर्णय लेने
की क्षमता और उस निर्णय पर टिके रहने
की क्षमता से है। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले
जातक आम तौर पर तथ्यों के आधार पर उचित निर्णय लेने में
तथा उस निर्णय को व्यवहारिक रूप देने में
भली प्रकार से सक्षम होते हैं। ऐसे जातक
सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के
आगे घुटने नहीं टेकते तथा इनके उपर दबाव डालकर
अपनी बात मनवा लेना बहुत कठिन होता है और
इन्हें दबाव की अपेक्षा तर्क देकर
समझा लेना ही उचित होता है।
मंगल आम तौर पर ऐसे क्षेत्रों का ही प्रतिनिधित्व
करते हैं जिनमें साहस, शारीरिक बल, मानसिक
क्षमता आदि की आवश्यकता पड़ती है
जैसे कि पुलिस की नौकरी,
सेना की नौकरी, अर्ध-सैनिक
बलों की नौकरी, अग्नि-शमन सेवाएं,
खेलों में शारीरिक बल
तथा क्षमता की परख करने वाले खेल जैसे
कि कुश्ती, दंगल, टैनिस, फुटबाल,
मुक्केबाजी तथा ऐसे ही अन्य कई खेल
जो बहुत सी शारीरिक
उर्जा तथा क्षमता की मांग करते हैं। इसके अतिरिक्त
मंगल ऐसे क्षेत्रों तथा व्यक्तियों के भी कारक होते
हैं जिनमें हथियारों अथवा औजारों का प्रयोग होता है जैसे
हथियारों के बल पर प्रभाव जमाने वाले गिरोह, शल्य
चिकित्सा करने वाले चिकित्सक तथा दंत चिकित्सक जो चिकित्सा के
लिए धातु से बने औजारों का प्रयोग करते हैं,
मशीनों को ठीक करने वाले मैकेनिक
जो औजारों का प्रयोग करते हैं तथा ऐसे ही अन्य
क्षेत्र एवम इनमे काम करने वाले लोग। इसके अतिरिक्त मंगल
भाइयों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से छोटे
भाइयों के। मंगल पुरूषों की कुंडली में
दोस्तों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से उन
दोस्तों के जो जातक के बहुत अच्छे मित्र हों तथा जिन्हें
भाइयों के समान ही समझा जा सके।
मंगल एक शुष्क तथा आग्नेय ग्रह हैं तथा मानव के
शरीर में मंगल अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं
तथा इसके अतिरिक्त मंगल मनुष्य के शरीर में कुछ
सीमा तक जल तत्व का प्रतिनिधित्व
भी करते हैं क्योंकि मंगल रक्त के सीधे
कारक माने जाते हैं। ज्योतिष की गणनाओं के लिए
मंगल को पुरूष ग्रह माना जाता है। मंगल मकर राशि में स्थित
होने पर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा मकर
में स्थित मंगल को उच्च का मंगल भी कहा जाता है।
मकर के अतिरिक्त मंगल को मेष तथा वृश्चिक राशियों में स्थित होने
से भी अतिरिक्त बल मिलता है जोकि मंगल
की अपनी राशियां हैं।
मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक शारीरिक रूप से
बलवान तथा साहसी होते हैं। ऐसे जातक स्वभाव
से जुझारू होते हैं तथा विपरीत से
विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत से
काम लेते हैं तथा सफलता प्राप्त करने के लिए बार-बार प्रयत्न
करते रहते हैं और अपने रास्ते में आने
वाली बाधाओं तथा मुश्किलों के कारण
आसानी से विचलित नहीं होते। मंगल
का कुंडली में विशेष प्रबल प्रभाव
कुंडली धारक को तर्क के आधार पर बहस करने
की विशेष क्षमता प्रदान करता है जिसके कारण
जातक एक अच्छा वकील अथवा बहुत
अच्छा वक्ता भी बन सकता है। मंगल के प्रभाव में
वक्ता बनने वाले लोगों के वक्तव्य आम तौर पर
क्रांतिकारी ही होते हैं तथा ऐसे लोग
अपने वक्तव्यों के माध्यम से ही जन-समुदाय
तथा समाज को एक नई दिशा देने में सक्षम होते हैं। युद्ध-काल
के समय अपनी वीरता के बल पर
समस्त जगत को प्रभावित करने वाले जातक मुख्य तौर पर मंगल
के प्रबल प्रभाव में ही पाए जाते हैं।
कर्क राशि में स्थित होने पर मंगल बलहीन
हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त मंगल कुंडली में
अपनी स्थिति विशेष के कारण
अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण
भी कमजोर हो सकते हैं। कुंडली में
मंगल
की बलहीनता कुंडली धारक
की शारीरिक तथा मानसिक उर्जा पर
विपरीत प्रभाव डाल सकती है
तथा इसके अतिरिक्त जातक रक्त-विकार संबधित बिमारियों, तव्चा के
रोगों, चोटों तथा अन्य ऐसे बिमारीयों से
पीडित हो सकता है जिसके कारण जातक के
शरीर की चीर-फाड़
हो सकती है तथा अत्याधिक मात्रा में रक्त
भी बह सकता है। मंगल पर
किन्हीं विशेष ग्रहों के बुरे प्रभाव के कारण जातक
किसी दुर्घटना अथवा लड़ाई में अपने
शरीर का कोई अंग भी गंवा सकता है।
इसके अतिरिक्त कुंडली में मंगल
की बलहीनता जातक को सिरदर्द,
थकान, चिड़चिड़ापन, तथा निर्णय लेने में
अक्षमता जैसी समस्याओं से
भी पीडि़त कर सकती है।

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