Wednesday, October 15, 2014

"मांगलिक"

मंगल को "अमंगल" करने की "योजना" यह आधुनिक
ज्योतिष का "प्राण" हैं शायद ! जन्म पत्रिका के प्रथम,चतुर्थ,सप
्तम,अष्टम एवं द्वादश भाव में मंगल संस्थित होने पर जातक
को मांगलिक
की संज्ञा दी जाती हैं !
दक्षिण भारत में द्वितीय स्थान के मंगल
को भी वैवाहिक दृष्टिकोण से अमंगल माना जाता हैं !
सवाल इस बात का हैं की क्या मंगल को स्थूल रूप से
इन नियत भावों में देखकर ही इसे
दोषी माना जाएँ ? मंगल उत्तेजना एवं पराक्रम का कारक
हैं तथा अग्नि संज्ञक हैं जिसकी वजह से विवाह
जैसे कोमल रिश्तें को इसके "तेज़ की ज्वाला" भस्म
ना कर दे इसका डर सबको सताता हैं जिसकी वजह से
इसे "अमंगल" मान लिया जाता हैं लेकिन हकीकत में
मंगल अपने नाम अनुरूप "मंगलकारक" ही हैं ! अब
कैसे तो यह जान ले ! उन भावों में मंगल के होने पर जिनका उल्लेख
ऊपर किया गया हैं पर मंगल होने पर "मांगलिक" कहलाने
की "शर्तों" की पूर्ति के लिए निम्न बातें
देखना आवश्यक हैं :
१) क्या मंगल नीच राशि मतलब कर्क में संस्थित हैं ?
२)क्या मंगल वक्री या अस्त हैं पत्रिका में ?
३)क्या चंद्र-मंगल का अंशात्मक सामिप्य हैं १२
डिग्री में ?
४)मंगल नीचाभिलाषी मिथुन
राशि या कन्या राशि में हैं ?
५)प्रथम भाव में मेष राशि का,चतुर्थ में वृश्चिक राशि का, सप्तम में
उच्च राशि मकर का, अष्टम भाव में सिंह राशि का तथा द्वादश भाव में
उच्चाभिलाषी धनु राशि का हैं ?
यदि उपर्युक्त बिंदुओं का मंगल पत्रिका में उन भावों में हो जिसे
मांगलिक कहा जाता हैं तब वह "निर्बली तथा सौम्य"
हो जाता हैं सो किसी "दोष" से मुक्त भी !
अतः किसी प्रकार के भ्रम को ना पालते हुए ऐसे
किसी शांति विधान को करने
की आवश्यकता नहीं हैं मांगलिक होने के
डर से जो आपको बताया जा रहा हो ! साथ ही साथ
मंगल का उदयकाल आयु का २८ वां वर्ष हैं जिसके बाद उसके
नकारात्मक प्रभाव यदि दिखलाई पड़े हो इस उम्र तक तब वह
कमजोर पड़ जाते हैं तब किसी भी भात
पूजा की जरुरत नहीं हैं ! मंगल
की शुभता के लिए
अपनी कुलदेवी की आराधना सदैव
शुभ फलदायी ही हैं ! वैसे
भी मंगल का संबंध रक्त से हैं सो हमारे कुल
की देवी इसके अशुभ प्रभावों का शमन करने
में सर्वथा समर्थ ही हैं बस शर्त यह हैं
की हम उनसे बेटा/
बेटी की तरह ही याचना करे

विवाहो मे अधिकतर लड्कियो के ही क्यो नाम बदल कर
विवाह किये जाते हे जिसके फ़लस्वरुप आगे चल कर उनके
ग्रहस्थ जीवन मे दो राशियो का प्रभाव होने से अनेक
विफ़लताओ का सामना करना पडता हे जेसेकि-त या र से नाम हे ओर
नाम बद्ला प या स से तो वर्तमान के ज्योतिष गणित से दोनो पे
शनि की साति चल रही हे।ओर ग्रह के
साथ साथ नाम राशि के परिवर्तन से उसकी शिछा व
नोकरी पर पड रहे अच्छे प्रभाव हट कर बुरा प्रभाव
आने लगेगा।एसे अनेक कारण अन्य नाम बद्लने के कारण बुरे प्रभाव
आते हे क्योकि अगर आपको अपने जीवन मे अपने
नाम से बुरा प्रभाव दिखाई पड रहा हे तो शिछा काल मे
ही अपना नाम बद्लना चाहिये था अचानक विवाह समय
नाम बद्लने से लड्की के भावी ग्रहस्थ
जीवन मे क्या बुरा प्रभाव आयेगा ये केसे पता चलेगा?ओर
जब पता चलेगा तब कुछ नही हो सकता हे।ये
बडा गम्भीर विषय हे हर माता पिता को व
लडकी को यहा ध्यान देना आवश्यक हे।ओर
दुसरा विषय ये हे कि--अगर
लडकी मगली हे तो केवल
लड्की को ही क्यो पीपल
या घट या देव विग्रह से विवाह किया जाता हे?केवल इसलिये
कि पुरुष कि दीर्घायु होने से पति के अच्छे स्वभाव से
उसके ग्रहस्थ मे शान्ति बनी रहेगी?
क्या करने से पति का पूर्वत बदल सकता हे?जो अब तक
ना बदला हे।ओर मगली दोष के निवारण हेतु
जो पीपल रुपी पति या घट या देव विग्रह से
विवाह किया जाता हे तो उस लड्की का प्रथम विवाह
इन कथित पतियो से हो जाने के कारण उन पतियो का प्रत्छ्य प्रभाव
क्या अच्छा बुरा पडेगा कोन पन्डित बतायेगा?ओर इन कथित पतियो से
विवाह उपरान्त तलाक तो हुआ
ही नही हे
तो लड्की क्या दो दो पतियो के साथ का केसा प्रभाव ले कर
विरोधाभासी जीवन
जीयेगी इसे कोन पन्डित बतायेगा?ओर देव
विग्रह जो हे वो शिव या विष्णु होते हे जो हम मनुष्य
लड्का या लड्की के माता पिता हे ओर ये पन्डित
बेटी का विवाह उसके दिव्य पिता से करा कर पाप दे
जीवन भ्रष्ट कर रहे हे व केसे वे देव
पिता अपनी पुत्री से विवाह इन कथित
पन्डितो के कहे से कर सकते हे?अगर करते हे तो उन
देवो की पत्निया केसे एक स्त्रि के साथ ये अन्याय
होता देख सकती हे?ओर
लड्का मगली हे तो ये कथित पन्डित उसका विवाह
भी देवी दुर्गा काली या सरस्वती से
क्यो नही कराते हे जो ये
देविया उसकी बुदधि अपनी जाति स्त्री के
प्रति हमेशा सही रखेगी।सत्यास्मि दर्शन
कहता हे कि इन मूर्खता के ग्यान को त्याग कर सत्य आत्म
ज्योतिष ग्यान व ग्यानियो से ये जाने कि अपना ओर अपने होने वाले
जीवन साथी का स्वभाव केसा हे ओर उसमे
ग्यान से सुधार ला कर जीवन सफ़ल बनाये।

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