Wednesday, October 15, 2014

रात्री काल मे विवाह

हमारे अधिकतर विवाहो के सम्बन्ध विच्छेदो का कारण हे हमारे
रात्री काल मे विवाह के करने का प्रचलन होना हे।
जबकि सनातन काल मे भी ओर हमारे भगवानो के विवाह
जेसे-शिव सती व शिव पार्वती का विवाह दिन
मे हुये थे तथा सारे शुभ ध्रर्म कार्य दिन मे ही करने
ओर कराने के विधान हे। रात्रिकाल मे निशाचरो का पहर माना गया हे
ओर इस निशाचर काल मे किया गया विवाह ओर विवाह यग्य कर्मो मे
जपे गये मन्त्रो से देवताओ का भोग निशाचरो को प्राप्त होता हे ओर
निशाचरो का आवाहन होने से निशाचरो दुवारा विवाह के फ़ेरो मे वर वधु
के साथ बन्ध जाने ओर उनके साथ साथ रहने
का निशाचरी सम्बंध का प्रबल योग बन जाता हे ओर
यही निशाचरी ग्रहण योग हमारे
विवाहो की असफ़लताओ भरा जीवन व
निशाचरी प्रभाव लिये
हमारी सन्तानो का ना होना या हो कर मर
जाना या सन्तानो की शिक्छा मे
उनकी नोकरी रोजगार मे विघ्न
होना या ज्योतिष के कालसर्प पित्र दोष आदि अनेक दोषो से हमारा व
हमारी सन्तानो का दुखद भविष्य
की प्राप्ति होती हे। हम
प्राचीन सनातनी होकर
भी अपने सारे धर्म सिद्दान्त भूल गये हे ओर कलियुग
के निशाचरी प्रभाव वश हो कर वेभव
की चकाचोध मे अपना सूर्य देव का सात्विक आशिर्वाद
लेने कि जगहा रात्रि का निशाचरी शाप ले कर अशुभ दुखद
जीवन क्यो जीना चाह रहे हे। अन्य
मुसलिम ईसाई सिख्ख आदि धर्मो मे आज भी अधिकतर
विवाह दिन मे ही होते हे। ये नही कि वे
सब सुखी हे परन्तु विवाह मे दुख का कारण ये तो हे
ही साथ मे सही रुप से विवाह
मन्त्रो का सही उच्चारण का न होना व सनातन विवाह
प्रणाली मे अधकचरापन को अपना भी हे।
ओर भी अनेक कारण हे परन्तु दिन मे विवाह
का ना होना ही सबसे बडा दोष हे आओ पहले दिन के
विवाह का प्रचलन करे जो आज इस विचार को पड कर
बेकूफ़ी भरा कह कर हसेगे पर अगर आप सनातन
विवाह सिद्दान्त प्रणाली मे आस्था रखते हे तो अवश्य
विचार कर अपनायेगे।

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