शंकराचार्य विचारित - लक्ष्योत्तमा साधना…………
आदिगुरू शंकराचार्य के सम्बन्ध में हजारों कथाएं हैं उनमें से कुछ कथाएं उनके शिष्यों, भक्तों के अनुभव के आधार पर रचित की गई। इन सब कथाओं के सार में एक बात पूर्ण रूप से स्पष्ट होती है कि शंकराचार्य ने अपनी जीवन यात्रा में योगियों, यतियों और सन्यासियों से ज्ञान ग्रहण किया। ओंकारेश्वर में अपने गुरु गोविन्द्पादाचार्यसे दीक्षा प्राप्त कर उनके आर्शीवाद से आगे की यात्रा को निकल पड़े। धन के नाम भिक्षा का खाली झोला सा लेकिन दिमाग साधनाओं, मंत्र-तंत्र से भरपूर।
जब शंकराचार्य ने देखा, कि समाज कि व्यवस्था में असंतुलन आ जाने के कारण उच्चकोटि की आध्यात्मिक विभूतियाँ भी भीक्षा मांग कर जीवन मांग कर जीवन यापन करने पर विश्वास करने लगी है एवं साधनों का महत्त्व न्यूनतर होता जा रहा है, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि कर्मक्षेत्र एवं साधनापक्ष को छोड़कर भिक्षावृत्ति में विश्वास करने लगे हैं, तब शंकराचार्य को इन सभी परिस्थितियों से बहुत ग्लानी हुई। वे चाहते, कि भारतवर्ष का कोई भी व्यक्ति भूखा, गरीब लाचार, बीमार तथा ज्ञान के अभाव में न जिये; जिये तो पौरूषता का जीवन जिये, श्रेष्ठता का जीवन जिये।
... और तब उन्होनें अथक परिश्रम एवं खोजबीन के पश्चात अत्यन्त दुर्लभ अवं गोपनीय प्रयोगों का अन्वेषण किया। इन प्रयोगों को स्वयं सिद्ध कर दिखा दिया, कि एक सन्यासी भी सभी दृष्टियों से पूर्णता युक्त जीवन जी सकता है, एक गरीब से गरीब व्यक्ति भी साधना के माध्यम से आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त कर सकता है ... और यह सिद्ध किया एक ब्राह्मणी के घर में इस प्रयोग के माध्यम से धन वर्षा करवा कर ... जिससे उस समय के लोग तो आचम्भित हुए बिना नहीं रह सके।
शंकराचार्य कृत विविध प्रयोगों में एक प्रयोग 'लक्ष्योत्तमा प्रयोग' भी है, जो धन वर्षा कराने में सक्षम है। यह अपने आपमें अद्वितीय प्रयोग है। यह साधना अत्यन्त सरल, सटीक तथा शीघ्र प्रभाव देने वाली कही गई है। यदि यह प्रयोग पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा, विश्वास एवं पूर्ण प्रामाणिक सामग्री तथा विधि-विधान के साथ किया जाय, तो अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है।
साधना विधान ………………………..
इस साधना में आवश्यक है सामग्री है –
'लक्ष्म्योत्तमा यंत्र' तथा कमलगट्टे की माला ।
यह रात्रिकालीन साधना है और २१ दिनों तक नियमित रूप से की जाती है। साधना काल में एक समय सात्विक भोजन करें व् ब्रह्मचर्य का पालन करें।
इस साधना को आप पूर्णिमा से या किसी भी रविवार से प्रारम्भ कर सकते हें।
साधक सफेद रंग की धोती पहने तथा स्नान आदि कर रात्री के १० बजे के बाद साधना प्रारम्भ करें।
लकडी के बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछा लें उस पर एक ताम्र पात्र में केसर से 'श्री' बीज अंकित कर, उस पर यंत्र स्थापित कर यंत्र का पूजन करें।
बाजोट पर दाहिनी ओर चावलों की ढेरी बनाकर कमलगट्टे की माला को स्थापित कर पुष्प, कुंकुम तथा अक्षत से संक्षिप्त पूजन करें।
घी का दीपक तथा धुप लगाकर उनका अक्षत तथा कुंकुम से पूजन करें।
देवी का ध्यान करें -
अरुणकमलसंस्था तद्रजः पुंजवर्णा,
करकमल ध्रुतेष्टामितिमाम्बुजाता ।
मणिमुकुट विचित्रालंकृता कल्पजालै;
सकल भुवंमाता सततं श्रीः श्रीयै नमः ॥
कमलगट्टे की माला से नित्य २१ माला निम्न मंत्र का जप करें -
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै श्रीं श्रीं ॐ नमः
साधना समाप्त होने पर अगले दिन यंत्र माला को बाजोट पर बिछे लाल रंग के कपड़े में बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें।
