Friday, October 3, 2014

दशहरा : दुर्गा प्रतिमा विसर्जन मुहूर्त ::

दशहरा : दुर्गा प्रतिमा विसर्जन व शस्त्र पूजन
की विधि, शुभ मुहूर्त ::
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धर्म ग्रंथों के अनुसार आश्विन मास
की दशमी तिथि के दिन
विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार
इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का अंत
किया था। बुराई पर अच्छाई की जीत
की खुशी में ये पर्व पूरे देश में बड़े
ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस बार ये पर्व
3 अक्टूबर, शुक्रवार को है। दशमी तिथि के दिन
दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। साथ
ही इस दिन भगवान श्रीराम
की पूजा तथा शस्त्र पूजन करने
की भी परंपरा है। जानिए
दुर्गा प्रतिमा विसर्जन की पूरी विधि-
---विसर्जन के पूर्व दुर्गा प्रतिमा का गंध, चावल, फूल, आदि से
पूजा करें तथा इस मंत्र से
देवी की आराधना करें-
"रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।
महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।"
इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद हाथ में चावल व फूल लेकर
देवी भगवती का इस मंत्र के साथ
विसर्जन करना चाहिए-
"गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि।
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।"
इस प्रकार विधिवत पूजन करने के बाद दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन
कर देना चाहिए, लेकिन
जवारों को फेंकना नही चाहिए। उसको परिवार में
बांटकर सेवन करना चाहिए। इससे नौ दिनों तक जवारों में व्याप्त
शक्ति हमारे भीतर प्रवेश करती है।
माता की प्रतिमा, जिस पात्र में जवारे बोए गए हो उसे
तथा इन नौ दिनों में उपयोग की गई पूजन
सामग्री का श्रृद्धापूजन विसर्जन कर दें।
******विजयादशमी पर इस विधि से करें शस्त्र
पूजन********
- षोडष मातृका में छठे क्रम
की जो देवी है, उनका नाम विजया है।
जगजननी माता भवानी का की दो सखियों के
नाम भी जया-विजया है। इनमें से
ही एक के नाम पर विजयादशमी का पर्व
मनाया जाता है। यह पर्व शस्त्र द्वारा देश
की सीमाओं की रक्षा करने
वाले एवं कानून की रक्षा करने वाले अथवा शस्त्र
का किसी अन्य कार्य में उपयोग करने वाले लोगों लिए
अति महत्वपूर्ण होता है।
- इस दिन यह सभी अपने शस्त्रों का पूजन करते
है, क्योंकि यह शस्त्र
ही प्राणों की रक्षा करते हैं तथा भरण
पोषण का कारण भी हैं।
इन्ही अस्त्रों में विजया देवी का वास मान
कर इनका पूजन किया जाता है। सबसे पहले शस्त्रों के ऊपर
ऊपर जल छिड़क कर पवित्र किया जाता है फिर
महाकाली स्तोत्र का पाठ कर शस्त्रों पर कुंकुम,
हल्दी का तिलक लगाकर हार पुष्पों से श्रृंगार कर
धूप-दीप कर मीठा भोग लगाया जाता है।
- इसके बाद दल का नेता कुछ देर के लिए शस्त्रों का प्रयोग
करता है। इस प्रकार से पूजन कर शाम को रावण के पुतले
का दहन कर विजया दशमी का पर्व मनाया जाता है।
--इस विधि से करें भगवान श्रीराम का पूजन ---
दशहरे के दिन सुबह जल्दी नित्य कर्मों से निवृत्त
होकर अपने घर के उत्तर भाग में एक सुंदर मंडप बनाएं। उसके
बीच में एक वेदी बनाएं। इसके
बीच में भगवान श्रीराम व
माता सीता की प्रतिमा को स्थापित करें।
श्रीराम व
माता सीता की पंचोपचार(गंध, चावल, फूल,
धूप, दीप) से पूजन करें।
इसके बाद इस मंत्र बोलें-
मंगलार्थ महीपाल नीराजनमिदं हरे।
संगृहाण जगन्नाथ रामचंद्र नमोस्तु ते।।
ऊँ परिकरसहिताय श्रीसीतारामचंद्राय
कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि।
इसके बाद किसी पात्र(बर्तन) में कपूर
तथा घी की बत्ती(एक
या पांच अथवा ग्यारह) जलाकर भगवान
श्रीसीताराम
की आरती उतारें व गाएं-
आरती कीजै श्रीरघुबर
की, सत चित आनंद शिव सुंदर की।।
दशरथ-तनय कौसिला-नंदन, सुर-मुनि-रक्षक दैत्य निकंदन,
अनुगत-भक्त भक्त-उर-चंदन, मर्यादा-पुरुषोत्तम
वरकी।।
निर्गुन सगुन, अरूप, रूपनिधि, सकल लोक-वंदित विभिन्न विधि,
हरण शोक-भय, दायक सब सिधि, मायारहित दिव्य नर-
वरकी।।
जानकिपति सुराधिपति जगपति, अखिल लोक पालक त्रिलोक-गति,
विश्ववंद्य अनवद्य अमित-मति, एकमात्र गति सचारचर
की।।
शरणागत-वत्सलव्रतधारी, भक्त कल्पतरु-वर
असुरारी,
नाम लेत जग पवनकारी, वानर-
सखा दीन-दुख-हरकी।।
आरती के बाद हाथ में फूल लेकर यह मंत्र बोलें-
नमो देवाधिदेवाय रघुनाथाय शार्गिणे।
चिन्मयानन्तरूपाय सीताया: पतये नम:।।
ऊँ परिकरसहिताय श्रीसीतारामचंद्राय
पुष्पांजलि समर्पयामि।
इसके बाद फूल भगवान को चढ़ा दें और यह श्लोक बोलते हुए
प्रदक्षिणा करें-
यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यादिकानि च।
तानि तानि प्रणशयन्ति प्रदक्षिण पदे पदे।।
इसके बाद भगवान श्रीराम को प्रणाम करें और
कल्याण की प्रार्थना करें। इस प्रकार भगवान
श्रीराम का पूजन करने से
सभी मनोकामनाएं
पूरी हो जाती हैं।

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