आदिगुरू शंकराचार्य के सम्बन्ध में हजारों कथाएं हैं उनमें से कुछ कथाएं उनके शिष्यों, भक्तों के अनुभव के आधार पर रचित की गई। इन सब कथाओं के सार में एक बात पूर्ण रूप से स्पष्ट होती है कि शंकराचार्य ने अपनी जीवन यात्रा में योगियों, यतियों और सन्यासियों से ज्ञान ग्रहण किया। ओंकारेश्वर में अपने गुरु गोविन्द्पादाचार्यसे दीक्षा प्राप्त कर उनके आर्शीवाद से आगे की यात्रा को निकल पड़े। धन के नाम भिक्षा का खाली झोला सा लेकिन दिमाग साधनाओं, मंत्र-तंत्र से भरपूर।
जब शंकराचार्य ने देखा, कि समाज कि व्यवस्था में असंतुलन आ जाने के कारण उच्चकोटि की आध्यात्मिक विभूतियाँ भी भीक्षा मांग कर जीवन मांग कर जीवन यापन करने पर विश्वास करने लगी है एवं साधनों का महत्त्व न्यूनतर होता जा रहा है, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि कर्मक्षेत्र एवं साधनापक्ष को छोड़कर भिक्षावृत्ति में विश्वास करने लगे हैं, तब शंकराचार्य को इन सभी परिस्थितियों से बहुत ग्लानी हुई। वे चाहते, कि भारतवर्ष का कोई भी व्यक्ति भूखा, गरीब लाचार, बीमार तथा ज्ञान के अभाव में न जिये; जिये तो पौरूषता का जीवन जिये, श्रेष्ठता का जीवन जिये।
... और तब उन्होनें अथक परिश्रम एवं खोजबीन के पश्चात अत्यन्त दुर्लभ अवं गोपनीय प्रयोगों का अन्वेषण किया। इन प्रयोगों को स्वयं सिद्ध कर दिखा दिया, कि एक सन्यासी भी सभी दृष्टियों से पूर्णता युक्त जीवन जी सकता है, एक गरीब से गरीब व्यक्ति भी साधना के माध्यम से आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त कर सकता है ... और यह सिद्ध किया एक ब्राह्मणी के घर में इस प्रयोग के माध्यम से धन वर्षा करवा कर ... जिससे उस समय के लोग तो आचम्भित हुए बिना नहीं रह सके।
शंकराचार्य कृत विविध प्रयोगों में एक प्रयोग 'लक्ष्योत्तमा प्रयोग' भी है, जो धन वर्षा कराने में सक्षम है। यह अपने आपमें अद्वितीय प्रयोग है। यह साधना अत्यन्त सरल, सटीक तथा शीघ्र प्रभाव देने वाली कही गई है। यदि यह प्रयोग पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा, विश्वास एवं पूर्ण प्रामाणिक सामग्री तथा विधि-विधान के साथ किया जाय, तो अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है।
साधना विधान ………………………..
इस साधना में आवश्यक है सामग्री है –
'लक्ष्म्योत्तमा यंत्र' तथा कमलगट्टे की माला ।
यह रात्रिकालीन साधना है और २१ दिनों तक नियमित रूप से की जाती है। साधना काल में एक समय सात्विक भोजन करें व् ब्रह्मचर्य का पालन करें।
इस साधना को आप पूर्णिमा से या किसी भी रविवार से प्रारम्भ कर सकते हें।
साधक सफेद रंग की धोती पहने तथा स्नान आदि कर रात्री के १० बजे के बाद साधना प्रारम्भ करें।
लकडी के बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछा लें उस पर एक ताम्र पात्र में केसर से 'श्री' बीज अंकित कर, उस पर यंत्र स्थापित कर यंत्र का पूजन करें।
बाजोट पर दाहिनी ओर चावलों की ढेरी बनाकर कमलगट्टे की माला को स्थापित कर पुष्प, कुंकुम तथा अक्षत से संक्षिप्त पूजन करें।
घी का दीपक तथा धुप लगाकर उनका अक्षत तथा कुंकुम से पूजन करें।
देवी का ध्यान करें -
अरुणकमलसंस्था तद्रजः पुंजवर्णा,
करकमल ध्रुतेष्टामितिमाम्बुजाता ।
मणिमुकुट विचित्रालंकृता कल्पजालै;
सकल भुवंमाता सततं श्रीः श्रीयै नमः ॥
कमलगट्टे की माला से नित्य २१ माला निम्न मंत्र का जप करें -
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै श्रीं श्रीं ॐ नमः
साधना समाप्त होने पर अगले दिन यंत्र माला को बाजोट पर बिछे लाल रंग के कपड़े में बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें।
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